भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की घोषणा की - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की घोषणा की
29 अप्रैल 2008
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2008-09 के लिए
वार्षिक नीति वक्तव्य की घोषणा की
डॉ. वाई.वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ एक बैठक में वर्ष 2008-09 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य प्रस्तुत किया। इस वक्तव्य के दो भाग हैं: भाग I में वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य और भाग II में वर्ष 2008-09 के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वार्षिक वक्तव्य शामिल हैं।
मुख्य-मुख्य बातें
- विकास की गति को जारी रखते हुए मूल्य स्थिरता को उच्च प्राथमिकता, सुव्यवस्थित मुद्रास्फीति प्रत्याशाएँ और वित्तीय बाज़ारों में व्यवस्थित स्थितियाँ बनाए रखना।
- उभरती हुई प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू गतिविधियों के प्रति पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों उपायों के माध्यम से लगातार आधार पर तीव्र कार्रवाई।
- वित्तीय समावेशन का अनुपालन करते समय ऋण गुणवत्ता और ऋण वितरण पर जोर दिया जाना।
- बैंक दर, प्रत्यावर्तनीय रिपो दर और रिपो दर को अपरिवर्तनीय रखा गया।
- अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से अपेक्षा की गई कि वे 24 मई 2008 के पखवाड़े की शुरूआत से 8.25 प्रतिशत का प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) बनाए रखें।
- वर्ष 2008-09 के लिए सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का 8.0 - 8.5 प्रतिशत की सीमा में अनुमान किया गया।
- वर्ष 2008-09 में यथासंभव मुद्रा स्फीति को 5.0 प्रतिशत तक लाए जाने के संदर्भ में इसे 5.5 प्रतिशत के आस-पास लाया जाएगा। आगे जाकर प्रस्ताव यह है कि नीति और अवधारणाओं को मुद्रास्फीति के लिए 4.0 - 4.5 की सीमा तक बनाया रखा जाए ताकि लगभग 3.0 प्रतिशत की एक मुद्रास्फीति दर एक मध्यावधि उद्देश्य बन सके।
- एम3 विस्तार में सुधार करते हुए वर्ष 2008-09 के दौरान इसे 16.5 - 17.0 प्रतिशत की सीमा में लाया जाएगा।
- वर्ष 2008-09 के दौरान जमाराशियों में लगभग 17.0 प्रतिशत अथवा 5,50,000 करोड़ रुपए की वृद्धि अनुमानित है।
- समायोजित खाद्येतर ऋण में वर्ष 2008-09 के दौरान लगभग 20.0 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है।
- बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) और चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) सहित प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) निर्धारणों और खुला बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) के समुचित उपयोग के माध्यम से चलनिधि की सक्रिय माँग का प्रबंध करना।
- वर्ष 2008-09 के अंत तक सरकारी प्रतिभूतियों में पंजीकृत हित और मुख्य प्रतिभूतियों का अलग व्यापार (एसटीआरआइपीएस) लागू करना।
- काउंटर पर (ओटीसी) रुपया व्युत्पन्नी के लिए एक समाशोधन और निपटान व्यवस्था प्रस्तावित की गई।
- घरेलू कच्चा तेल शोधन कंपनियों को कच्चे तेल की घरेलू खरीद और अंतर्निहित संविदा के आधार पर पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री पर समुद्रपारीय शेयर बाज़ारों/बाज़ारों में उनके पण्य मूल्य जोखिम के बचाव की अनुमति दी गई।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के परामर्श से पात्र शेयर बाज़ारों में करेंसी फ्यूचर्स लागू किए जाएंगे जिसके विस्तृत ढाँचे को मई 2008 के अंत तक अंतिम रूप दिया जाएगा।
- भारतीय कंपनियों को ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन क्षेत्रों में समुद्रपारीय निवेश की अनुमति दी जाएगी।
- वसूली की निर्धारित अवधि के बाद निर्यात माल के पूँजीकरण हेतु रिज़र्व बैंक से संपर्क किया जा सकेगा।
- कृषि तथा सहबद्ध गतिविधियों को आगे उधार देने हेतु क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को स्वीकृत किए गए ऋणों को कृषि के लिए अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
- कमज़ोर वर्गों को उधार देने में कमी को अप्रैल 2009 से ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि (आरआइडीएफ) के प्रति अंशदान के रूप में गणना की जाएगी।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपनी निर्धारित प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र निवेश से अधिक ऋण आस्तियों को राशि अन्य बैंकों को बिक्री की अनुमति दी गई।
- बैंकों द्वारा लगाए जा रहे विभिन्न प्रभारों के ब्यौरे का प्रसार रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाएगा।
- मूलभूत सुविधा परियोजनाओं को ऋण प्रदान करने के लिए आस्ति वर्गीकरण मानदण्डों को शिथिल किया गया।
- बैंकों के तुलन पत्र से इतर विशिष्ट निवेशों के लिए विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा की जाएगी।
- रिज़र्व बैंक द्वारा पण्य क्षेत्र में बैंकों के निवेश की पर्यवेक्षी समीक्षा की जाएगी।
- 50 प्रतिशत के कम जोखिम भारित आवास के लिए व्यक्तियों को बैंक ऋणों की सीमा 20 लाख रुपए से बढ़ाकर 30 लाख रुपए की गई।
- वित्तीय समूहों का समेकित पर्यवेक्षण का प्रस्ताव।
- विशेष प्रयोजन संस्था/न्यास के लिए पर्यवेक्षीय ढाँचा तैयार करने हेतु कार्यकारी दल का गठन किया जाना।
