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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य की घोषणा की

18 अप्रैल 2006

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य की घोषणा की

मुख्य-मुख्य बातें

  • समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकॉनमिक) विशेष रूप से वित्तीय स्थिरता बनाये रखने के लिए ऋण की गुणवत्ता और वित्तीय बाजार की स्थितियों पर ध्यान
  • मूल्य स्थिरता के अनुरूप वृद्धि की गति को आगे बढ़ाने में सहायक मौद्रिक और ब्याज दर परिवेश
  • ब्याज दर, रिवर्स रेपो दर, रेपो दर और नकदी प्रारक्षित अनुपात (सीआरआर) में कोई परिवर्तन नहीं.
  • वर्ष 2006-07 के लिए 7.5 - 8.0 प्रतिशत की दर पर सकल देशी उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि का अनुमान.
  • वर्ष 2006-07 के दौरान मुद्रास्फीति 5.0-5.5 के भीतर रखी जाएगी।
  • वर्ष 2006-07 के दौरान एम3 में लगभग 15.0 की वृद्धि होने का अनुमान। सामान्य परिस्थितियों में 2006-07 के दौरान मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि का स्तर कम रखने की नीति को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • वर्ष 2006-07 के दौरान जमाराशियों में लगभग 3,30,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान।
  • समायोजित गैर-खाद्य ऋण में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान जो वर्तमान की लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि में सुविचारित कमी को दर्शाता है।
  • मूल्य और वित्तीय स्थिरता के अनुरूप ऋण की विधिक जरूरतों को पूरा करने के लिए उचित चलनिधि बनाये रखी जायेगी।
  • अनिवासी (बाह्य) रुपया जमाराशियों पर ब्याज दर की उच्चतम सीमा को यूएस डॉलर लिबोर/स्वैप के साथ (प्लस) 100 आधार बिन्दु तक बढ़ाया गया।
  • विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर ब्याज दर सीमा को लिबोर के साथ (प्लस) 100 आधार बिन्दु तक बढ़ाया गया।
  • वैयक्तिक ऋणों, पूंजी बाजार निवेशों, 20 लाख रुपये से अधिक के आवासी गृह निर्माण ऋणों और वाणिज्यिक स्थावर सम्पदा ऋणों के मामले में मानक अग्रिमों के लिए प्रावधानों को 1.0 प्रतिशत तक बढ़ाया गया।
  • वाणिज्यिक स्थावर सम्पदा में निवेश पर जोखिम भार को बढ़ाकर 150 प्रतिशत किया गया।
  • जोखिम (वेंचर) पूंजी निधियों में निवेश को पूंजी बाजार में निवेश के भाग के रूप में समझा गया तथा इसके लिए भी 150 प्रतिशत का उच्च जोखिम भार दिया गया।
  • सरकारी प्रतिभूतियों में "कब जारी" बाजार की घोषणा।
  • प्राथमिक व्यापारियों (प्राइमरी डीलरों) को अपनी गतिविधियों में विविधता लाने की अनुमति।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधि पैदा होने पर रोक लगाना तथा मुद्रास्फीति की संभावना सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन को देखते हुए, इस स्तर पर मौद्रिक नीति का समग्र दृष्टिकोण निम्नानुसार होगा:
    • एक ऐसा मौद्रिक और ब्याज दर परिवेश सुनिश्चित करना जो मूल्य स्थिरता के अनुरूप वृद्धि को बनाये रखने में सहायक हो तथा जो मुद्रास्फीति अपेक्षाओं को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों वाले किसी संकेत पर समय रहते और त्वरित रूप से कार्य करने में तत्पर हो।
    • अर्थव्यवस्था में निर्यात और निवेश की मांग को पूरा करने के लिए ऋण की गुणवत्ता और वित्तीय बाजार की परिस्थितियों पर ध्यान केन्द्रित करना ताकि समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकॉनमिक), विशेषत: वित्तीय स्थिरता बनी रहे।
    • उभरती वैश्विक गतिविधियों के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया.

