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भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में विदेशी बैंकों द्वारा संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक स्थापित करने के लिए रूपरेखा जारी की

6 नवंबर 2013

भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में विदेशी बैंकों द्वारा संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक स्थापित करने के लिए रूपरेखा जारी की

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने आज अपनी वेबसाइट पर भारत में विदेशी बैंकों द्वारा पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक (डब्ल्यूओएस) स्थापित करने के लिए रूपरेखा जारी की। मौद्रिक नीति 2013-14 की दूसरी तिमाही समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसरण में यह नीति जारी की गई है (पैरा 26)।

यह नीति (i) पारस्परिकता और (ii) एकल उपस्थिति पद्धति के दो आधारभूत सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। स्थानीय निगमित बैंक के रूप में संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों से लगभग राष्ट्रीय बरताव किया जाएगा जिससे वे भारतीय बैंकों के समान देश में कहीं भी शाखाएं खोल सकें (केवल कुछ संवेदनशील क्षेत्रों को छोड़कर जहां रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन की जरूरत होगी)। वे भारतीय वित्तीय क्षेत्र के विकास में भी पूरी तरह से सहभागिता कर सकेंगे। यह नीति वर्तमान विदेशी बैंक शाखाओं को प्रोत्साहन देगी जो लगभग राष्ट्रीय बरताव के आकर्षण के कारण संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों के परिवर्तन के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रति भारत की वचनबद्धता की रूपरेखा के अंदर परिचालित हैं। यह परिवर्तन वित्तीय स्थिरता दृष्टिकोण से भी वांछनीय है। भारतीय बैंकिंग प्रणाली पर विदेशी बैंकों के प्रभाव की संभावना से सुरक्षा के लिए विस्तार को नियंत्रित करने के लिए रूपरेखा में कुछ उपाय हैं, यदि विदेशी बैंकों की हिस्सेदारी विकट आकार से अधिक हो जाती है। कंपनी अभिशासन दृष्टिकोण से भी कुछ उपाय किए गए हैं जिससे कि जनहित की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

पृष्ठभूमि

वर्ष 2004 में भारत सरकार ने निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को उदार बनाने की दृष्टि से स्वचालित मार्ग के अंतर्गत निजी क्षेत्र के बैंकों में एफडीआई की सीमा को बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया और अपने देश के बैंकिंग पर्यवेक्षी प्राधिकार द्वारा नियंत्रित और रिज़र्व बैंक के 100 प्रतिशत चुकता पूंजी रखने के लाइसेंसिंग मापदंडों को पूरा करने वाले विदेशी बैंकों को भारत में संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक स्थापित करने की भी अनुमति दी।

एफडीआई दिशानिर्देशों को परिचालित करने के लिए रिज़र्व बैंक ने भारत सरकार के परामर्श से 28 फरवरी 2005 को भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति की रूपरेखा जारी की। यह रूपरेखा दो भागों में विभाजित की गई – पहले चरण में मार्च 2005 से मार्च 2009 की अवधि को कवर किया गया और दूसरा चरण पहले चरण में प्राप्त किए गए अनुभव की समीक्षा करने के उपरांत शुरू हुआ।

पहले चरण में भारत में पहले से परिचालित विदेशी बैंकों को ‘एकल-पद्धति उपस्थिति’ मापदंड का पालन करते हुए अपनी वर्तमान शाखाओं को संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों में परिवर्तित की अनुमति दी गई और संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक को भारत में शाखा विस्तार के लिए विदेशी बैंकों की वर्तमान शाखाओं के समान माना जाना था। रूपरेखा का दूसरा चरण जो अप्रैल 2009 में शुरू होना था, उसमें संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों के परिचालन पर सीमाएं हटाने की परिकल्पना की गई तथा उचित सीमा तक उन्हें घरेलू बैंकों के समान समझा जाएगा। पहले चरण के दौरान कोई भी विदेशी बैंक पर्याप्त प्रोत्साहन की कमी के कारण अपनी शाखाएं स्थापित करने या उन्हें संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों में परिवर्तित करने के लिए आगे नहीं आया।

वर्ष 2005 की रूपरेखा के क्रम और वार्षिक नीति वक्तव्य 2010-11 में की गई घोषणा के अनुसरण में रिज़र्व बैंक ने भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति की पद्धति पर जनवरी 2011 में चर्चा पत्र जारी किया। भारत में विदेशी बैंकों द्वारा संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक स्थापित करने की रूपरेखा को चर्चा पत्र पर प्राप्त की गई प्रतिसूचना को ध्यान में रखते हुए और संकट से सबक लेते हुए अंतिम रूप दिया गया है, इस संकट में वित्तीय स्थिरता के दृष्टिकोण से उपस्थिति की सहायक पद्धति का पक्ष लिया गया है।

