भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा घोषित की - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा घोषित की
30 अक्तूबर 2007
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वर्ष 2007-08 के लिए
वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा घोषित की
डॉ वाइ वेणुगोपाल रेड्डी, गवर्नर ने आज प्रमुख वाणिज्य बैंकों के मुख्य कार्यपालकों के साथ हुई बैठक में वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा प्रस्तुत की। यह वक्तव्य दो भागों में हैं : भाग I - वर्ष 2007-08 के लिए मौद्रिक नीति पर वार्षिक वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा; और भाग II - वर्ष 2007-08 के लिए विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वार्षिक वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा।
मुख्य-मुख्य बातें
- बैंक दर, रिपो दर और प्रत्यावर्तनीय रिपो दर अपरिवर्तित रखे गए हैं।
- चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत पूर्णत: या अंशत: रूप से निविदा (निविदाओं) को स्वीकार करने और अस्वीकार करने के अधिकार सहित ओवर नाइट रिपो अथवा दीर्घावधि रिपो संचालित करने के लचीलेपन को बनाया रखा गया है।
- आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 50 आधार बिन्दु बढ़ाते हुए 10 नवंबर 2007 को शुरू होनेवाले पखवाड़े से 7.5 प्रतिशत किया गया है।
- सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के अनुमान को यह मानते हुए कि घरेलू अथवा बाहरी आघात को छोड़कर अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में अब और बढ़ोतरी नहीं होगी, वर्ष 2007-08 के दौरान 8.5 प्रतिशत रखा गया है।
- मुद्रास्फीति को लगभग 3 प्रतिशत बनाए रखने के एक मध्यावधि उद्देश्य के साथ 4.0 - 4.5 प्रतिशत की सीमा में स्थितिजन्य प्रत्याशाओं का समाधान करते हुए मुद्रास्फीति को वर्ष 2007-08 के दौरान 5.0 प्रतिशत के आस-पास रखा जाएगा।
- निवल पूंजी प्रवाह में सुधार किया जाएगा ताकि मुद्रा आपूर्ति 17.0 - 17.5 के सांकेतिक अनुमान के अनुरूप लगातार बनी रहे।
- तयशुदा लेनदेन प्रणाली - आदेश अनुकूलन प्रणाली (एनडीएस-ओएम) प्रणाली के बाहर अनुमत ‘अल्प-विक्रय’ और ‘जब जारी’ लेनदेन शामिल किए गए।
- प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण जमाराशि स्वीकार नहीं करनेवाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी-एनडी-एसआइ) को सहायक सामान्य खाता (सीएसजीएल) मार्ग संघटक का उपयोग करते हुए एनडीएस-ओएम में प्रवेश के लिए ‘अर्हताप्राप्त संस्थाओं’ के रूप में माना जाएगा।
- बचाव सुविधा के लिए पूर्व कार्यनिष्पादन मार्ग के अंतर्गत पात्र सीमाओं को पुन: लागू करने की अनुमति दी जाएगी।
- तेल कंपनियों को यह अनुमति दी गई कि वे अधिकतम अगले एक वर्ष तक समुद्रपारीय काउंटर पर(ओटीसी)/शेयर बाज़ार कारोबार व्युत्पन्नी का उपयोग करते हुए विदेशी शेयर बाज़ार निवेशों का बचाव करें।
- विदेशी मुद्रा निवेश रखनेवाले आयातकों/निर्यातकों को अनुमति दी गई कि वे विदेशी मुद्रा/रुपए और पारस्परिक लेनदेन की मुद्रा और दोनों में शामिल मांग और विक्रय विकल्प अभिलिखित करें और प्रिमियम प्राप्त करें।
- प्राधिकृत व्यापारियों (एडी) को अनुमति दी गई कि वे पारस्परिक लेनदेन मुद्रा विकल्प बहियों को रिज़र्व बैंक के अनुमोदन के अधीन संचालित करें।
