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भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीतिगत वक्तव्य की घोषणा की

24 अप्रैल 2007

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2007-08 के लिए
वार्षिक नीतिगत वक्तव्य की घोषणा की

डॉ. वाइ वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ हुई बैठक में वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य दिया। इस वक्तव्य के दो भाग ह:ं भाग I. वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य; और भाग II. वर्ष 2007-08 के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वार्षिक वक्तव्य।

मुख्य-मुख्य बातें

  • विकास की गति को समर्थन देने वाले मौद्रिक और ब्याज दर माहौल को सुनिश्चित करते हुए मूल्य स्थिरता और सुनियंत्रित मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर अधिक बल देना।
  • मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं और विकास की गति से टकराने वाली सभी परिस्थितियों के लिए सभी उचित उपायों के साथ त्वरित जवाबी कार्रवाई करना।
  • समष्टि आर्थिक, विशेष रूप से वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के ऋण गुणवत्ता और सही वित्तीय बाजार की स्थितियों पर नये सिरे से ध्यान केंद्रित करना।
  • बैंक दर, रिवर्स रिपो दर और रिपो दर अपरिवर्तित रखी गयी।
  • अनुसूचित बैंकों से अपेक्षा है कि वे 28 अप्रैल 2007 को आरंभ होने वाले पखवाड़े से 6.5 प्रतिशत सीआरआर बनाए रखें।

  • वर्ष 2007-08 के लिए सकल घरेलू उत्पाद में 8.5 प्रतिशत पर वृद्धि का अनुमान।

  • वर्ष 2007-08 के दौरान मुद्रास्फीति की दर 5.0 प्रतिशत के आसपास सीमित रखना। आगे बढ़ते हुए ऐसा संकल्प है कि मध्यावधि में मुद्रास्फीति के लिए ऐसी नीति और स्थिति निर्मित करना कि यह 4.0 - 4.5 प्रतिशत के बीच रहे।

  • वर्ष 2007-08 के दौरान एम3 का विस्तार लगभग 17.0 से 17.5 प्रतिशत के बीच सीमित रखना।

  • वर्ष 2007 - 08 के दौरान जमाराशियों में लगभग 4,90,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होने का अनुमान।

  • वर्ष 2007-08 के दौरान समायोजित खाद्येतर ऋण में लगभग 24.0 से 25.0 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान जिसमें 2004-07 तक औसतन 29.8 प्रतिशत में क्रमिक गिरावट आना निहित है।

  • मूल्य और वित्तीय स्थिरता के अनुसार उचित ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए यथोचित चलनिधि बनाए रखना।
  • विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) जमाराशियों डएफसीएनआर (बी) पर ब्याज दर की उच्चतम सीमा 50 आधार बिंदू से कम करके लिबोर से 75 आधार बिंदू घटाकर रखी गई।

  • अनिवासी (बाह्य) रूपया खाता (एनआर (ई) आरए) जमाराशियों पर ब्याज दर की उच्चतम सीमा 50 आधार बिंदू कम करके लिबोर / स्वैप दरों पर लाई गई।

  • 182 दिवसीय खज़ाना बिलों पर मिलने वाली औसतन अधिकतम आय का प्रयोग अस्थिर दर के बांडों के लिए बेंच मार्क दर के रूप में किया जाना।

  • ब्याज दर फ्यूचर मार्केट से संबंधित सभी मामलों पर विचार करने और उसके विकास के लिए उपाय सुझाने हेतु कार्यकारी दल की स्थापना करना।
  • भारतीय कंपनियों के लिए समुद्र पारीय निवेश सीमा (कुल वित्तीय प्रतिबद्धताएं) बढ़ाकर उनके निवल मूल्य के 300 प्रतिशत की गई।

  • सूचीबद्ध विदेशी कंपनियों में सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों की विदेश में संविभाग निवेश की सीमा को बढ़ाकर निवल संपत्ति का 35 प्रतिशत कर दिया गया।

  • पारस्परिक निधियों द्वारा विदेशी निवेश की सकल सीमा को बढ़ाकर 4 बिलियन अमरीकी डालर किया गया।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति लिए बिना बाह्य वाणिज्यिक उधारों (इसीबी) का पूर्व भुगतान सीमा को बढ़ाकर 400 मिलियन अमरीकी डालर किया गया।

  • उदारीकृत विप्रेषण योजना में व्यक्तियों के लिए किसी भी अनुमत चालू या पूंजी खाते में लेनदेन करने की 50,000 अमरीकी डालर की वर्तमान सीमा को बढ़ाकर 100,000 अमरीकी डालर प्रतिवर्ष कर दिया गया।

  • वर्तमान विधिक और विनियामक ढांचे की तर्ज पर प्रस्ताव को कार्यान्वित करने के लिए यथोचित ढांचा सुझाने हेतु मुद्रा फयूचर्स पर एक कार्यकारी दल गठित किया जाना।
  • संकटग्रस्त किसानों के लिए ऋण गारंटी योजना लागू करना।
  • भारतीय बैंकों को अनुमति दी गई कि वे वर्तमान विवेकपूर्ण सीमाओं और कुछ अतिरिक्त सुरक्षा के भीतर आर्थिक सहायता को कम करने के लिए ऋण और गैर-ऋण सुविधाएँ प्रदान करें।
  • बैंकों और प्राथमिक व्यापारियों को एकल-संस्था ऋण चूक स्वैप में लेन-देन शुरू करने की अनुमति दी गई।
  • एक अस्थायी उपाय के रूप में व्यक्तियों को 20 लाख रुपए तक के रिहाइशी आवास ऋणों पर जोखिम भार को घटाते हुए 50 प्रतिशत किया गया।
  • टीयर I तथा टीयर II शहरी सहकारी बैंकों के लिए लागू वर्तमान रियायती विवेकपूर्ण मानदंडों को एक वर्ष तक बढ़ाया गया।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा (अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों के अलावा) जमाराशियों पर देय ब्याज पर सीमा को 150 आधार बिंदू से बढ़ाया गया।


