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आरबीआई बुलेटिन - नवंबर 2023

16 नवंबर 2023


आरबीआई बुलेटिन - नवंबर 2023

     आज भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन का नवंबर 2023 अंक जारी किया। बुलेटिन में पाँच भाषण, चार आलेख और वर्तमान सांख्यिकी शामिल हैं।  

 

     चार आलेख हैं: I. अर्थव्यवस्था की स्थिति; II. बाज़ार के मन को पढ़ना: वित्तीय आंकड़ों से मौद्रिक नीति की अपेक्षाओं को समझना; III. भारत के विद्युत क्षेत्र में बदलाव: कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का पुन: उपयोग; IV. भारत में मौद्रिक नीति संचरण: हाल की गतिकी।  

I.   अर्थव्यवस्था की स्थिति

     वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2023 की अंतिम तिमाही में मंदी के संकेत दिख रहे हैं, क्योंकि विनिर्माण मंद हो गया है, जबकि सेवा क्षेत्र की गतिविधि, महामारी के बाद अपने विस्तार के अंत तक पहुंच गई है। आगे बढ़ते हुए, वित्तीय स्थितियों का सख्त होना वैश्विक संभावना के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम है। भारत में, जीडीपी में बदलाव की गति क्रमिक रूप से 2023-24 की तीसरी तिमाही में त्योहारी मांग प्रबल रहने के कारण उच्चतर रहने की उम्मीद है। सरकार के बुनियादी ढांचे पर व्यय, निजी पूंजीगत व्यय में बढ़ोत्तरी, स्वचालन, डिजिटलीकरण और स्वदेशीकरण से बढ़ावा मिलने से निवेश मांग आघात-सह प्रतीत होती है। हेडलाइन मुद्रास्फीति 2022-23 में 6.7 प्रतिशत और जुलाई-अगस्त 2023 में 7.1 प्रतिशत के औसत से घटकर अक्तूबर में 4.9 प्रतिशत रह गई।

II. बाज़ार के मन को पढ़ना: वित्तीय आंकड़ों से मौद्रिक नीति की अपेक्षाओं को समझना

     जॉइस जॉन, भीमप्पा . तलवार, प्रियंका सचदेवा और इंद्रनील भट्टाचार्य द्वारा  

     यह आलेख 2016 से 2023 के दौरान मौद्रिक नीति दर में बदलाव की निकट अवधि की बाज़ार अपेक्षाओं को डिकोड करने के लिए ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप (ओआईएस) दर का उपयोग करता है। इसके अलावा, यह आलेख सभी बाज़ार खंडों और परिपक्वताओं में ब्याज दर पर नीतिगत दर में प्रत्याशित और अप्रत्याशित परिवर्तनों के प्रभाव का भी विश्लेषण करता है।

मुख्य बातें:

  • 2016-2023 के दौरान, नीतिगत दर में अप्रत्याशित परिवर्तन या मौद्रिक नीति आश्चर्य दुर्लभ है जो यह सुझाव देता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक का संचार बाजार प्रत्याशाओं को निर्देशित करने में प्रभावी रहा है।   

  • ऐसा पाया गया है कि नीतिगत दर में प्रत्याशित बदलावों का दीर्घकालिक ब्याज दरों पर कोई तत्काल प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि इन्हें बाज़ार ने पहले ही समावेशित कर लिया था।

  • इसके विपरीत, मौद्रिक नीति आश्चर्य के कतिपय उदाहरणों का नीति घोषणा के दिन बाज़ार क्षेत्रों और परिपक्वताओं पर तत्काल प्रभाव पड़ा।

III. भारत के विद्युत क्षेत्र में बदलाव: कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का पुन: उपयोग  

     बृज राज और अमित कुमार द्वारा

     जैसा कि भारत पर्यावरणीय स्थिरता के साथ अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को संतुलित करने की दोहरी चुनौती से निपट रहा है, यह आलेख कोयला और जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों में लगी आस्तियों से जुड़े संभावित जोखिमों के साथ-साथ बैंकों और वित्तीय संस्थानों (एफआई), जिनका इन क्षेत्रों में एक्सपोज़र है, पर उनके संभावित प्रभाव की जांच करता है।

मुख्य बातें:

  • विश्व स्तर पर, कोयला परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण की शर्तों को सख्त करने की एक प्रत्यक्ष प्रवृत्ति है, जो ऊर्जा परिवर्तन से जुड़े जोखिमों के बारे में बढ़ती जागरूकता को दर्शाती है।

  • कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का पुनः उपयोग एक जटिल प्रयास है, लेकिन कोयला परिवर्तन तंत्र जैसे उभरते जलवायु वित्त उपकरण प्रारंभिक अवस्था में होने के बावजूद, स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव को तेज कर सकते हैं।

  • बैंक और एफआई अपने पर्यावरण, सामाजिक और सुशासन (ईएसजी) व्यवहारों में सुधार करके और उत्पादकों को पर्यावरण और उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने में मदद करने के लिए परिवर्तन वित्तपोषण प्रदान करके विद्युत क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन में योगदान दे सकते हैं।

  • भारत की विकासात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, कोयला और जीवाश्म ईंधन वित्तपोषण से सुचारु परिवर्तन के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की अनुशंसा की जाती है।

IV. भारत में मौद्रिक नीति संचरण: हाल की गतिकी

     युवराज कश्यप, अवनीश कुमार, आनंद प्रकाश और शुभांगी लाते द्वारा  

     मौद्रिक नीति चक्र में बदलाव की पृष्ठभूमि में, यह आलेख भारत में हालिया मौद्रिक नीति संचरण गतिकी की समीक्षा करता है। यह उधार और जमा दरों में प्रभाव विस्तार के स्तर का अनुमान लगाता है और प्रभाव विस्तार के संभावित निर्धारकों को रेखांकित करने का प्रयास करता है।

मुख्य बातें:

  • ऋण मूल्य निर्धारण की बाह्य बेंचमार्क-आधारित उधार दर (ईबीएलआर) प्रणाली, अधिशेष चलनिधि के सुविचारित सामान्यीकरण और मजबूत ऋण संवृद्धि ने मौजूदा सख्ती के चरण के दौरान संचरण को मजबूत किया, यद्यपि यह अभी भी पूर्ण नहीं हुआ है।

  • सावधि जमा दरों में संचरण मजबूत रहा है जबकि बचत जमा दरें काफी हद तक अपरिवर्तित बनी हुई हैं। अतएव, जमा दरों (सावधि जमा और बचत खाता जमा को मिलाकर) में वृद्धि की गति मौजूदा सख्ती के चक्र में उधार दरों में वृद्धि की गति से कम रही है, जो 2022-23 के दौरान बैंकों के एनआईएम में सुधार में परिलक्षित होती है।

  • एक पैनल ढांचे में एक अनुभवजन्य बैंक-स्तरीय विश्लेषण से संकेत मिलता है कि बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष चलनिधि और कुल जमाराशियों में कासा जमाराशियों की उच्च हिस्सेदारी से उधार दरों में गिरावट आती है। सख्ती के चक्र के दौरान उधार दरों में प्रभाव विस्तार अधिक पाया जाता है।

  • उच्च ऋण-जमा (सीडी) अनुपात, जमा और उधार दरों को बढ़ाता है। अधिशेष चलनिधि और अतिरिक्त एसएलआर जमा दरों पर प्रभाव विस्तार को कम करते हैं।

          बुलेटिन के आलेखों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

 (योगेश दयाल)

 मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/1300

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