- प्राधिकृत व्यापारियों को अमरीकन विकल्पों को भी प्रस्तावित करने की अनुमति दी गई।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) द्वारा मुख्य बैंकिंग समाधानों (सीबीएस) में अंतरण की एक रूपरेखा तैयार करने के लिए कार्यदल का गठन किया जाएगा।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और राज्य/मध्यवर्ती सहकारी बैंक अपने को उनके तुलन पत्रों में 31 मार्च 2008 तक की स्थिति के अनुसार जोखिम भारित परिसंपत्ति के लिए पूंजी अनुपात (सीआरएआर) का प्रकटन करेंगे।
- इन बैंकों द्वारा जोखिम भारित परिसंपत्ति के लिए पूंजी अनुपात (सीआरएआर) का वांछित स्तर प्राप्त करने के लिए एक रूपरेखा विकसित की जाएगी।
- अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा।
- क्षेत्रीय ग्रमीण बैंकों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) आधारित समाधानों के कार्यान्वयन के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासेल समिति (बीसीबीएस) में परिकल्पित संरचना के अनुरूप समुद्रपारीय विनियामकों के साथ सीमापार पर्यवेक्षण और पर्यवेक्षी सहयोग के लिए रूपरेखा निर्धारित करने हेतु एक कार्यदल का गठन किया जाएगा।
- सामान्य बाज़ार जोखिम के अलावा विशिष्ट जोखिम विशेषत: दोषपूर्ण अभिलेखन अथवा निपटान जोखिम से उत्पन्न ऋण जोखिम को पर्यवेक्षी प्रक्रिया के अंतर्गत शामिल किया जाए।
- मुंबई में केंद्रीकृत समाशोधन और निपटान के साथ राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा (एनइसीएस) के कार्यान्वयन हेतु एक कार्य योजना तैयार की जाएगी।
घरेलू गतिविधियाँ
- 2007-08 की पहली तिमाही के दौरान वास्तविक सकल देशी उत्पाद (जीडीपी) में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो एक वर्ष पहले की तदनुरुपी तिमाही में 9.6 प्रतिशत थी।
- वर्ष-दर-वर्ष थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) मुद्रास्फीति 7 अप्रैल 2006 को अधिकतम 6.4 प्रतिशत से कम होकर 13 अक्तूबर 2007 को 3.1 प्रतिशत हो गया।
- अन्तर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के भारतीय "बास्केट" का औसत मूल्य जुलाई - सितम्बर 2007 में 72.1 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 23 अक्तूबर 2007 को 80.0 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल हो गया।
- औद्योगिक कामगारों के लिए वर्ष-दर-वर्ष उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) मुद्रास्फीति में अगस्त 2007 में तेजी से वृद्धि होकर 7.3 प्रतिशत हुई; यह एक वर्ष पूर्व 6.3 प्रतिशत थी।
- मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि एक वर्ष पूर्व 18.9 प्रतिशत से बढ़कर 12 अक्तूबर 2007 को 21.8 प्रतिशत हो गई।
- समग्र जमाराशि में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि पिछले वर्ष 3,88,528 करोड़ रुपये ( 20.4 प्रतिशत) की तुलना में 5,69,061 करोड़ रुपये (24.9 प्रतिशत) थी।
- कुल ऋण में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि पिछले वर्ष 3,66,463 करोड़ रुपये (28.8 प्रतिशत) 12 अक्तूबर 2007 को 3,81,333 करोड़ रुपये (23.3 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है।
- अनुसूचित वाणिज्य बैंकों सं वाणिज्य क्षेत्र को वर्ष-दर-वर्ष कुल संसाधन उपलब्ध कराने में वृद्धि पिछले वर्ष के 28.0 प्रतिशत से 22.1 प्रतिशत अधिक थी।
- सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों की बैंकों की धारिता में 12 अक्तूबर 2007 को उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है; यह मार्च 2007 के अन्त में 28.0 प्रतिशत थी।
- चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) और केद्र सरकार के कुल नकदी शेष के अन्तर्गत चलनिधि की अधिकता मार्च 2007 के अन्त में 85,770 करोड़ रु. से बढ़कर 24 अक्तूबर 2007 को 2,22,582 करोड़ रु.हो गई है।
- भारत सरकार ने रिज़र्व बैंक के परामर्श से वर्ष 2007 के लिए एमएसएस के अन्तर्गत अधिकतम सीमा 1,10,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 8 अगस्त 2007 को 1,50,000 करोड़ रुपये तथा 4 अक्तूबर 2007 को और बढ़ाकर 2,00,000 करोड़ रुपये कर दी है।
- वित्तीय प्रणाली के लगभग सभी घटकों में पर्याप्त मात्रा में चलनिधि और ब्याज दरों में सुधार की स्थिति के कारण वर्ष 2007-08 की दूसरी तिमाही के दौरान वित्तीय बाज़ार आम तौर पर स्थिर रहे।
- अप्रैल-अक्तूबर 2007 के दौरान सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने अपनी जमा दरों में विशेष रुप से विभिन्न परिपक्वताओं की श्रृंखला के ऊपरी छोर पर 25-60 आधार पाइंट की कमी की है।
- अप्रैल-अक्तूबर 2007 के दौरान निजी क्षेत्र के बैंकों ने अपनी न्यूनतम मूल उधार पर 12.50 - 17.25 प्रतिशत की सीमा से परिवर्तित करके 13.00 - 16.50 प्रतिशत कर दी हैं।
- तथापि, इस अवधि के दौरान सरकारी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों की न्यूनतम मूल उधार दरों की सीमा क्रमश: 12.50 - 13.50 और 10.00 - 15.50 पर अपरिवर्तित रही।
- बीएसई सेंसेक्स मार्च 2007 के अन्त में 13,072 से बढ़कर 26 अक्तूबर 2007 को 19,243 हो गया।
- दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से केद्र सरकार के सकल बाज़ार उधार 2007-08 के दौरान 1,27,060 करोड़ रु. (पिछले वर्ष 1,17,548 करोड़ रु.) अभी तक (26 अक्तूबर तक) बजट प्राक्कलन का 67.3 प्रतिशत रहे जबकि निवल बाज़ार उधार 75,387 करोड़ रु. (पिछीले वर्ष 65,951 करोड़ रु.) बजट प्राक्कलन का 68.7 प्रतिशत रहे।
बाह्य क्षेत्र
- अप्रैल-अगस्त 2007 के दौरान व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात में अमरीकी डॉलर में पिछले वर्ष इसी अवधि में 27.1 प्रतिशत की तुलना में 18.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि आयात में पिछले वर्ष में 20.6 प्रतिशत की तुलना में 31.0 प्रतिशत की वृद्धि, उच्चतर थी।
- तेल से इतर आयात में 44.3 प्रतिशत (पिछले वर्ष 10.9 प्रतिशत) की वृद्धि हुई जबकि तेल के आयात 6.2 प्रतिशत कम हुए हैं ( 44.5 प्रतिशत) यह मुख्य रुप से अप्रैल - अगस्त 2007 के दौरान कच्चे तेल की भारतीय बास्केट के मूल्य ने 0.5 प्रतिशत तक सीमित रखने के कारण था।
- भारत की विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि में 2007-08 के दौरान 62.0 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि हुई और 19 अक्तूबर 2007 को ये 261.1 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गए।
- चालू वित्तीय वर्ष के दौरान 26 अक्तूबर 2007 तक रुपए में अमरीकी डॉलर के बदले 10.3 प्रतिशत, यूरो के बदले 2.4 प्रतिशत, पाऊंड स्टर्लिंग के बदले 5.4 प्रतिशत और जपानी येन के बदले 7.1 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि हुई।
वैश्विक गतिविधियाँ
- वैश्विक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में कम होते हुए जोखिम पिछले कुछ माह से हाल ही की बाजार अस्थिरता, दृढ़ मुद्रास्फीति दबावों और कच्चे तेल के ऊँचे और घटते - बढ़ते मूल्य के कारण बढ़ गए हैं।
