रिज़र्व बैंक गवर्नर ने 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य घोषित किया खास-खास बातें - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक गवर्नर ने 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य घोषित किया खास-खास बातें
28 अप्रैल 2005
रिज़र्व बैंक गवर्नर ने 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य घोषित किया खास-खास बातें
वक्तव्य के दो हिस्से हैं - पहले हिस्से में वर्ष 2005-06 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य है; और भाग दो में वर्ष 2005-06 के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वार्षिक वक्तव्य है। वक्तव्य के भाग एक के अनुपूरक के रूप में एक दिन पहले मैक्रोइकॉनोमिक तथा मौद्रिक गतिविधियों पर एक विश्लेषणात्मक समीक्षा जारी की गयी थी जो साधारण चार्टों तथा तालिकाओं की मदद से आवश्यक जानकारी तथा तकनीकी विश्लेषण उपलब्ध कराती है। इस वक्तव्य को प्रस्तुत किये जाने के फार्मेट में आशोधन किया गया है ताकि जुलाई में पहली तिमाही समीक्षा और जनवरी में तीसरी तिमाही समीक्षा और साथ ही साथ, पहले की तरह अक्तूबर में वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा को शामिल किया जा सके ताकि और अधिक अंतरालों के आधार पर बाज़ारों के साथ विधिवत् सम्प्रेषण की सुविधा हो सके। घरेलू गतिविधियां
बाह्य गतिविधियां
विश्वव्यापी गतिविधियां
मौद्रिक नीति की अवस्थिति
मौद्रिक उपाय
विकासात्मक और विनियामक नीतियां
रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य घोषित किया डॉ. वाइ. वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ हुई बैठक में वर्ष 2005-06 के लिए वार्षिक नीति प्रस्तुत की। आरंभ में गवर्नर महोदय ने यह स्पष्ट किया कि मौद्रिक नीति और विकासात्मक नीतियों के बीच के अन्तर को स्पष्ट करने के लिए इस वक्तव्य के प्रस्तुतीकरण फार्मेट में बदलाव किया गया है। लेकिन ऐसा करते समय गत वर्षों में अपनाए गए पैटर्न को मोटे तौर पर ध्यान में रखा गया है। तदनुसार, उन्होंने बताया कि अब तक की परंपरा के अनुसार अक्तूबर में वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा होगी जिसमें इस नीति के भाग घ् और घ्घ्, दोनों को शामिल किया जाएगा। इसके अलावा, जुलाई में इस वक्तव्य के भाग घ् की पहली तिमाही समीक्षा और जनवरी में तीसरी तिमाही समीक्षा की जाएगी। वार्षिक वक्तव्य और मध्यावधि समीक्षा को बैंकरों के साथ बैठक में प्रस्तुत किया जाता रहेगा, जबकि तिमाही समीक्षा को प्रेस को जारी किया जाएगा ताकि बदलती परिस्थितियों की मांग के अनुसार विशिष्ट उपाय अपनाने की सुविधा को बनाए रखते हुए बाजार के साथ सुनियोजित रूप से संपर्क कायम रखा जाए। घरेलू गतिविधियां वर्ष 2004-05 में सकल घरेलू उत्पाद में वफ्द्धि वर्ष 2004-05 में सकल घरेलू उत्पाद में वफ्द्धि की समीक्षा करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा फरवरी 2005 में जारी किए गए सकल घरेलू उत्पाद के अग्रिम आकलन के अनुसार वर्ष 2004-05 में सकल घरेलू उत्पाद में वफ्द्धि पिछले वर्ष के 8.5 के उच्चतर प्रतिशत की तुलना में 6.9 प्रतिशत रही। मुद्रास्फीति दर थोक मूल्य सूचकांक में बिन्दु-दर-बिन्दु आधार पर हुए परिवर्तन के अनुसार पायी गयी वार्षिक मुद्रास्फीति दर मार्च 2005 के अन्त में 5.0 प्रतिशत रही जो कि एक वर्ष पहले 4.6 प्रतिशत थी। गवर्नर महोदय ने कहा कि मुद्रास्फीति की दर और भी अधिक हो सकती थी लेकिन इस पर सफल नीतियों के हस्तक्षेप द्वारा, जिसमें राजकोषीय और मौद्रिक, दोनों तरह के उपाय शामिल थे, रोक लगायी जा सकी और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि इसे तेल की ऊंची कीमतों के प्रभाव को उपभोक्ता पर पूरी तरह से लादने (पास थ्रू) से पूरी तरह दूर रखा जा सका। औसत आधार पर, मुद्रा स्फीति की वार्षिक दर पिछले वर्ष के 5.4 प्रतिशत की तुलना में 6.4 प्रतिशत के उच्च स्तर पर रही। कच्चा लोहा, लोहा और इस्पात, खनिज तेल और कोयला खनन को छोड़कर बिन्दु-दर-बिन्दु आधार पर थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पिछले वर्ष की 3.3 प्रतिशत की तुलना में 2.0 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रही। औसत आधार पर, यह पिछले वर्ष के 3.7 प्रतिशत की तुलना में 3.1 प्रतिशत रही। औद्योगिक कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित बिन्दु-दर-बिन्दु मुद्रास्फीति दर फरवरी 2005 में 4.2 प्रतिशत रही जो कि एक वर्ष पहले 4.1 प्रतिशत थी। औसत आधार पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति पिछले वर्ष के 3.9 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2004-05 (फरवरी तक) के दौरान 3.8 प्रतिशत रही। मौद्रिक संकेतक मौद्रिक गतिविधियों का उल्लेख करते हुए गवर्नर महोदय ने कहा कि मुद्रा आपूर्ति (एम3) में पिछले वर्ष के 16.9 प्रतिशत (2,90,569 करोड़ रुपये) की तुलना में वर्ष 2004-05 के दौरान विशुद्ध परिवर्तनीय 12.8 प्रतिशत (2,57,058 करोड़ रुपये) की वफ्द्धि हुई। