28 जून 2016 भारतीय रिज़र्व बैंक ने जून 2016 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट जारी की भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) जून 2016 जारी की जो छमाही प्रकाशन है तथा इस श्रृंखला का तेरहवां प्रकाशन है। एफएसआर भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और वैश्विक तथा घरेलू कारकों से उत्पन्न जाखिमों के प्रति इसके लचीलेपन का समग्र आकलन करती है। इसके अतिरिक्त, इस रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है। जून 2015 के अंक से शुरू करते हुए जून में प्रकाशित एफएसआर में एक विशेष विषयपरक चर्चा शामिल की गई है। तदनुसार, एफएसआर के इस अंक में भारतीय वित्तीय प्रणाली को आर्थिक वृद्धि में सहायता प्रदान करने में अधिक प्रभावी बनाने के लिए हुई प्रगति के संदर्भ में ‘वित्तीय प्रणाली की आदर्श संरचना – बैंक बनाम बाजार’ विषय पर एक विषयपरक चर्चा की गई है। एफएसआर-जून 2016 के मुख्य अंश नीचे दिए गए हैं: संस्थागत जोखिमों का समग्र आकलन
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भारत की वित्तीय प्रणाली स्थिर है, हालांकि बैंकिंग क्षेत्र काफी चुनौतियों का सामना कर रहा है। चूंकि वैश्विक अनिश्चितता और बदलते भौगोलिक-राजनीतिक जोखिम भारत को प्रभावित कर रहे हैं, लगातार अच्छी घरेलू नीतियां और संरचनागत सुधार समष्टि आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
वैश्विक और घरेलू समष्टि-वित्तीय जोखिम
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कमजोर और असमान वृद्धि, विश्व व्यापार में मंदी तथा वित्तीय और पण्य-वस्तु बाजारों में व्याप्त अनिश्चितता के बीच वैश्विक सुधार दुर्बल बनी हुई है। अनेक उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में निकास कार्यनीति के स्पष्ट संकेतों के बिना वर्तमान में अपनाई जा रही अति आसान मौद्रिक नीतियों के अइरादतन दुष्प्रभाव स्पष्ट हो रहे हैं।
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वृद्धि और निवेश संभावना के मामले में इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था अलग दिखाई दे रही है। राजकोषीय अनुशासन के पथ पर जारी रहने के सरकार की प्रतिबद्धता के साथ राजस्व घाटे को नियंत्रित रखने और आर्थिक सहायता को युक्तिसंगत बनाने के प्रयासों को मजबूती देनी की आवश्यकता है क्योंकि सकल स्थायी पूंजी निर्माण में प्रोत्साहन की जरूरत है।
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भारत के बाह्य क्षेत्र के संकेतक तुलनात्मक रूप से मजबूत स्थिति दर्शा रहे हैं। तथापि, हाल के वर्षों में मात्रा के मामले में भारत के तेल आयात में तेज वृद्धि से यह आवश्यक हो गया है कि पण्य-वस्तुओं के चक्रीय प्रत्यावर्तन के जोखिमों के लिए सतर्क रहें।
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सामान्य मानसून की भविष्यवाणी वर्ष 2016-17 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि की ओर संकेत करती है, हालांकि वर्षा के स्थानिक और अस्थायी वितरण का उतना ही महत्व है जितना कुल वर्षा का होता है। व्यापक राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर इसके बड़े प्रभाव के चलते कृषि क्षेत्र के लिए स्पष्ट नीतिगत उपायों की आवश्यकता है जिससे कि धारणीय खाद्य मूल्य दबावों और समग्र ग्रामीण दबाव का समाधान किया जा सके।
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जबकि वर्ष 2015-16 में कॉर्पोरेट क्षेत्र में दबाव ने सुधार के कुछ संकेत दिखाए हैं, फिर भी कम मांग तथा ऋण चुकाने की क्षमता में कमजोरी बनी हुई है।
वित्तीय संस्थाएं: कार्यनिष्पादन और जोखिम
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वर्ष 2015-16 के दौरान अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का कारोबार मंद रहा। सकल अनर्जक अग्रिमों (जीएनपीए) का अनुपात सितंबर 2015 से मार्च 2016 के बीच 5.1 प्रतिशत से काफी बढ़कर 7.6 प्रतिशत हो गया जो मुख्य रूप से आस्ति गुणवत्ता समीक्षा (एक्यूआर) के कारण पुनर्संरचित मानक अग्रिमों को अनर्जक आस्तियों के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने के कारण हुआ। पुनर्संरचित मानक अग्रिमों के अनुपात में गिरावट आई किंतु समग्र दबाव वाले अग्रिमों के अनुपात में सितंबर 2015 के 11.3 प्रतिशत से मार्च 2016 में 11.5 प्रतिशत की थोड़ी सी वृद्धि हुई। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का जोखिम भारित आस्ति पूंजी अनुपात (सीआरएआर) में बैंक-समूहों में कुछ सुधार देखा गया। तथापि, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की लाभप्रदता में काफी कमी आई और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) ने 2015-16 के दौरान हानि दर्ज की।