- अंतर-विभागीय दल द्वारा भारतीय बैंकों के समुद्रपारीय परिचालनों के लिए मौजूदा विनियामक और पर्यवेक्षी ढाँचे की समीक्षा की जाएगी।
- एक करोड़ से अधिक की राशिवाले सभी लेन-देन अनिवार्य रूप से इलैक्ट्रानिक भुगतान व्यवस्था के माध्यम के लिए जाएंगे।
- सुप्रबंधित और वित्तीय रूप से सुदृढ़ शहरी सहकारी बैंकों के लिए कार्यस्थल पर एटीएम खोलने के लिए वर्तमान पात्रता मानदण्ड हटा दिए गए हैं।
- प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए पूँजी पर्याप्तता, चलनिधि और प्रकटीकरण मानदण्डों के संबंध में विनियमों की समीक्षा की जाएगी।
ब्योरे
घरेलू गतिविधियाँ
- केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) ने 2007-08 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद का अग्रिम अनुमान 8.7 प्रतिशत माना है। यह 2006-07 के 9.6 प्रतिशत के बाद का अनुमान है।
- वर्ष-दर-वर्ष आधार पर निछले वर्ष 5.9 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2008 के अंत में थोक मूल्य सूचकांक 7.4 प्रतिशत के स्तर पर रहा। 2007-08 में, वित्तीय वर्ष के शुरूआती दौर में हेडलाइन मुदास्फीति 6.4 प्रतिशत के आसपास थी और अक्तूबर के मध्य तक इसमें गिरावट आई तथा यह 3.1 प्रतिशत पर पहँच गई पर फरवरी 2008 के मध्य से इसमें फिर तेजी आई।
- अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की भारतीय बास्केट का औसत मूल्य 2006-07 के 62.4 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर से बढ़कर 27.6 प्रतिशत बढ़कर 2007-08 में 79.7 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल पर पहँच गया।
- मुद्रा आपूर्ति (एम3) 2006-07 के 21.5 प्रतिशत (5,86,548 करोड़ रुपए) की तुलना में 20.7 प्रतिशत (6,86,096 करोड़ रुपए) बढ़ी।
- प्रारक्षित मुद्रा पिछले वर्ष के 23.7 प्रतिशत (1,35,935 करोड़ रुपए) की तुलना में 2007-08 में 30.9 प्रतिशत (2,19,326 करोड़ रुपए) बढ़ी।
- अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की समग्र जमाराशि पिछले वर्ष के 23.8 प्रतिशत (5,02,885 करोड़ रुपए) की तुलना में 2007-08 में 22.2 प्रतिशत (5,80,208 करोड़ रुपए) बढ़ीं।
- अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा दिया जानेवाला खाद्येतर ऋण पिछले वर्ष के 28.5 प्रतिशत (4,18,282 करोड़ रुपए) की तुलना में 22.3 प्रतिशत (4,19,425 करोड़ रुपए) बढ़ा।
- बैंकिंग प्रणाली के लिए वृद्धिशील गैर खाद्य ऋण जमा अनुपात 2004-05 में 13.0 प्रतिशत, 2005-06 में 109.3 प्रतिशत तथा 2006-07 में 83.2 प्रतिशत से कम होकर 2007-08 के दौरान 72.3 प्रतिशत हो गया।
- वाणिज्य क्षेत्र से राज्य सहकारी बैंकों को निधि के कुल प्रवाह में, एसएलआर से इतर निवेश सहित, 2006-07 में 27.3 प्रतिशत (4,22,363 करोड़ रु.) की तुलना में 2007-08 में 21.9 प्रतिशत (4,31,256 करोड़ रु.) की वृद्धि हुई ।
- वर्ष 2007-08 में वित्तीय बाजारों में चलनिधि स्थिति में उतार - चढ़ाव आए।
- एलएएफ के अन्तर्गत शेष राशि में दर्शाई गई चलनिधि में कुल आधिक्य, एमएसएस और केद्र सरकार के अधिशेष नकदी शेष को कुल मिलाकर, 25 अप्रैल 2008 को 2,43,879 करोड़ रु. पर कम होने से पहले 27 मार्च 2008 को 2,73,694 करोड़ रु. की आंतर - वर्ष ऊँचाई पर रहा।
- घरेलू वित्तीय बाज़ारों में ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव 2007-08 के दौरान बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि में परिवर्तन लाने वाले घटकों को दर्शाते हैं।
- विदेशी मुद्रा बाजार में औसत दैनिक कुल कारोबार मार्च 2007 के अन्त में 33.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर मार्च 2008 के अन्त में 57.3 अमरीकी बिलियन डॉलर हो गया।
- सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में वाणिज्य बैंकों के निवेश में 2007-08 के दौरान 22.9 प्रतिशत (1,81,222 करोड़ रु.) की वृद्धि हुई जो 2006-07 में 10.3 प्रतिशत (74,062 करोड़ रु.) से काफी अधिक थी।
- वाणिज्य बैंकों के सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) पात्र प्रतिभूतियों के स्टॉक में, बैंकिंग प्रणाली की निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) की तुलना में, मार्च 2007 में 27.3 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2008 में 27.4 प्रतिशत की सीमान्त वृद्धि हुई है।
- सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा एक वर्ष से अधिक अवधि वाली जमाराशियों पर दी जाने वाली ब्याज दरें मार्च 2007 में 7.25 - 9.50 प्रतिशत से परिवर्तित होकर मार्च 2008 में 8.00 - 9.25 प्रतिशत की सीमा में हो गईं।
- सरकारी क्षेत्र के बैंकों की बैंच मार्क मूल उधार दरें 2007-08 के दौरान 12.25 - 12.75 प्रतिशत से बढ़कर 12.25-13.50 प्रतिशत की सीमा में आने से 75 आधार पाइंट बढ़ गई।
- बीएसई सेंसेक्स (1978-79 = 100) मार्च 2007 के अंत में 13072 से बढ़कर मार्च 2008 के अंत में 15644 होने से उसमें 19.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- केद्र सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों के प्राथमिक निर्गमों से भारित औसत आय में पिछले वर्ष के 7.89 प्रतिशत से बढ़कर 2007-08 में 8.12 प्रतिशत होने से, 23 आधार पाइंट की वृद्धि हुई।
बाह्य गतिविधियां