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सकल जमाराशियों में वफ्द्धि, पिछले वर्ष के 17.5 प्रतिशत (2,23,563 करोड़ रुपये) की तुलना में, 14.1 प्रतिशत (2,11,963 करोड़ रुपये) के निम्न स्तर पर रही। इसका आंशिक कारण यह रहा कि अनिवासी भारतीयों ने बैंकिंग तंत्र में कम जमाराशियां डालीं। वर्ष 2004-05 के दौरान आरक्षित मुद्रा में 12.1 प्रतिशत (52,616 करोड़ रुपये) की वफ्द्धि पिछले वर्ष के 18.3 प्रतिशत (67,451 करोड़ रुपये) की तुलना में निचले स्तर पर रही। रिज़र्व बैंक की विदेशी मुद्रा आस्तियों (पुनर्मूल्यन के लिए समायोजित) में पिछले वर्ष के 1,41,428 करोड़ रुपये की वफ्द्धि की तुलना में इस वर्ष 1,15,044 करोड़ रुपये की वफ्द्धि दर्ज की गयी। अलबत्ता, विदेशी मुद्रा आस्तियों के इस विस्तारित प्रभाव को चलनिधि समायोजन सुविधा के अधीन रिवर्स रिपो के साथ-साथ बाजार स्थिरीकरण योजना उपायों (एमएसएस) को पर्याप्त रूप से अपना कर निष्प्रभावी किया जा सका। मुद्रा की तुलना में शुद्ध विदेशी मुद्रा का अनुपात मार्च 2004 के 148.1 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2005 में 166.2 प्रतिशत हो गया जो कि मुद्रा भंडारों में सतत आधार पर बढ़ोतरी को दर्शाता है । खाद्येतर ऋण खाद्येतर ऋण में पिछले वर्ष के 18.4 प्रतिशत (1,25,088 करोड़ रुपये) की तुलना में 26.5 प्रतिशत (2,13,464 करोड़ रुपये), नेट ऑफ कन्वर्ज़न की वफ्द्धि दर्ज की गई। वफ्द्धिशील खाद्येतर ऋण-जमा अनुपात पिछले वर्ष के 56.0 प्रतिशत की तुलना में 100.7 प्रतिशत, नेट ऑफ कन्वर्ज़न के उच्च स्तर पर रहा। उसकी तुलना में वफ्द्धिशील निवेश-जमा अनुपात पिछले वर्ष के 58.2 प्रतिशत से काफी कम होकर 25.1 प्रतिशत रह गया जिससे उच्चतर ऋण मांग को काफी हद तक खपाया जा सका। हाल ही के वर्षों में ऋणों में तीव्र वफ्द्धि गैर-वफ्षि उद्योगों से इतर क्षेत्रों, विशेषकर आवास, लघु परिवहन चालकों और फुटकर ऋणों के कारण हुई है। वफ्षि और उद्योग के लिए जानेवाले ऋण में भी इज़ाफा हुआ है। वाणिज्यिक क्षेत्र को अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों से मिलनेवाली निधि की कुल उपलब्धता, उनके निवेशों सहित, में पिछले वर्ष के 15.7 प्रतिशत (1,21,419 करोङ रुपये) की तुलना में इस वर्ष 23.6 प्रतिशत (2,10,891 करोड़ रुपये), विशुद्ध परिवर्तनीय, की वफ्द्धि दर्ज की गई। इस तरह से, अक्तूबर 2004 की मध्यावधि समीक्षा में लगायी गयी उम्मीद के अनुसार वाणिज्यिक क्षेत्र को निधि उपलब्धता वर्ष 2004-05 के दौरान 19.0 प्रतिशत की वफ्द्धि को भी पार कर गयी। सरकारी उधार गवर्नर महोदय ने पाया कि वर्ष 2004-05 के दौरान केन्द्र सरकार के विशुद्ध बाजार उधार पिछले वर्ष के ऐसे उधारों की तुलना में 46,050 करोड़ रुपये (1,06,501 करोड़ रुपये सकल) से काफी कम रहे और इसका आंशिक कारण ऋण अदला-बदली योजना (डीएसएस) के अन्तर्गत राज्यों से केन्द्र की मिली प्राप्तियां रहा। वर्ष 2004-05 के दौरान केन्द्र और राज्यों के संयुक्त बाजार उधार सुविधाजनक चलनिधि स्थितियों के कारण 80,029 करोड़ रुपये (निवल) (1,45,603 करोड़ रुपये सकल) रहे और इनमें रिजर्व बैंक की हिस्सेदारी और निजी नियोजन के रूप में 1,197 करोड़ रुपये का कम योगदान रहा। सामान्य बाजार उधारों के अलावा, केन्द्र सरकार ने बाजार स्थिरीकरण योजना के अधीन स्थिरीकरण प्रयोजनों के लिए 65,481 करोड़ रुपये (अंकित मूल्य) जुटाये। कुल मिला कर,सरकारी प्रतिभूतियों (केन्द्र, राज्य और बाजार स्थिरीकरण योजना) द्वारा वर्ष 2004-05 के दौरान 1,45,510 करोड़ रुपये की विशुद्ध राशियां जुटायी गयीं जो कि पिछले वर्ष के दौरान 1,35,192 करोड़ रुपये (केन्द्र और राज्य) थीं। दिनांकित प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गम द्वारा केन्द्र सरकार के उधारों की भारांकित औसत लागत 40 आधार बिन्दुओं की वफ्द्धि के साथ 6.11 प्रतिशत पर पहुंच गयी जो कि पिछले वर्ष 5.71 प्रतिशत थी। वर्ष 2004-05 के दौरान जारी की गयी दिनांकित प्रतिभूतियों की भारांकित औसत अवधि समाप्ति पिछले वर्ष के 14.94 वर्ष की तुलना में 14.13 वर्ष के निचले स्तर पर रही। ऋण की मांग में बढोतरी के साथ बैंकिंग तंत्र ने अपनी शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं के हिस्से के रूप में से सरकारी प्रतिभूतियों की हिस्सेदारी में कमी की और यह मार्च 2004 के 41.3 प्रतिशत से घटकर मार्च 2005 में 38.5 प्रतिशत रह गयी। हालांकि, सरकारी प्रतिभूतियों में इस तरह की धारिता अभी भी उनकी मांग और मीयादी देयताओं के 25 प्रतिशत की न्यूनतम अनिवार्यता से अधिक बनी हुई है जो कि मार्च 2005 में 2,60,582 करोड़ रुपये के आसपास थी। बारहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट में प्रबंधन अधिनियम, 2003 में उल्लेख किए गए अनुसार केन्द्रीय बजट में, घाटे के संकेतकों के लिए एक ‘रोक’ का निर्धारण किया जाता है, जिसका अर्थ होता है राज्यों को अधिक हिस्सेदारी सौंपना। तथापि, गवर्नर महोदय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अर्थव्यवस्था की दीर्घकालीन क्षमता के दोहन के लिए राजकोषीय समेकन पर जोर दिया जाना अनिवार्य है। ब्याज दर वर्ष 2004-05 के दौरान वित्तीय बाजार आम तौर पर स्थिर बने रहे हालांकि ब्याज दर में वर्ष के दौरान बीच-बीच में उछाल का रुख देखने में आया। गवर्नर महोदय ने वर्ष 2004-05 के दौरान मुद्रा बाजार में हुए एक रोचक परिवर्तन का उल्लेख करते हुए बताया कि मार्केट रेपो और कोलेट्रालाइज्ड बॉरोविंग एंड लेंडिंग बाह्यताओं का संयुक्त औसत दैनिक कारोबार आनुपातिक रूप से कोलेट्रालाइज्ड कॉल/नोटिस मुद्रा बाजार से ऊंचे स्तर पर था। कुल मिला कर, तंत्र में अधिक निधि आने के बावजूद, ब्याज दरों में बढ़ोतरी का रुख रहा जो तेल की कीमतों में अनिश्चितता, वैश्विक ब्याज दरों में बढ़ोतरी की प्रवफ्त्ति और ऋण की बढ़ती घरेलू मांग को दर्शाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको की बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग दर मार्च 2004 के 10.25 -11.50 प्रतिशत से बढ़ कर ‘मार्च 2005 में’ 10.25 - 11.25 प्रतिशत हो गई। वाणिज्यिक बैंकों के कुल उधारों में से सब-बीपीएलआर उधारों, निर्यात ऋण को छोड़कर, का हिस्सा मार्च 2004 के 50 प्रतिशत से बढ़ कर