रूपरेखा की मुख्य विशेषताएं

  • जटिल संरचना वाले बैंकों, अपने कार्य के अधिकारक्षेत्र में पर्याप्त प्रकटन उपलब्ध नहीं कराने वाले बैंकों, अधिक व्यापक रूप से विस्तारित नहीं होने वाले बैंकों, समापन कार्यवाही में अपने देश के जमाकर्ताओं को अधिमान्य दावा प्रस्तुत करने के कानून वाले अधिकारक्षेत्र के बैंकों को केवल संपूर्ण स्वामित्व वाले सहायक बैंक की पद्धति में भारत में प्रवेश का अधिदेश दिया जाएगा।

  • विदेशी बैंक जिनके मामले में उपर्युक्त शर्तें लागू नहीं हैं, वे शाखा या संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक के स्वरूप को चुन सकते हैं।

  • उपस्थिति के शाखा स्वरूप को चुनने वाला विदेशी बैंक संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक में परिवर्तित हो जाएगा जब इस पर उपर्युक्त शर्तें लागू हो जाएंगी या यह भारत में अपने तुलन पत्र के आकार के कारण प्रणालीबद्ध रूप से महत्वपूर्ण हो जाएगा।

  • अगस्त 2010 से पहले भारत में बैंकिंग कारोबार शुरू करने वाले विदेशी बैंकों के पास शाखा पद्धति के माध्यम से अपने बैंकिंग कारोबार को जारी रखने का विकल्प रहेगा। तथापि, उन्हें संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों को दिए जाने वाले लगभग राष्ट्रीय बरताव के आकर्षण के कारण संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों में परिवर्तित करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा।

  • विदेशी बैंकों के प्रभाव को रोकने के लिए विदेशी बैंकों की नई संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों के और प्रवेश/पूंजी प्रवाह पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे जब भारत में संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों और विदेशी बैंकों की शाखाओं की पूंजी और आरक्षित निधियां बैंकिंग प्रणाली की पूंजी और आरक्षित निधियों के 20 प्रतिशत से अधिक हो जाएंगी।

  • संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक की प्रारंभिक न्यूनतम चुकता वोटिंग इक्विटी पूंजी नई बैंकों के लिए 5 बिलियन रु. होगी। संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक में परिवर्तित होने की इच्छा रखने वाली विदेशी बैंकों की वर्तमान शाखाओं की निवल संपत्ति कम से कम 5 बिलियन रु. होगी।

  • संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों के मूल बैंक को संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक की देयताओं को पूरा करने के लिए भारतीय रिज़र्वे बैंक को सुविधा पत्र जारी करने की आवश्यकता होगी।

  • कंपनी अभिशासन – (i) दो-तिहाई से कम निदेशक गैर-कार्यपालक निदेशक नहीं होने चाहिए; (ii) कम से कम एक तिहाई निदेशक भारत, इसके मूल बैंक या सहयोगी बैंक में सहायक बैंक के प्रबंध के लिए स्वतंत्र होने चाहिए; (iii) भारतीय/एनआरआई/पीआईओ निदेशक 50 प्रतिशत से कम नहीं होने चाहिए, साथ ही यह शर्त होगी कि भारत में रहने वाले भारतीय निदेशक 1/3 से कम नहीं होने चाहिए।

  • घरेलू अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए लागू शाखा विस्तार दिशानिर्देश विदेशी बैंकों के संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों के लिए लागू होंगे, किंतु इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से कुछ संवेदनशील स्थानों पर शाखाएं खोलने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी।

  • वर्तमान विदेशी बैंक शाखाओं के संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों में परिवर्तित होने के लिए पर्याप्त परिवर्तन अवधि के साथ संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंकों की वरीयता क्षेत्र उधार आवश्यकता घरेलू अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की तरह 40 प्रतिशत होगी।

  • थोड़ी दूरी आधार पर संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक को भारत में अभिरक्षण सेवाएं उपलब्ध कराने और उनके अंतर्राष्ट्रीय परिचालन के प्रयोजन हेतु मूल गारंटी/क्रेडिट रेटिंग का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। तथापि, संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक ऐसी सहायता के लिए अपने मूल बैंक को प्रतिपक्ष गारंटी मुहैया न कराए।

  • वर्तमान एफडीआई नीति के अनुरूप संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक अपने विकल्प पर अपने स्टेक को 74 प्रतिशत या इससे कम कर सकते हैं। स्टेक कम करने की स्थिति में उन्हें अपनी सूची बनानी होगी।

  • संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक को 74 प्रतिशत की कुल निवेश सीमा के अधीन भारत में किसी भी निजी क्षेत्र के बैंक के साथ एम एंड ए लेनदेन करने की अनुमति देने के मुद्दे पर विचार भारतीय बैंकों में विदेशी निवेश के विस्तार की सीमा और विदेशी बैंकों की कार्यपद्धति (शाखा पद्धति और संपूर्ण स्वामित्व वाली सहायक बैंक) के संबंध में की जाने वाली समीक्षा के बाद किया जाएगा।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/936

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