- डीजीसीआइ एण्ड एस से उपलब्ध जानकारी के अनुसार अप्रैल - फरवरी 2007-08 के दौरान पण्य निर्यात में अमरीकी डॉलर के अनुसार 22.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 23.2 प्रतिशत थी। इसी अवधि के दौरान आयात में 25.2 प्रतिशत की तुलना में 30.1 प्रतिशत की वृद्धि परिलक्षित है।
- हालांकि तेल आयात में 31.2 प्रतिशत की तुलना में 26.4 प्रतिशत की वृद्धि कम रही, लेकिन तेल आयात से इतर आयात में 22.6 प्रतिशत की तुलना में 31.8 प्रतिशत की उच्चतर वृद्धि रही।
- अप्रैल - फरवरी 2007-08 मे दौरान व्यापार घाटा 72.5 बिलियन अमरीकी डॉलर था जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 49.4 बिलियन अमरीकी डॉलर से 46.8 प्रतिशत अधिक था।
- वर्ष 2007-08 के दौरान पूंजी प्रवाह निरन्तर बने रहना ध्यान देने योग्य है क्योंकि विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि 110.5 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर मार्च 2008 के अन्त में 309.7 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई।
- भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार में 2007-08 के दौरान स्थितियां सामान्य रहीं और विदेशी मुद्रा दर में दोतरफा गतिशीलता बनी रही। वर्ष 2007-08 के दौरान रुपये में अमरीकी डॉलर की तुलना में 9.1 प्रतिशत तथा पाउंड स्टर्लिंग की तुलना में 7.5 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि हुई लेकिन जापानी येन की तुलना में 7.7 प्रतिशत और यूरो की तुलना में 7.8 प्रतिशत का मूल्यहसा हुआ।
वैश्विक गतिविधियाँ
- वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में मुख्य रुप से अमरीकी अर्थव्यवस्था में मंदी आने के कारण पहले की अपेक्षाओं की तुलना में कमी आई है।
- अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष के विश्व आर्थिक परिप्रेक्ष्य (डब्ल्यूईओ) क्रय शक्ति समता आधार पर वैश्विक वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के लिए पूर्वानुमान के अनुसार वर्ष 2007 में 4.9 प्रतिशत से कम होकर 2008 में 3.7 प्रतिशत होने की संभावना है।
- लगातार मजबूत मांग और कम होते स्टॉक सार्वभौमिक रूप से असुविधाजनक मांग - आपूर्ति खाद्य स्थिति दर्शाते हैं जिससे वैश्विक स्थिरता के प्रमुख जोखिम के रूप में खाद्य पदार्थों के मूल्य में वृद्धि उभर रही है।
- खाद्य और कृषि संगठनों (एफएओ) का वैश्विक खाद्य मूल्य सूचकांक, जो 2007 में 40% की वृद्धि होने के कारण उच्चतम स्तर पर दर्ज है तथा 2008 की पहली तिमाही में भी लगातार बढ़ रहा है क्योंकि विश्व का खाद्य भंडार 25 वर्ष में न्यूनतम स्तर तक पहुँच गया है।
- वैश्विक खाद्यान्न बाजार में, मक्का, सोयाबीन तथा गेहूं जैसी प्रमुख फसलों के मूल्य 25 अप्रैल 2008 को पिछले वर्ष की बढ़ती हुई मांग के कारण क्रमश: 58.2 प्रतिशत , 86.3 प्रतिशत और 56.5 प्रतिशत बढ़ गए हैं।
- ऊर्जा सूचना प्रशासन (ईआइए) के अनुसार कई तेल निर्यातक देशों में उपलब्ध कच्चे तेल अधिशेष उत्पादन क्षमता तथा आपूर्ति के कड़े मूलभूत तत्वों के कारण कच्चे तेल के मूल्य में वृद्धि का दबाव बना हुआ है।
- उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं में ऊर्जा और खाद्य पदार्थों के उच्चतर मूल्यों के कारण हुई हेडलाइन मुद्रास्फीति चिन्ता का विषय है क्योंकि इस मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए संतुलित उपाय आवश्यक है; जबकि यह विकसित देशों में मंदी के कारण हुए प्रभावों के लिए चेतावनी है तथा इससे वैश्विक वित्तीय बाजार में हड़कम्प की स्थिति लम्बे समय तक बनी रह सकती है।
- अगस्त 2007 में घबराहट की शुरुआत से प्रगत अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय बाज़ारों में चलनिधि संबंधी दबाव और बड़ी वित्तीय संस्थाओं में शोधन संबंधी मामले कम करने के लिए पारंपरिक और गैर-पारंपरिक, दोनों उपाय किए।
- कुछ केंद्रीय बैंक जैसे यूएस फेडरल रिज़र्व, बैंक ऑफ इंग्लैण्ड, बैंक ऑफ कनाडा ने 2007 की तीसरी तिमाही से नीतिगत दरों में कटौती की जब वित्तीय बाज़ार में हडकंप मचने की शुरुआत हुई।
- ऐसे कई देश जिनमें यूरो क्षेत्र, न्यूज़ीलैंड, जापान, कोरिया, मलेशिया, थाइलैण्ड और मेक्सिको शामिल है, के केंद्रीय बैंकों ने 2007 की अंतिम तिमाही से अपनी दरों में परिवर्तन नहीं किया।
- कुछ केंद्रीय बैंकों ने हाल ही के महीनों में अपनी नीतिगत दरों में वृद्धि की जिनमें रिज़र्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया, पीपल्स बैंक ऑफ चायना, बैंक सेंट्रल दि चिली और बैंक सेंट्रल दि ब्राज़िल शामिल हैं।
- उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों द्वारा या तो अपनी नीतिगत दरों अथवा प्रारक्षित आवश्यकताओं अथवा दोनों को बढ़ाने के माध्यम से मौद्रिक नियंत्रण बढ़ाए जाने के परिणामस्वरूप भारी पूंजी प्रवाह प्राप्त हुए। इसी बीच कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंक बाण्ड के जरिए बैंकिंग प्रणाली से चलनिधि को कम करना जारी रहा।
- कई उभरती बाजार अथ्ांदव्यवस्थाओं में पूंजी प्रवाह के प्रबंध के उद्देश्य से प्रत्यक्ष उपाय भी किए गए।
समग्र मूल्यांकन
- जहां सकल आपूर्ति क्षमताओं में विस्तार हुआ और देशी समष्टि असंतुलन में 2007-08 में कुछ सीमा तक कमी आ गई वहीं उपलब्ध संकेतक यह दर्शाते हैं कि भारत में इस समय जारी आर्थिक गतिविधि मुख्यत: मांग-चालित रही है।
- वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही के दौरान मुद्रास्फीति में आई वृद्धि मुख्यत: आपूर्ति संबंधी दबावों से जनित थी - जैसे वर्ष भर में वैश्विक कच्चे तेल मूल्य में हुई वृद्धि को अंशत: समायोजित करने के लिए देशी पेट्रोल और डीज़ल के मूल्यों में हुई एकल आदेश वृद्धि ; पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्यों जो नियंत्रित नहीं हैं, में लगातार हो रही वृद्धि; गेहूं और तिलहन के बढ़ते मूल्य तथा अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में वृद्धि के कारण मार्च 2008 में स्टील मूल्य में समायोजन।
- भारत में मुद्रास्फीति में तब वृद्धि हुई है जब वैश्विक पण्य मूल्यों में ऐतिहासिक वृद्धिशील स्तरों पर अस्थिरता आ गई है और परिपक्व तथा समान उभरती अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंक बढ़ी हुई मुद्रास्फीति के संबंध में जोड़ बिठा रहे हैं।
- ऐसी चिंता है कि मांग दबाव जो अब तक यथोचित रूप से सीमित रहे हैं अब आपूर्ति संबंधी घटक जुड़े रहे हैं, जो अस्थायी न हुए तो देशी मुद्रास्फीति को अत्यधिक प्रभावित कर सकते हैं।
- ब्याज संवेदनशील क्षेत्रों के संबंध में खाद्येतर ऋण में थोड़ी वृद्धि अंकित हुई है जिसमें पूर्ववर्ती वर्षों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ी हुई वृद्धि दरें दर्ज हो गई थी।
- वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही के दौरान वित्तीय बाजारों पर असामान्य उतार-चढ़ाव का प्रभाव पड़ा और विदेशी मुद्रा प्रवाह तथा साथ ही रिज़र्व बैंक के पास सरकार के नकदी शेष में अत्यधिक अस्थिरता आ गई जिसके परिणामस्वरूप चलनिधि संबंधी स्थिति में परिवर्तन होता रहा।
- वित्तीय अस्थिरता और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में प्रत्याशित मंदी को देखते हुए उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए वृद्धि संबंधी पूर्वानुमान सीमित रखे गए हैं। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के परिप्रेक्ष्य में मुख्य जोखिम है बढ़ते खाद्य, ऊर्जा और पण्य मूल्य जिनसे पहले से ही मुद्रास्फीतिकारी दबाव निर्माण हुए हैं तथा इन अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि की गति प्रभावित करने सबंधी चिंता बढ़ रही है।
- अमेरिका में, हाल ही में विशेषत: ऐसी अवधि में जब मुद्रास्फीतिकारी दबावों पर नियंत्रण की अपेक्षा है, किए गए मौद्रिक उपायों नें भी ब्याज दर अंतरों को व्यापक करके और निष्प्रभावीकरण की लागत में वृद्धि करके, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं द्वारा अनुभव की जा रही अनिश्चितताओं को बढ़ाया है।
- वैश्विक वित्तीय प्रणाली का परिदृश्य प्रतिभूतियुक्त ऋण बाजार में अव्यवस्था के बीच अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग प्रणाली में हानि और बट्टे खाते डाले जाने की बढ़ती घटनाओं से घिरा हुआ है। वित्तीय गारंटीदाता की अर्थक्षमता के इर्द-गिर्द और उनके कारोबारी माडल संबंधी संदेह तथा साथ ही संभाव्य प्रणालीगत प्रभावों के साथ दर्जा निर्धारक एजेंसियों के दृष्टिकोण के प्रति भी अनिश्चितताएं बढ़ रही हैं।
- समग्र मूल्यांकन में प्रारंभिक मूल्यांकनों के संदर्भ में वैश्विक और देशी दोनों गतिविधियों में उल्लेखनीय अंतर आया है। वर्तमान स्थिति में यद्यपि एकरूप अपेक्षाएं पूर्ण नहीं होंगी फिर भी वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ा हुआ है। देशी स्तर पर जनवरी 2008 तक आर्थिक स्थिति अनुकूल रही। उसके बाद आगामी वर्ष में वृद्धि की संभावनाओं में काटछांट हुई क्योंकि अंतरराष्ट्रीय खाद्य , कच्चा तेल और धातु मूल्य में ऊर्ध्वमुखी दबावों से मुद्रास्फीति संबंधी जोखिम और मुद्रास्फीति अपेक्षाएं पहले से अधिक प्रभावशाली और यथार्थ हो गई हैं ।
वर्ष 2008-09 के लिए मौद्रिक नीति का बल
- नीतिगत प्रयोजनों के लिए यह मानते हुए कि (क) इस समय किए गए मूल्यांकन के अनुसार वैश्विक वित्तीय और पण्य बाजार तथा वास्तविक अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर केंद्रीय परिदृश्य के अनुरूप होगी और (ख) देश में सामान्य मानसून की स्थिति बनी रहेगी 2008-09 में वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि की दर 8.0 से 8.5 प्रतिशत तक रखी जा सकती है।
- समग्र मांग पर मौद्रिक नीति के पड़नेवाले धीमे और संचयी प्रभावों को देखते हुए और यह मानते हुए कि आपूर्ति प्रबंध प्रेरक होंगे, नीति में यह प्रयास किया जाएगा कि मुद्रास्फीति को 7.0 प्रतिशत से अधिक के वर्तमान उच्च स्तर को कम करके 2008-09 में लगभग 5.5 प्रतिशत तक लाया जाए तथा यथासंभव उसे 5.0 प्रतिशत के करीब लाने को प्राथमिकता दी जाए।
- मौद्रिक आधिक्य को देखते हुए यह आवश्यक है कि मौद्रिक विस्तार को सीमित रखा जाए और वृद्धि की संभावना और मुद्रास्फीति के अनुसार मुद्रा आपूर्ति की दर को 2008-09 में 16.5 - 17.0 प्रतिशत की सीमा में रखने की व्यवस्था की जाए ताकि आगामी अवधि में समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके।
- मुद्रा आपूर्ति के अनुमानों के अनुरूप सकल जमाराशि में 2008-09 में लगभग 17.0 प्रतिशत अथवा लगभग 5,50,000 करोड़ रुपए की वृद्धि होगी ।