मार्च 2005 में 10.0 प्रतिशत से भी अधिक हो गया। रिज़र्व बैंक ब्याज दर जोखिम की ओर बैंकों का ध्यान लगातार आकर्षित करता रहा है। फरवरी 2005 के अन्त में बैंकों में 3.9 प्रतिशत तक आईएफआर इकट्ठा कर लिया है। सितंबर 2004 में रिज़र्व बैंक ने बैंकों को "परिपक्वता के लिए धारित" श्रेणी में से 25 प्रतिशत निवेशों की सीमा को पार करने की अनुमति प्रदान की। इसके लिए वे एचएफटी/एएफएस श्रेणी की एसएलआर प्रतिभूतियों में अपने निवेश को एचटीएम श्रेणी में अन्तरित कर सकते हैं और यह निम्नतम अधिग्रहण लागत अथवा प्रचलित बाजार मूल्य अथवा बही मूल्य पर किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा करते समय उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि यह एनडीटीएल के 25 प्रतिशत से अधिक न होने पाए। इसके अलावा, अक्तूबर 2004 की मध्यावधि समीक्षा में बैंकों को यह सूचित किया गया था कि वे बासले मानदंडों के अनुसार मार्च 2006 के अन्त तक चरणबद्ध रूप से बाजार जोखिम के लिए पूंजी प्रभार को लागू करने के लिए अपने आपको तैयार करें। पूंजी बाजार वर्ष 2004-05 के दौरान प्रतिभूति बाजार 17 मई के अपने निम्नतम स्तर से लेकर मार्च में अपने रिकॉड़ उच्च स्तर के दौर से होकर गुजरा। एक मजबूत व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण, सकारात्मक निवेश माहौल, विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सतत निवेश आधार और उत्साहजनक कार्पोरेट वित्तीय परिणाम वर्ष 2004-05 के दौरान बाजार को प्रोत्साहन देने के प्रमुख उत्तरदायी कारक रहे। तथापि, वर्ष के दौरान मुद्रास्फीति में उछाल, मानसून में कमी, वैश्विक वित्तीय बाजार नज़रिया और तेल की अर्न्तराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढाव ऐसे खास कारण रहे जिन्होंने कुछ अनिश्चितता का माहौल भी पैदा किया। बाह्य गतिविधियां निर्यात और आयात वर्ष 2004-05 के दौरान (फरवरी तक) भारत के निर्यातों में अमेरिकी डालर के रूप में 27.1 प्रतिशत की वफ्द्धि हुयी। पिछले वर्ष यह वफ्द्धि 16.4 प्रतिशत थी। आयातों में पिछले वर्ष के 25.0 प्रतिशत की तुलना में 36.4 प्रतिशत की उच्चतर वफ्द्धि देखने में आयी। इसके परिणामस्वरूप, व्यापार घाटा पिछले वर्ष के 13.7 विलियन अमेरिकी डालर की तुलना में 23.8 बिलियन अमेरिकी डालर हो गया। भुगतान संतुलन भुगतान संतुलन का चालू खाता पिछले तीन सालों (2001-04) से लगातार अधिशेष की स्थिति में रहा है। वर्ष 2004-05 (अप्रैल-दिसंबर) के दौरान इस चालू खाते में 7.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा दर्ज किया गया जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 4.8 बिलियन अमेरिकी डालर का अधिशेष दर्शा रहा था और इससे व्यापार घाटे में हो रही बढ़ोतरी का पता चलता है। तथापि, आनेवाली पूंजी में वफ्द्धि ने चालू खाता घाटे की अच्छी तरह से भरपाई कर दी। शुद्ध परोक्ष प्राप्तियां मज़बूत बनी हुई हैं तथापि बढ़ते व्यापार घाटे के बढ़ते जाने के कारण वर्ष के लिए चालू खाते में समग्र रूप से घाटा देखने में आएगा। अप्रैल, दिसंबर 2004 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडारों में, मूल्यांकन परिवर्तनों सहित, 18.2 बिलियन अमेरिकी डँलर की शुद्ध राशियां जुड़ीं।
विदेशी मुद्रा बाजार गवर्नर महोदय के अनुसार वर्ष 2004-05 के दौरान भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार में सुव्यवस्थित स्थिति रही और रुपये ने दोनों तरफ की गति दर्शायी। रुपये की विनियम दर जो मार्च 2004 के अन्त में प्रति अमेरिकी डालर 43.39 रुपये थी उसमें जुलाई 2004 के अन्त में 6.6 प्रतिशत का अवमूल्यन हुआ और वह प्रति अमेरिकी डालर 46.45 रुपये हो गयी। रुपये में सुधार हुआ और वह मार्च 2005 के अन्त में प्रति अमेरिकी डालर 43.75 रुपये तक पहुंच गया। गवर्नर महोदय ने इस बात पर जोर दिया कि हाल ही के वर्षों में विनिमय दर नीति मोटे तौर पर लचीलेपन के साथ विनिमय दरों की निगरानी एवं प्रबंधन, किसी निर्धारित लक्ष्य अथवा एक पूर्व घोषित लक्ष्य अथवा एक बैंड के बगैर और आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप किए जाने की क्षमता के सिद्धान्तों पर आधारित रही है। वैश्विक गतिविधियां वर्ष 2004 के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था में 5.1 प्रतिशत का विस्तार हुआ जो कि 1970 के दशक के मध्य से लेकर अब तक की सर्वाधिक उच्च वफ्द्धि दर रही। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने यह अनुमान लगाया है कि वर्ष 2005 के दौरान विश्व के आर्थिक विकास की दर धीमी हो कर 4.3 प्रतिशत और वर्ष 2006 में 4.4 प्रतिशत रह जाएगी। 2004 में तेल की कीमतों में 30 प्रतिशत की तीव्र वफ्द्धि और गैर-तैल वस्तुओं की कीमतों में 19 प्रतिशत की तीव्र वफ्द्धि के बावजूद आम तौर पर मुद्रास्फीति निम्न स्तर पर रही है। गवर्नर महोदय ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी एक स्थायी मुख्य घटक बना हुआ दिखाई देता है और यह स्फीतिजनक प्रभावों के मूल्यांकन के दूसरे दौर में भी इसे प्रमुख घटक बनाए जाने की मांग करता है। उन्होने कहा कि इसके अतिरिक्त, चालू खाते और राजकोषीय असंतुलनों और कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अत्यधिक ऊपर उठाने (लीवरेज)के कारण अनिवार्य हुए चालू खाता और विनिमय दर समायोजन से विकास को खतरा हो सकता है। नीतिगत दरों को अमेरिका में ऊपर उठाया गया है लेकिन प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ये अभी भी तटस्थ स्तर से काफी नीचे हैं। हालांकि 2004 में उभरते हुए बाजारों में शुद्ध निजी पूंजी प्रवाहों में 32 प्रतिशत की तीव्र वफ्द्धि