  • ब्योरे

    देशी गतिविधियाँ

    • केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) के अग्रिम अनुमान ने वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2006-07 के लिए 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्शायी है जो कि वर्ष 2005-06 में 9.0 प्रतिशत से अधिक है।
    • वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) में आंकी गई मुद्रास्फीति जनवरी 2007 के अंत में 6.7 प्रतिशत के अंतर-वर्ष में ऊंचे स्तर से सीमित होने किंतु मार्च 2006 के अंत में 4.1 प्रतिशत अधिक रहने के बाद मार्च 2007 के अंत में 5.7 प्रतिशत और 7 अप्रैल 2007 को 6.1 प्रतिशत रही।
    • अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल का भारतीय समूह (बास्केट) का औसत मूल्य जुलाई 2006 में 71.1 अमरीकी डालर प्रति बैरल में अधिकतम वृद्धि हुई किंतु 20 अप्रैल 2007 को 64.0 अमरीकी डालर प्रति बैरल तक बढ़ने से पहले जनवरी 2007 में 53.0 अमरीकी डालर प्रति बैरल की कमी आयी।
    • मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर वर्ष 2005-06 में 17.0 प्रतिशत (3,96,881 करोड़ रुपये) की तुलना में वर्ष 2006-07 में 20.8 प्रतिशत (5,67,372 करोड़ रुपये) की वृद्धि हुई।
    • वर्ष 2006-07 के दौरान आरक्षित मुद्रा में 23.7 प्रतिशत (1,35,892 करोड़ रूपए ) की वृद्धि हुई जो मिछले वर्ष की 17.2 प्रतिशत (83,922 करोड़ रुपए) की वृद्धि से अधिक है।
    • वर्ष 2006-07 के दौरान अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) की सकल जमाराशियों में वर्ष 2005-06 की 18.1 प्रतिशत (3,23,913 करोड़ रूपए) की तुलना में 23.0 प्रतिशत (4,85,210 करोड़ रुपए) की वुद्धि हुई।
    • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिए गए खाद्येतर ऋण में पिछले वर्ष के 31.8 प्रतिशत (3,54,193 करोड़ रूपए) की शीर्ष वृद्धि की तुलना में 28.0 प्रतिशत (4,10,285 करोड़ रुपए) की वृद्धि हुई जो वर्ष 2003-06 के दौरान की निरंतर वृद्धि से कुछ कमी दर्शाती है।
    • वर्ष 2006-07 के दौरान वृद्धिशील खाद्येतर ऋण-जमा अनुपात पिछले वर्ष के 109.3 प्रतिशत से घटकर 84.6 प्रतिशत हो गया।
    • वर्ष 2006-07 के दौरान वित्तीय बाज़ार में चलनिधि की सहज स्थिति में परिवर्तन आया जिससे कुछ अवसरों पर चलनिधि की तंगी महसूस की गई जिसके लिए एलएएफ के जरिए प्रणाली में चलनिधि डालना आवश्यक हो गया। अतिरिक्त एसएलआर धारिता को लगातार कम कर देने के फलस्वरूप सरकार के नकदी शेषों में वृद्धि और प्रतिभूति में कमी ने चलनिधि की तंगी को और कड़ा किया।
    • चलनिधि समायोजना सुविधा (एलएएफ) बाज़ार स्थिरीकरण योजना में बकायों और केंद्र सरकार के पास अतिरिक्त नकदी शेष, सबको मिलाकर, में मार्च 2006 के 74,334 करोड़ रुपए के औसत की तुलना में मार्च 2007 में 97,449 करोड़ रूपए की वृद्धि हुई।
    • वर्ष 2006-07 की अधिकांश अवधि के दौरान वित्तीय बाज़ार सामान्यत: स्थिर रहे। यद्यपि, वर्ष की अंतिम तिमाही में सभी खंडों में विशेषत: असंपार्श्वीकृत /मांग/सूचना मुद्रा बाज़ार में मात्रा में निरंतर वृद्धि होने और ब्याज दरों के बढ़ जाने के कारण बढ़े हूए कार्यकलापों के बीच दूसरी छमाही में कुछ अस्थिरता देखी गई।
    • वर्ष 2006-07 के दौरान अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की भूख पुन: जागृत हो उठी क्योंकि सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में उनके निवेश में 2005-06 में आई 22,809 करोड़ रूपए की गिरावट के विपरीत 74,706 रूपए की वृद्धि हुई।
    • सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में वाणिज्य बैंकों की धारिता मार्च 2006 में बैंकिंग प्रणाली की निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 31.4 प्रतिशत से घटकर मार्च 2007 में 28.0 प्रतिशत हो गई।
    • सार्वजनिक क्षेंत्र के बैंकों (पीएसबी) की एक वर्ष से अधिक की परिपक्वता अवधि वाली जमाराशियों की ब्याज दरें अप्रैल 2006 की 5.75-7.25 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2007 में 7.25 - 9.50 प्रतिशत हो गई।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) और निजी क्षेत्र की बैंकों की बेंचमार्क मूल उधार दरें (बीपीएलआर) उसी अवधि के दौरान 10.25 - 11.25 प्रतिशत और 11.00 - 14.00 प्रतिशत से बढ़कर क्रमश: 12.25 - 12.75 प्रतिशत और 12.00-16.50 प्रतिशत हो गईं।
    • मार्च 2006 में बीएसई सेंसेक्स 11,280 से गिरकर 14 जून 2006 को 8,929 के आंतर वर्ष न्यूनतम स्तर पर रहा लेकिन उसके बाद संभलकर 8 फरवरी 2007 को 14,652 की उंचाई पर पहुंच गया लेकिन तदुपरांत मार्च 2007 में लुढककर 13,072 हो गया।
    • वर्ष 2006-07 के दौरान केंद्र सरकार की 1,11,275 करोड़ रूपए की बाज़ार से ली गई निवल उधारी बजट विहित राशि का 97.7 प्रतिशत थी तथा 1,79,373 करोड़ रूपए की बजार से ली गई सकल उधारी बजट विहित राशि का 98.6 प्रतिशत थी।
    • केंद्र सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गम पर भारित औसत आय जो पिछले वर्ष 7.34 प्रतिशत थी, 55 आधार अंक बढ़कर 2006-07 में 7.89 प्रतिशत हो गई।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (संशोधन) अधिनियम 2006 रिज़र्व बांक को यह विवेकाधिकार देता है कि वह किसी उच्चतम या न्यूनतम सीमा के बिना सीआरआर के रूप में बनाए रखे जाने वाले अनुसूचित बैंकों की मांग और मीयादी देयताओं के प्रतिशत का निर्धारण करे। इस संश्ांटधन के फलस्वरूप, सीआरआर शेषों पर कोई ब्याज नहीं दिया जाएगा ताकि सीआरआर की प्रभावोत्पादकता को बढ़ाया जा सके क्योंकि ब्याज का भुगतान मौद्रिक नीति के एक लिखत के रुप में उसके प्रभाव को क्षीण बना देगा। संशोधन के अंतर्गत "रेपो" और "रिवर्स रेपो" की परिशोधित परिभराषा से बाजार के सहभागियों / बैंकों को लेनदेन करने में सुविधा होगा। यह संशोधन मुद्रा बाजार को नियंत्रित करने और काउंटर पर ही व्युत्पन्नियों के कारोबार को नियंत्रित करने के लिए रिज़र्व बैंक को सांविधिक समर्थन प्रदान करता है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने जनवरी 2007 में तकनीकी परामर्शदात्री समिति (टीएसी) का पुनर्गठन इस उदेश्य से किया है कि उसे बाह्य विशेषज्ञों से जिनका कार्यकाल 31 जनवरी 2009 तक है, विशेषज्ञ राय निरंतर मिलती रहे। इस पुनर्गठित टीएसी में पाँच बाहर के और रिज़र्व बैंक सेंट्रल बोर्ड के दो सदस्य हैं। समिति के अध्यक्ष गवर्नर हैं, मुद्रा नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपाध्यक्ष तथा अन्य उप गवर्नर सदस्य हैं।