- निधियों के स्रोतों के समग्र मूल्यांकन एवं अर्थव्यवस्था के विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों की समग्र ऋण आवश्यकताओं के आधार पर, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा निजी कंपनी क्षेत्र के बांडों/डिबेंचरों/शेयरों तथा वाणिज्य पत्र में किए गए निवेश समेत 2008-09 में खाद्येतर ऋण में लगभग 20.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- इस समय अभूतपूर्व जटिलताएं दिखाई दे रही हैं और अनिश्चितताएं अपने चरम पर हैं तब ऐसी स्थिति में 2008-09 में मौद्रिक नीति का रूझान तय करने में ये कुछ कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं (i) खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती और उथल-पुथल भरी कीमतों से उत्पन्न हो रही चुनौती; (ii) अब चूँकि निवेश माँग सुदृढ़ हो रही है तब ऐसे में आपूर्ति में सुधार आने की आशा है; (iii) भारत सरकार द्वारा हाल में उठाए गए आपूर्ति प्रबंधन संबंधी कदम और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नकदी प्रारक्षित अनुपात संबंधी उपाय; (iv) घरेलू और वैश्विक दोनों ही गतिविधयों से संबंधित प्रत्याशाओं का महत्त्व।
- इन उपर्युक्त अभूतपूर्व अनिश्चितताओं एवं असमंजस की स्थिति के मद्देनज़र यह महत्त्वपूर्ण है कि नीतिगत कार्रवाईयों के समय एवं महत्त्व के बारे में सोच-समझकर निर्णय लिए जाएं और अनवरत आधार पर प्राप्त होनेवाली सूचना के आधार पर ही ये निर्णय लिए जाएं।
- मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के बारे में आ रहे किसी भी प्रतिकूल संकेत के असर को दूर करने के लिए निरंतर आधार पर सजगता, प्रभावी ढंग से एवं त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए।
- आवश्यकतानुसार रिज़र्व बैंक बाज़ार स्थिरीकरण योजना एवं चलनिधि समायोजन सुविधा समेत सीआरआर निर्धारणों एवं खुला बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) सहित इसके पास जितने भी नीतिगत लिखत उपलब्ध हैं उनका उपयोग करते हुए चलनिधि की सक्रिय माँग प्रबंधन करने की अपनी नीति बरकरार रखेगा।
- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में होनेवाली किसी प्रतिकूल एवं अप्रत्याशित गतिविधि को ध्यान में न लेते हुए और यह मानते हुए कि पूँजी प्रवाह का प्रभावी प्रबंधन होगा तथा वृद्धि एवं मुद्रास्फीति की संभावनाओं समेत अर्थव्यवस्था के वर्तमान मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए 2008-09 में मौद्रिक नीति का समग्र रूझान मोटे तौर पर इस प्रकार रहेगा:
- ऐसा मौद्रिक एवं ब्याज दर माहौल सुनिश्चित करना जिसमें मूल्य स्थिरता को उच्च प्राथमिकता दी जाए, मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर अंकुश रखा जाए तथा वृद्धि की रफ्तार को बनाए रखते हुए वित्तीय बाज़ार में सुव्यवस्थित स्थितियाँ रहें।
- प्रतिकूल अंतर्राष्ट्रीय गतिविधयों और मुद्रास्फीति संबंध प्रत्याशाओं, वित्तीय स्थिरता एवं वृद्धि की रफ्तार संबंधी घरेलू परिस्थितियों से उभर रही चुनौतियों का पारंपरिक और अपारंपरिक उपायों से यथोचित रूप से अनवरत आधार पर तुंत निपटना।
- वित्तीय समावेशन पर जोर देते हुए ऋण गुणवत्ता के साथ-साथ ऋण सुपुर्दगी, विशेषत: रोजगार-परक क्षेत्रों में, पर जोर देना।
मौद्रिक उपाय
- बैंक दर 6.0 प्रतिशत के स्तर पर अपरिवर्तित रही।
- रिवर्स रिपो रेट तथा रिपो रेट भी क्रमश: 6.00 प्रतिशत तथा 7.75 प्रतिशत के स्तर पर ही अपरिवर्तित रहे।
- बाज़ार परिस्थितियों एवं अन्य संबंधित कारकों के आधार पर रिज़र्व बैंक ने चलनिधि समायोजन सुविधा के अधीन ओवरनाइट रिपो तथा दीर्घावधि रिपो के संचालन का विकल्प अपने पास रखा है। चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिज़र्व बैक जैसा उचित समझे उसके अनुसार निविदा (निविदाओं) को पूर्णत: या आंशिक रूप से स्वीकार करने या निरस्त करने के अधिकार का प्रयोग करना जारी रखेगा ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंधन में चलनिधि समायोजन सुविधा का सक्षमतापूर्ण उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
- 24 मई 2008 को शुरू हो रहे पखवाड़े से अनुसूचित वाणिज्य बैंकों हेतु नकदी प्रारक्षित अनुपात (सीआरआर) बढ़ाकर 8.25 प्रतिशत कर दिया गया है।
विकासात्मक और विनियामक नीतियाँ
वित्तीय बाज़ार
- बाजार स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अस्थाई दर बांण्ड (एफआरबी) का सही समय पर निर्गम करना।
- सरकारी प्रतिभूतियों हेतु नीलामी प्रक्रिया के लिए गठित आंतरिक कार्य समूह की सिफारिशों के कार्यान्वयन हेतु प्रक्रिया बनाई जा रही है।
- बेहतर ग्राहक सेवा के लिए गवर्नमेंट सिक्यूरिटी एक्ट, 2006 के तहत बनाए गए निवेशक उपयोगी फीचरों के बृहद् प्रसार के लिए इसका प्रचार भी मीडिया और रिज़र्व बैंक की वेबसाइट के माध्यम से किया जा रहा है।
- राज्य विकास ऋण (एसडीएल) की नीलामी में अप्रतिस्पर्धात्मक बोली योजना हेतु एनडीएस नीलामी का माड्यूल सीसीआईएल विकसित कर रहा है और आशा है कि सितंबर 2008 तक यह कार्य करने लगेगा।
- ब्याज दर फ्यूचर्स पर कठित कार्यदल की सिफारिशों पर फीडबैक के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
- 1 दिसंबर 2007 से गवर्नमेंट सिक्यूरिटी एकट, 2006 के लागू होने के साथ ही प्रस्ताव है कि 2008-09 के अंत तक सरकारी प्रतिभूतियों में पंजीकृत हित और मुख्य प्रतिभूतियों का अलग व्यापार (स्ट्रिप्स) शुरू किया जाए।
- जिन सहभागियों का रिज़र्व बैंक में सहायक सामान्य खाता-बही (एसजीएल) खाता नहीं है उनके लिए निपटान बैंक के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों की निपटान प्रणाली मई 2008 से काम करने लगेगी।