हुई और वे लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गये फिर भी इन स्तरों का आनेवाले वर्षों में बनाए रखना कठिन हो सकता है। यदि इस पफ्ष्ठभूति में अनपेक्षित मैक्रोइकानोमिक अथवा भूराजनैतिक गतिविधियां घटित होती हैं तो अपेक्षित समायोजन की मात्रा में व्यापक विस्तार हो सकता है। समय बीतने के साथ-साथ, उदारीकरण एवं पूंजी खाते में खुलेपन के साथ शेष विश्व के साथ भारत के वाणिज्यिक और वित्तीय संबंधों में बढ़ोतरी हो रही है। जहां इस प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किए हैं, वहीं इससे नई चुनौतियां और जोखिम भी पैदा हुए हैं और एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में वफ्हत नीतियों में बदलाव अनिवार्य हो गया है। वर्ष 2005-06 की मौद्रिक नीति की अवस्थिति वर्ष 2004-05 के दौरान, मौद्रिक नीति को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से अक्तूबर 2004 की मध्यावधि समीक्षा में अवस्थिति में परिर्वतन करना पड़ा। सबसे पहले, 81,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त चल निधि को आगे लाया गया था। दूसरे, वर्ष की पहली छमाही में थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में अपेक्षित स्तर से अधिक बढ़ोतरी हुई। तीसरे, खाद्य मूल्यों में मौसमी कभी पूरी तरह से देखने में नहीं आयी। चौथे, वस्तुओं के अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य ऊंचे और उतार-चढ़ाव वाले बने रहे। पांचवें, कई देशों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मौद्रिक नीति अवस्थिति अत्यधिक समायोजक के स्तर से तटस्थता के स्तर पर आ रही थी। छठे,अन्तर्राष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों के दबावों को घरेलू मुद्रास्फीति पर नहीं डाला जा सकता था क्योंकि इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्रास्फीतिकारी जटिलताएं बढ़ने का संकट रहता। सातवें, अनश्चितताओं के माहौल में वित्तीय बाजारों की प्रतिकूल प्रतिक्रिया रही। आठवें, 17 मई को प्रतिभूति बाजार अपने निम्न स्तर पर पहुंच गया था। अन्तत: ये गतिविधियां ऐसे समय पर घटित हुई जब औद्योगिक विकास एक लंबे समय की धीमी प्रगति के बाद उबरने का प्रयास कर रहा था और खाद्येतर ऋण में भी वफ्द्धि हो रही थी। ऐसी स्थिति में रिज़र्व बैंक को मुद्रास्फीतिजनक अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए विकास के विचार के बीच संतुलन करना पड़ा। मुद्रास्फीति में आपूर्ति घटकों की भूमिका को देखते हुए प्रतिक्रिया सरकार के अनुरूप रही। रिज़र्व बैंक ने मूल्य स्थिरता के प्रति अपनी वचनबद्धता की ओर संकेत करते हुए मध्यावधि समीक्षा में ‘मूल्य स्तर के संचलन पर अति निकट से निगरानी’ वाले अपने रुख में बदलाव करते हुए ‘मूल्य स्थिरता को समान महत्व’ दिया है। इसी प्रकार इस प्रयोजनार्थ चलनिधि प्रबंधन को महत्व प्रधान करते हुए ‘पर्याप्त चलनिधि’ के प्रावधान की जगह ‘उचित चलनिधि’ को रखा है। नीतिगत उपायों को इस प्रकार तैयार किया गया कि मुद्रा प्रसार संभावनाओं के लिए उचित परिस्थितियां तैयार की जा सवें । वर्ष 2004-05 के दौरान निम्नलिखित उपाय बहुत ही सूझबूझ और समझदारी के साथ किए गए। सबसे पहले रिज़र्व बैंक ने कई मौकों पर बाजार को मुद्रा प्रसार की आपूर्ति प्रवफ्ति के अपने मूल्यांकन का संकेत दिया। दूसरे,बाजार को ‘उत्पादकों ’और ‘ग्राहकों’ के स्तर पर अलग-अलग स्तर के व्यवहार के बारे में बताया गया। तीसरे, सरकार ने आर्थिक उपायों का उपयोग किया, विशेष रूप से तेल पर उत्पाद और सीमा शुल्क में कमी की गयी। चौथे, निगमों ने भी अपनी मूल्यशक्ति को तर्कसंगत बनाते हुए उचित प्रतिक्रिया व्यक्त की। पांचवें, सरकार द्वारा बाज़ार स्थिरीकरण योजना की सीमा 60,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 80,000 करोड़ रुपये कर दी। छठे, चलनिधि समायोजन सुविधा के अंर्तगत रिवर्स रिपो के लिए ओवर नाइट फिक्स्ड दर लागू की गयी। सातवें, सीआरआर को एव प्रतिशत बिन्दु को आधा बढ़ाकर 5.0 प्रतिशत कर दिया गया। आठवें, सीआरआर के लाभ को बैंक दर से अलग करते हुए 3.5 प्रतिशत तक कम कर दिया गया ताकि मौद्रिक उपाय के रूप में इसकी प्रभावोत्पादकता में वफ्द्धि हो सके। नौवें, बैंकों को अनुमति दी गयी कि वे अपने निवेशों का अंतरण, मूल्य ह्रास का प्रावधान करने के पश्चात, अपने सांविधिक न्यूनतम एसएलआर अपेक्षाओं की सीमा तक एचटीएम श्रेणी में कर सकते हैं। आखिर में चलनिधि समायोजन सुविधा के अंर्तगत रिवर्स रिपो की निर्धारित दर को 25 आधार बिन्दु बढ़ाकर 4.75 किया गया। इन पैकेज उपायों के प्रति वित्त बाजार ने सकारात्मक रुख अपनाया और परिणामस्वरूप वर्ष की अंतिम तिमाही में ब्याज दरों में स्थिरता आयी, भले ही वह उच्च स्तरों पर थी, परन्तु वर्ष के मध्य में अंकित इसी वर्ष के उच्च मान से कम थी। इसके अलावा, वाणिज्यिक क्षेत्र व ो ऋण उपलब्धता निर्बाध रूप से जारी रही और सरकार के उधार लेने के कार्यक्रम को आसानी से पूरा किया जा सका। मौद्रिक नीति को संचालन करने में रिज़र्व बैंक को दो मजबूत विचारधाराओं के अंतर को मिटाने का महत्वपूर्ण कार्य करना पड़ा। चूंकि मुद्रा स्फीति आपूर्ति प्रेरित थी, यह तर्क दिया जाता था कि प्रत्यक्ष मौद्रिक नीति कार्रवाई संभवत: उचित न हो क्योंकि उद्योग अभी मंदी के दौर से उबर ही रहे थे। दूसरी ओर, अधिक चलनिधि रहने, ऋण वफ्द्धि में तेजी, तेल मूल्य झटकों को पूरी तरह से पास थ्रू न किया जाना, तथा उसके दूसरे चरण के प्रभावों की परिस्थितियों के फलस्वरूप मुद्रास्फीति संभावनों में ह्रास। दूसरा तर्क मुद्रास्फीति की संभावनाओं को रोकने के प्रति मौद्रिक नीति के