18 अप्रैल 2006

डॉ. वाइ वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ हुई बैठक में वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य दिया। इस वक्तव्य के दो भाग हैं: भाग घ्. वर्ष 2006-07 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य; और भाग घ्घ्. वर्ष 2006-07 के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वार्षिक वक्तव्य।

देशी गतिविधियां

  • 24 जनवरी, 2006 को हुई तीसरी तिमाही की समीक्षा में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को संशोधित करके 7.5 - 8.0 प्रतिशत किया जाना केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा वर्ष 2005-06 के लिए लगाएं गए 8.1 प्रतिशत के अग्रिम अनुमान के काफी करीब रहा जो कि पिछले वर्ष के 7.5 प्रतिशत से अधिक है।
  • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में आए परिवर्तनों से आंकी गई मुद्रास्फीति 23 अप्रैल, 2005 के 6.0 प्रतिशत के उंचे स्तर से खिसक कर मार्च 2006 के अंत में 4.0 प्रतिशत पर और 1 अप्रैल, 2006 को 3.5 प्रतिशत पर पहुंच गई।
  • जनवरी-मार्च 2006 में कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय किस्मों (जिसमें ब्रेंट और दुबई फतह शामिल है) के भारतीय समूह की औसत कीमत जनवरी - मार्च 2006 में 60.1 अमेरिकी डालर प्रति बैरल रही जो एक साल पहले की तुलना में 30.2 प्रतिशत अधिक है।
  • मार्च के अंत के प्रभाव को छोड़कर वर्ष 2005-06 (1 अप्रैल, 2005 की तुलना में 31 मार्च, 2006) के दौरान वर्ष दर वर्ष आधार पर एम3 में 16.2 प्रतिशत (3,77,238 करोड़ रुपये) रही जबकि पिछले वर्ष यह वृद्धि परिवर्तन को घटाकर 12.1 प्रतिशत (2,42,260 करोड़ रुपये) थी।
  • मार्च के अंत के प्रभाव को छोड़कर वर्ष 2005-06 (1 अप्रैल, 2005 की तुलना में 31मार्च, 2006) के दौरान वर्ष दर वर्ष आधार पर कुल जमा राशियों में 16.9 प्रतिशत (3,02,534 करोड़ रुपये) की वृद्धि हुई जबकि पिछले वर्ष यह वृद्धि परिवर्तन को घटाकर12.8 प्रतिशत (1,92,269 करोड़ रुपये) थी।
  • मार्च के अंत में बढ़े हुए प्रभाव को छोड़कर वर्ष 2005-06 (1 अप्रैल, 2005 की तुलना में) के दौरान वर्ष दर वर्ष आधार पर खाद्यतर बैंक ऋण में 30.8 प्रतिशत (3,42,493 करोड़ रुपये) की वृद्धि हुई जबकि पिछले वर्ष यह वृद्धि परिवर्तन को घटाकर 27.5 प्रतिशत (2,21,602 करोड़ रुपये) थी।
  • 2005-06 के दौरान वित्तीय बाजार सामान्यत: स्थिर रहे। यद्यपि हर क्षेत्र में ब्याज दरें बढ़ी और वर्ष की अंतिम तिमाही में अप्रतिभूत एकदिवसीय कॉल मार्केट में लगातार सख्ती देखी गई।
  • वर्ष के दौरान एक ध्यान देने योग्य और अच्छी बात रही मुद्रा बाजार गतिविधियों के एक बड़े हिस्से का अप्रतिभूत कॉल मुद्रा से प्रतिभूत बाजार रिपो और सीबीएलओ (कॉलेटराइज्ॅड बॉरोइंग एण्ड लेंडिंग आब्लिगेशंस) बाजारों की तरफ मुड़ना।
  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएफएफ), बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) में बकायों और केन्द्रीय सरकार के पास उपलब्ध अतिरिक्त नकद शेष से परिलक्षित चलनिधि की कुल स्थिति मार्च 2005 के 1,14,192 करोड़ रुपये के औसत स्तर से घटकर मार्च 2006 में 74,334 करोड़ रुपये हो गई।

