भारतीय रिज़र्व बैंक ने "वर्ष 1991 से भारत में कृषि विकास" पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने "वर्ष 1991 से भारत में कृषि विकास" पर विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया
27 जून 2008
भारतीय रिज़र्व बैंक ने "वर्ष 1991 से भारत में कृषि विकास" पर
विकास अनुसंधान समूह अध्ययन जारी किया
[टिप्पणी : विकास अनुसंधान समूह का गठन वर्तमान अभिरूचि के विषयों पर आधारित मजबूत विश्लेषणात्मक और वैश्विक आधार द्वारा समर्थित प्रभावी नीति-उन्मुख अनुसंधान शुरू करने के लिए रिज़र्व बैंक के आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग में किया गया है। इन अध्ययनों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और वे रिज़र्व बैंक के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं]
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज ‘वर्ष 1991 से भारत में कृषि विकास’ शीर्षक एक अध्ययन प्रकाशित किया। यह अध्ययन प्रो. पुलापरे बालकृष्णन, वरिष्ठ फेलो, नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली के साथ रिज़र्व बैंक के अनुसंधान स्टाफ सदस्यों (श्री रमेश गोलाईत और श्री पंकज कुमार) द्वारा सम्मिलित रूप से तैयार किया गया है। यह अध्ययन विकास अनुसंधान समूह के तत्वाधान में शुरू किया गया था।
भारतीय अर्थव्यवस्था में उस समय कृषि में गिरावट दिखाई दी है जब शेष अर्थव्यवस्था एक अप्रत्याशित दर से बढ़ रही है। कृषि के धीमे विकास को स्पष्टत: ‘ग्यारहवी योजना के लिए दृष्टिकोण पेपर’ में चिंता के विषय के रूप में उल्लिखित किया गया है। इसके अतिरिक्त कृषि उत्पादन में वृद्धि दर को तेज किए जाने को एक और अधिक सम्मिलित विकास के केंद्र के रूप में देखा जा रहा है।
यह अध्ययन वर्ष 1991 से कृषि क्षेत्र में धीमे विकास को प्रस्तुत करता है। यह अध्ययन उन कारकों को अभिलिखित करता है जिनकी पहचान इस गिरावट के आसन्न कारणों की पहचान किए जाने की दष्टि से इस अवधि के दौरान कृषि विकास निर्धारित करने के लिए की गई है। इस अध्ययन का केंद्र बिन्दु विशेष रूप से फसलवाली कृषि पर है। सकल तथा अलग-अलग (फसल-वार) स्तर पर संगत मूल्य गतिशीलता, आयात का फैलाव, कृषि के आकार का सिकुड़ना, कृषि में निवेश, अनुसंधान और विकास तथा कृषि ऋण जैसे कारकों की खोज़ की गई है ताकि वर्ष 1991 से भारत में कृषि विकास पर उनके प्रभावों को सुनिश्चित किया जा सके।
इसके मुख्य निष्कर्ष हैं:
- यह अध्ययन इस आशय का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करता है कि संगत मूल्य गतिशीलता ने वर्ष 1991 से कृषि के धीमे विकास को स्पष्ट करने में एक निर्णायक कारक की भूमिका अदा की है। पिछले 15 वर्षों के दौरान संगत मूल्यों की प्रोफाईल बदलाव के प्रति अधिक नरमी का भी उल्लेख करती है, यदि समग्र रूप में वर्ष 1991 से कृषि विकास के धीमेपन को केंद्रीय मानने के रूप में संगत मूल्य गतिशीलता पर विचार किया जाए। इस मूल्य गतिशीलता का निर्धारण करने में आयात उदारीकरण की भूमिका भी संभवत: कुछ अवधियों में कुछ फसलों को छोड़कर सीमांत प्रतीत होती है।
- इस अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि छोटे-छोटे कृषि जोत आकार नई प्रौद्योगिकी तक पहुँच और कृषि उत्पादन संगठन के और सक्षम स्वरूपों को अंगीकृत करने में बहुसंख्यक भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए इसे और कठिन बनाते हुए प्रभावित कृषि विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
- इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि धीमे विकास के लिए उत्तरदायी संभावित कारकों में वर्ष 1991 से सिंचाई विस्तार में धीमेपन के साथ प्राय: एक शताब्दी के चौथे हिस्से तक सार्वजनिक निवेश में गतिरोध है।
- यह अध्ययन यह टिप्पणी करता है कि एक और खुली अर्थव्यवस्था में उत्पादन लगातार बढ़ते हुए जारी है यद्यपि आयात विस्तार अधिकांश फसलों के लिए वर्तमान में बहुत कम है। अध्ययन यह प्रस्तावित करता है कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए गए अनुसंधान के विस्तार और एक परिवर्तित वातावरण में कृषि को सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।
- यह अध्ययन अनुसंधान और विस्तार पर सार्वजनिक व्यय को अंतर्राष्ट्रीय मानकों द्वारा भारत में कृषि उत्पादन के एक भाग के रूप में ऐतिहासिक रूप से कम अभिलिखित करता है जिसने वर्ष 1990 से वास्तविक अर्थों में एक धीमा विकास दर्ज किया है।
- यह अध्ययन इस आकलन के प्रति चेतावनी देता है कि केवल अधिकतम व्यय ही भारतीय कृषि में वर्तमान अवरोध का समाधान है। यह अध्ययन एक उदाहरणात्मक मामले के रूप में साक्ष्य उपलब्ध कराता है कि वर्ष 1991 से वास्तविक व्यय की निरंतर वृद्धि वस्तुत: सिंचित क्षेत्र प्रतिशत की धीमी प्रसार दर के अनुरूप रही है। इससे सार्वजनिक निवेश की क्षमता में गिरावट का उल्लेख मिलता है और यह अध्ययन प्रस्तावित करता है कि अभिशासन उतना ही बड़ा मामला है जितना कि निधियों के अधिकतम आबंटन का मामला है।
संपूर्ण अध्ययन भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर प्रकाशन के अंतर्गत उपलब्ध है।
अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2007-2008/1663