- अक्तूबर 2007 में जारी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के विश्व आर्थिक परिप्रेक्ष्य के अनुसार क्रय शक्ति समानता आधार पर वास्तविक सकल देशी उत्पाद का अनुमान, जुलाई 2007 में अपडेट के अनुसार 2006 में 5.4 प्रतिशत से कम होकर 2007 के लिए 5.2 प्रतिशत बना रहेगा लेकिन 2008 के लिए अनुमान जुलाई 2007 के अपडेट में 5.2 प्रतिशत से कम होकर अक्तूबर में 4.8 प्रतिशत हो गए है।
- अमरीका में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 2007 की दूसरी तिमाही में 3.8 प्रतिशत थी; यह पिछले वर्ष 2.4 प्रतिशत थी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के अक्तूबर 2007 के विश्व आर्थिक परिप्रेक्ष्य में यह आशा की गई है कि अर्थव्यवस्था में 2006 में 2.9 प्रतिशत की तुलना में 2007 और 2008 में 1.9 प्रतिशत वृद्धि होगी।
- कारपोरेट बाण्ड बाज़ार और ईक्विटी बाजार में ऋण की कमी के साथ अमरीकी सब-प्राइम बंधक के प्रति निवेश जोखिम से जोखिम बढ़ने के कारण जुलाई के अंत में ऋण बाजार विश्वास में अचानक कमी आई।
- यूरोपियन सेंट्रल बैंक और यूएस फेडरल रिज़र्व जिन्होंने अंतर-बैंक बाजार को चलनिधि उपलब्ध कराते हुए व अगस्त से हस्तक्षेप किया और कनाडा, जापान, आस्ट्रेलिया, नार्वे और स्विट्ज़र्लैंड के केंद्रीय बैंक भी उनके साथ हो गए।
- बैंक ऑफ इंग्लैंड ने जमाकर्ताओं को उनकी जमाराशियों की सुरक्षा पर निर्बंध गारंटी देते हुए बंधक उधार देनेवाले बैंक को चलनिधि सहायता दी।
- कई केंद्रीय बैंकों जैसे यूएस फेडरल रिज़र्व, बैंक सेंट्रल दि ब्राजिल, बैंक इंडोनेशिया और बैंक ऑफ थाइलैंड ने वर्ष 2007 की तिसरी तिमाही में भारी परिवर्तन के कारण वित्तीय बाजार काफी मात्रा में प्रभावित हो जाने के बाद नीतिगत दरों में कटौती की।
- जिन केंद्रीय बैंकों ने अपनी नीतिगत दरों में कमी की उनमें युरोपियन सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इग्लैंड, बैंक ऑफ जापान, बैंक ऑफ कनाडा, रिज़र्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया, दि रिज़र्व बैंक ऑफ न्यूजीलैण्ड, दि पीपल्स बैंक ऑफ चायना, दि बैंक ऑफ कोरिया, दि बैंक दी मेक्सिको और बैंक सेंट्रल दी चिली शामिल हैं।
- एशिया के कुछ केंद्रीय बैंकों ने महत्वपूर्ण नीतिगत दरों में वृद्धि करने के अलावा अर्थव्यवस्था को सीमित रखने के लिए पूरक उपयों का प्रयोग किया । एकमात्र केंद्रीय बैंक जिसने नीतिगत दरें स्थिर रखी वह है नेगारा मलेशिया।
समग्र मूल्यांकन
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में कुछ सकारात्मक तत्व ऐसे हैं (i) वैश्विक अर्थव्यवस्था मजबूत और लचीली है ; (ii) उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (इएमई) में कमोबेश रूप में पहले से बेहतर समष्टि परिवेश है; (iii) वैश्विक रूप से कारपोरेट तुलन पत्र मजबूत और पिछले समय की तुलना में कम नियंत्रित हैं; (iv) बड़ी वित्तीय मध्यस्थ संस्थाएं शायद ऋण की अनिश्चितताओं के आघात सहने के लिए पर्याप्त रूप से पूंजीकृत हैं; और (v) समग्र रूप से मुद्रा स्फीति का परिवेश सामान्य है।
- अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेलका मूल्य प्रति बैरल 90 अमरीकी डालर के स्तर लांघकर नयी ऊंचाई पर पहुंचने के साथ वैश्विक परिवेश अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है जबकि वर्तमान परिस्थितियों में घरेलू मुद्रास्फीति में बढ़े हुए खद्यान्न और धातु मूल्य अंतरित होंगे।