    बाह्य गतिविधयाँ

    • अमरीकी डालर में, वर्ष 2006-07 (अप्रैल-फरवरी) के दौरान व्यापारिक माल के निर्यात में पिछले वर्ष की उसी अवध्ंा िके 26.3 प्रतिशत की तुलना में 19.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आयात में पिछले वर्ष की तदनुरूपी अवधि के 32.7 प्रतिशत की तुलना में 27.8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई दी।
    • जबकि वर्ष 2006-07 के दौरान (अप्रैल-फरवरी) तेल आयात में वृद्धि पिछले वर्ष को उसी अवधि की 49.7 प्रतिशत की तुलना में कम होकर 32.6 प्रतिशत रही, तेल से इतर आयात में 25.7 प्रतिशत की वञिद्ध उसी अवधि की 26.4 प्रतिशत से तुलनीय थी।
    • मूल्यांकन परिवर्तनों सहित भारत के विदेशी मुद्रा रिज़र्व ने अप्रैल-दिसंबर 2006 के दौरान 25.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की और वह मार्चांत 2007 में 199.2 बिलियन अमरीकी डालर के स्तर तक बढ़ी।
    • विनिमय दर में दो तरफा गति के कारण 2006-07 में विदेशी मुद्रा बाज़ार सामान्यत: सुव्यवस्थित रहा। वर्ष 2006-07 के दौरान अमरीकी डालर की तुलना में रूपए में 2.3 प्रतिशत और जापानी येन की तुलना में 2.7 प्रतिशत की मूल्यवृद्धि हुई लेकिन यूरो की तुलना में 6.8 प्रतिशत और पाउंट स्टर्लिंग की तुलना में 9.0 प्रतिशत की मूल्यह्रास हुआ।

    वैश्विक गतिविधियाँ

    • विश्व अर्थव्यवस्था में 2006 में भारी विस्तार हुआ है और 2003 से चार वर्ष लगातार वृद्धि प्राप्त की है।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का वर्ल्ड इकोनामिक आउटलुक के अनुसार क्रय शक्ति समता आधार पर विश्व की वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि 2006 के 5.4 प्रतिशत से घटकर 2007 और 2008 में 4.9 प्रतिशत हो जाएगी।
    • पिछले वर्ष की तुलना मां वैश्विक अनाज के उत्पादन में 2.7 प्रतिशत की गिरावट आने के कारण अंतर्राष्ट्रीय खाद्यान्नों की कीमत विशेषत: गेहूं, चावल और मक्के की कीमत 2006 में रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई।
    • वैश्विक सरूप में पण्य कीमतों में वृद्धि के अनुसार विशेष मुद्रास्फीति बढ़ गई और मुख्य मुद्रास्फीति सामान्यत: स्थ्ंरि रही जो मुद्रास्फीति अपेक्षाओं के लिए जोखिम होने की संभावना है क्योंकि अंतर्राट्रीय क्रूड कीमत फिर से बढ़नक लगी है।

    • वैश्विक स्तर पर कीमतों के व्यवहार, अमरीकी आवास बाज़ार में प्रतिकूल गतिविधियों, वैश्विक असंतुलनों का बने रहना, वित्तीय बाज़ार में व्यापक सुविधाजनक स्थितियों और मुद्रास्फीतिकारी दबावों के संभावित प्रकटन से उत्पन्न वित्तीय जोखिमों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • संपूर्ण विश्व के मौद्रिक नीति प्राधिकारी मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के खतरे के प्रति सतर्क हैं और परिसंपत्ति कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव के उत्पन्न होने, जोखिमों का कम मूल्यनिर्धारण तथा मुद्रा बाजार में अव्यवस्थित स्थितियों पर नज़र रखे हुए हैं।
    • कुछ केंद्रीय बैंकों ने हाल ही में अपनी नीति चक्र को विराम दिया है, उदाहरणार्थ : अमेरिका, बैंक ऑफ कनाडा, बैंक नेगेरा मलेशिया, और बैंक डी मेक्सिको। कुछ अन्य केंद्रीय बैंकों ने हाल के महीने में अपनी नीति दरों प्राय: मुद्रास्फीति को रोक रखने के लिए पूर्व की कड़ी कार्रवाइयों के अनुसरण में कटौती की है। इसमें बैंक इंडोनेसिया (बीआई), ख़् बैंको सेंट्रल डोब्रासिल; ख़् बैंको सेंट्रल डि चीले; और बैंक ऑफ थाइलैंड शामिल हैं। वे केंद्रीय बैंक जिन्होंने अपनी नीति दरों को कड़ा किया है उनमें इसीबी; ख़् बैंक ऑफ इंगलैण्ड; ख़् बैंक ऑफ जापान; ख़् रिज़र्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया; ख़् रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूजीलैण्ड; ख़् पीपुल्स बैंक ऑफ चीन और ख़् बैंक ऑफ कोरिया शामिल हैं।