पक्ष में दिया जा रहा था। समग्र रूप से विचार के पश्चात, रिज़र्व बैंक ने सीआरआर और रिवर्स रिपो रेट को उचित रूप से बढ़ाते हुए मूल्य स्थिरता वे प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता का संकेत दिया। वर्ष 2004-05 के दौरान हुई गतिविधियों के ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति विभिन्न बातों पर निर्भर करेगी। इनमें मैक्रोइकोनोमिक परिदृश्य, वैश्विक विकास तथा शेष जोखिम सम्मिलित होंगे। सर्व प्रथम वर्ष 2005-06 में वफ्द्धि की संभावना तेल बाजार, जो ऊंचाइयां छू रहा है, की परिस्थितियों के कारण नरम हो सकती है। दूसरे, यदि थोक मूल्य सूचकांक पर खनिज़ तेलों की कीमतों के प्रभाव को अलग किया गया तो मुद्रास्फीति व ा प्रभाव नरम रहेगा। तीसरे, 2004-05 में खाद्येतर ऋणों ने 55 वर्षों में दूसरी बार सर्वाधिक वफ्द्धि दर्ज की। परिणाम स्वरूप उत्पादन क्षेत्रों के लिए पर्याप्त ऋण सुनिश्चित करना होगा और सरकारों के उधार कार्यक्रमों का निभाव करना होगा। चौथे, भले ही पिछले वर्ष की तुलना में 2004-05 के लिए उधार कार्यक्रम महत्वपूर्ण रूप से अधिक है तथापि यह 2002-03 तथा 2003-04 की जरूरतों जितना ही है, जबकि उक्त वर्षों में ऋण वफ्द्धि कम ही थी। पाँचवें, चालू खाता, जो लगातार तीन वर्षों से अधिशेष की स्थिति में था, कमी दर्शा रहा है। पूंजीगत खाता ठोस रूप से अधिशेष व ी स्थिति में है। वर्तमान संकेतों से पता चलता है कि ये प्रवफ्तियां 2005-06 में भी जारी रहेंगी और इसके परिणामस्वरूप बाह्य क्षेत्र मजबूत और भरोसेमंद होगा तथा वैश्विक स्तर पर लगने वाले झटकों, बेशक, अप्रत्याशित ही सही, से इनकार नहीं किया जा सकता। इन सभी मुों िको ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति निर्धारण के प्रयोजनार्थ 2005-06 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वास्तविक वफ्द्धि लगभग 7.0 प्रतिशत रखी जा सकती है। बिन्दु-दर-बिन्दु आधार पर 2005-06 में मुद्रा स्फीति की दर 5.0-5.5 प्रतिशत की रेंज में हो सकती है और तेल बाजार में तेल की वैश्विक कीमतों और घरेलू खपत पर बनी हुई अनश्चितताओं का असर पड़ सकता है। सकल घरेलू उत्पाद की वास्तविक वफ्द्धि तथा मुद्रा स्फीति के सुसंगत मुद्रा आपूर्ति (एम 3) के अपेक्षित प्रसार को 14.5 प्रतिशत रखा गया है और अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल जमाराशियां 15.0 प्रतिशत से ऊपर मानी गयी हैं। बैंकों के गैर एसएलआर निवेशों को सम्मिलित करते हुए गैर-खाद्यान्न बैंक ऋण में लगभग 19.0 प्रतिशत की वफ्द्धि का अनुमान लगाया गया है। ऋण प्रसार के इस दायरे से उम्मीद है कि अर्थ व्यवस्था के सभी उत्पाद के क्षेत्रों की ऋण आवश्यकताएं पर्याप्त रूप से पूरी हो सकेंगी। 2005-06 के लिए मौद्रिक प्रक्षेपणों के अंर्तगत रिज़र्व बैंक असंभावित गतिविधियों को छोड़कर ऋण प्रबंधन का संचालन करने की उम्मीद रखता है, 2004-05 के दौरान मुद्रा स्फीति की दर में घटबढ़ के कारण मुद्रा स्फीतिकारी संभावनाओं की वापसी से हाल के वर्षों में हुए लाभों को समेकित करने की आवश्यकता भी है। रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करना जारी रखेगा कि सिस्टम में उचित चलनिधि रखी जाती है ताकि मूल्य स्थिरता के प्रयोजन को सिद्ध करते हुए ऋण की सभी उचित आवश्यकताएं पूरी की जा सवें । इसवे प्रयोजनार्थ, रिज़र्व बैंक खुले बाजार के कार्यकलापों, जिसमें बाज़ार स्थिरीकरण योजना, चलनिधि समायोजन सुविधा और सीआरआर सम्मिलित हैं, और अपनी इच्छानुसार परिस्थितियों के मे ि नजर नीतिगत उपायों को उपयोग में लाकर चलनिधि की सक्रिय मांग प्रबंधन की अपनी नीति को जारी रखेगा। संक्षेप में, अर्थ तंत्र में किसी प्रतिकूल और असंभावित घटनाओं के घट जाने को छोड़कर तथा मुद्रास्फीतिकारी के परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 2004-05 में मौद्रिक नीति के सभी तत्व अक्तूबर 2004 के मध्यावधि समीक्षा में विनिर्दिष्ट किये गये अनुसार जारी रहेंगे। ये निम्नानुसार हैं -
मौद्रिक उपाय क) बैंक दर - 6 प्रतिशत पर अपरिवर्तित।
ख) रिवर्स रिपो दर वर्तमान मैक्रोइकोनामिक और समग्र मौद्रिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर निम्नलिखित निर्णय किये गये हैं :
वर्तमान में, रिपो दर को रिवर्स रिपो दर के साथ जोड़ा जाता है, इसे जारी रखा जाएगा। तथापि, रिवर्स रिपो दर के बीच स्प्रेड में 29 अप्रैल 2005 से 25 आधार बिन्दुओं की कमी करके उसे 125 आधार बिन्दु से 100 आधार बिन्दु करना। तद्नुसार, एलएएफ के अंतर्गत निर्धारित रिपो दर 6.0 प्रतिशत ही रहेगी। ख) नकदी प्रारक्षित अनुपात - 5.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित। भाग एक की पहली तिमाही समीक्षा 26 जुलाई 2005 को की जाएगी जिसमें परिस्थितियों के मेनिजर ठोस उपाय किए जाने का लचीलापन बनाये रखा जायेगा। वर्ष 2005-06 के लिए विकास और विनियामक नीतियाँ गवर्नर महोदय ने इस बात पर जोर दिया कि समग्र रूप से हमारा नज़रिया इस प्रकार रहा है जिससे कि संस्थागत मजबूती के सुधार, अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम व्यवहारों के समान विनियामक और पर्यवेक्षी प्रक्रियाओं को मजबूत करने तथा आवश्यक तकनीकी एवं विधिक मूलभूत सुविधाएं विकसित करने के लिए रिज़र्व बैंक की भूमिका को नया रूप दिया जा सके। समग्र प्रणाली को स्थिरता देने तथा आम आदमी की सेवा करने को ध्यान में रखते हुए वर्तमान चरण में नीतिगत वक्तव्य निम्नांकित महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर केन्द्रित है:
ब्याज दर नुस्खे सामान्यत: ब्याज दरों पर से नियंत्रण हटा लिये गये हैं, केवल (व) बचत जमा खातों (वव) अनिवासी भारतीय जमाराशियों (ववव) 2 लाख रुपये तक के लघु ऋणों और (वख्) निर्यात ऋण को छोड़कर। चूंकि कुछ क्षेत्रों में ब्याज दरों, जो अब तक विभिन्न कारणों से नियंत्रित की जाती थीं, पर से नियंत्रण हटाकर वित्तीय प्रणाली की गतिविधियों को अधिक प्रतिस्पर्धा तथा मजबूती देने की बात कई चरणों पर युक्तिसंगत प्रतीत होती है, अत: प्रस्ताव किया जाता है कि यथा स्थिति रहने दी जाए क्योंकि ब्याज दरों पर उपर्युक्त विनियमों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा अभी भी जारी है। वित्तीय बाजार मुद्रा बाजार मौद्रिक नीति ढांचा तैयार करने के संदर्भ में मुद्रा बाजार में हाल ही में हुई घटनाओं तथा वर्तमान स्थिति की समीक्षा करने के प्रयोजनार्थ मुद्रा बाजार पर एक तकनीकी समूह का गठन किया गया। इस समूह की रिपोर्ट पर मुद्रा, विदेशी मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों पर गठित तकनीकी परामर्शदात्री समिति द्वारा विचार किया गया। तद्नुसार, निम्नांकित उपायों का प्रस्ताव किया गया : काल/नोटिस/सावधि मुद्रा बाजार
(वव) बाजार रिपाे
(ववव) जमा प्रमाणपत्र (सीडी)
समूह की रिपोर्ट को रिज़र्व बैंक वेबसाईट पर अधिकाधिक प्रसार के वास्ते डाली जा रही है। आस्ति आधारित वाणिज्यिक पेपर और अतिरिक्त इंन्ट्रा डे एलएएफ को लागू करने पर भविष्य में बाजार भागीदारों के परामर्श से विचार किया जाएगा। ओटीसी रुपया डेरिवेटिव को लागू करने संबंधी अपेक्षाओं पर विचार तब किया जा सकेगा जब ओटीसी डेरिवेटिव के बारे में कानूनी स्पष्टीकरण दे दिये जाएं और उचित लेखांकन मानदंड लागू कर दिये जाएं। सरकारी प्रतिभूति बाजार (ख) केन्द्र सरकार प्रतिभूति बाजार : मध्यावधि ढांचा एफआरबीएम अधिनियम की शर्तों के अनुसार रिज़र्व बैंक पहली अप्रैल 2006 से सरकारी प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गम में भारीदार नही होगा। भविष्य की इन आवश्यकताओं को पूरा करने और रिज़र्व बैंक तथा बाजार भागीदारों को उचित रूप से तैयार करने के लिए केन्द्र सरकार के प्रतिभूति बाजार पर एक तकनीकी समूह का गठन किया गया। इसके पहले एक अन्य समूह (डॉ. आर.एच.पाटील की अध्यक्षता में) ने सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्राथमिक व्यापारियों के कार्य की जांच की थी। रिपोर्टों पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति में चर्चा की गयी थी। तद्नुसार निम्नांकित उपाय प्रस्तावित किए जा रहे हैं।
प्राथमिक व्यापारियों के हामीदारी दायित्वों के पुनर्विन्यास पर तकनीकी दल की सिफ़ारिशें, प्राथमिक नीतियों में प्राथमिक व्यापारियों को अनन्य रूप से अनुमति देना, ‘व्हैन इश्यूड मार्केट’ की शुरुआत और सरकारी प्रतिभूतियों में सीमित मंदड़िया बिक्री पर सरकार के साथ परामर्श करके विचार किया जायेगा। (घ) सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री : छूट सरकारी प्रतिभूति बाजार को और गहरा करने की सुविधा के लिए यह प्रस्ताव है कि :
(ङ) राज्य सरकारों के बाजार उधार बारहवें वित्त आयोग ने सिफारिश की है कि राज्यों के भावी उधार के लिए केंद्र वित्तीय मध्यस्थ के रूप में कार्य न करे और निधियों के ऋण हिस्से को जुटाने के लिए उन्हें सीधे बाजार में संपर्क की अनुमति दी जाये। चूंकि इससे बाजार उधार कार्यक्रमों पर बहुत असर पड़ेगा, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्र और राज्य सरकारों के साथ परामर्श करके इस प्रक्रिया को आसान बनाने में सहायता करेगा। पहले कदम के रूप में 8 अप्रैल 2005 को राज्य वित्त सचिवों के साथ परामर्श आयोजित किये गये। विदेशी मुद्रा बाजार
(क) विदेशी मुद्रा बाजार दल : मध्यावधि रूपरेखा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित एक आंतरिक दल ने चुनिंदा उभरते हुए बाजारों के विदेशी मुद्रा बाजार उदारीकरण की समीक्षा की और संबंधित क्षेत्रो में उदारीकरण को ध्यान में रखते हुए मौजूदा नियामक व्यवस्था की जांच की ताकि और उदारीकरण के लिए क्षेत्रों की पहचान की जा सके। दल की रिपोर्ट पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति में चर्चा की गयी। दल द्वारा की गयी सिफ़ारिश के अनुसार निम्नलिखित उपाय किये जा रहे हैं :-
दल की अन्य सिफारिशें कॉर्पोरेटों के कवड़ छूट विकल्पों और उनके देशी परिचालनों के संबंध में आर्थिक जोखिम के बचाव से संबंधित हैं जिन पर पूंजी खाता परिवर्तनीयता की प्रगति अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में उदारीकरण और समग्र भुगतान संतुलन की प्रवफ्त्ति को ध्यान में रखते हुए विचार किया जायेगा।
(ख) विदेशी निवेश : उदारीकरण विदेश में भारतीय निवेशों को बढ़ाने के लिए यह प्रस्ताव है कि :
(ग) विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में विदेशी मुद्रा खाते : उदारीकरण प्रक्रिया को और उदार बनाने के लिए यह प्रस्ताव है कि :
ऋण वितरण तंत्र
(क) वफ्षि को ऋण की उपलब्धता वफ्षि को ऋण की उपलब्धता और बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय शुरू किये गये हैं :-
(ख) माइक्रो वित्त माइक्रो-वित्त गतिविधि को और बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित उपाय शुरू किये गये है:-
(ग) लघु उद्योगों को ऋण की उपलब्धता ऋण की उपलब्धता और आसान बनाने की दृष्टि से निम्नलिखित उपाय शुरू किये गये हैं:
(घ) मझौले उद्यमों के लिए ऋण उपलब्धता रिज़र्व बैंक मझौले उद्यमों की बढ़ती हुई वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तौर-तरीके ढूंढेगा। क्षेत्र के लिए ऋण पुनर्संरचना और पुनर्वास की आसान प्रणाली के बारे में भी विचार किया जा रहा है।