- अमरीका का फेडरल रिज़र्व अपेक्षा से अधिक दर कटौती करने के साथ मौद्रिक नीति को सामान्य करने के अर्थ में अत्यधिक आक्रमक रहा है जिससे उपभोग और वृद्धि संबंधी ढांचागत मामलों पर पड़नेवाले प्रभाव पर चिंता परिलक्षित होती है।
- भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है वैश्विक वित्तीय बाजार गतिविधियों का संभाव्य प्रभाव और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों द्वारा किए जानेवाले नीतिगत उपाय।
- अत: भारत में सरकारी नीति के लिए जो कार्य तत्काल करना चाहिए वह है ऐसे संभाव्य वित्तीय आघात का प्रबंध करना जो अत्यधिक अनिश्चित संभावनाओं के साथ प्रारंभिक स्थिति में है और जिसका समाधान शीघ्र ही किया जाएगा।
- देशी स्तर पर समग्र मांग स्थिति स्थिर और ऊर्ध्वमुखी रही है।
- महत्वपूर्ण मौद्रिक कुल राशियां अर्थात् आरक्षित मुद्रा और मुद्रा आपूर्ति प्रारंभिक अनुमानों से काफी अधिक है जिससे अपेक्षित देशी वृद्धि से उच्चतर वृद्धि का प्रभाव और पूंजी आगमों तथा साथ ही राजकोषीय नकदी शोष की गिरावट के बहिर्मुखी विस्तार के प्रभाव परिलक्षित होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल, धातु, खाद्यान्न और पण्यों के मूल्यों का सामान्य रूप में उपभोक्ता मूल्यों में हुआ अपूर्ण अंतरण दमित मुद्रास्फीति का निदर्शक है जिससे भविष्य में अस्थिरता की संभावना बनी रहती है।
- विस्तारक मौद्रिक और वित्तीय स्थितियों को सीमित करने के लिए सक्रिय चलनिधि प्रबंध कार्यों के रूप में किए गए नीतिगत उपाय सामान्यत: बाज़ार चलनिधि के क्रमबद्ध विकास में परिलक्षित होते हैं।
- जुलाई के अंत से वैश्विक वित्तीय बाज़ारों ने असामान्य अस्थिरता, कृत्रिम चलनिधि और अत्यधिक बढ़े हुए जोखिम का अनुभव किया है।
- जहां अमरीका में उप-मूल बंधक संबंधी बढ़ती चूक दरें अहम् थी वहीं समस्या का मूल कारण था वित्तीय प्रणाली में जोखिमों का काफी गलत मूल्य निर्धारण।
- सरल मौद्रिक नीति, चलनिधि की उपलब्धता का वैश्वीकरण अत्यधिक संश्लिष्ट ऋण लिखतों का व्यापक प्रयोग और वित्तीय नवोन्मेष के साथ तालमेल बिठाते हुए बैंकिंग पर्यवेक्षण की अपर्याप्तता ने संकट की गंभीरता को बढ़ाया है।
- वर्तमान स्थिति में और आगे देखते हुए देशी स्तर पर मौद्रिक नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती है पूंजी की उपलब्धता और चलनिधि तथा समग्र स्थिरता के अनुवर्ती प्रभाव का प्रबंधन।
- अन्य और एक चुनौती है आस्ति मूल्य विशेषत: ईक्विटी और स्थावर संपत्ति में तेज वृद्धि जो काफी मात्रा में पूंजी की उपलब्धता से संचालित होती है।
- आगामी बारह से अठारह माह में नीतिगत निगरानी में मुद्रास्फीति के प्रति जोखिम और मुद्रास्फीति अपेक्षाओं को प्रथमिकता देना जारी रखना चाहिए।
मौद्रिक नीति का रुझान
- नीतिगत प्रयोजनों के लिए वर्ष 2007-08 में वास्तविक सकल देशी उत्पाद की दर जैसे कि वार्षिक नीतिगत वक्तव्य अप्रैल 2007 में कही गयी है और पहली तिमाही समीक्षा में दोहरायी गयी है, 8.5 प्रतिशत रखी गयी है।
- नीतिगत प्रयास होंगे वर्ष 2007-08 में मुद्रास्फीति को 5.0 प्रतिशत तक सीमित रखना और आगे के लिए संकल्प होगा कि इन अपेक्षाओं को 4.0-4.5 प्रतिशत की सीमा में रखना ताकि मध्यावधि उद्देश्य 3.0 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर का होगा।
- शुद्ध पूंजी उपलब्धता के विस्तारक प्रभावोंको सीमित रखना होगा ताकि मुद्रा आपूर्ति लगातार निदर्शक अनुमानों के अनुरूप बनी रहे।