  • 1969 से पहली बार, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में किए जाने वाले निवेश में 2005-06 दौरान 11,576 करोड़ रुपये की कमी आई है; इसके विपरीत 2004-05 में इसमें, परिवर्तन को घटाकर 49,373 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई थी।
  • 2005-06 के दौरान, केन्द्रीय सरकार के निवल बाजार उधार 95,370 करोड़ रुपये थे जो 1,10,291 करोड़ रूपये की बजट राशि का 86.5 प्रतिशत था तथा बजट की राशि 1,58,000 करोड़ रुपये पे सकल बाजार उधार, 1,78,487 करोड़ रुपये का 88.5 प्रतिशत था।

बाह्य गतिविधियाँ

  • अमरीकी डालर में, 2005-06 के दौरान व्यापारिक माल के निर्यात में पिछले वर्ष में 26.4 प्रतिशत की तुलना में 24.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई; पिछले वर्ष में आयात में 36.4 प्रतिशत की तुलना में 31.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • जबकि तेल आयात पिछले वर्ष के 45.2 प्रतिशत की तुलना में अधिक होकर 46.8 प्रतिशत हो गया लेकिन तेल से इतर आयातों में पिछले वर्ष के 33.3 प्रतिशत की तुलना में 25.6 प्रतिशत की वृद्धि परिलक्षित होती है।
  • भारत के विदेशी मुद्रा रिज़र्व मार्च 2005 के अन्त में 141.5 बिलियन अमरीकी डालर थे जो 10.1 बिलियन अमरीकी डालर की वृद्धि होने पर, बढ़ कर मार्च 2006 के अन्त तक 151.6 बिलियन अमरीकी डालर हो गए।
  • विनिमय दर में दोतरफा गति के कारण 2005-06 मेंविदेशी मुद्रा बाजार सुव्यवस्थित रहा। 2005-06 के दौरान अमरीकी डालर की तुलना में रुपये में 1.9 प्रतिशत मूल्यह्रास हुआ लेकिन यूरो की तुलना में इसमें 4.4%, पाउंड स्टर्लिंग की तुलना में 5.5 प्रतिशत और जापानी येन की तुलना में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

वैश्विक गतिविधियाँ

  • 2005 की चौथी तिमाही (ति.4) में वैश्विक वृद्धि सामान्य रही लेकिन आर्थिक गतिविधियों में व्यापक विस्तार के मद्देनज़र अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा पूरे वर्ष के लिए 4.8 प्रतिशत तक की वृद्धि अनुमानित है।
  • हालांकि तेल आघातों के विपरीत प्रमुख औद्योगिक देशों मेंमूल्य स्थिरता बनी रही लेकिन तेल की कीमतें बढ़ने से पिछड़ने के दूसरे प्रभावों के रूप में भौगोलिक राजनैतिक चिन्ताओं, चालू खाते के समायोजन में अव्यवस्था तथा तेजी से होने वाले असंतुलनों की संभावना तथा आवासीय बाजॉर से उत्पन्न होने वाले जोखिमों से, विशेष रूप से यह चक्र विपरीत होने पर, जोखिम बढ़ जाते हैं ।

समग्र मूल्यांकन

  • समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थितियाँ अनुमान से अधिक मजबूत होकर सामने आई हैं। मुद्रास्फीति अनुमानित सीमा के भीतर रही है, जैसा कि दीर्घावधि ब्याज दरों की तुलनात्मक स्थिरता से परिलक्षित होता है। राजकोषीय स्थिति में सुधार तथा राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन नियमावली द्वारा प्रशस्त मार्ग की ओर वापसी के संकेत हैं, वैश्विक वृद्धि भी पर्याप्त लचीलापन दर्शाती है।
  • तेल की ऊँची और अस्थिर कीमतें, भौगोलिक राजनैतिक चिन्ताएँ और उनके दुष्प्रभाव, आस्तियों की ऊँची कीमतें, वैश्विक असंतुलन तथा वैश्विक आधार पर मौद्रिक नीति कठोर होने के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक संभावना के अधोगामी जोखिम जारी हैं। घरेलू अर्थव्यवस्था में खाद्येतर ऋण वृद्धि, जमा वृद्धि और मुद्रा आपूर्ति वृद्धि अनुमान से अधिक थी। आस्ति मूल्यों मेंपर्याप्त वृद्धि दर्ज हुई है। ऋण गुणवत्ता और आधारभूत ढाँचे के निवेश की गति में वृद्धि सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।

