भारतीय रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति का कार्यवृत्त जारी किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति का कार्यवृत्त जारी किया
21 अगस्त 2012 भारतीय रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति का कार्यवृत्त जारी किया भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाईट पर मौद्रिक नीति पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति (टीएसी) का कार्यवृत्त जारी किया। फरवरी 2011 से ही रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति बैठकों पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति की चर्चा के मुख्य बिंदु इस बैठक के बाद अनुमानत: चार सप्ताहों के अंतराल के साथ वेबसाईट पर डालता रहा है। कार्यकृत्त मौद्रिक नीति पर तकनीकी परामर्शदात्री समिति (टीएसी) की 29वीं बैठक 31 जुलाई 2012 को मौद्रिक नीति 2012-13 की पहली तिमाही समीक्षा के अनुसरण में 25 जुलाई 2012 को आयोजित की गई थी। उक्त बैठक में की गई चर्चा के मुख्य बिंदु नीचे दिए गए हैं - 1. सभी सदस्य वैश्विक समष्टि आर्थिक वातावरण में अपने आकलन में एकमत थे। उन्होंने महसूस किया कि उभरती हुई वैश्विक स्थिति उस स्थिति से भी अधिक खराब है जो वर्ष के शुरू में थी। अमरीकी वृद्धि घट रही है, यूरोपियन संकट गहराता दिख रहा है। यद्यपि, यूरोप ने संघ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है तथा चीन की वृद्धि के मंद होने के लगातार प्रमाण हैं। उन्होंने महसूस किया कि वैश्विक वृद्धि में और मंदी संभावित है। अमरीका, यूरेशिया और ऑस्ट्रेलिया में सूखे के साथ वैश्विक खाद्य भंडारों में कमी सभी समय की कमी से भी नीचे जाना संभावित है तथा वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति उच्चतर रह सकती है। यद्यपि, तेल की कीमतों में कमी से भारत को सहायता मिली है तथा तेल आपूर्ति में सुधार के कुछ प्रमाण है, मुद्रास्फीतिकारी दबाव धातु, तेल और अन्य पण्य वस्तुओं पर व्याप्त हो सकते हैं यदि अमरीका अथवा यूरोप में और परिमाणात्मक कमी होती है। 2. घरेलू समष्टि आर्थिक चिंताओं पर सदस्यों ने महसूस किया कि वर्तमान स्थिति पिछले कुछ वर्षों में अधिकतर कठिन रही है। ऊर्जा, कोयला तथा परिवहन में मूलभूत सुविधा अवरोध खराब होते दिख रहे हैं जिससे आपूर्ति पक्ष दबावों के गंभीर परिणाम हो रहे हैं। ऊर्जा और उड्डयन क्षेत्रों में कमज़ोरियों के साथ सार्वजनिक-निजी-सहभागिता परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं जिनके साथ मूलभूत सुविधा में कम होते निजी निवेश के जोखिम जुड़े हैं। विनिर्माण क्षेत्र न केवल पूंजीगत वस्तु उद्योग में खाराब हालत के साथ बल्कि अल्प-चक्रीय उपभोक्ता उत्पादों में कमी दर्ज होने के साथ भी स्थिर बना हुआ है। कमज़ोर मानसून के कारण कृषि क्षेत्र के उत्पादन में गिरावट हो सकती है। सारांशत: सदस्यों ने महसूस किया कि घरेलू वृद्धि की मंदी के भी बढ़ते हुए प्रमाण हैं। 3. सभी सदस्यों ने महसूस किया कि मानसून की असफलता के साथ खाद्यान्न कीमतें कृषि में आवश्यक कमी के कारण उल्लेखनीय रूप से बढ़ सकती हैं। एक सदस्य ने महसूस किया कि उच्चतर खाद्यान्न भंडारण खाद्यान्न कीमतों पर बढ़ते दबाव को रोक सकता है लेकिन दूसरे सदस्य ने यह अनुभव किया कि इससे ज्यादा सहायता नहीं मिलेगी क्योंकि इस भंडार का कुछ हिस्सा खाने योग्य गुणवत्ता का नहीं रहेगा। मज़दूरी दबाव खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उल्लेखनीय बने रहे। इसके अतिरिक्त संरचनात्मक समस्याएं जैसेकि प्रोटिन मदों की समस्याएं गैर-मुख्य मुद्रास्फीति को उच्चतर बनाए हुए हैं। इसके अलावा मुद्रास्फीतिकारी चिंता दबी हुई मुद्रास्फीति तथा मूलभूत सुविधा में कड़े आपूर्ति अवरोधों से उत्पन्न हो रही है। अर्थव्यवस्था वृद्धि में मंदी और बढ़ी हुई मुद्रास्फीति से बंध गई है लेकिन सदस्यों ने महसूस किया कि इसके उपचार सरकार के पास हैं। 