    समग्र मूल्यांकन

    • जबकि हाल के भारतीय विकास अनुभव को रेखांकित करते हुए संरचनात्मक परिवर्तनों के साक्ष्य हैं, यह संकेत भी हैं कि माँग दबावों के उभार में एक चक्रीय संघटक भी हो सकता है। संरचनात्मक परिवर्तनों में सकल घरेलू बचत दर में उल्लेखनीय वृद्धि की सहायता से निवेश दर में बढ़ोतरी, वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की विकासशील सहबद्धता और उद्योग तथा सेवाओं की उत्पादकता में सुधार के संकेत शामिल हैं।
    • चक्रीय कारकों में, पहला मजबूत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि ने भारत में उच्च विकास को सहायता प्रदान की है। दूसरे, बैंक ऋण तथा मुद्रा आपूर्ति में उच्च विकास का बने रहना, गैर-तेल आयात वृद्धि में तेजी और व्यापार घाटे में बढ़ोतरी एक साथ मिलकर सकल माँग पर दबाव का संकेत देते हैं। तीसरे, चक्रीय शक्तियाँ विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि, कंपनियों के बीच मूल्य निर्धारण अधिकारों का पुनरुत्थान, कुछ क्षेत्रों में पारिश्रमिक दबावों के संकेत, अस्वाभाविक क्षमता उपयोग और परिसंपत्तियों की बढ़ती हुई कीमतों में दिखाई देती है।
    • वर्ष 2006-07 में घरेलू विकास का एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय मुद्रास्फीति का मजबूत होना है जो विकसित हो रहे समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण के मूल में आनेवाली मुख्य जोखिमों का प्रतिनिधित्व करता है। हाल में अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में मजबूती ने मुद्रास्फीति दृष्टिकोण के चारों ओर अनिश्चितता को बढ़ा दिया है।

    • उस तरीके का एक सावधानीपूर्वक आकलन जिसमें भारत में मुद्रास्फीति बढ़ रही है, यह प्रकट होता है कि वर्ष 2006-07 के दौरान प्राथमिक खाद्य वस्तुओं ने मुद्रास्फीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उसी के साथ-साथ विनिर्मित उत्पादकों की कीमतें भी हेडलाईन मुद्रस्फीति के 50 प्रतिशत से अधिक के लिए उत्तरदायी हैं।

    • भारतीय वित्तीय बाज़ारों ने वर्ष 2006-07 की चौथी तिमाही में चलनिधि में भारी कमी-वेशी और संपूर्ण परिदृश्य में ब्याज दरों में मजबूती के साथ कुछ उतार-चढ़ाव अनुभव किए हैं। इस कड़ाई के कुछ अवसरों के दौरान विषम स्थितियाँ अक्सर देखी गईं जब सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में अल्पकालिक ब्याज दरें मजबूत हुईं लेकिन दिर्घावधि दरों में कमी आयी।

    • जबकि पूंजी प्रवाहों ने विकसित बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं विशेष रूप से वर्ष 2006 में एशिया में, समष्टि आर्थिक कार्यनिष्पादन में सुधार को दर्शाया है, वे प्रतिफलों की खोज़ तथा जोखिमों के लिए एक मजबूत माँग द्वारा भी संचालित हुए हैं। परिणामस्वरूप पूंजी प्रवाहों के प्रत्यावर्तन विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं को विशेषकर विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक सहायता की वापसी के संदर्भ में चुनौती खड़ी कर सकते हैं।

    • माँग दबावों के बनने की स्थिति में गैर मुद्रास्फीतिकारी तरीके से जारी विकास को संरक्षित करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि का प्रस्ताव किया जा सकता है। तथापि, ऐसी मौद्रिक नीति प्रतिक्रियाएं विकास के लिए सहबद्ध लागतों और वित्तीय स्थायित्व की संभावित जोखिमों के अलावा और पूंजी प्रवाहों की संभावना को बढ़ाती हैं। इस प्रकार, विदेशी मुद्रा अन्तर्वाह मौद्रिक नीति में कड़ाई के प्रभाव को चलनिधि में बढ़ोतरी के द्वारा संभावित रूप से कम कर सकता है।

    वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति का रुझान

    • वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, यह मानकर कि अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में आगे बढ़ोतरी नहीं होगी तथा घरेलू अथवा बाहरी दबावों को छोड़ते हुए लगभग 8.5 प्रतिशत रखी गई है।
    • पिछड़ती हुई तथा सकल माँग पर मौद्रिक नीति के संचयी प्रभावों की दृष्टि से तथा घरेलू और बाहरी दबावों की अनुपस्थिति को देखते हुए नीति प्रयास यह होगा कि वर्ष 2007-08 में मुद्रास्फीति को 5.0 प्रतिशत के पास रखा जाए।
    • वर्ष 2005-07 की मौद्रिक परिस्थितियों को देखते हुए यह महत्त्वपूर्ण है कि वर्ष 2007-08 में विकास और मुद्रास्फीति पर दृष्टिकोण के समरूप एम3 को 17.0 - 17.5 प्रतिशत के आस-पास बनाए रखा जाए।
    • मुद्रा आपूर्ति वृद्धि के अनुमानों के अनुरूप वर्ष 2007-08 में सकल जमाराशियों की वृद्धि को 4,90,000 करोड़ रुपये के आस-पास रख्8 गया है।
    • निधि सहायता के ॉााटतों के एक समग्र आकलन के आधार पर वर्ष 2007-08 में समायोजित गैर खाद्य ऋण में वृद्धि 24.0 - 25.0 प्रतिशत की सीमा में अनुमानित है जो वर्ष 2004-07 के दौरान 29.8 प्रतिशत के औसत से धीरे-धीरे कम हुई है।
    • वर्ष 2007-08 में मौद्रिक नीति के रुझान वैश्विक और विशेषकर घरेलू गतिविधियों से नियंत्रित होंगे। मौद्रिक नीति, विकास में योगदान करते हुए मूल्य स्थायित्व पर दबाव को मजबूती से लागू करने के पक्ष में है और आगे आनेवाली अवधि के लिए मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को रोक रही है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि प्रणाली में समुचित चलनिधि बनाए रखी जाए ताकि ऋण की विशेषकर मूल्य और वित्तीय स्थायित्व के उद्देश्य के अनुरूप उत्पादक प्रयोजनों के लिए सभी यथोचित अपेक्षाएं पूरी की जा सकें। इस उद्देश्य की ओर रिज़र्व बैंक बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस), चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएफ) और आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) सहित खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) के माध्यम से तथा जब और जैसी स्थिति हो, लचीलेपन के साथ अपने निपटान के स्तर पर सभी नीति लिखतों का उपयोग करते हुए चलनिधि के सक्रिय माँग प्रबंध की अपनी नीति को जारी रखेगा।
    • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों के प्रकट होने को अलग रखते हुए तथा मुद्रास्फीति दृष्टिकोण सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान आकलन की दृष्टि से आगे की अवधि में मौद्रिक नीति का समग्र रुझान निम्नप्रकार जारी रहेगा:
    • एक मौद्रिक और ब्याज दर वातावरण जो अर्थव्यवस्था में निर्यात तथा निवेश माँग की सहायता करता है ताकि विकास की गति को जारी रखा जा सके, को सुनिश्चित करते समय मूल्य स्थिरता पर दबाव और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को भली प्रकार स्थिर किए जाने को सुदृढ़ किया जाना।
    • विशेषकर महत्तम ऋण निवेश और वित्तीय समावेशन का साथ-साथ अनुपालन करते समय वित्तीय स्थायित्व और समष्टि आर्थिक प्राप्ति के लिए वित्तीय बाज़ारों में ऋण गुणवत्ता और व्यवस्थित स्थितियों पर पुन: जोर डाला जाना।
    • मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं और विकास की गति पर अतिक्रमण करते हुए विकसित हो रही वैश्विक और घरेलू स्थितियों के लिए समुचित सभी संभावित उपायों के साथ तेजी से कार्रवाई करना।

    मौद्रिक उपाय

    • बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
    • प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और रिपो दर को क्रमश: 6.00 प्रतिशत तथा 7.75 पर अपरिवर्तित रखा गया है।
    • रिज़र्व बैंक ने बाजार की स्थिति और अन्य संगत कारकों पर निर्भर करते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत ओवरनाइट रिपो या दीर्घावधि रिपो प्रस्तावित करने का विकल्प सुरक्षित रखा है। भारतीय रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजन सुविधा के तहत निविदा (निविदाओं) को, पूरे या आंशिक रूप से, जैसा उपयुक्त समझा जाए, स्वीकार करने या अस्वीकार करने सहित ऐसे लचीलेपन का प्रयोग जारी रखेगा ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंध में चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) का सक्षम उपयोग किया जा कें।
    • जैसा कि 30 मार्च, 2007 को घोषित किया गया है, अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 28 अप्रैल 2007 से प्रारंभ होनेवाले पखवाड़े से 6.5 प्रतिशत रखा गया है।

    विकासात्मक और विनियामक नीतियाँ

    ब्याज दर निर्धारण

    • विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खाता (एफसीएनआर(बी) जमाराशियों पर ब्याज दर सीमा को तत्काल प्रभाव से लिबोर से 75 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए 50 आधार बिंदुओं तक घटाया गया है।
    • अनिवासी बाह्य रूपया खाता (एनआर(ई) आरए) जमाराशियों पर ब्याज दर सीमा को तत्काल प्रभाव से लिबोर/स्वैप दरों से 50 आधार बिन्दु कम किया गया।