- जमा न लेनेवाली अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, कंपनियों एवं सीएजीएल के रास्ते सें आनेवाले विदेशी संस्थागत निवेशकों जैसे निवेशकों हेतु एनडीएस-ओएम तक की पहुँच की अनुमति लेना।
- पेमेंट एण्ड सेटलमैंट सिस्टम एक्ट, 2007 के बनने के बाद सीसीआईएल के परामर्श से ओटीएस रुपया व्युत्पन्न हेतु समाशोधन तथा निपटान की व्यवस्था शुरू करना।
- कारपोरेट बांड में रिपो शुरू करने के लिए आवश्यक था कि वृहद् सार्वजनिक निर्गमों एवं गौण बाज़ार ट्रेडिंग के माध्यम से बेहतर मूल्य खोज तथा सुपुर्दगी बनाम ब्याज भुगतान (डीवीपी) III तथा स्ट्रेट थ्रू प्रोसेसिंग के आधार पर दक्ष एवं सुरक्षित निपटान प्रणाली जरूरी थी और यह काम अब पूरा हो गया है।
- कच्चे तेल को परिष्कृत करनेवाली घरेलू तेल कंपनियों को यह अनुमति देना कि वे अंतर्निहित संविदाओं के आधार पर अपने पण्य मूल्य जोखिम की प्रतिरक्षा कर सकें। ये संविदाएं समुद्रपारीय विनिमय/बाजार की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से संबंधित होती हैं। इनका आधार पिछले वर्ष में वास्तविक आयात के 50 प्रतिशत तक का पिछला निष्पादन या पिछले तीन वित्तीय वर्षों के दौरान किए गए आयात का 50 प्रतिशत, जो भी अधिक हो, होता है।
- सेबी के परामर्श से पात्र शेयर बाज़रों में करेंसी फ्यूचर्स शुरू किए जाएंगे; इसका व्यापक ढाँचा मई 2008 के अंत तक अंतिम रूप से तैयार कर लिया जाएगा; परिचालन पहलुओं पर सलाह देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक - सेबी स्थायी तकनीकी समिति कठित की गई है।
- भारतीय कंपनियों को अनुमति दी गई है कि वे रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन से तेल, गैर, कोयला और खनिज अयस्क जैसे उर्जा और प्राकृतिक संसाधनों वाले क्षेत्रों में मौजूदा सीमाओं से अधिक विदेश में निवेश कर सकते हैं।
- वसूली की निर्दिष्ट अवधि से अधिक समय से बकाया निर्यात आगमों के निर्यात हेतु पंजीकरण के लिए भारतीय पाटियाँ रिज़र्व बैंक से संपर्क कर सकती हैं।
- भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम (ईसीजीसी) द्वारा निपटाए गए बिलों के अलावा बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण (आइआइडीए) द्वारा विनियमित अन्य बीमा कंपनियों द्वारा निपटाए गए बकाया निर्यात बिलों के बट्टे खाते डालने के लिए प्राधिकृत व्यपारी बैंकों को अनुमति देना।
- सामान अथवा साफ्टवेयर के निर्यात की तारीख से छह महीने से लेकर बारह महीने की अवधि के दौरान उसका पूरा निर्यात मूल्य वसूलने और भारत में प्रत्यावर्तित करने की अवधि बढ़ाना बशर्ते एक वर्ष बाद इसकी समीक्षा की जाए।
ऋण वितरण
- अप्रैल 2009 से आरआइडीएफ में अथवा अन्य वित्तीय संस्थाओं की निधियों में, जैसा भी रिज़र्व बैंक द्वारा निर्दिष्ट किया जाए, अंशदान हेतु राशि निर्धारित करने के लिए देशी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा कमज़ोर वर्गों को उधार देने के लिए हासिल न किए गए लक्ष्य को ध्यान में लिया जाएगा।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लिए निर्धारित 60 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक प्राथमिकता प्राप्त श्रेणियों के अंतर्गत उनके द्वारा हासिल ऋण आस्तियाँ बेचने की अनुमति दी जाएगी ताकि इस क्षेत्र को अधिकाधिक ऋण प्रवाह बढ़ाया जा सके।
- राधाकृष्णन समिति की सिफारिशों पर कार्रवाई को अंतिम रूप देने का लंबित रखते हुए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित प्रत्येक देशी वाणिज्य बैंक से यह कहना प्रस्तावित है कि वे किसानों के लिए एक सरल चक्रीय ऋण उत्पाद प्रायोगिक आधार पर चलाने के लिए एक जिले का चयन करें ताकि जब तक ब्याज की अदायगी होती रहे तब तक सारे सरल न्यूनतम नकदी सुनिश्चित करने के लिए ऋण सीमा के 20 प्रतिशत के मुख्य (कोर) घटक का वे लगातार उपयोग कर सकें।
- भूमि हीन मज़दूरों, फसल बंटाईदारों, किराएवाले काश्तकारों और जबानी पट्टा लेनेवाले किसानों को फसल ऋण नेदे के लिए एक सरल प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी जिसके तहत बैंक स्वतंत्र प्रमाणन हेतु किसी आवश्यकता के बिना 50,000/- रुपए तक के ऋणों के लिए ऐसे लोगों से जोती गई भूमि/उगाई गई फसल का विवरण देनेवाला एक हलपनामा स्वीकार कर सकते हैं। ऐसे लोगों को उधार देने के लिए बैंक संयुक्त देयता समूह (जेएलजी)/स्वयंसहायता समूह (एसएचजी) प्रकार के उधार देने के तरीकों को भी प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड भारतीय बैंक संघ के सहयोग से छोटे और माइक्रो उद्यमों के लिए एक बैंकिंग संहिता तैयार कर रहा है।
- रुग्ण लघु एवं मध्यम इकाइयों को पुनरुजीवित करने की संभाव्यता की जाँच करने और संभावित व्यवहार्य रुग्ण इकाइयों के लिए सुधारात्मक उपाय सुझाने के लिए इस कार्यदल की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर व्यापक प्रकटीकरण/प्रतिक्रिया के लिए रखी गई है।
- उचित प्रौद्योगिकी अपनाने और कोर बैंकिंग सोल्यूशन में जाने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को तैयार करने के लिए एक कार्यदल गठित किया गया है जो 30 जून 2008 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
- शत प्रतिशत वित्तीय समावेशन के लिए 277 जिलों की पहचान की गई और 18 राज्यों तथा पांच केंद्र शासित प्रदेशों के 134 जिलों में लक्ष्य हासित किया गया।
- सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसबी) के अंतर्गत पहले के 50 प्रतिशत की जगह 100 प्रतिशत बकाया क्रेडिट और "नो-फ्रिल" खातों की बिना पर 25,000/- रुपए तक के ओवरड्राफ्ट को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कृषि अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति है।
- वित्तीय साक्षरता और परामर्श केंद्रों पर एक अवधारणा पत्र तैयार किया गया है और जनता की प्रतिसूचना के लिए 3 अप्रैल 2008 को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया है।
- अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा करने की उच्च स्तरीय समिति जुलाई 2008 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगी।
- ऋण के अधिकाधिक प्रवाह और सक्षम आबंटन हेतु एक प्रोत्साहन प्रणाली प्रवर्तित करने के उद्देश्य से एक आंतरिक दल गठित किया जाएगा जो ऋण वितरण, ऋण का मूल्य निर्धारण करने और ऋण संस्कृति से संबंधित मुद्दों को सही तरीके से देखेगा।
- अधिकाधिक पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से जनता की जानकारी के लिए रिज़र्व बैंक, बैंकों द्वारा वसूले जानेवाले विभिन्न प्रभारों के विवरण इकठ्ठे कर रहा है।
- यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी बैंक शाखाएं नोट विनिमय हेतु बैंक काउंटरों पर जनता को बेहतर ग्राहक सेवाएं देते हैं, ऐसी सेवाएं देने में अपने कार्यनिष्पादन के आधार पर बैंक शाखाओं (करेंसी चेस्ट सहित) के लिए प्रोत्साहन और दण्ड योजना प्रारंभ करने का प्रस्ताव है।
विवेकसम्मत उपाय
- बैंकों द्वारा वित्तपोषित की जानेवाली बुनियादी संरचना परियोजनाओं के सामने में परियोजना के वित्तीय रूप से बंद होने के समय परियोजना की समाप्ति की तारीख स्पष्ट रूप से घोषित की जानी चाहिए और यदि परियोजना के पूरी होने की तारीख के दो वर्ष बाद की अवधि (एक वर्ष के मौजूदा मानदण्ड के सामने) बीत जाने के बाद वाणिज्यिक उत्पादन प्रारंभ होने की तारीख चली जाती है, जैसा कि मूलत: कल्पना की गई थी, यह खाता अवमानक माना जाना चाहिए। ये संशोधित अनुदेश 31 मार्च 2008 से लागू हैं।
- वैश्विक वित्तीय बाजारों में हाल ही की गतिविधियों और वित्तीय स्थ्रिता सुनिश्चित करने की दृष्टि से प्रस्ताव है कि बैंकों से विशिष्ट तुलनपत्र से इतर एक्सपोज़रों के लिए कन्वर्शन फैक्टरों, जोखिमभारों और प्रावधानीकरण अपेक्षाओं से संबंधित मौजूदा शर्तों की समीक्षा की जाए और विवेकसम्मत अपेक्षाएं निर्धारित की जाएं और मार्गदर्शी सिद्धांत रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर 15 मई 2008 तक डाल दिए जाएं।
- बैंकों से अपेक्षित है कि वे कृषि पण्यों के व्यापार में संलग्न व्यापारियों को दिए जानेवाले अग्रिमों की समीक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि बैंक वित्त का उपयोग कालाबाजारी के लिए नहीं हो रहा है और ऐसी पहली समीक्षा 15 मई 2008 तक रिज़र्व बैंक को प्रेषित कर दें ताकि पण्य क्षेत्र को बैंकों के एक्सपोज़र की पर्यवेक्षी समीक्षा की जा सके।
- 50 प्रतिशत पर कम जोखिम भार की प्रयोज्यता हेतु आवास हेतु बैंक ऋणों की सीमा 20 लाख रुपए से बढ़ाकर 30 लाख रुपए कर दी गई।
- ऋण सूचना कंपनियाँ गठित करने हेतु आवेदनों के प्रोसेसिंग का कार्य रिज़र्व बैंक द्वारा 30 जून 2008 तक कर लिया जाएगा।
- राज्य सहकारी बैंकों/जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए बासेल मानदण्डों की प्रयोज्यता के लिए मानदण्ड प्रस्तावित करने के लिए मानदण्ड प्रस्तावित करने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक आंतरिक तकनीकी समूह गठित किया है। आशा की जाती है कि यह दल 30 जून 2008 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर देगा।
- रिज़र्व बैंक द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य दल वर्तमान में कानूनी मुद्दों सहित विदेशी प्रथाओं का अध्ययन कर रहा है जो विदेश में पर्यवेक्षण और विदेशी विनियमकों के साथ पर्यवेक्षी सहयोग हेतु एक उचित व्यवस्था/ढांचे को अपनाने हेतु एक रोड मैप के लिए निर्धारित किए जाएंगे तथा ये बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासेल समिति में परिकल्पित ढांचे के अनुरूप होंगे। जैसा कि अक्तूबर 2007 की मध्यावधि समीक्षा में प्रस्तावित किया गया था, वित्तीय समूहों के समेकित बड़ा पर्यवेक्षण लागू करने के लिए विभिन्न आंतरिक पर्यवेक्ष प्रक्रियाओं को पुन: व्यवस्थित करने कार्य 31 अगस्त 2008 तक कर लिया जाएगा। रिज़र्व बैंक एक कार्यदल गठित करेगा जो बैंकों द्वारा गठित विशेष प्रयोजनों के साधनों (एसपीवी)/न्यासों की गतिविधयों का अध्ययन करके एक उचित पर्यवेक्षी ढाँचें की सिफारिश करेगा।
- एक उचित जोखिम आधारित पर्यवेक्षण ढाँचे के लिए जोखिम की रूपरेखा तैयार करने की मौजूदा प्रणाली के सरलीकरण के अलावा प्रभावी मूल्यांकन का अध्ययन करने, संपूर्ण प्रणाली में समतल जोखिमों की आवधिक समीक्षा करने, जोखिम आधारित पर्यवेक्षण (आरबीएस) मूल्यांकन में बासेल II ढ़ाँचे के स्तंभ 2 के अंतर्गत निर्धारित पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया को शामिल करने के लिए एक अंतर-विभागीय दल का गठन किया गया ।
