27 अगस्त 2013 भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘भारत में बैंकिंग संरचना-आगामी मार्ग’ पर चर्चा पत्र जारी किया भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर ‘भारत में बैंकिंग संरचना-आगामी मार्ग’ विषय पर चर्चा पत्र जारी किया। चर्चा पत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, उच्चतर वृद्धि का वित्तपोषण करने, विशेष सेवाएं उपलब्ध कराने और वित्तीय समावेशन को बढ़ाने जैसे विभिन्न मुद्दों के समाधान की दृष्टि से बैंकिंग संरचना के अभिमुखीकरण के लिए कतिपय मूलभूत खंडों की पहचान की गई है। इसमें वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कम व्यापार का प्रबंध करने की दृष्टि से ऐसे बदलावों से उभरने वाली चिंताओं का समाधान करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है। परिकल्पित नीति को प्रणालीगत महत्वपूर्ण बैंकों के लिए पर्यवेक्षण की बढ़ी हुई सघनता के साथ मजबूत विनियामक और पर्यवेक्षी व्यवस्था की पृष्ठभूमि में रखना होगा। अभिमुखीकरण का समग्र बल उभरती बैंकिंग संरचना के लिए गतिशीलता और लचीलापन प्रदान करने पर है, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि संरचना लचीली रहे और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा दे। चर्चा पत्र में शामिल किए गए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं:
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लघु बैंक बनाम बड़े बैंक : लघु स्थानीय बैंक लघु उद्यमों और कृषि के लिए ऋण की आपूर्ति तथा देश के बैंक रहित और कम बैंक शाखाओं वाले क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।तथापि, बहुत से लघु बैंकों को अनुमति देते हुए उनके आकार, संख्या, पूंजी आवश्यकताओं, एक्सपोजर मानदंडों, विनियामक विधियों, कंपनी अभिशासन और संकल्प से संबंधित मुद्दों का उचित रूप से समाधान करने की आवश्यकता है।
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सार्वभौमिक बैंकिंग : सार्वभौमिक बैंकिंग मॉडल वित्तीय संकट के दौरान कई निवेश बैंकों के विफल हो जाने के कारण संकट के बाद के अधिकांश विश्व में प्रभावशाली और अधिमान्य मॉडल रहा है। सार्वभौमिक बैंकिंग मॉडल के अंतर्गत वित्तीय होल्डिंग कंपनी (एफएचसी) संरचना के विशेष लाभ हैं और यह एक अधिमान्य मॉडल हो सकता है। इसके अतिरिक्त बदलते आर्थिक परिवेश में विशेष ग्राहक बैंकिंग की आवश्यकता है और इस दिशा में, विशेषकर बुनियादी सुविधाओं के वित्तपोषण, थोक बैंकिंग और खुदरा बैंकिंग के लिए अलग-अलग लाइसेंस प्रदान करना वांछनीय कदम हो सकता। निवेश बैंको/ निवेश बैंकिंग कार्यकलापों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
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निरंतर प्राधिकार: 'बंद करो और जाओ' की वर्तमानलाइसेंस देने की नीति की समीक्षा करने और निरंतर प्राधिकार नीति अपनाने पर विचार करने का मामला है क्योंकि निरंतर प्राधिकार मौजूदा बैंकों पर प्रतिस्पर्धी दबाव बनाता है और इससे बैंकिंग प्रणाली पर भी दबाव नहीं पड़ता है जैसा ब्लॉक लाइसेंसिंग में हो सकता है। तथापि, यह महत्वपूर्ण है कि प्रविष्टि मानदंड कड़े हों जिससे कि बैंकिंग प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार करने और प्रतिस्पर्धा प्रोत्साहित करने के लिए केवल सुयोग्य संस्थाओं की प्रविष्टि को बढ़ावा दिया जा सके।
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शहरी सहकारी बैंकों का वाणिज्यिक बैंकों में परिवर्तन : कुछ शहरी सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंकों या लघु बैंकों में परिवर्तित करने की संभावनाओं को तलाशने का मामला है क्योंकि दोहरे नियंत्रण से मुक्त और पूंजी एकत्र करने के अधिक अवसर वाली ये बैंक उन क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार कर सकते हैं जहां बैंकिंग आउटरीच कम है।
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समेकन : कुछ भारतीय बैंकों के वैश्विक बैंक और बढ़ती कंपनी बनने तथा बुनियादी सुविधा निधियन आवश्यकताओं द्वारा वैश्विक जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकताओं पर विचार करते हुए बैंकिंग क्षेत्र में समेकन का मुद्दा महत्वपूर्ण हो गया है। समेकन के पक्ष और विपक्ष की दृष्टि से यह ध्यान में रखना होगा कि स्थापित सहक्रियाओं और स्वैच्छिक प्रयासों के आधार पर वाणिज्यिक बैंकों के समेकन का स्वागत है किंतु इसे बैंकों पर थोपा नहीं जा सकता है। समेकन और वैश्विक उपस्थिति दोनों पर एक आकलित दृष्टिकोण अपनाया जाए चाहे वैश्विक आकार प्राप्त करने का कार्य अभी होने वाला नहीं हो।
