RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S3

Press Releases Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

80350153

भारतीय रिज़र्व बैंक - समसामयिक पत्र – खंड 42, संख्या 2, 2021

18 अक्तूबर 2022

भारतीय रिज़र्व बैंक - समसामयिक पत्र – खंड 42, संख्या 2, 2021

आज, भारतीय रिज़र्व बैंक अपने समसामयिक पत्रों का खंड 42, संख्या 2, 2021 जारी किया, जो उसके कर्मचारियों के योगदान द्वारा तैयार की गई एक शोध पत्रिका है। इस अंक में चार लेख और दो पुस्तक समीक्षाएं हैं।

लेख:

1. समाचार-आधारित रुख संकेतकों का उपयोग करके खाद्य मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान

भानु प्रताप, अभिषेक रंजन, विमल किशोर और बिनोद बी. भोई ने भारत में सब्जियों और खाद्य पदार्थों में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान हेतु समाचार पत्रों के लेखों में सूचना सामग्री की उपयोगिता की जांच की। प्रमुख अंग्रेजी दैनिकों में प्रकाशित तीन प्रमुख सब्जियों अर्थात् टमाटर, प्याज और आलू (टीओपी), जिनका भारत में सीपीआई खाद्य और हेडलाइन मुद्रास्फीति दोनों की अस्थिरता में भारी योगदान रहता है, से संबंधित समाचारों का उपयोग करते हुए, लेखक टीओपी पण्यों की कीमत की गतिशीलता के बारे में जानने के लिए समाचार-आधारित रुख सूचकांकों के निर्माण के लिए प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) तकनीकों को नियोजित करते हैं। अध्ययन में टीओपी के निर्मित समाचार रुख सूचकांकों और उनकी कीमतों में संबंधित मासिक परिवर्तनों के बीच एक विपरीत संबंध पाया गया है। सब्जियों और खाद्य पदार्थों में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान हेतु सुविधा का उपयोग करते हुए, लेख में पाया गया कि समाचार-आधारित सूचनाओं को समाचार रुख के रूप में जोड़ने से पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार होता है। अतः, समाचार आंकड़ों में अंतर्निहित प्रगामी सूचना सामग्री, भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के नाउकास्टिंग और निकट-अवधि के पूर्वानुमान के लिए सूचना का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करती है।

2. उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में व्यवहारगत संतुलन विनिमय दरें

इस लेख में, दिर्घौ केशव राउत ने व्यवहारगत संतुलन विनिमय दर (बीईईआर) मॉडल का उपयोग करके उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में संतुलन विनिमय दरों का मूल्यांकन किया है। दस ईएमई के लिए 1994-2020 के वार्षिक आंकड़ों को नियोजित करते हुए, लेखक ने पाया कि दीर्घावधि में वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) बालासा-सैमुअलसन प्रभाव की पुष्टि करती है। व्यापार की निवल वृद्धि, निवल विदेशी आस्तियों की स्थिति में सुधार और अमेरिका की तुलना में ब्याज दर के अंतर में वृद्धि से आरईईआर में वृद्धि होती है। तथापि, जीडीपी की तुलना में ऋण अनुपात में वृद्धि से आरईईआर में कमी आती है। वास्तविक और समय-भिन्न संतुलन आरईईआर स्तरों की तुलना से पता चलता है कि आरईईआर समष्टि आर्थिक मूल तत्वों द्वारा निर्धारित होता है और गलत संरेखण (अधिमूल्यन/ अधोमुल्यन) की सीमा आमतौर पर +/- 3 प्रतिशत की एक सीमित सीमा के भीतर होती है। अधिकांश ईएमई की तरह, भारत के आरईईआर ने भी अपने संतुलन मूल्य के आसपास दो-तरफ़ा उतार-चढ़ाव दर्ज किया। भारत और चीन जैसे कुछ ईएमई में देखी गई वास्तविक और संतुलन आरईईआर के ऊर्ध्वगामी सह- उतार-चढ़ाव आरईईआर में उत्पादकता चलित वृद्धि को दर्शाता है, जो बाह्य प्रतिस्पर्धा की क्षति का संकेत नहीं है।

3. उत्पादकता आधारित संवृद्धि के लिए भारत का नवोन्मेष पारिस्थितिकी तंत्र: अवसर और चुनौतियाँ