- रिज़र्व बैंक ने भारतीय बैंकों के समुद्रपारीय परिचालनों के लिए मौजूदा विनियामक और पर्यवेक्षी ढाँचे की समीक्षा करने, नए उत्पादों और क्रियाकलापों को लागू करने, डेरिवेटिव उत्पादों सहित तुलन-पत्र से इतर निवेशों को बढ़ाने और साथ ही ऑफ - साइट रिपोर्टिंग प्रणाली सहित, उचित बदलाव के लिए सुझाव देने हेतु एक अंतर-विभागीय समूह का गठन किया है ।
- पूंजी, चलनिधि और जोखिम प्रबंधन के विवेकपूर्ण दृष्टि को मजबूती देने, पारदर्शिता और मूल्यांकन को बढ़ाने, ऋण पर निर्धारण की भूमिका और प्रयोग को बदलना, जोखिम पर प्राधिकारी की अनुक्रियाशीलता को मज़बूत बनाना और वित्तीय प्रणाली में तनाव से निपटने हेतु सुदृढ़ व्यवस्थाओं को कार्यान्वित करने से संबंधित अप्रैल 2008 में वित्तीय स्थिरता फॉरम (एफएसएफ) रिपोर्ट पर रिज़र्व बैंक के अन्य पर लागू करने हेतु कई पहलुओं और कार्रवाई को शामिल करने वाले विनियामल दिशा-निर्देश लागू किये थे ।
- रिज़र्व बैंक ने ऐसी पात्र ऋण दर -निर्धारण एजेंसियों की पहचान करने के लिए विस्तृत प्रक्रिया प्रारंभ की है जिसकी रेटिंग (दर निर्धारण) का प्रयोग बैंकों द्वारा दोनों जोखिम भारित और जोखिम भारित और जोखिम प्रबंधन के प्रयोजनों के लिए प्रत्येक प्रकार के दावे हेतु लगातार ऋण जोखिम के जोखिम भार प्रदान करने के लिए किया जाएगा ।
- मार्च 2008 में एक कार्यकारी दल का गठन किया जो बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासेल समिति (बीसीबीएस) में दिये गये ढाँचे के अनुसार सीमा-पार पर्यवेक्षण के लिए उचित ढाँचा अपनाने और समुद्रपारीय नियंत्रकों के साथ पर्यवेक्षी सहयोग के लिए रोड-मैप तैयार करेगा ।
सांस्थिक गतिविधियाँ
- भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के विधायीकरण के बाद रिज़र्व बैंक ने भारत सरकार के परामर्श से विनियमावली को अंतिम स्वरूप प्रदान करने के लिए भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अंतर्गत प्रारूप विनियमावली को आम जनता से अधिक से अधिक 15 मई 2008 तक अभिमत प्राप्त करने के लिए अपनी वेबसाइट पर डाला है।
- बैंकों से आग्रह किया है कि वे स्मार्ट कार्ड, हाथ में धारित उपकरणों और सुरक्षित संदेश उपकरणों जैसे सूचना प्रौद्योगिक आधारित उत्पादों का उपयोग करते समय बैंकिंग लेनदेन की सुरक्षा का पर्याप्त ढंग से समाधान सुनिश्चित करे।
- रिज़र्व बैंक ने ईसीएस/ईएफटी/एनइएफटी के लिए संसाधन प्रभारों को 31 मार्च 2009 तक माफ कर दिया है।
- रिज़र्व बैंक 15 जून 2008 तक अपनी वेबसाइट पर डालने के लिए भारत में मोबाईल भुगतान प्रणाली के लिए प्रारूप दिशानिर्देश तैयार कर रहा है।
- 1 अप्रैल 2008 से रुपए के रूप में एक करोड़ रुपए और उससे अधिक के लेनदेन वाले सभी भुगतान, सरकारी प्रतिभूतियों, विदेशी मुद्रा बाज़रों तथा विनियमित संस्थाओं (बैंकों, प्राथमिक व्यापारियों और गैर-बैंकिंग कंपनियों
- 1 अप्रैल 2008 मे मुद्रा सरकारी प्रतिभूतियों और विदेशी मुद्रा बाजारों और विनियमित संस्थाओं (बैंकों, प्राधिकृत व्यापारियों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां ) में एक करोड़ रु. और उसमे अधिक के सभी भुगतान का लेनदेन इलैक्ट्रानिक भुगतान व्यवस्था के माध्यम से किए जाने अनिवार्य हैं।
- संबंधित राज्यों में शहरी सहकारी बैंक क्षेत्र के लिए संरक्षित संस्थाओं का सुसाध्य बनाने के लिए एक कार्यदल गठित किया जाएगा जिसमें रिज़र्व बैंक केंद्र / राज्य सरकारों और शहरी सहकारी बैंक क्षेत्र के प्रतिनिधि होंगे जो उचित विनियामक और पर्यवेक्षी ढ़ांचे सहित उपाय सुझाएगा।
- राज्यों के सुव्यवस्थत और वित्तीय रुप से सुदृढ़ शहरी सहकारी बैंकों, जिन्होंने रिज़र्व बैंक के साथ्ं सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं और वे बहु-राज्य सहकारी समितियां अधिनियम, 2002 के अंतर्गत पंजीकृत है, के लिए आन-साइट एटीएम खोलने हेतु मौजूदा पात्रता मानदंड समाप्त कर दिए गए हैं।
- शहरी सहकारी बैंकों के लिए शाखा लाइसेंसीकरण मापदंड उदार और तर्कसंगत बनाने की दृष्टि से आफ-साइट एटीएम सहित शाखां् विस्तार हेतु अनुमोदनों पर वार्षिक कारोबार योजनाओं के आधार पर विचार किया जाएगा बशता सतत् आध्ांर पर उन्होंने 10 प्रतिशत का न्यूनतम सीआरएआर और अन्य विनियामक मापदंडों का पालन किया हो।
- बीमा कारोबार प्रारंभ करने के लिए न्यूनतम निवल मालियन का मापदंड समाप्त कर दिया गया है बशता समय-समय पर निर्दिष्ट अन्य मापदंड पूरे किए गए हों।
- कतिपय शर्तों के अधीन टियर II शहरी सहकारी बैंकों के संबंध में व्यक्तिगत आवास ऋण्ं की मौजूदा सीमा 25 लाख रु. सं बढ़ाकर अधिकतम 50 लाख रु. कर दी गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों और इन प्रणालीगत रुप से महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय ंकंपनियों को बढ़ते बैंक एक्पोजर कटि आलाक में पूंजी पर्याप्तता, चलनिधि और प्रकटीकरण मानदंड़ों के संबंध में विनियमों की समीक्षा करके संश्ांटधित अनुदेश 31 मई 2008 तक जारी कर दिए जाएंगे।
- वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन संबंधी समिति (सीएफएसए) द्वारा की गई प्रगति के एक अंग के रुप में समिति द्वारा गठित चार परामर्शी पैनलों ने अपनी प्रारप रिपोर्टें तैयार कर ली हैं। सीएफएसए की रिपोर्टों के साथ-साथ्ं परामर्शी पैनल की रिपोर्टों को भी जून 2008 के अंत तक अंतिम रूप दे दिए जाने की आशा की जाती है और उसके बाद इन्हें रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा जाएगा।
अजीत प्रसाद
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/1396