    वित्तीय बाज़ार

    • राज्य विकास ऋणों (एसएलडी) की नीलामी में वित्तीय वर्ष 2007-08 के दौरान एक "गैर-प्रतिस्पर्धी बोली योजना" शुरू की जाएगी।
    • नए अस्थायी दर बांड (एफआरबी) के लिए आधार दर कूपन पुनर्निर्धारित (रिसेट) तारीख से पहले आयोजित 182 - दिवसीय ट्रेज़री बिलों की पिछली तीन नीलामियों में उत्पन्न औसत अधिकतम प्रतिफल के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
    • कंपनी बांड के लिए रिपोर्टिंग प्लेटफार्म भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) दिशानिर्देशों के अनुसार पहले ही शेयर बाज़ारों द्वारा स्थापित किए गए। निर्धारित आय मुद्रा बाज़ार और व्युत्पन्नी संघ (फिम्डा) भी कंपनी बांडों में काउंटर पर ही कारोबार (ओटीसी) करने और कंपनी बांडों में सभी कारोबारों की रिपोर्टिंग के लिए एक समेमित टिकर सेवा उपलब्ध कराने हेतु एक रिपोर्टिंग प्लेटफार्म स्थापित करने की प्रक्रिया में है। कंपनी बांडों में शामिल करने के लिए रिपो बाज़ार का विस्तार किए जाने पर प्रस्तावित कारोबार प्लेटफार्म स्थिरीकरण और मजबूत समाशोधन प्रथा निपटान प्रणाली (सुपुर्दगी बनाम निपटान प्रणाली) स्थापित किए जाने के बाद विचार किया जाएगा।
    • एक भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सीसीआईएल) को सूचित किया गया है कि वे रूपया ब्याज दर स्वैप (आईआरएस) के लिए एक कारोबार रिपोर्टिंग प्लेटफार्म शुरू करें —
    • ब्याज दर व्युत्पन्नी से संबंधित सभी संगत मामलों पर विचार करने और ब्याज दर फ्यूचर्स बाजार के विकास को सुविधा प्रदान करने के लिए उपाय प्रस्तावित करने हेतु एक कार्यदल का गठन किया गया है।
    • विदेश में संयुक्त उद्यम (जेवी)/पूर्ण रूप से स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों (डब्ल्यूओएस) में भारतीय कंपनियों के निवेशों के लिए विदेशी निवेश सीमा (संपूर्ण वित्तीय प्रतिबद्धता) को अंतिम लेखा परिक्षित तुलनपत्र के अनुसार निबल संपत्ति के वर्तमान 200 प्रतिशत से बढ़ाकर निवल संपत्ति के 300 प्रतिशत तक किया गया है।
    • यह निर्णय लिया गया है कि पूंजी प्रवाहों की निगरानी के लिए विदेशी निवेशों पर एक संशोधित रिपोर्टिंग ढांचे को लागू किया जाए।
    • सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों द्वारा सूचीबद्ध विदेशी कंपनियों में विदेश में पोर्टफोलियो निवेश सीमा को निबल संपत्ति के 25 प्रतिशत से बढ़ाकर निबल संपत्ति के 35 प्रतिशत तक किया गया।
    • म्युच्युल फंड द्वारा समुद्रपारीय निवेश की समग्र अधिकतम सीमा 3 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ाकर 4 बिलियर अमरीकी डॉलर की जाएगी।
    • प्रधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा 300 मिलियन अमरीकी डॉलर की वर्तमान सीमा की तुलना में 400 मिलियन अमरीकी डॉलर तक बाहरी वाणिज्य उधारो(ईसीबी) के समयपूर्व भुगतान की रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन के बिना अनुमति बशर्ते कि ऋणों पर लागू निर्धारित न्यूनतम औसत परिपक्वता अवधि का अनुपालन किया हो।
    • व्यक्तियों द्वारा किसी अनुमत चालू अथवा-पूंजी खाते लेन-देनों अथवा दोनों के मिश्रण के लिए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 50,000 अमरीकी डॉलर की वर्तमान विप्रेषण सीमा को बढ़ा कर 100,000 अमरीकी डॉलर किया जाए।
    • बाजार भागीदारों को उपलब्ध प्रतिरक्षा के साधनों को व्यापक किया जाए।
    • प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी + बैंकों को अंतर्राष्ट्रीय पण्य बाजार में एल्युमिनियम, तांबा सीसा, निकल और जस्त के संबंध में उनके अंतर्निहित आर्थिक निवेश जोखिम के आधार पर उनके मूल्य जोखिम की प्रतिरक्षा करने के लिए देशी उत्पादकों/ प्रयोगकर्ताओं को अनुमति दी जाए तथा एवीएशन टर्बाइन फ्यूएल (एटीएफ) के वास्तविक प्रयोगकर्ताओं को अपनी देशी खरीद के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय पण्य बाजार में अपने आर्थिक निवेश जोखिम की प्रतिरक्षा करने के लिए अनुमति दी जाए।
    • वर्तमान में वस्तुओं और सेवाओं के आयातकों और निर्यातकों द्वारा की पात्र सीमा के 50% से अधिक बुक की गई वायदा संविदाएँ सुपुर्दगी आधार पर दोंगी तथा उन्हें निरस्त नहीं किया जा सकता। इस सीमा को बढ़ा कर 75 प्रतिशत किया जाए।
    • निवायों द्वारा समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश की प्रतिरक्षा के लिए की गई वायदा सेविदाओं को निरस्त करने अथवा दुबारा बुला करने की अनुमति दी जाए।
    • छोटे तथा मध्यम उद्यमों को उन प्राधिकृत व्यापारियों के माध्यम से बिना पूर्वताप्राप्त जोखिम अथवा निर्यात और आयात के पिछले रिकार्ड के बिना वायदा संविदाएँ बुक करने की अनुमति दी जाए जिनसे छोटे औ मध्यम उद्यमों से ऋण सुविधाएँ प्राप्त की हैं। छोटे तथा मध्यम उद्यमों को यह अनुमति भी दी जाए कि वे संविदाएँ आसानी से निरस्त कर सकें और उन्हें दुबारा बुक कर सके।
    • निवासी व्यक्तियों को अनुमति दी जाए कि वे बिना उत्पादन अथवा पूर्वप्राप्त दस्तावेजों के बना 100,000 अमरीकी डॉलर की वार्षिक सीमा तक वायदा संविदाएँ बुक कर सकें, जिन्हें निरस्त किया जा सके और दुबारा बुक किया जा सके।
    • करेंसी फ्यूचर्स मे अध्ययन के लिए एक कार्यकारी दल का गठन किया जाए जो वर्तमान कानूनी और विनियामक ढ़ाँचे के अनुरूप प्रस्ताव लागू करने के लिए एक उचित ढाँचा सुझाएगा।
    • निवासी कम्पनियों के संबंध में प्राधिकृत व्यापारियों को अनुमति दी जाए कि :
    • कम्पनियों द्वारा विशिष्ट प्रयोजनों के लिए दान के कारण प्रेषण की अनुमति, जो पिछले तीन वित्तीय वर्षो के दौरान उनकी विदेशी मुद्रा आय के 1% की सीमा तक अथवा 5 मिलियन अमरीकी डॉलर, जो की कम हो, के आधार पर होगा।
    • भारतीय कम्पनियों को आधारभूत परियोजनाओं के निषादन के लिए परामर्शी सेवाओं के लिए वर्तमान में / मिलियन अमरीकी डॉलर की सीमा की तुलना में 10 मिलियन अमरीकी डॉलर तक भेजने की अनुमति।
    • भारत में किए गए प्रारंभिक व्यय की प्रतिपूर्ति हेतु विदेशी मुद्रा भेजने की अनुमति देना, जहाँ संविधिक लेखा परीक्षायों द्वारा सत्यापन के आधारपर भारत में लाए गए निवेश के 5% से अधिक न दो अथवा 100,000 अमरीकी डॉलर, जो भी अधिक हो।
    • तेल ढूंढने के प्रयोजन से नकदी की मांग पर विप्रेषण की अनुमति बशर्ते कि भारत में परिचालक/ संधीय सदस्य प्रधिकृत व्यापारी की संतुष्टि के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करें।
    • अंतर्राष्ट्रीय काल सेंटरों के गठन के संबंध में सीमापारिय स्थलों पर उपकरण स्थापित कने की लागत के भुगतान के लिए बिज़नेस प्रोसेस आउट सोर्सिंग (बीपीओ) कंपनियों के अनुरोध पर विप्रेषण की अनुमति निर्धारित शर्तो के अधीन दी जाए।
    • जहाज के मजदूरों/नाविक दल का प्रबंध करनेवाली एजेंसियां जो भारत के बाहर निगत्रित नौवहन कंपनियों को सेवा प्रदान करती है के लिए भारत में विदेशी मुद्रा खाता खोलना।
    • समापन होने वाली कंपनियों की समापन आय विप्रेषित की जाए बशर्ते आधिकारिक समापक अथवा भारत में न्यायालय अथवा भरत सरकार द्वारा बनायी गयी किसी योजना द्वारा आदेश जारी किया गया हो और साथ ही कर अनुपालन भी किया गया हो।
    • प्राप्ति/खरीद/अभिग्रहण/निवासी व्यक्तिगत यात्री की लौटाने की तारीख से प्राप्त/अव्ययित/अप्रयुक्त विदेशी मुद्रा के अभ्यर्पण के लिए 6 महीनों की एकसमान अवधि।
    • अनिवासी कंपनी की ओर से प्राधिकृत व्यापारियों को निलंब (एक्रो)/विशेष खाता खोलने की अनुमति विशिष्ट स्थिति में देना जहाँ खुले प्रस्ताव/सूची से हटाने के प्रस्ताव/निर्गम प्रस्ताव और ऐसे ही अन्य प्रस्तावों के लिए सेबी विनियमावली के अनुसार ऐसे खाते खोलना आवश्यक हो।
    • अटर्नी अधिकार धारक द्वारा खातों के परिचालन की सुविधा एनआरओ खाता धारकों को देना।
    • जमाकर्ता के अनुरोध पर प्राधिकृत व्यापारियों को विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खाता (एफसीएनआर(बी) जमाराशियों की परिपक्वता आय भारत से बाहर तीसरी पार्टी को प्रेषित करने की अनुमति देना, बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी लेन-देन की सदाशयता के बारे में संतुष्ट हो।

