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भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का मानसून 2010 अंक जारी किया

3 फरवरी 2011

भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने सामयिक पेपर का मानसून 2010 अंक जारी किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपने सामयिक पेपर का मानसून 2010 अंक जारी किया। रिज़र्व बैंक की अनुसंधान पत्रिका सामयिक पेपर में इसके स्‍टाफ का योगदान शामिल है और यह लेखक के विचारों को दर्शाता है। यह अंक कुछ महत्‍वपूर्ण विषयों का वर्णन करता है जो नीति चर्चाओं के अग्रणी विषय रहे हैं। इस अंक में आलेख, विशेष टिप्‍पणियॉं और एक पुस्‍तक समीक्षा शामिल है।

संभावित मुद्रास्‍फीति जोखिम राजकोषीय समापन के प्रति तीव्र वापसी को प्रेरित करे

जीवन कुमार खुंद्रक्‍पपम और शितिकंठ पटनायक ने 'वैश्विक संकट, राजकोषीय प्रतिक्रिया तथा भारत में मुदास्‍फीति के लिए मध्‍यावधि जोखिम' शीर्षक पुस्‍तक में पूर्व-राजकोषीय दायित्‍व और बज़ट प्रबंध (एफआरबीएम) अवधि 1953-2005 के साथ-साथ वर्ष 1953-2009 की कुल प्रतिदर्श अवधि के दौरान राजकोषीय घाटे और मुद्रास्‍फीति के बीच अनुभवजन्‍य संबंध की जॉंच की है। लेखक थोक मूल्‍य सूचकांक मुद्रास्‍फीति द्वारा व्‍याप्‍त प्रारक्षित मुद्रा में वार्षिक परिवर्तन द्वारा प्रतिनिधित्‍व करनेवाले 'सिक्‍का ढुलाई मुनाफे' की अवधारणा का उपयोग करते हुए प्रारक्षित मुद्रा में प्रारंभिक विस्‍तार के माध्‍यम से राजकोषीय घाटे के सीधे प्रभाव का अध्‍ययन करते हैं।

अनुभवजन्‍य आकलन यह प्रस्‍तावित करते हैं कि राजकोषीय घाटे के स्‍तर में एक प्रतिशत बिंदु बढोतरी समय के दौरान थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआइ) में एक चौथाई प्रतिशत बिंदु की बढ़ोतरी कर सकती है। यद्यपि, अल्‍पावधि में इसका प्रभाव केवल 0.04 प्रतिशत बिंदु पर नरम रह सकता है। पेपर यह ज़ोर डालता है कि संभावित मुद्रास्‍फीति जोखिम भारत में राजकोषीय समेकन पथ में तीव्र वापसी सुनिश्चित करने के लिए एक महत्‍वपूर्ण प्रेरक बल के रूप में कार्य करे। लेखकों के अनुसार यह प्रक्रिया जारी मज़बूत वृद्धि के साथ जुड़ी भारी राजस्‍व वृद्धि के माध्‍यम से स्‍वत: किए जाने हेतु प्रतीक्षा करने की अपेक्षा व्‍यय के समुचित औचित्‍य पर आधारित समायोजन द्वारा संचालित होनी चाहिए। पेपर यह तर्क देता है कि भारतीय संदर्भ में राजकोषीय नीति न केवल उत्‍पादन के स्थिरीकरण की सामान्‍य भूमिका अदा करती है बल्कि समय-समय पर मुद्रास्‍फीतिकारी दबावों को भी रोकती है जो अक्‍सर अस्‍थायी लेकिन भारी आपूर्ति आघातों से उत्‍पन्‍न होते हैं।

सक्षम नीति प्रबंध और अन्‍य आय विदेशी बैंकों को लाभप्र बनाते हैं

विशेष टिप्‍पणी खण्‍ड के अंतर्गत राखे पी.बी. द्वारा प्रस्‍तुत पेपर 'भारत में अन्‍य बैंक समूहों की तुलना में विदेशी बैंकों की लाभप्रदता - एक पैनल ऑंकड़ा विश्‍लेषण'  भारत में अन्‍य बैंक समूहों की तुलना में विदेशी बैंकों के वित्तीय कार्यनिष्‍पादन का विश्‍लेषण करता है। यह पेपर रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति के लिए रूपरेखा की जारी तैयारी के संदर्भ में महत्‍वपूर्ण हो जाता है। इस अध्‍ययन के परिणाम यह संकेत देते हैं कि न्‍यूनतम लागत निधियॉं, आय का विविधिकरण तथा परिचालन व्‍यय को पूर्ण वित्त सहायता के लिए  आय के अन्‍य स्रोतों तक पहुँच महत्‍वपूर्ण कारक हैं जो भारत में अन्‍य बैंक समूह की तुलना में विदशी बैंकों की उच्‍चतर लाभप्रदता का कारण बनते हैं। पैनल ऑंकड़ा अवरोह के परिणाम भी यह संकेत देते हैं कि निधि प्रबंध की सक्षमता अन्‍य आय की उपलब्धि के बाद बैंकिंग प्रणाली में लाभप्रदता के निर्धारण का अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण कारक है। पेपर यह सुझाव देता है कि वैश्विक वित्तीय अंतर-सहब्‍द्धता मूल बैंकों के वित्तीय कार्यनिष्‍पादन के साथ-साथ इन बैंकों द्वारा सामाजिक उद्देश्‍यों के अनुपालन जैसे विचारणीय कारकों द्वारा विदेशी बैंक नीति पर एक संपूर्ण दृष्टि डालने की जरूरत है।