मौद्रिक नीति का दृष्टिकोण

  • वर्ष 2006-07 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 7.5-8.0 प्रतिशत के बीच यह मानते हुए रखी जा सकती है कि सामान्य मानसून स्थितियों के चलते कृषि के विकास में वृद्धि होगी और घरेलू तथा बाह्य आघात नहीं लगेंगे।
  • नीति में यह प्रयास किया गया है कि 2006-07 के लिए ब्याज दर वर्ष-दर-वर्ष 5.0-5.5 प्रतिशत की सीमा में रहे।
  • 2006-07 के लिए एम 3 में लगभग 15.0 प्रतिशत विस्तार का पूर्वानुमान है जबकि नीति में 2006-07 में मुद्रा आपूर्ति की वृद्धि को कम रखने को वरीयता दी जाएगी।
  • 2006-07 में कुल जमाराशियों में लगभग 3,30,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का पूर्वानुमान है।
  • वर्ष दर वर्ष समायोजित खाद्येतर ऋण में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि की संभावना है जो मौजूदा 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि को कम करने का संकेत देती है।
  • पहले की तरह ही घरेलू घटकों के प्रभुत्व को ध्यान में रखना आवश्यक है किंतु नीति यह दृष्टिकोण तैयार करते समय वैश्विक घटकों पर पहले से अधिक जोर देना जरूरी होगा।
  • रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करना जारी रखेगा कि प्रणाली में उचित चलनिधि बनी रहे ताकि मूल्य और वित्तीय स्थिरता के लक्ष्य के साथ ऋण की वैध आवश्यकताएं पूरी हो सकें। इस दिशा में भारतीय रिज़र्व बैंक बाज़ार स्थिरीकरण योजना, चलनिधि समायोजन सुविधा और नकदी निधि अनुपात सहित खुला बाज़ार परिचालन (ओएमओ) के माध्यम से और जब कभी भी स्थिति की मांग हो अपने सभी नीतिगत लिखतों का प्रयोग करते हुए चलनिधि के सक्रिय मांग प्रबंध की अपनी नीति जारी रखेगा।
  • अर्थ-व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी प्रतिकूल और अनपेक्षित गतिविधियों को छोड़कर और मुद्रास्फीति की संभावनाओं सहित अर्थव्यवस्था के मौजूदा मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए इस मोड़ पर मौद्रिक नीति का सकल दृष्टिकोण स्वरूप निम्नानुसार होगा :
    • मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं पर पड़नेवाली किसी भी परिस्थितियों से निबटने के लिए समय पर औैर तुरंत कार्य करने के लिए तैयार रहते समय मूल्य स्थिरता के साथ वृद्धि की गति बनाये रखने के लिए मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण सुनिश्चित करना।
    • समष्टि, खासकर वित्तीय स्थिरता को बनाये रखने के लिए अर्थ-व्यवस्था में निर्यात और निवेश मांग के समर्थन में ऋण गुणवत्ता और वित्तीय बाज़ार स्थितियों पर ध्यान आकर्षित करना।
    • उभरती वैश्विक गतिविधियों पर तुरंत कार्रवाई करना।

मौद्रिक उपाय

  • बैंक दर 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी गयी।
  • प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और रिपो दर क्रमश: 5.5 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
  • नकदी आरक्षित निधि अनुपात(सीआरआर) 5.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।