    ऋण सुपुर्दगी प्रबंधन तथा अन्य बैंकिंग सेवाएँ

    • प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर संशोधित दिशा निर्देश अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा लागू किए जाने के लिए शीघ्र दी जारी किए जा रहे हैं।
    • छोटे और सीमान्त किसानों और बटाई पर खेती करने वालों को 50,000/- रु. तक के छोटे ऋणों के लिए "अदेयता" प्रमाणपत्र की अपेक्षा से छूट प्रदान की जाए तथा इसके बजाय उधार कर्ताओं से स्व घोषणा प्राप्त की जाए।
    • भूमिहीन मजदूरों, बटाई पर खेती करने वालों और पट्टेदारों को ऋण के मामले में फसलें उगाने के संबंध में स्थानीक प्रशासन /पंचायती राज्य संस्थाओं द्वारा प्रदान किए गए प्रमाणपत्र स्वीकार किया जाना प्रस्तावित।
    • ऋणों पर जोखिम भार सोने और चाँदी के गहनों पर एक लाख रु. के ऋण पर 125 प्रतिशत के वर्तमान स्तर से कम करके 50 प्रतिशत कर दिया जाए।
    • क्षेत्रीय ग्रामिण बैंकों को बिना जोखिम सहयोगिता के सभी एजेंसी कारोबार शुरू करने, स्वास्थ्य बीमा और जानवर बीमा सहित सभी बीमा उत्पादों के वितरण हेतु अनुमति दी जाए ,
    • आपदाग्रस्त किसानों के लिए ऋण गारंटी योजना आरंभ की जाएगी।
    • किसी बाहरी स्वतत्रं एजेसी द्वारा जिलों में 100 प्रतिशत वित्तीय समावेशन प्राप्त करने में प्रगति का मूल्यांकन करना प्रस्तावित ताकि इस संबंध में आगे कार्रवाई की जा सके।
    • सघं शासित क्षेत्र लक्षद्वीप के लिए एक कार्यकारी दल का गठन ताकि संघ शासित क्षेत्र में बैंकिंग सेवाओं की पहुँच बढ़ाने हेतु उपायों की सिफारिश की जा सके।
    • राज्य स्तरीय बैंकर समिति के आयोजक बैंकों को सूचित करना कि वे किसी एक जिले में प्रायोगिक आधार पर वित्तीय साक्षरता-व-परामर्शदाता केंद्र की स्थापना करे और वहां प्राप्त अनुभव के आधार पर अन्य जिलों मे ऐसे केंद्र स्थापित करने के लिए संबंधित अग्रणी बैंकों से कहना।
    • बैंकों से आग्रह किया गया है कि वित्तीय समावेशन के लिए तेजी से आइटी में पहल करें तथा साथ ही यह सुनिश्चित करें कि प्राप्त समाधान अत्यंत सुरक्षित, लेखा परीक्षा के लिए अनुकूल हैं, तथा व्यापक रूप से स्वीकार किए गए लचीले मानदंडों को अपनाए ताकि विभिन्न प्रणालियों के बीच अंतिम अंतर-परिचालनक्षमता को सुनिश्चित किया जा सके।
    • स्वयं सहायता समूह द्वारा रखे जानेवाले खातों में पारदर्शिता की मात्रा और उनके द्वारा पूर्णत: स्वीकार की गई सर्वोतम प्रक्रियाओं के कड़ाई से किए जानेवाले पालन को सुनिश्चित करने की दृष्टि से रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से बैंक के स्वयं सहायता समूह सहलग्नता कार्यक्रम का मूल्यांकन करना।
    • बैंकों के बोर्ड को सूचित किया गया है कि वे आंतरिक सिद्धांत और क्रियाविधियां निर्धारित करें ताकि अधिक सूदखोरी की प्रवृत्ति से ब्याज , प्रक्रियागत और अन्य प्रभार न लगाए जाए।
    • प्रस्ताव है कि बैंकिंग लोकपाल योजना, 2006 के अंतर्गत अपील विकल्प को बढ़ाना और योजना के अंतर्गत निर्धारित शिकायत के आधार में शामिल मामलों के संबध में शिकायत अस्वीकार करने के बैंकिंग लोकपाल के निर्णय के लिए उसे लागू करना।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक नोट (वापसी) नियमावली (1980 तक यथा संशोधित ) संशोधित की जाए जिससे जनता को आसानी से कटे-फटे नोटों का मूल्य वापस मिल सके।