तकनीकी अध्‍ययन

इस सामयिक पेपर में दो तकनीकी अध्‍ययन भी शामिल हैं।

दीपांकर विश्‍वास, संजय सिंह और आरती सिन्‍हा द्वारा 'मुद्रास्‍फीति और अंतर्राष्‍ट्रीय निवेश स्थिति वृद्धि का अनुमान : बेसीयन वेक्‍टर स्‍व-प्रतिगमन प्रतिदर्श'  पर तैयार किया गया पेपर वर्ष 1994-95 की पहली तिमाही से वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही तक थोक मूल्‍य सूचकांक, अंतर्राष्‍ट्रीय वित्तीय स्थिति और एम1 पर तिमाही ऑंकड़ों का उपयोग करते हुए मुद्रास्फीति के साथ-साथ अंतर्राष्‍ट्रीय निवेश स्थिति वृद्धि के अनुमान हेतु एक वीएआर के साथ-साथ बेसियन वीएआर (बीवीएआर) प्रतिदर्श विकसित करने का प्रयास करता है। इन दो प्रतिदर्शा के कार्यनिष्‍पादन की तुलना करते हुए लेखकों का यह निष्‍कर्ष है कि मुद्रास्‍फीति के साथ-साथ आइआइपी वृद्धि अनुमानित करने के लिए प्रयोग में जाए जा रहे वीएआर की प्रतिदर्श प्रतिशतता से बाहर मूल मध्‍य वर्ग भूल के अनुसार मापन किए गए अनुमान वेसियन तकनीक लागू करने के द्वारा सुधरते हैं।

संजीब बोरोडोलोई, दीपांकन विश्‍वास, संजय सिंह, उज्‍वल के मन्‍ना और सीमा सग्‍गर द्वारा 'गत्‍यात्‍मक कारक प्रतिदर्श के उपयोग द्वारा समष्टि आर्थिक अनुमान' पर तैयार किए गया पेपर भारत में औद्योगिक मूल्‍यांकन और मूल्‍य स्‍तर का अनुमान करने के लिए गत्‍यात्‍मक कारक प्रतिदर्श (डीएफएम) विकसित करने का प्रयास करता है। इस प्रयोजन के लिए औद्योगिक उत्‍पादन/मूल्‍यांकन की भविष्‍य की गतिविधि के बारे में जानकारी रखनेवाले आर्थिक संकेतक चयनित किए गए हैं। अनुभवजन्‍य विश्‍लेषण से ऐसा लगता है कि डीएफएम के कार्यनिष्‍पादन अत्‍यंत उत्साहवर्धक हैं। पेपर यह भी‍ निष्‍कर्ष देता है कि मूल मध्‍य वर्ग प्रतिशतता भूल द्वारा यथा मापी गई डीएफएम की प्रतिदर्श से बाहर अनुमान सटीकता ओएलएस प्रतिगमन से बेहतर है।

पुस्‍तक समीक्षा

रॉबर्ट स्कीडेलस्की और क्रिश्चियन वेस्‍टरलिंड विंगस्ट्रोम, पालग्रेव-मैकमिलन, यूएसए द्वारा संपादित 'आर्थिक संकट और अर्थशास्‍त्र की स्थिति' पुस्‍तक की समीक्षा श्री ए.करुणागरन द्वारा की गई है।

हाल के वैश्विक संकट ने न केवल अंतर्राष्‍ट्रीय वित्तीय संकट पर चर्चा की स्‍वत: शुरूआत की है बल्कि इसे 'पूँजीवाद का नैतिक संकट' कहा गया है और इसकी तुलना 'महान मंदी' से की गई है। पूर्वानुमानित रूप से संपूर्ण विश्‍व में इस पर स्‍पष्‍टीकरणों की मॉंग करते हुए विभिन्‍न मंचों द्वारा कई सम्‍मेलन, संगोष्टियॉं आयोजित की गई हैं। यह पुस्‍तक फरवरी 2009 में आयोजित ऐसी ही एक संगोष्टियों में प्रस्‍तुत पेपरों का संग्रह है। इन संगोष्टियों में सहभागिता करनेवाले विख्‍यात अर्थशास्‍त्री रहे हैं जो न केवल इस संकट के कारणों बल्कि विशिष्‍ट विषय 'अर्थशास्‍त्र' पर भी विविधतापूर्ण विचार लेकर आये हैं। यह पुस्‍तक साफ-सुथरे संपादन और प्रस्‍तुत किए गए सम्‍मेलन पेपरों का एक संकलन है। तथापि, श्री करुणागरन यह महसूस करते हैं कि लेखकों की पूर्व-ख्‍याति देखते हुए वे और अधिक स्‍पष्‍ट सुझाव दे सकते थे अथवा भविष्‍य में ऐसे संकट को रोकने के लिए पूर्व चेतावनी प्रस्‍तावित कर सकते थे।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2010-2011/1114

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