सिद्धार्थ नाथ, श्रीरूपा सेनगुप्ता और साधन कुमार चट्टोपाध्याय ने भारत सहित प्रमुख उन्नत और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में अनुसंधान और विकास (आर&डी) व्यय के हालिया रुझानों पर प्रकाश डाला है। वे इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत का आर&डी व्यय, जो नवोन्मेष और उत्पादकता संवृद्धि का एक प्रमुख चालक है, अभी तक अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बराबर नहीं है। यद्यपि विश्व के अन्य प्रमुख देशों की तुलना में भारत में समग्र आर&डी गतिविधियों में कारोबारी संस्थाओं की भागीदारी कम रही है, हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति ऊर्ध्वगामी रही है। उभरते बाजार और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं दोनों को शामिल करते हुए 21 देशों के नमूने का उपयोग करते हुए अनुभवजन्य मॉडल से पता चलता है कि समग्र आर&डी गतिविधि सकारात्मक रूप से बेहतर संस्थाओं से जुड़ी है जो प्रतिस्पर्धा, बौद्धिक संपदा और शेयरधारकों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा, रिपोर्टिंग में अधिक पारदर्शिता, और कॉर्पोरेट बोर्डों के प्रभावकारिता को बढ़ावा देती हैं। देश की अवशोषण क्षमता, अर्थात् प्रति व्यक्ति आय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भागीदारी भी सकारात्मक रूप से आर&डी व्यय से जुड़ी हुई पाई गई है।

4. सीपीआई में मूल्य अवरुद्धता और भारत में मांग आघात के प्रति इसकी संवेदनशीलता

सुजाता कुंडू, हिमानी शेखर और विमल किशोर विभिन्न मूल्य-निर्धारण पद्धतियों में मद स्तर आंकड़ों को वर्गीकृत करके अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (सीपीआई-सी) में मूल्य अवरुद्धता के स्तर की जांच करते हैं। लेखक एक अवरुद्ध कीमत सूचकांक और एक लचीली कीमत सूचकांक का निर्माण करते हैं और पाते हैं कि हेडलाइन मुद्रास्फीति मुख्य रूप से लचीली कीमत मुद्रास्फीति से प्रेरित होती है, जबकि खाद्य और ईंधन को छोड़कर मुद्रास्फीति मुख्य रूप से अवरुद्ध कीमत मुद्रास्फीति के साथ-साथ चलती है। इसके अलावा, न्यू कीनेसियन फिलिप्स कर्व (एनकेपीसी) ढांचे और 2011: पहली तिमाही-2019:चौथी तिमाही के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, अवरुद्ध कीमत सूचकांक और उत्पादन अंतराल के बीच अंतर्निहित संबंध का विश्लेषण किया जाता है और परिणामों की तुलना हेडलाइन सीपीआई-सी और लचीली कीमत पीसी पर आधारित फिलिप्स कर्व अनुमान (पीसी) के साथ की जाती है। परिणामों से पता चलता है कि काफी अंतराल के बाद होने वाली मुद्रास्फीति संबंधी उत्पादन अंतराल के कारण अवरुद्ध मूल्य पीसी अधिक समतल है, जिससे यह पता चलता है कि आर्थिक सुस्ती में बदलाव का समायोजन मंद है।

पुस्तक समीक्षाएं:

भारतीय रिज़र्व बैंक समसामयिक पत्रों के इस अंक में दो पुस्तक समीक्षाएं भी शामिल हैं:

1. श्रीरूपा सेनगुप्ता ने बारबरा एम. फ्राउमेनी द्वारा संपादित पुस्तक "मेजरिंग इकोनॉमिक ग्रोथ एंड प्रोडक्टिविटी: फ़ाउंडेशन, केएलईएमएस प्रोडक्शन मॉडल्स एंड एक्सटेंशन्स" की समीक्षा की। यह संपादित खंड संवृद्धि लेखांकन में डेल जोर्गेन्सन के योगदान के लिए एक श्रद्धांजलि है और केएलईएमएस (पूंजी, श्रम, ऊर्जा, सामग्री और सेवाओं) उत्पादन मॉडल के विस्तार पर शिक्षाविदों के शोध कार्यों को एक साथ लाता है। पुस्तक उत्पादकता पर एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है, जो व्यापार उत्पादकता संबंधों, ऊर्जा और पर्यावरणीय मुद्दों के विश्लेषण से लेकर कल्याण और मानव पूंजी विकास के मॉडल तक है।

2. श्रुति जोशी ने बेनियामिनो कैलेग्री द्वारा लिखित पुस्तक "फाउंडेशन ऑफ पोस्ट-शुम्पीटेरियन इकोनॉमिक्स: इनोवेशन, इंस्टीट्यूशंस एंड फाइनेंस" की समीक्षा की। पुस्तक में शुम्पीटेरियन सिद्धांत की समीक्षा की गई है और इसमें आर्थिक विकास, नवोन्मेष, पूंजीवादी संकट और कारोबारी चक्र जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया है। यह पुस्तक एक फ्रांसीसी दार्शनिक हेनरी बर्गसन और एक अर्थशास्त्री जॉर्जेस्कु-रोजन के कार्यों से अंतर्दृष्टि प्राप्त करके शुम्पीटर के सिद्धांत की दार्शनिक व्याख्या भी प्रस्तुत करती है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/1060

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?