- रिज़र्व बैंक आरक्षित नकदी निधि अनुपात के निर्धारण के यथोचित प्रयोग और बाज़ार स्थिरीकरण योजना और चलनिधि समायोजन सुविधा सहित खुला बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) के द्वारा तथा जब कभी आवश्यकता हो तब उपलब्ध सभी नीतिगत लिखतों का प्रयोग करते हुए चलनिधि के सक्रिय मांग प्रबंधन करने की अपनी नीति को जारी रखेगा।
- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में किसी प्रतिकूल और अप्रत्याशित गतिविधियों को रोकते हुए और मुद्रा स्फीति की संभावना सहित अर्थव्यवस्था के वर्तमान मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए आनेवाले समय में मौद्रिक नीति का समग्र रूझान स्थूल रूप में निम्नानुसार बना रहेगा:
- ऐसे मौद्रिक और ब्याज दर परिवेश को सुनिश्चित करते हुए जिससे अर्थव्यवस्था में निर्यात और निवेश मांग को समर्थन मिले मूल्य स्थिरता और सु-निर्धारित मुद्रास्फीति अपेक्षाओं पर बल देना फिर से लागू करना ताकि वृद्धि की गति जारी रह सके।
- वित्तीय बाज़ारों में समीष्ट आर्थिक तथा विशेष रुप से वित्तीय स्थिरता करने के लिए अधिक ऋण व्यापन और वित्तीय समावेशन करते हुए ऋण गुणवत्ता और सही स्थितियों पर दुबारा जोर देना।
- उभरती हुई सार्वभौमिक और घरेलू स्थिति के अतिक्रमणों वित्तीय अपेक्षाओं, वित्तीय स्थिरता और वृद्धि की गति के लिए सभी संभाव्य उपयों का प्रयोग करना।
- वित्तीय बाज़ारों में परिवर्तन के प्रत्युत्तर के असामान्य बढ़ी हुई वैश्विक अनिश्चितताओं तथा गैर पारम्पारिक की गति बनाए रखने के लिए सभी संभावित विकल्पों के लिए तैयार रहना।
मौद्रिक उपाय
- बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया है।
- चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत रिपो दर को 7.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
- चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत प्रत्यावर्तनीय रिपो दर को 6.00 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया।
- रिज़र्व बैंक के पास परिस्थितियों के अनुसार स्थायी दर अथवा परिवर्तनीयता वाली दरों पर रिपो/परिवर्तनीय रिपो नीलामियाँ करने की लचीलता होगी।
- रिज़र्व बैंक के पास बाज़ार परिस्थितियों तथा संबंधित कारकों को देखते हुए चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत ओवर-नाइट अथवा दीर्घावधि रिपो/प्रत्यावर्तनीय रिपो प्रस्तावित करने का विकल्प होगा। रिज़र्व बैंक चलनिधि समायोजन सुविधा के तहत निविदा (निविदाओं) को पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से, जैसा उपयुक्त समझा जाए, स्वीकार करने या अस्वीकार करने सहित ऐसे लचीलेपन का प्रयोग जारी रखेगा ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंध में चलनिधि समायोजन सुविधा का सक्षम उपयोग किया जा सके।
- आरक्षित नकदी निध्ंा िअनुपात को 10 नवंबर 2007 से आरंभ होनेवाले पखवाड़े से 50 आधार बिंदुओं से बढ़ाते हुए 7.5 प्रतिशत किया गया है।
विकासात्मक और विनियामक नीतियां
वित्तीय बाज़ार
- राज्य विकास ऋण (एस डी एल) की नीलामियों में गैर - प्रतिस्पर्धी बोली योजना 31 मार्च 2008 से परिचालित की जाएगी।
- वर्ष 2007-08 की दूसरी छमाही में राज्य विकास ऋण का पुनर्निगम।
- भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (सी सी आइएल) द्वारा विकसित नई तयशुदा लेनदेन प्रणाली (एनडीएस) नीलामी प्रणाली में अस्थाई दर बांड (एफआरबी) के लिए नये निर्गम ढाँचे की सुविधा।