(ङ) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पुनर्संरचना और विकास क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का भारतीय वित्तीय प्रणाली में ऋण वितरण के एक प्रभावी साधन के रूप में स्थापित करने के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्य - निष्पादन की समीक्षा कर रहा है, विलयन/समेकन के माध्यम से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पुनर्संरचना की छान-बीन कर रहा है, प्रायोजक बैंकों में परिवर्तन कर रहा है, न्यूनतम पूंजी आवश्यकता की समीक्षा कर रहा है और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के विनियमन, पर्यवेक्षण और गवर्नेन्स के लिए यथोचित उपायों के सुझाव दे रहा है।
(च) प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार चूंकि ऐसे अनेक मामले हैं, जिन पर इस संबंध में विचार किया जाना जरूरी है, यह उचित होगा कि उन पर चर्चा की जाए और उनकी गहराई से जांच की जाये। विवेकपूर्ण उपाय
(क) बैंकों के विलयन तथा समामेलन संबंधी नीति संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की सिफारिशों के अनुपालन में और सरकार के साथ परामर्श के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर यह प्रस्ताव किया गया है कि :
(ख) वित्तीय महासमूहों का पर्यवेक्षण अंतर-समूह लेनदेनों तथा ऋण जोखिमों की निगरानी की दृष्टि से एक पायलट प्रक्रिया शुरू की ताकि प्रधान विनियामकों द्वारा प्रत्येक वित्तीय कंपनी की नामित संस्थाओं से सूचना प्राप्त की जा सके। उक्त प्रक्रिया की निगरानी पर समुचित रूप से ध्यान केंद्रित करने के लिए सेबी के अध्यक्ष और आइआरडीए के अध्यक्ष से परामर्श करके यह प्रस्ताव किया गया है कि :
(ग) जमाकर्ताओं के हित जमाकर्ताओं का हित भारत की बैंकिंग प्रणाली के विनियामक ढाँचे के रूप में बैंक और इसे बैंककारी विनिमयन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत अनेक स्थानों पर उठाया गया है। इसके अलावा, अधिनियम के अनुसार बैंकिंग कारोबार करने हेतु लाइसेंस मंजूर करते समय अनिवार्य रूप से ध्यान में रखे जाने कुछ विचार ये हैं कि क्या कंपनी की गतिविधियाँ जमाकर्ताओं के हितों के लिए हानिकारक हैं या उनके होने की संभावना है अथवा क्या वे सार्वजनिक हित के प्रतिकूल तो नहीं है। हमारे देश में किसी विशिष्ट जमाकर्ता, जो अच्छी बचत के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढ़ता है, की सामाजिक-आर्थिक पहचान का महत्व बैंक के अन्य भागधारकों (स्टेकहोल्डर्स)की तुलना में विशेष होता है। सार्वजनिक सेवाओं के संबंध में प्रक्रियाओं एवं कार्य निष्पादन लेख परीक्षा समिति (अध्यक्ष एस. एस. तारापोर) ने बैंकों द्वारा साधारण जमाकर्ताओं के साथ किये जानेवाले व्यवहार पर असंतोष जाहीर किया है। तदनुसार, गवर्नर ने प्रस्ताव किया है कि
(घ) वित्तीय रूप से बाहर करना (एक्स्ल्यूजन) उन बैंकिंग प्रक्रियाओं के बारे में चिंताएं जायज हैं जो एक बहुत बड़ी आबादी, खास तौर पर पेन्शन भोगियों, स्वरोज़गार में लगे और ऐसे व्यक्तियों, जो असंगठित क्षेत्र में रोज़गार में लगे हुए हैं, को आमंत्रित करने के बजाये दुत्कारती हैं। इस पफ्ष्ठभूमि में -
(ळ) ग्राहक सेवा उदारीकरण और बढ़ी प्रतिस्पर्धा से बहुत लाभ होते हैं लेकिन अनुभव से पता चलता है कि उपभोक्ताओं के हितों को आवश्यक रूप से पूरी रक्षा नहीं दी जाती और उनकी शिकायतों पर ठीक तरह से ध्यान नहीं दिया जाता। इन मुद्दों को विचार में लेते हुए यह निर्णय लिया गया है कि -
(च) भारत में नया पूंजी पर्याप्तता ढांचा : लागू करना
(छ) निजी बैंकों में स्वामित्व एवं गवर्नेंस भारत सरकार के परामर्श से रिज़र्व बैंक ने निजी क्षेत्र के बैंकों ने स्वामित्व और गवर्नेंस के लिए नीतिगत ढांचे पर प्रारूप दिशानिर्देशों पर प्राप्त फीडबैक के आधार पर अंतिम दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं। रिज़र्व बैंक निजी क्षेत्रीय बैंकों में स्वामित्व तथा गवर्नेंस से संबंधित बैंक-वार संवाद स्थापित करेगा ताकि अनुपालन के लिए समयबद्ध ढांचा तैयार किया जा सके।
(ज) मानक आस्तियों के सिक्युरिटायजेॅशन पर दिशानिर्देश बाज़ार के व्यवस्थित विकास को सुनिश्चित करने के लिए बैंकों/वित्तीय संस्थाओं तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा मानक आस्तियों के सिक्युरिटायज़ेशन पर प्रारूप दिशानिर्देश तैयार किये गये थे और उन्हें अभिमतों के लिए रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया था। फीडबैक के आधार पर मानक आस्तियों के सिक्युरिटायज़ेशन पर प्रारूप दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया जायेगा।
(झ) अनर्जक आस्तियों की खरीद/बिक्री के लिए दिशा-निर्देश अनर्जक आस्तियों से संबंधित समस्याओं से प्रभावकारी ढंग से निपटने के लिए बैंकों को और अधिक विकल्प प्रदान करने के उदेश्य से अनर्जक आस्तियों की बिक्री/खरीद विषय पर दिशा-निर्देशों का प्रारूप जारी किया गया। उसके संबंध में बैकों से अप्रैल 2005 के अंत तक विचार मांगे गये। प्राप्त फीडबैक के आधार पर दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दिया जाएगा।
(ट) कंपनी ऋण पुन: संरचना (सीडीआर) प्रक्रिया में संशोधन कंपनी ऋण पुन:संरचना प्रक्रिया के कार्यनिष्पादन की समीक्षा की गयी है। अंतिम निर्णय लिये जाने से पूर्व परिपत्र का प्रारूप उसके व्यापक प्रचार के लिए सार्वजनिक किया गया है ।
(ठ) भारतीय वित्तीय सेवा क्षेत्र में हितों के टकराव (कनफिल्क्ट ऑफ इंटरेस्ट) विषय पर कार्य दल कनफिल्क्ट ऑफ इंटरेस्ट इन द इंडियन फाइनेंशियल सर्विसेस सेक्टर (अध्यक्ष : डी.एम.सातवलेकर) पर कार्य दल की रिपोर्ट जून 2005 के अंत तक आ जाने की उम्मीद है। उसे स्वीकार करने के लिए सिफारिश करने से पूर्व उसके व्यापक प्रसार के लिए उसे पब्लिक डोमेन पर डाला जाएगा। संस्थागत गतिविधियां भुगतान तथा निपटान प्रणाली