विकासात्मक और विनियामक नीतियां

ब्याज दर नीति

  • बचत बैंक जमाराशियों पर ब्याज दर की स्थिति यथावत् रखी जाए ।
  • एक से तीन साल की परिपक्वता अवधिवाली अनिवासी(बाह्य) रुपया जमाराशियों पर ब्याज दर की सीमा उसी अवधि के लिए अमेरीकी डॉलर के लिए लिबोर/स्वैप से अधिक, 25 आधार पाइंट से बढ़ाकर 100 आधार पाइंट तत्काल प्रभाव से कर दी गई है।

  • विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण पर ब्याज दर की सीमा लिबोर के 25 आधार पाइंट तथा लिबोर से 100 आधार पाइंट तथा 75 आधार पाइंट तत्काल प्रभाव से कर दी गयी है।

वित्तीय बाजार

  • कॉल/नोटिस और सावधि मुद्रा बाजार (एनडीएस-कॉल) में कारोबार करने के लिए शीघ्र ही एक स्क्रीन आधारित निगोशिएटेड कोट ड्राइवन सिस्टम लागू किया जायेगा जिसमें स्वैच्छिक आधार पर बाजार के भागीदार भाग ले सकेंगे।
  • सरकारी प्रतिभूति में शीघ्र ही ‘कब जारी डव्हेन इश्यूड (डब्लूआइ)’ बाजार शुरू किया जा रहा है।
  • प्राथमिक डीलरों को सरकारी प्रतिभूतियों के उनके मुख्य कारोबार के अतिरिक्त उचित समझी जाने वाली विविध गतिविधियां करने की अनुमति एक सीमा तक दी गई है।
  • केंद्र सरकार के लिए अब तक छमाही आधार पर अर्थोपाय अग्रिम की सीमा निर्धारित की जाती थी परंतु अब अर्थोपाय की अग्रिम सीमा तिमाही आधार पर निर्धारित की जाए।
  • केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों के समेकन के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा द्वितीयक बाजार से चिह्नित अतरल प्रतिभूतियां क्रय की जाती हैं और प्रतिभूतियों की क्रिटिकल राशि एक बार प्राप्त हो जाने पर उनकी पुनर्खरीद सरकार द्वारा स्टॉक समाप्त करने के लिए किया जाता है।
  • म्यूचुअल फंड्स, जो एनडीएस के सदस्य हैं, को तत्काल प्रभाव से एनडीएसओएम माड्यूल प्राप्त करने की अनुमति है। अन्य म्यूचुअल फंडों को उसकी प्राप्ति के लिए रिज़र्व बैंक में अस्थाई चालू/एसजीएल खाते रखने पड़ेंगे।
  • सीबीओटी/सीमेंन्स/कोलमाइनर्स निधियों जैसे बड़े पेंशन/भविष्य निधियों को एनडीएसओएम मोड्युल प्राप्त करने की अनुमति दी जाएगी परंतु उन्हें रिज़र्व बैंक में अस्थाई चालू/एसजीएल खाते रखने पड़ेंगे। छोटी निधियों को सीएसजीएल मार्ग से इसकी प्राप्ति होगी।
  • राज्य सरकारों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाये कि वे नीलामी मार्ग के अंतर्गत बाजार उधारों के अंश में क्रमिक वृद्धि करें।
  • राज्यों को प्रोत्साहित करें कि वे एक अग्रिम सूचक खुला बाजार उधार कैलेंडर उनकी इच्छा और स्वत: शुरुआत पर विकसित करें।
  • अप्रतियोगी बोली की सुविधा (जो अभी केंद्र सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों तक ही सीमित है) राज्य विकास ऋणों की प्राथमिक नीलामी को भी उपलब्ध।
  • ओवरनाइट एलएएफ रिपो ऑपरेशनों के अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा राज्य विकास ऋणों का क्रय और पुनर्विक्रय लागू।
  • केंद्र और राज्य सरकारों के उधार कार्यक्रमों से संबंधित बड़े मुद्दों पर परामर्श प्राप्त करने हेतु राज्य वित्त सचिवों के सम्मेलन की अगुवाई में आपसी सहमति और सहयोग से स्थायी तकनीकी समिति (एसटीसी) का गठन।
  • कारपोरेट बांड्स और प्रतिभूतिकरण पर उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति (अध्यक्ष - डॉ. आर.एच.पाटील) की संबंधित सिफॅारिशों की जांच के लिए कार्य समूह का गठन और इसके कार्यान्वयन के लिए रोडमैप सुझाना।
  • प्राधिकृत व्यापारियों को एक मिलियन अमेरिकी डालर तक की निर्यात राशियों की वसूली के लिए निर्धारित छह माह की अवधि को आगे बढ़ाने की अनुमति दिया जाना।
  • प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा भारतीय निकायों के शाखा कार्यालयों के आरंभिक और बारंबार व्ययों के लिए पिछले दो लेखा वर्षों के दौरान उनकी वार्षिक बिक्री/आय अथवा टर्नओवर के क्रमश: दस और पांच प्रतिशत तक विप्रेषण करने की अनुमति प्रदान करना।
  • सेवाओं से संबंधित विदेशी मुद्रा के सभी विनियमों की समीक्षा के लिए परामर्शदाता समूह (अध्यक्ष - श्री मोहनदास पै) का गठन और अन्य स्पष्टीकरण तथा सरलीकरण के लिए उचित सुझाव देना।

