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भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपना फरवरी 2014 का मासिक बुलेटिन जारी किया

11 फरवरी 2014

भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपना फरवरी 2014 का मासिक बुलेटिन जारी किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने मासिक बुलेटिन का फरवरी 2014 अंक जारी किया। इस बुलेटिन में दो विशेष आलेख हैं: (1) भारतीय कंपनियों की विदेशी देयताओं और आस्तियों की वार्षिक गणना: 2012-13; और (2) वर्ष 2013-14 की पहली छमाही के दौरान निजी कंपनी कारोबार क्षेत्र का कार्य-निष्पादन

1. भारतीय कंपनियों की विदेशी देयताओं और आस्तियों की वार्षिक गणना : 2012-13

इस आलेख में उन भारतीय कंपनियों को शामिल किया गया है जो भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के कारण भारतीय कंपनियों की विदेशी देयताओं और आस्तियों का बाजार मूल्य, समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) और अन्य निवेशों पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करती हैं। इन्हें विदेशी देयताओं और आस्तियों (एफएलए) पर वार्षिक विवरणी में रिपोर्ट किया गया है जिसे उन भारतीय कंपनियों के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के अंतर्गत मार्च 2011 में अनिवार्य बनाया गया था जिन्होंने वर्तमान वर्ष के साथ पिछले वर्षों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया है और/अथवा विदेशों में प्रत्यक्ष निवेश किया है। इन आंकड़ों का उपयोग समन्वित प्रत्यक्ष निवेश सर्वेक्षण (सीडीआईएस) की रिपोर्टिंग के लिए भी किया जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा शुरू किया गया विश्वव्यापी सांख्यिकीय आंकड़ा सग्रह प्रयास है, जिसे समग्र और तात्कालिक काउंटरपार्ट अर्थव्यवस्था दोनों की दृष्टि से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आंकड़ों की उपलब्धता और गुणवत्ता में सुधार के लिए तैयार किया गया है। यह इस प्रकार की सूचना देना अनिवार्य किए जाने के बाद की श्रृंखला का पहला आलेख है ।

वर्ष 2012-13 के एफएलए दौर में अब तक 14,557 कंपनियों ने सूचना दी है जिनमें से 13,291 कंपनियों ने मार्च 2013 के अंत में अपने तुलन-पत्र मे विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई)/समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) को दर्शाया। इनमें से 11,028 कंपनियों ने केवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया, 1,712 कंपनियों ने केवल समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) और अन्य 551 कंपनियों ने द्विदिशीय प्रत्यक्ष निवेश किया है। इनमें से 11,579 कंपनियां जिन्होंने आवक प्रत्यक्ष निवेश की सूचना दी, उनमें से 7,528 कंपनियां विदेशी कंपनियों (एकल विदेशी निवेशक धारिता कुल इक्विटी के 50 प्रतशित से अधिक है) की सहायक कंपनियां थी, जो अपनी बिक्री, खरीद, निर्यात और आयात की भी सूचना देती हैं।

मुख्य निष्कर्ष :

• व्याप्ति: प्रतिक्रिया देने वाली कंपनियों में से अधिकांश कंपनियां (94.1 प्रतिशत) असूचीबद्ध थी और अधिकतर कंपनियों ने केवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया था। लगभग 4 प्रतिशत कंपनियों ने द्विदिशीय प्रत्यक्ष निवेश किया था। मार्च 2013 के अंत में वित्तीय कंपनियों (567.8 बिलियन रुपए) की तुलना में गैर-वित्तीय कंपनियों की अधिक विदेशी इक्विटी भागीदारी (अंकित मूल्य पर 1,960.4 बिलियन रुपए) थी।

• आवक/जावक प्रत्यक्ष निवेश: मार्च 2013 के अंत में कुल आवक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (बाजार मूल्य पर) 11,977.9 बिलियन (पिछले वर्ष 11,160.4 बिलियन रुपए) था। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का एक बड़ा भाग (93.9 प्रतिशत) इक्विटी में रखा गया। मार्च 2013 के अंत (पिछले वर्ष 3,777.0 बिलियन रुपए) में कुल समुद्रपारीय प्रत्यक्ष निवेश 4,364.3 बिलियन रुपए (बाजार मूल्य पर) था। समुद्रपारीय निवेश में भी इक्विटी भागीदारी का बड़ा शेयर (81.2 प्रतिशत) था। बाजार मूल्य पर आवक प्रत्यक्ष निवेश की तुलना में जावक अनुपात इस अवधि के दौरान 33.8 प्रतिशत से बढ़कर 36.4 प्रतिशत हो गया।

• अन्य निवेश: अन्य निवेश देयताएं जिनमें व्यापार ऋण, कर्ज, मुद्रा और जमाराशियां तथा असंबंधित (तृतीय पक्षकार) अनिवासी संस्था को अन्य देय शामिल हैं, मार्च 2013 के अंत में 8,119.9 बिलियन रुपए (एक वर्ष पूर्व 7,137.3 बिलियन रुपए) रही। सदृश समुद्रपारीय आस्तियां इन देयताओं का 37.6 प्रतिशत रही।

• आवक और जावक एफडीआई के स्रोत/लक्ष्य देश: एफडीआई के स्रोत देशों में मॉरिशस की हिस्सेदारी सर्वाधिक (26.4 प्रतिशत) रही, इसके बाद यूके (16.4 प्रतिशत), यूएसए (15.0 प्रतिशत), सिंगापुर (7.9 प्रतिशत) और जापान (7.0 प्रतिशत) की रही। भारतीय कंपनियों के लिए ओडीआई का लक्ष्य मुख्य रूप से सिंगापुर (26.6 प्रतिशत), मॉरिशस (14.5 प्रतिशत), नीदरलैंड (13.9 प्रतिशत) और यूएसए (8.6 प्रतिशत) रहे।