(क) भुगतान तथा निपटान प्रणाली : कार्रवाई बिंदु भुगतान तथा निपटान प्रणाली पर विज़न दस्तावेज के संबंध में प्राप्त फीडबैक के आधार पर भुगतान प्रणाली के उन्नयन के लिए एक रोड मैप तैयार किया गया जिसे अगले तीन वर्षों (2005-06) में लागू किया जाएगा । कार्रवाई बिंदुओं का उल्लेख करते हुए विज़न दस्तावेज को इसके व्यापक प्रसार के लिए जून 2005 तक पाब्लिक डोमेन पर डाला जाएगा।
(ख) भुगतान तथा निपटान प्रणाली के विनियमन तथा पर्यवेक्षण के लिए बोड़ 8 फरवरी 2005 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किये गये अनुसार रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोड़ की एक समिति के रूप में भुगतान तथा निपटान प्रणाली के विनियमन तथा पर्यवेक्षण के लिए बोड़ (बीपीएसएस) का गठन किया गया।
(ग) इलैक्ट्रोनिक पेमेंट प्रोडक्ट : स्थिति तथा प्रस्तावित कार्रवाई रिज़र्व बैंक ने राष्ट्रीय इलैक्ट्रोनिक निधि अंतरण (एनईएफटी) प्रणाली प्रारंभ करने का प्रस्ताव किया है जिसके चलते पूरे देश की नेटवर्क से जुड़ी सभी बैंक शाखाओं में निधियों के इलैक्ट्रोनिक अंतरण के लिए टी+0 निपटान संभव होगा। नेटवर्क से न जुड़ी बैंक शाखाओं में इलैक्ट्रोनिक रूप में निधियों के अंतरण की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एनईएफटी (विस्तारित) प्रणाली लागू की जाएगी।
(घ) सूचना सुरक्षा को मज़बूत बनाना अपने काम-काज के लिए वित्तीय क्षेत्र की आंतरिक तथा बाहरी नेटवर्कों पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए सूचना की सुरक्षा काफी महत्वपूर्ण हो गयी है । इस दिशा में रिज़र्व बैंक ने बैंकों में सूचना की एसएफएमएस का अधिक-से-अधिक उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, क्योंकि यह अंतर/आंतर बैंक लेनदेनों के लिए पीकेआई एनेबल्ड है ।
सूचना प्रौद्योगिकी
प्रौद्योगिकी नीति : विज़न दस्तावेज वित्तीय क्षेत्र की टेक्नोलॉजी संबंधी योजनाओं को सुविधा प्रदान करने के उदेश्य से रिज़र्व बैंक वित्तीय क्षेत्र प्रौद्योगिकी विज़न दस्तावेज तैयार कर रहा है जिसे व्यापक प्रसार के लिए पब्लिक डोमेन पर डाला जाएगा। प्राप्त फीडबैक के आधार पर कार्रवाई बिंदुओं को अंतिम रूप दिया जाएगा। शहरी सहकारी बैंक (क) शहरी सहकारी बैंक : मध्यावधि रूपरेखा शहरी सहकारी बैंकों की आकार, परिचालन का क्षेत्र, कार्य निष्पादन तथा शक्ति जैसी विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए शहरी सहकारी बैंकों के लिए विज़न दस्तावेज़ का प्रारूप तैयार करके रिज़र्व बैंक की वेब साइट में रखा गया। प्राप्त फीडबैक के आधार पर शहरी सहकारी बैंकों के लिए वर्ष 2010 तक के लिए मध्यावधि रूपरेखा तैयार की जा रही है। मध्यावधि रूपरेखा को व्यापक प्रसार तथा यथोचित कार्यान्वयन हेतु पब्लिक डोमेन पर डाला जाएगा। इस क्षेत्र से जुड़े विभिन्न पक्षों के साथ सतत संपर्क स्थापित करने के लिए शहरी सहकारी बैंक की स्थायी सलाहकार समिति का अधिक से अधिक उपयोग किया जा रहा है।
(ख) कमजोर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों का ढांचा बदलना शहरी सहकारी बैंकों के महत्व को ध्यान में रखते हुए रिज़र्व बैंक ने कमजोर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकाें के पुनर्वास हेतु संबंधित राज्य सरकारों तथा बैंकों के प्राधिकारियों के साथ बातचीत की प्रक्रिया प्रारंभ की है। जहां आवश्यक हो, वहां विलय/समामेलन के विकल्प पर विचार किया जा सकता है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां ऋण प्रदान के माध्यम के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त समुचित रूप से उपलब्ध करवाने के विषय पर विचार कर रहा है। राज्य कोषागारों के कंप्यूटरीकरण तथा ऑन लाइन संपर्क पर कार्य दल रिज़र्व बैंक ने राज्य कोषागारों के कंप्यूटरीकरण तथा ऑन लाइन संपर्क पर एक कार्य दल गठित किया है जो विभिन्न राज्यों के कोषागारों के कामकाज की वर्तमान प्रक्रिया, प्राप्त राशियों की लेखा विधि तथा भुगतान आदि का अध्ययन करेगा। लोक सेवाओं के संबंध में प्रक्रिया तथा कार्यनिष्पादन लेखा परीक्षा पर स्थायी समिति रिज़र्व बैंक द्वारा गठित लोक सेवाओं के संबंध में प्रक्रिया तथा कार्य निष्पादन लेखा परीक्षा पर स्थायी समिति (अध्यक्ष : श्री एसॅ.एस.तारापोर) का कार्यभार मार्च 2005 से समाप्त हो गया है। नियमित आधार पर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए बैंकों की तदर्थ समितियों को ग्राहक सेवा पर नियमित स्थायी समिति के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। रिज़र्व बैंक द्वारा प्रदान की जा रही सेवा की लगातार नियमित आधार पर निगरानी के लिए एक प्रणाली स्थापित की जा रही है।
विधिक सुधार : गतिविधियों की समीक्षा क्रेडिट इन्फर्मेशन कंपनीज़ (रेग्युलेशन) बिल, 2004 और गवर्नमेंट सिक्युरिटीज बिल, 2004 संसद में प्रस्तुत किये गये। वेंद्रीय बजट 2005-06 में सूचित किये अनुसार, सरकार, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1934 और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 में कतिपय आशोधनों पर विचार करेगी। इसके अलावा, भुगतान और निपटान प्रणालियों के विनियमन और पर्यवेक्षण के लिए बोड़, भुगतान और निपटान बिल को अंतिम रूप दे रहा है। मध्यावधि समीक्षा वार्षिक नीति वक्तव्य की समीक्षा 25 अक्तूबर 2005 को की जायेगी।
सूरज प्रकाश सहायक महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2004-2005/1124 |