    विवेकपूर्ण मानदंड

    • भारतीय बैंकों को वर्तमान विवेकपूर्ण सीमाओं और कुछ अतिरिक्त रक्षोपायों के भीतर ऐसी अनुषंगी शाखाओं को कम करने के लिए खाद्य और खाद्येतर ऋण सुविधाएं देने के लिए अनुमति देना जो भारतीय कंपनियों की समुद्रपारीय अनुषंगल शाखाओं द्वारा पूर्णत: शासित है।
    • अंशांकन पद्धति से ऋण डेरिवेटिव लागू करना। प्रारंभ में बैंकों और प्राथमिक व्यापारियों को एकल संस्था ऋण चूक स्वैप (सीडीएस) प्रणाली शुरु करने के लिए अनुमति दी जाएगी।
    • कंपनी / थोक बैंकिंग, फुटकर बैंकिंग और अन्य बैंकिंग कारोबार के अधिक संवर्गों को शामिल करने के लिए लेखा मानक 17 के अधीन प्रकटीकरण की सूचना देने के अंश को बढ़ाया गया।
    • अस्थायी उपाय के रूप में व्यक्तियों को रिहायशी आवास ऋण पर जोखिम भार प्रचलित 75 प्रतिशत से कम करके 50 प्रतिशत करना। यह छूट 20 लाख रुपये तक के ऋणों के लिए लागू होगी और चूक के अनुभव तथा अन्य संबंधित घटकों को ध्यान में रखते हुए एक वर्ष के बाद इसकी समीक्षा की जाएगी।

    संस्थागत गतिविधियां

    • बैंकिंग प्रौद्योगिकी में विकास और अनुसंधान संस्थान द्वारा मल्टी प्रोटोकोल लेबल स्विचिंग नेटवर्क के रूप में भारतीय वित्तीय नेटवर्क (इन्फिनेट) प्रणाली लागू करना।
    • केंद्र और राज्य सरकारों के लेखा लेनदेन के प्रबंध में सुधार लाने के लिए केंद्रीकृत लोक लेखा विभाग प्रणाली व्यापक करना जिससे वर्ष 2007-08 में रिज़र्व बैंक के सभी कार्यालय उसमें शामिल किए जा सके।
    • आरटीजीएस, ईसीएस, ईएफटी और एनईएफटी से संबंधित लेनदेनों के लिए प्रोसेसिंग शुल्क 31 मार्च 2008 तक हटा देना।
    • प्रस्ताव है कि समाशोधन गृह के सीधे सदस्य बनने के लिए न्यूनतम पात्रता मानदंड संबंधी व्यापक ड्राफ्ट दिशा-निर्देश तैयार करना और टिप्पणियों/प्रति सूचना के लिए इन दिशा-निर्देशों को 31 मई 2007 तक रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर ड़ालना। पात्रता मानदंडों में आरटीजीएस, एनईएफटी, ईसीएस में सदस्यता और इन्फिनेट की संलग्नता को भी शामिल किया जाएगा।
    • 31 मार्च 2007 को समाप्त होनेवाले वर्ष से भुगतान और निपटान प्रणाली की वार्षिक समीक्षा शुरु करना।
    • कतिपय मानदंडों की पूर्तता के अधीन राज्यों में सुप्रबंधित और वित्तीय रूप से स्वस्थ माने जानेवाले ऐसे शहरी सहकारी बैंकों को शाखा लाइसेंस मंजूर करना जिन्होंने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
    • पूंजी जुटाने के विभिन्न विकल्पों के बारे में शहरी सहकारी बैंकों को 31 मई 2007 तक दिशा-निर्देश जारी करना।
    • टियर I और टियर II के शहरी सहकारी बैकों के लिए लागू प्रचलित शिथिल विवेकपूर्ण मानदंड और एक वर्ष जारी रखना।
    • ग्रेड I और II के शहरी सहकारी बैंक जिनका निवल मूल्य 10 करोड़ रुपये है और जो रिज़र्व बैंक के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करनेवाले बैंक के रूप में राज्य में अथवा बहु राज्य सहकारी समिति अधिनियम के अंतर्गत दर्ज हैं, को कारपोरेट एजंट के रूप में जोखिम सहभागिता के बिना बीमा कारोबार करने की अनुमति दी जाए।
    • निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम द्वारा जमाकर्ताओं को देय दावों के लिए प्रस्ताव है कि "ए और बी" एवं "बी और ए" के नाम धारित संयुक्त जमाराशियों को प्रति 1 लाख रुपये के अधिकतम दावे के लिए दो अलग पात्र खाते माना जाए।
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (अवशिष्ट गेर-बैंकिंग कंपनियों ) द्वारा जमाराशियों पर देय ब्याज दर की उच्च्तम सीमा को 150 आधार बिंदु बढ़ाकर प्रति वर्ष 12.5 प्रतिशत किया जाए और ऐसा ब्याज ऐसे अंतराल पर अदा किया जाए अथवा जोड़ा जाए जो मासिक अंतराल से कम नहीं होना चाहिए।
    • सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक ने विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निकाले गए हैंडबुक का आधार के रूप में प्रयोग करते हुए भारतीय वित्तीय क्षेत्र का व्यापक स्व-मूल्यांकन करने के लिए वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन संबंधी समिति का गठन किया है। समिति मध्यावधि परिदृश्य में और अधिक सुधारों के लिए रूपरेखा तैयार करेगी।
    • मुंबई को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र बनाने के संबंध में उच्च अधिकार प्राप्त विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट की जांच करने और यथोचित सिफारिशों का कार्यान्वयन करने के लिए आंतरिक कार्यकारी दल का गठन किया जाए।

    बी.वी.राठोड़
    प्रबंधक

    प्रेस प्रकाशनी : 2006-2007/1454

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