भारतीय रिज़र्व बैंक - समसामयिक पत्र – खंड 44, संख्या 1, 2023 - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक - समसामयिक पत्र – खंड 44, संख्या 1, 2023
आज, भारतीय रिज़र्व बैंक अपने समसामयिक पत्रों का खंड 44, संख्या 1, 2023 जारी किया, जो उसके स्टाफ-सदस्यों के योगदान द्वारा तैयार की गई एक शोध पत्रिका है। इस अंक में तीन आलेख और चार पुस्तक समीक्षाएं हैं। लेख: यह पेपर भारत में प्रमुख बैंकों के प्रणालीगत जोखिम एक्सपोज़र का अनुमान लगाने के लिए आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क क्वांटाइल रिग्रेशन (एएनएन-क्यूआर) मॉडल का उपयोग करता है। यह मॉडल जोखिम प्रभाव विस्तार में गैर-रैखिकता को जाँचने के लिए 'लीकी आरईएलयू’ सक्रियण कार्य को नियोजित करता है। अनुमानित मॉडल पिछले 15 वर्षों में प्रणालीगत दबाव की प्रमुख अवधियों का पता लगाता है और सुझाव देता है कि छोटे निजी क्षेत्र के बैंक, तनाव अवधियों के दौरान प्रणालीगत जोखिमों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। यह मॉडल बैंकों के प्रणालीगत जोखिम एक्सपोज़र में वृद्धि के शुरुआती संकेतों का पता लगाने में मदद कर सकता है और समय पर उपचारात्मक कार्रवाई शुरू करने के लिए पर्यवेक्षकों के व्यष्टि-विवेकपूर्ण जोखिम मूल्यांकन टूलकिट को पूरक बन सकता है। 2. भारतीय कृषि में कुल कारक उत्पादकता वृद्धि: भूमि की गुणवत्ता का लेखांकन यह पेपर केएलईएमएस-प्रकार के उत्पादन कार्य में निविष्टि के रूप में भूमि को शामिल करने और कुल कृषि कारक उत्पादकता संवृद्धि (टीपीएफ़जी) का अनुमान लगाने का प्रयास करता है। अनुमान बताते हैं कि भूमि का लेखांकन दिए बिना कृषि टीएफपीजी की दर 1980 और 2019 के बीच 0.8 प्रतिशत प्रति वर्ष थी। तथापि, भूमि और भूमि की गुणवत्ता को शामिल करने के साथ यह बढ़कर क्रमशः 2.0 प्रतिशत और 1.8 प्रतिशत प्रति वर्ष हो गई। संवृद्धि लेखांकन विश्लेषण का उपयोग करते हुए, पेपर में पाया गया कि कृषि उत्पादन संवृद्धि में टीएफपीजी का योगदान 1980 के दशक में 48 प्रतिशत से बढ़कर 2010 में 78 प्रतिशत हो गया। ऑटोरेग्रेसिव डिस्ट्रिब्यूटेड लैग्ड (एआरडीएल) मॉडल का उपयोग करके दीर्घावधि में कृषि टीएफपी के चालकों की जांच से पता चलता है कि सार्वजनिक सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) स्टॉक, अनुसंधान और विकास, कृषि में मशीनीकरण और व्यापार की अनुकूल शर्तों से भारत में कृषि उत्पादकता में काफी सुधार हुआ है। 3. कोविड-19 और भारत में एमएसएमई और बड़ी फर्मों का उत्पादकता कार्य-निष्पादन यह पेपर कोविड-19 की पृष्ठभूमि में भारत के संगठित विनिर्माण क्षेत्र में बड़ी कंपनियों की तुलना में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के उत्पादकता कार्य-निष्पादन की जांच करता है। फर्म के आकार और उत्पादकता से जुड़ी समकालिकता और अंतर्जातता को संबोधित करने के लिए, पेपर उत्पादन कार्य का अनुमान लगाने और कुल कारक उत्पादकता (टीएफपी) की गणना करने के लिए एक असंतुलित पैनल पर लेविनसोहन और पेट्रिन विधि का उपयोग करता है। परिणाम बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2012 से 2022 में उत्पादकता का स्तर एमएसएमई फर्मों और बड़ी कंपनियों के बीच तुलनीय था, जिसमें बड़ी कंपनियों का प्रदर्शन थोड़ा बेहतर था। महामारी से पहले की अवधि में एमएसएमई और बड़ी कंपनियों दोनों के लिए टीएफपी संवृद्धि स्थिर रही। कोविड-19 के बाद, बड़ी कंपनियों और एमएसएमई दोनों के लिए उत्पादकता में वृद्धि हुई, एमएसएमई में उत्पादकता वृद्धि बड़ी कंपनियों के बराबर हो गई।
पुस्तक समीक्षा: भारतीय रिज़र्व बैंक के समसामयिक पत्र के इस अंक में चार पुस्तक समीक्षाएँ भी शामिल हैं:
(योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/1992 |