4. राजकोषीय मोर्चें पर कई सदस्यों में यह आशंका व्यक्त की कि वर्ष 2012-13 में राजकोषीय घाटे में गिरावट हो सकती है। कुछ सदस्यों के अनुसार आर्थिक सहायता को रोक रखने के लिए डीज़ल की कीमतों में संशोधन संभावित सूखे की स्थिति के कारण बहुत कठिन दिखाई पड़ता है। सदस्यों ने यह महसूस किया कि ये जुड़वां घाटे भारत के लिए गंभीर चिंता बने हुए हैं। 5. अधिकांश सदस्यों ने यह पाया कि भारत की बाह्य क्षेत्र चिंताएं बहुत अधिक बढ़ी हुई हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मंद हुआ है जबकि चालू खाता घाटा (सीएडी) उच्चतर रहा है। यद्यपि, पिछली तिमाही में तेल की अंतराष्ट्रीय कीमतों और स्वर्ण आयात में गिरावट के कारण कुछ सुधार हुआ है। जब तक कीमती वस्तु प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) परियोजनाएं शुरू नहीं की जाती हैं, स्थिति में सुधार संभावित नहीं है। तथापि, सदस्यों ने चालू खाता घाटे को वित्त प्रदान करने के लिए अल्पावधि विदेशी ऋण पर अत्यधिक निर्भरता के विरूद्ध सतर्क किया। 6. मौद्रिक नीति और चलनिधि उपायों पर सदस्यों के विचार भिन्न-भिन्न थे। सात बाहरी सदस्यों में से पांच ने यह सुझाव दिया कि रिज़र्व बैंक को अपनी नीति दर में बदलाव नहीं करना चाहिए। उन्होंने महसूस किया कि राजकोषीय प्रभाव, दुहरे अंकों वाली उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति तथा सरकार से विश्वसनीय कार्रवाई की कोई वास्तविक आशा नहीं रहने को देखते हुए रिज़र्व बैंक को मुदास्फीति प्रत्याशाओं में बदलाव पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रुरत है। इन पांच सदस्यों में से एक ने सुझाव दिया कि वृद्धि की सहायता के लिए प्रणाली में पर्याप्त चलनिधि उपलब्ध करानी चाहिए जिसके लिए प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) में या तो 25 आधार अंकों तक कमी की जाए अथवा खुले बाज़ार परिचालनों (ओएमओ) को और सक्रिय किया जाए। दूसरे सदस्य का यह विचार था कि सीआरआर पहले ही कम है और इसे और खराब स्थिति के लिए बचाए रखा जा सकता है लेकिन अधिक आक्रमक खुले बाज़ार परिचालनों को प्रारक्षित मुद्रा वृद्धि में सुधार तथा चलनिधि स्थितियों में और कमी के लिए उपयोग में लाया जा सकता हे। 7. सात बाहरी सदस्यों में से शेष दो सदस्यों ने सुझाव दिया कि निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए नीति दर में 25 आधार अंकों तक एक सांकेतिक कमी की जा सकती है। एक ने यह सुझाव भी दिया कि सीआरआर में 25 आधार अंकों की कमी की जाए। 8. इस बैठक की अध्यक्षता डॉ. डी.सुब्बाराव, गवर्नर ने की। अन्य उपस्थित आंतरिक सदस्य थे: डॉ. सुबीर गोकर्ण, उपाध्यक्ष, उप गवर्नर, डॉ. के.सी.चक्रवर्ती, श्री आनंद सिन्हा और श्री एच.आर.खान तथा बाहरी सदस्यों में श्री वाई.एच.मालेगाम, डॉ. राकेश मोहन, प्रो. इंदिरा राजारमण, प्रो. सुदीप्तो मुंडले, प्रो. एरोल डिसूज़ा और प्रो. असीमा गोयल उपस्थित थे। डॉ. शंकर आचार्य बैठक में उपस्थित नहीं हो सकें लेकिन उन्होंने लिखित विचार प्रस्तुत किए। भारतीय रिज़र्व बैंक के अधिकारियों में श्री दीपक मोहंती, डॉ. माईकल डी. पात्रा, डॉ. जनक राज, डॉ. बी.के.भोई, श्री बी.एम.मिश्र और श्री प्रदीप मारिया उपस्थित थे। आर. आर. सिन्हा प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/298 |