- एक बार कंपनी ऋण बाज़ार विकसित हो जाती है और रिज़र्व बैंक को यह सुनिश्चित हो जाता है कि उचित मूल्य उपलब्ध है तथा सुपुर्दगी बनाम भुगतान (डीवीपी) 111 और सीधे माध्यम निर्माण (एसटीपी) पर आधारित सक्षम और सुरक्षित निपटान प्रणाली सुव्यवस्थित है, रिज़र्व बैंक कंपनी बाण्डो में बाज़ार रिपो की अनुमति के लिए प्रतिबद्ध है।
- तयशुदा लेनदेन प्रणाली-आदेश अनुकूलन प्रणाली (एनडीएस-ओ एम) प्रणाली के बाहर अनुमत-‘अल्प-विक्रय’ और ‘जब जारी’ लेनदेन शामिल किए गए।
- प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण जमाराशि स्वीकार नहीं करनेवाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी एनडी-एसआइ) को सहायक सामान्य खाता (सीएसजीएल) मार्ग संघटक का उपयोग करते हुए एनडीएस-ओएम में प्रवेश के लिए ‘अर्हताप्राप्त संस्थाओं’ के रूप में माना जाएगा।
- सभी निर्यातकों को प्रति निर्यातक 1 मिलियन अमरीकी डॉलर तक के बकाया शेष पर अपने विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा (इइएफसी) पर ब्याज कमाने की अनुमति की सुविधा 31 अक्तूबर 2008 तक बढ़ाई गई है और बैंक ब्याज दर निर्धारित करने के लिए मुक्त है।
- बचाव सुविधा के लिए पूर्व कार्यनिष्पादन मार्ग के अंतर्गत पात्र सीमाओं को पुन: लागू करने की अनुमति दी जाएगी बशर्ते किए गए बचाव की अवधि के दौरान समर्थनवाले मूल-आधार दस्तावेज प्रस्तुत किए जाते हैं।
- तेल कंपनियों को अधिकतम अगले एक वर्ष तक समुद्रपारीय काउंटर पर (ओटीसी)/शेयर बाजार कारोबार व्युत्पन्नी का उपयोग करते हुए पूर्ववर्ती तिमाही के अंत तक आपने माल की मात्रा के 50 प्रतिशत तक अपने विदेशी मुद्रा निवेशों के बचाव की अनुमति दी गई है।
- विदेशी मुद्रा निवेश रखनेवाले आयातकों/निर्यातकों को विदेशी मुद्रा/रुपये और पारस्परिक लेनदेन मुद्रा और दोनों में शामिल मांग और विक्रय विकल्प अभिलिखित करने और प्रीमियम प्राप्त करने की अनुमति दी गई।
- प्राधिकृत व्यापारियों (एडी) को पारस्परिक लेनदेन मुद्रा विकल्प बहियों को रिज़र्व बैंक के अनुमोदन के अधीन संचालित करने की अनुमति दी गयी।
- प्राधिकृत व्यापारियों को अमरीकी विकल्पों को भी प्रस्तावित करने की अनुमति दी गयी।
ऋण संवितरण
- सामान्य रूप में बैंकिंग प्रणाली तथा विशेष रूप में रिज़र्व बैंक के संगत कृषि ऋणग्रस्तता पर समिति (अध्यक्ष : डॉ. आर.राधाकृष्ण) की अनुशंसाओं की जांच के लिए एक आंतरिक कार्यदल का गठन किया जाएगा।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा मुख्य बैंकिंग समाधानों (सीबीएस) में अंतरण के लिए एक रूपरेखा तैयार करने हेतु रिज़र्व बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), प्रायोजक बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के प्रतिनिधियों के साथ एक कार्यदल का गठन किया जाएगा।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और राज्य/मध्यवर्ती सहकारी बैंक अपने को उनके तुलन पत्रों में 31 मार्च 2008 तक की स्थिति के अनुसार जोखिम भारित परिसंपत्ति के लिए पूंजी अनुपात (सीआरएआर) का प्रकटन करेंगे। इन बैंकों द्वारा जोखिम भारित परिसंपत्ति के लिए पूंजी अनुपात (सीआरएआर) का वांछित स्तर प्राप्त करने के लिए एक रूपरेखा विकसित की जाएगी।
- ‘असंगठित क्षेत्र में आजीविका के कार्य की स्थिति और उन्नयन’ पर सेनगुप्ता समिति की रिपोर्ट की अनुशंसाओं का अध्ययन वित्तीय प्रणाली के संगत करने और स्वीकार्य अनुशंसाओं के कार्यान्वयन हेतु समुचित कार्य योजना प्रस्तावित करने के लिए एक कार्यदल का गठन किया जाएगा।
- अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा।
- भविष्य की कार्रवाइयों का ब्योरा देते हुए वित्तीय साक्षरता-सह-परामर्शी केंद्रों पर अवधारणा पेपर तैयार करने का प्रस्ताव किया गया।
- क्षेत्रीय ग्रमीण बैंकों को दूरस्थ और सेवारहित क्षेत्रों में आइसीटी उपकरणों को उर्जा प्रदान करने हेतु सौर उर्जा उत्पादन उपायों के संस्थापन सहित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) आधारित समाधानों के कार्यान्वयन के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी।
विवेकशील उपाय
- ऋण चूक स्वैप (सीडीएस) पर अंतिम दिशानिर्देश नवंबर 2007 के अंत तक जारी किए जाऐंगे।
- बैंकों से कहा गया है कि वे वसूली एजेंटों को कार्य पर रखते समय निर्धारित विशिष्ट मान्यताओं का पालन करें। बैंक वसूली एजेंटों द्वारा किए गए अपमानजनक व्यवहारों से गंभीर पर्यवेक्षी अस्वीकरण उत्पन्न होंगे।
- बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासेल समिति (बीसीबीएस) में परिकल्पित संरचना के अनुरूप समुद्रपारीय विनियामकों के साथ सीमापार पर्यवेक्षण और पर्यवेक्षी सहयोग के लिए एक उपयुक्त संरचना अंगीकृत किए जाने हेतु रूपरेखा निर्धारण के लिए एक कार्यदल का गठन किया जाएगा।
- बैंकिंग पर्यवेक्षी प्रणाली की प्रभावोंत्पादकता में वृद्धि के लिए समेकित पर्यवेक्षण की प्रक्रिया को बैंक-संचालित वित्तीय समूहों (कांग्लोमेरेट्स) के लिए वित्तीय कांग्लोमेरेट्स निगरानी व्यवस्था के साथ एकीकृत किया जाए।
- यह प्रस्तावित है कि सामान्य बाज़ार जोखिम के अलावा विशिष्ट जोखिम विशेषत: दोषपूर्ण अभिलेखन अथवा निपटान जोखिम से उत्पन्न ऋण जोखिम को पर्यवेक्षी प्रक्रिया के अंतर्गत शामिल किया जाए।
संस्थागत गतिविधियां
- बैंकों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि आवश्यकताओं के पूर्णत: पालन के लिए पर्याप्त आपात निवारण प्रणाली अपनाई जाती है।
- बैंकों को अपनी सभी शाखाओं में बैंकिंग पर्यवेक्षण समिति के कार्यान्वयन के लिए समयबद्ध कार्ययोजना तैयार करने के लिए कहा गया।
- मुंबई में केंद्रीकृत समाशोधन और निपटान के साथ राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (एनइएफटी) की मौजूदा मूलभूत सुविधा का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक समाशोधन सेवा (एनइसीएस) के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना तैयार की जाएगी।
- उन विभिन्न क्षेत्रों की जांच करने हेतु जहां रिज़र्व बैंक द्वारा शहरी सहकारी बैंकों को सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है, रिज़र्व बैंक, राज्य सरकारों और शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए कार्यदल गठित किया जाए।
- वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति (सीएफएसए) (अध्यक्ष : डॉ. राकेश मोहन; सह अध्यक्षं डॉ. डी.सुब्बाराव) ने जुलाई 2007 में वित्त मंत्री और गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक को अपने दृष्टिकोण की रूप-रेखा और कार्य की प्रगति की समीक्षा पर एक आंतरिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन समिति द्वारा मार्च 2008 तक मूल्यांकन पूरा करने और मध्यावधि परिप्रेक्ष में आगे सुधार करने की कार्ययोजना के लिए रूपरेखा तैयार करने की संभावना है।
अजीत प्रसाद
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/589