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भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति : भारत में विदेशी बैंकों की सहभागिता की महता और आवश्यकता मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, स्थानीय बैंकिंग प्रणाली की कार्यकुशलता को प्रोत्साहित करने और साथ ही घरेलू बैंकों द्वारा अपनाई जा सकने वाली प्रगतिशील वित्तीय सेवाओं और जोखिम प्रबंध पद्धतियों को शामिल करने के लिए बढ़ती है। संकट के बाद सहायक कंपनी स्थापित करने के मार्ग के माध्यम से विदेशी बैंकों के घरेलू निगमीकरण ने महत्व प्राप्त किया है।
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विदेशों में भारतीय बैंकों की उपस्थिति : संवर्धित विनियमन के साथ जुड़े हुए उच्च प्रतिस्पर्धात्मक परिवेश के कारण भारतीय बैंकों के लिए आगामी मार्ग प्रतिनिधित्व कार्यालय और विदेशों में उपस्थिति शाखा के रूप के अलावा बड़े बैंकों द्वारा व्यक्तिगत रूप से या अन्य बैंकों या समद्रपारीय बैंकों के साथ संयुक्त उद्यम द्वारा स्थानीय निगमीकरण हो सकता है।
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सरकारी स्वामित्व :कार्यकुशलता, इक्विटी और वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन को बढ़ावा देने के लिए बैंकिंग क्षेत्र में इष्टतम स्वामित्व मिश्रण की आवश्यकता है। आगे, निजी क्षेत्र के बैंकों को प्रोत्साहित करते हुए अपने कार्यनिष्पादन में सुधार करने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को समर्थ बनाने में बेहतर प्रतिफल मिलेगा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) को पुनः पूंजी प्रदान करने के कारण राजकोषीय भार में कमी के संबंध में सरकार उपलब्ध विकल्पों जैसे गैर-वोटिंग इक्विटी शेयरों या विभेदक वोटिंग इक्विटी शेयरों के निर्गम, एफएचसी संरचना अपनाने या सार्वजनकि क्षेत्र के बैंकों में शेयर कम करने पर विचार कर सकती है।
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जमा बीमा और संकल्प : भारत में किसी भी प्रकार की बैंकिंग संरचना के लिए प्रभावी संकल्प क्षेत्र का अस्तित्व अनिवार्य है। एफएसबी की महत्वपूर्ण विशेषताएं भारत में समाधान ढ़ांचा स्थापित करने के लिए मार्गदर्शी सिद्धांत हो सकते हैं।
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बैंकिंग संरचना का सांकेतिक पुनःउन्मुखीकरण : पुनःउन्मुखी बैंकिंग संरचना में चार टीयर होंगे। पहले टीयर में भारत में विदेशी बैंकों की शाखाओं के साथ घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति वाले तीन या चार बड़े भारतीय बैंक शामिल हो सकते हैं। दूसरे टीयर में अर्थव्यवस्था-व्यापक उपस्थिति वाले विशेष ग्राहक बैंकों सहित अनेक मध्यम आकार वाले बैंकिंग संस्थान शामिल होने की संभावना है। तीसरे टीयरे में पुराने निजी क्षेत्र बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा बुह-राज्य शहरी सहकारी बैंक हो सकते हैं। चौथे टीयर में निजी स्वामित्व वाले स्थानीय बैंक और सहकारी बैंक हो सकते हैं।
चर्चा पत्र में उठाए गए मुद्दों पर टिप्पणियां 30 सितंबर 2013 तक प्रधान मुख्य महाप्रबंधक, बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, 12/13 मंजिल, शहीद भगत सिंह मार्ग, मुंबई 400 001 को भेज सकते हैं (ईमेल)। पृष्ठभूमि बैंकिंग प्रणालियों की समीक्षा करने के लिए कई कार्य क्षेत्रों द्वारा विशेषकर वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के समय कार्रवाइंया की गई हैं जिनमें संकट से लिए गए सबक शामिल किए गए है। जबकि भारत में बैंकिंग प्रणाली की समीक्षा करने में वर्तमान कार्रवाई की प्रेरणा विभिन्न विकल्प प्रस्तुत करना है जिससे कि उभरती और अत्यधिक रूप से वैश्विक होने वाली अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करने, विशेष सेवाएं उपलब्ध कराने और वित्तीय समावेशन को बढ़ाने में बैंकिंग प्रणाली को समर्थ बनाया जा सके, संकट से तुलनात्मक रूप से सकुशल बाहर निकलने वाले भारतीय बैंकिंग प्रणाली के बावजूद संकट से लिए गए सबक पर उचित रूप से विचार किया गया है। अनेक अध्ययनों में यह जांच करने का प्रयास किया गया है कि देश के आर्थिक विकास के लिए बैंकिंग संरचना की प्रकृति का असर पड़ता है। जबकि इस मुद्दे पर कोई व्यापक सहमति नहीं बनी है, फिर भी इस पर उचित रूप से सहमति की जा सकती हैं कि गतिशील अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के समाधान के लिए गतिशील और लचीली बैंकिंग प्रणाली अधिक सुसज्जित होगी। इस पृष्ठभूमि के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक ने निजी क्षेत्र में निजी बैंकों को लाइसेंस प्रदान करने के लिए 22 फरवरी 2013 की प्रेस प्रकाशनी के तहत दिशानिर्देश जारी किए। दिशानिर्देशों में यह कहा गया कि नरसिंहम समिति, रघुराजन समिति की सिफारिशों और अन्य दृष्टिकोणों को ध्यान में रखते हुए भारत में बैंकिंग संरचना पर स्पष्ट नीति की आवश्यकता है। तदनुसार, 03 मई 2013 को मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2013-14 में यह घोषणा की गई कि ‘भारत में बैंकिंग संरचना-आगामी मार्ग’ विषय पर चर्चा पत्र जारी किया जाएगा। अजीत प्रसाद सहायक महाप्रबंधक प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/412 |