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अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों (एसयूसीबी) और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की आस्ति गुणवत्ता में सुधार हुआ। सामान्य रूप से एनबीएफसी क्षेत्र के कार्यनिष्पादन तुलनात्मक रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से बेहतर रहा है।
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बड़ी वित्तीय प्रणाली के दृष्टिकोण से विभिन्न प्रकार की वित्तीय संस्थाओं में निधियों का प्रवाह का महत्व है। म्युच्युअल फंड का प्रबंध करने वाली आस्ति प्रबंध कंपनियां (एएमसी-एमएफ) इस प्रणाली में सबसे बड़े फंड प्रदाता हैं जिनके बाद बीमा कंपनियां हैं जबकि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक फंड के सबसे बड़े प्राप्तकर्ता हैं जिनके बाद गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां हैं।
वित्तीय क्षेत्र के विनियमन
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, बैंकों की पूंजी और तरलता की स्थिति में सुधार से संबंधित उपायों पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, नीतियों को जनता का विश्वास बढ़ाने और बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा और सुदृढ़ता को कायम रखने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों पर जोर देना एक बड़ा महत्वपूर्ण उद्देश्य माना।
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जैसा कि भारतीय बैंक वर्तमान में एक्यूआर के मद्देनजर अपने तुलन पत्रों की दुरुस्ती पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, सरकार द्वारा तंग औद्योगिक क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों का समाधान करने के लिए विभिन्न उपायों किए जा रहें है जिससे प्रक्रिया में मदद और ऋण वृद्धि में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए विनियामक कदमों का उद्देश्य बैंकों की दवावग्रस्त आस्तियों से मुकाबला करने की क्षमता में सुधार लाना है। जबकि प्रस्तावित 'बड़े निवेश जोखिम ढ़ाचा’ से बैंकिंग प्रणाली को एक एकल निगम इकाई को बड़े समग्र ऋण देने में आनेवाले जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी, 'तनावग्रस्त आस्तियां (एस4ए) के सतत संरचना के लिए योजना' एक पर हाल ही के दिशा निर्देशों से वास्तविक कठिनाइयों का सामने करने वाली संस्था की वित्तीय संरचना को नए सिरे से एक और अवसर के माध्यम से वास्तविक आस्तियों को पुन; पटरी पर लाने में मदद मिलेगी, जब उधारकर्ता बदल जाता और उधारदाता लाभ की स्थिति में रहेगा।
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सेबी का ढांचा प्राइवेट प्लेसमेंट के आधार पर ऋण प्रतिभूतियों के जारी करने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक पुस्तक तंत्र उपलब्ध करा रहा है जिससे मूल्य खोज में पारदर्शिता के बेहतर परिणाम और साथ ही ऐसे निर्गमों के लागत और समय में कमी की उम्मीद कर रहा है। नियामक प्रोत्साहन के साथ, कमोडिटी डेरिवेटिव बाजार बेहतर तरलता और अधिक कुशल प्राइस डिस्कवरी के लिए नए उत्पादों और प्रतिभागियों की नई श्रेणियों विकसित करने के लिए तैयार है,आगे सरकार के हाल की पहल द्वारा राष्ट्रीय कृषि बाजार (एनएएम) की स्थापना में सहायता मिलना।
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कुछ पुनर्बीमा संस्थाओं में आकस्मिक देनदारियों के जमाव में वृद्धि का सामना करने में पुनर्बीमा कंपनियों के लचीलेपन का आकलन करने की जरूरत है।पेंशन क्षेत्र के नियामक द्वारा जोखिम आधारित पर्यवेक्षण को अपनाने की दिशा में कदम से पर्यवेक्षी संसाधनों के कुशल आबंटन सुनिश्चित करने की उम्मीद है।
अल्पना किल्लावाला प्रधान परामर्शदाता प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/3023 |