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भारतीय रिज़र्व बैंक ने विठ्ठल नागरी सहकारी बैंक लि. लातूर, महाराष्ट्र का लाइसेंस रद्द किया

29 जून 2015

भारतीय रिज़र्व बैंक ने
विठ्ठल नागरी सहकारी बैंक लि. लातूर, महाराष्ट्र का लाइसेंस रद्द किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने विठ्ठल नागरी सहकारी बैंक लि. लातूर, महाराष्ट्र का लाइसेंस रद्द कर दिया है। यह आदेश 26 जून 2015 को कारोबार की समाप्ति से प्रभावी हो गया। पंजीयक, सहकारी समिति, महाराष्ट्र से भी बैंक के परिसमापन और उसके लिए परिसमापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने के लिए अनुरोध किया गया है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस बैंक का लाइसेंस रद्द किया क्‍योंकि

  • बैंक की वित्तीय स्थिति इतनी संकटपूर्ण थी कि उसके पुनरुज्जीवित होने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

  • यह बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 11(1) और 22(3) (क) के प्रावधानों का पालन नहीं कर रहा था।

  • बैंक अपने विद्यमान और भावी जमाकर्ताओं के दावे प्राप्त हो जाने पर उनका पूर्ण भुगतान करने की स्थिति में नहीं था।

  • बैंक का कारोबार इसके विद्यमान और भावी जमाकर्ताओं के हित के विरूद्ध किया जा रहा था।

  • बैंक को इसी प्रकार से आगे कारोबार के लिए अनुमति देने से पूरी संभावना थी कि जनता के हितों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।

लाइसेंस रद्द होने के परिणामस्वरूप विठ्ठल नागरी सहकारी बैंक लि. लातूर, महाराष्ट्र बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 5(ख) के अंतर्गत यथापरिभाषित "बैंकिंग व्यवसाय" करने से तत्‍काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

बैंक का लाइसेंस रद्द किए जाने और परिसमापन प्रक्रिया आरंभ करने से विठ्ठल नागरी सहकारी बैंक लि. लातूर, महाराष्ट्र के जमाकर्ताओं को निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) अधिनियम, 1961 के अनुसार जमाराशि के भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। परिसमापन के बाद हर जमाकर्ता निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से सामान्य शर्तों पर 1,00,000/- (एक लाख रुपये मात्र) की उच्चतम मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है।

पृष्‍ठभूमि

भारतीय रिज़र्व बैंक ने विठ्ठल नागरी सहकारी बैंक लि. लातूर, महाराष्ट्र को बैंकिंग कारोबार करने के लिए 11 दिसम्बर, 1996 को लाइसेंस मंज़ूर किया था। बदतर होती जा रही वित्तीय स्थिति को देखते हुए 14 नवम्बर 2013 को कारोबार की समाप्ति से बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा 35ए के अंतर्गत बैंक को सर्वसमावेशक निदेशों के अधीन रखा गया। अंतिम बार बढ़ाई गई अवधि 14 अगस्त, 2015 तक वैध थी।

31 मार्च 2014 को बैंक की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35 के अंतर्गत की गई बैंक की अद्यतन सांविधिक जांच से पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति और बदतर हो गई है और बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा 22(3) (क) के अंतर्गत आवश्‍यक, बाहरी देयताओं की पूर्ति के लिए बैंक के पास पर्याप्‍त आस्तियां नहीं है। बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा 11(1) के अनुसार आवश्‍यक न्‍यूनतम पूंजी और आरक्षित निधियों का भी बैंक द्वारा अनुपालन नहीं किया गया।

बैंक की लगातार रूप से खराब होती जा रही वित्‍तीय स्थिति को देखते हुए 09 दिसम्बर 2014 को बैंक के लाइसेंस को रद्द करने के लिए बैंक को कारण बताओ नोटिस जारी किया जिसमें यह पूछा गया था कि बैंकिंग कारोबार करने के लिए उसे जारी लाइसेंस क्यों न रद्द किया जाए। कारण बताओ नोटिस पर बैंक द्वारा दिए गए उत्तर की जांच की गयी लेकिन उसे संतोषजनक नहीं पाया गया और समय-समय पर उठाए गए सांविधिक और पर्यवेक्षी प्रश्‍नों के उत्‍तर नहीं दिए गए और बैंक ने बैंककारी विनियमन अधिनियम के विविध प्रावधानों का उल्‍लंघन करना जारी रखा।

बैंक की अति खराब वित्‍तीय स्थिति के कारण अन्‍य किसी मजबूत बैंक के साथ उसके विलयन की संभावना नहीं रही। अपने बलबूते पर अथवा किसी बाहरी सहायता से बैंक के पुनरुज्‍जीवन की कोई संभावना न रहने पर रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक का लाइसेंस रद्द करने का निर्णय लिया गया ।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2014-2015/2777

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