 

ऋण संवितरण व्यवस्था और अन्य बैंकिंग सेवाएं

  • शक्तिप्राप्त समितियों (ईसी) से अनुमति लेने के पश्चात क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपने कार्यालय खोलने/उनका स्थान बदलने की अनुमति दी गयी है; इसी प्रकार शक्तिप्राप्त समितियों से अनुमति मिलने के बाद सीमित प्राधिकृत व्यापारी (चालू खाता लेनदेन हेतु) के रूप में विदेशी मुद्रा का कारोबार करने के अनुरोधों को अनुमति दी जाए।
  • संकटग्रस्त किसानों की सहायता के लिए उपाय सुझाने हेतु एक कार्यकारी दल गठन जिसमें उन्हें वित्तीय मामलों में सलाह की व्यवस्था भी हो और ऐसे किसानों के लिए निक्षेप बीमा और प्रत्यय गांरटी निगम (डीआइसीजीसी) अधिनियम के अंतर्गत एक विशिष्ट ऋण गांरटी योजना की शुरूआत।
  • विभिन्न राज्यों में उधार देने की मौजूदा कानूनी व्यवस्था और उसे लागू करने के तंत्र की समीक्षा करने के लिए तथा ग्रामीण लोगों के हित में कानूनी और कार्यान्वयन ढँाचे में सुधार हेतु तकनीकी दल का गठन।
  • सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में एसएलबीसी संयोजकों को कहा गया है कि वे पांडिचेरी द्वारा की गयी पहल की तर्ज पर अपने क्षेत्र में ‘नो फ्रिल्स’ खाते और सामान्य प्रयोजन के क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराकर सौ प्रतिशत वित्तीय समावेश का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु अपने क्षेत्र में कम से कम एक जिले का निर्धारण करें।
  • अपने विभिन्न सेवा प्रभारों को बैंक अपने कार्यालयों/शाखाओं के साथ अपनी वेबसाइट में भी रिजॅर्व बैंक द्वारा अनुमोदित फार्मेट में दर्शाये और उन्हें अपडेट करें।
  • बैंक प्रभारों की तर्क संगतता सुनिश्चित करने और उन्हें निष्पक्ष व्यवहार संहिता में शामिल करने हेतु एक योजना बनाने के लिए कार्यकारी दल का गठन।