• गतिविधि/क्षेत्र-वार आवक एफडीआई: दोनों विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों ने विदेशी इक्विटी भागीदारी को आकर्षित किया। मार्च 2013 के अंत में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में बाजार मूल्य पर कुल एफडीआई स्टॉक 5,989.3 बिलियन रुपए (पिछले वर्ष 5.868.1 बिलियन रुपए) और 4,682.1 बिलियन रुपए (पिछले वर्ष 3,910.0 बिलियन रुपए) रहा। जबकि विनिर्माण क्षेत्र बाजार मूल्यों पर कुल एफडीआई का आधा रहा, सूचना और संचार सेवाएं (15.5 प्रतिशत) और वित्तीय तथा बीमा कार्यकलाप (13.6 प्रतिशत) एफडीआई को आकर्षित करने वाले अन्य प्रमुख कार्यकलाप थे।

• सहायक कंपनियों की बिक्री/खरीद: निर्यात सहित सहायक कंपनियों की कुल बिक्री वर्ष 2011-12 में 9,606.2 बिलियन रुपए से 19.3 प्रतिशत बढ़कर वर्ष 2012-13 में 11,463.9 बिलियन रुपए हो गई। आयात सहित उनकी कुल खरीद वर्ष 2011-12 में 6,263.1 बिलियन से 20.1 प्रतिशत बढ़कर वर्ष 2012-13 में 7,524.7 बिलियन रुपए हो गई। अतः बिक्री अनुपात में उनका खरीद मूल्य लगभग 65 प्रतिशत रहा।

• सहायक कंपनियों का निर्यात/आयात: सहायक कंपनियों का कुल निर्यात वर्ष 2011-12 में 2,927.6 बिलियन रुपए से 19.9 प्रतिशत बढ़कर वर्ष 2012-13 में 3,509.5 बिलियन रुपए हो गया। निर्यात सहायक कंपनियों की कुल बिक्री के 30.6 प्रतिशत तक पहुंच गया। प्रमुख क्षेत्रों में सूचना और संचार कंपनियों की बिक्री में निर्यात 78.6 प्रतिशत रहा। सहायक कंपनियों का कुल आयात वर्ष 2011-12 में 2,686.7 बिलियन रुपए से 23.4 प्रतिशत बढ़कर वर्ष 2012-13 में 3,316.0 प्रतिशत हो गया। आयात इन कंपनियों की कुल खरीद का 44.1 प्रतिशत रहा।

1. वर्ष 2013-14 की पहली छमाही के दौरान निजी कम्पनी कारोबार क्षेत्र का कार्य-निष्पादन

यह आलेख दीर्घावधि में कंपनी क्षेत्र के बिक्री, व्यय और लाभ मार्जिन में उभरती प्रवृत्तियों के साथ 2,731 कंपनियों की कमाई के परिणामों के आधार पर वर्ष 2013-14 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) के दौरान निजी (गैर-वित्तीय) कंपनी कारोबार के कार्य-निष्पादन का विश्लेषण करता है। समग्र कार्य-निष्पादन का विश्लेषण करने के अतिरिक्त यह आकार और प्रमुख उद्योग समूहों के आधार पर संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

मुख्य निष्कर्ष:

  • वर्ष 2013-14 की पहली छमाही के दौरान निजी (गैर-वित्तीय) कम्पनी कारोबार क्षेत्र की अलग-अलग बिक्री वृद्धि में नरमी आई। तथापि, वर्ष 2013-14 की दूसरी तिमाही में बढ़ोतरी देखी गई जिसने पिछली छह तिमाहियों की प्रवृति को विपरीत कर दिया। यह सुधार मुख्य रूप से बड़ी कंपनियों के बेहतर कार्य-निष्पादन के कारण हुआ, चाहे छोटी कम्पनियों की बिक्री में कमी जारी रही।

  • विनिर्माण क्षेत्र में लगातार चार छमाहियों में बिक्री वृद्धि में नरमी जारी रही। सेवा (सूचना प्रौद्योगिकी को छोड़कर) क्षेत्र में भी कम मांग देखी गई।

  • दूसरी तिमाही में देखी गई बिक्री वृद्धि में सुधार लाभप्रदता में नहीं देखा गया है। वर्ष 2013-14 की दूसरी तिमाही में ईबीआईटीडीए (ब्याज, कर, अवमूल्यन और परिशोधन पूर्व अर्जन) तथा निवल लाभ मार्जिन कम रहा और वर्ष 2013-14 की पहली छमाही के दौरान इसमें काफी कमी आई।

  • दीर्घकालिक प्रवृत्ति विश्लेषण से पता चलता है कि विनिर्माण क्षेत्र के लिए हाल की अवधि बिक्री अनुपात में कच्चे माल की लागत में वृद्धि हुई जबकि स्टाफ लागत और बिक्री अनुपात में ब्याज में वर्ष 2000-01 के स्तरों से कमी आई। गैर-सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए स्टाफ लागत और ब्याज व्यय में वृद्धि हुई।

  • विनिर्माण और सेवा (सूचना प्रौद्योगिकी को छोड़कर) क्षेत्र के लिए वर्ष 2013-14 की पहली छमाही में ईबीआईटीडीए और निवल लाभ मार्जिन में कमी दर्ज की गई। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र का निष्पादन उच्चतर बिक्री वृद्धि और लाभ मार्जिन के साथ बेहतर रहा।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1610

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