विवेक सम्मत उपाय

  • भारत में सभी बैंकों को पूंजी जुटाने हेतु प्रेफरन्स शेयरों का सार्वजनिक निर्गम लाने का विकल्प प्रदान करने हेतु कानूनी संशोधनो का प्रस्ताव।
  • संशोधित सीडीआर व्यवस्था के अंतर्गत प्रावधानों की तर्ज पर अग्रिमों (सीडीआर व्यवस्था के अंतर्गत अग्रिमों को छोडकर) की पुनर्संचना के संबंध में मौजूदा दिशानिर्देशों की समीक्षा करना और उन्हें व्यवस्थित करने के लिए कार्यकारी दल का गठन।
  • मानक अग्रिमों अर्थात व्यक्तिगत ऋणों पूंजी बाजार निवेशों के रूप में क्वालिफाय करने वाले ऋण और अग्रिम, 20 लाख रूपये से ज्यादा के निवासी आवास ऋण और वाणिज्यिक स्थावर संपदा ऋण के संबंध में सामान्य प्रावधानीकरण अपेक्षा मौजूदा 0.040 प्रतिशत के स्तर से बढॉकर 1.0 प्रतिशत कर दी गयी है।
  • वाणिज्य स्थावर संपदा में निवेशों के संबंध में जोखिम भार 125 प्रतिशत से बढ़ाकर 150 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • जोखिम पूंजी निधियों में बैंक का कुल निवेश उसके पूंजी बाजार निवेश का एक अंग होगा और बैंकों को चाहिए कि वे इन निवेशों को 150 प्रतिशत का उच्चतर जोखिम भार दें।

 

संस्थागत गतिविधियां

  • बैंकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे आवधिक सूचना प्रणाली (आइएस) लेखा परीक्षा के निष्कर्षाें का अनुपालन समयबद्ध आधार पर सुनिश्चित करें ताकि सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली की मजबूती को बनाये रखा जा सके।
  • रिज़र्व बैंक में रखे जाने वाले सरकारी खातों की प्रोसेसिंग संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक नया केन्द्रीकृत पब्लिक अकाउंट्स डिपार्टमेंट सिस्टम (सीपीडीएडीएस) लाया जा रहा हैं।

  • जून 2006 के अंत तक सभी शाखाओं को आरटीजीएस के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव है।
  • शहरी सहकारी बैंकों के लिए गठित कार्य दल (टी ए एफ सी यू बी) के कार्यक्षेत्र को बढ़ाकर संबंधित राज्य में पंजीकृत अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को भी इसमें शामिल किया जाए और मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटीज़ एक्ट के तहत रजिस्टर्ड अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों से संबंधित नियामक समन्वय के लिए एक ऐसा ही मंच गठित किया जाएगा।
  • शहरी सहकारी बैंकों के कैपिटल फंड में बढ़ोतरी करने के उद्देश्य से वैकल्पिक लिखतो/रास्तों का पता लगाने के लिए कार्य दल गठित किया जाएगा।
  • जिन अनुसूचित एवं गैर-अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों का प्रबंधन अच्छा रहा है उन्हें टीएएफसीयूबी की सिफारिश के आधार पर चुने हुए शाखा के बाहर (ऑफ साइट)/शाखा परिसर में (ऑन साइट) एटीएम खोलने की अनुमति दी जाएगी।
  • टीएएफसीयूबी की एक उप समिति गठित की जाएगी जो दावों के निपटान, बकायों की वसूली और डीआईसीजीसी और अन्य ऋणदाताओं के साथ-साथ जमाकर्ताओं को चुकौती में परिसमापक के कार्य की समीक्षा करेगी।
  • सिडबी और नाबार्ड एक व्यवहार्य ऋण वितरण व्यवस्था विकसित करने पर सहमत हुए हैं ताकि लघु व मझौले उद्यम क्षेत्र और कृषि संबंधी कार्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को संसाधन उपलब्ध कराया जा सके।
  • छपाई में त्रुटिपूर्ण पाए गए बैंक नोटों को बदलने के लिए स्टार श्रृंखला नंबर वाले सिस्टम को अपनाया जाए।

वार्षिक नीति के भाग 1 की पहली तिमाही समीक्षा 25 जुलाई 2006 को की जाएगी।

विनय प्रकाश श्रीवास्तव

प्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2005-2006/1330

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