आरबीआई ने समसामयिक पत्र प्रकाशित किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
आरबीआई ने समसामयिक पत्र प्रकाशित किया
29 मार्च 2022 आरबीआई ने समसामयिक पत्र प्रकाशित किया आज, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने कर्मचारियों के योगदान से अपने समसामयिक पत्र – खंड 42, संख्या 1, 2021 प्रकाशित किया। इस अंक में चार लेख और दो पुस्तक समीक्षाएं शामिल हैं। लेख: 1. ग्रीन स्वान और भारतीय तटीय राज्यों पर उनका आर्थिक प्रभाव सौरभ घोष, सुजाता कुंडू और अर्चना दिलीप ने उत्पादन वृद्धि, कृषि उत्पादकता, मुद्रास्फीति, पर्यटन, राजकोषीय मापदंडों और ऋण लागत जैसे समष्टि आर्थिक संकेतकों की शृंखला पर ग्रीन स्वान घटनाओं (चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी जलवायु से संबंधित जोखिम की घटनाओं) के प्रभाव की जांच की। अंतर दृष्टिकोण में अंतर (difference-in-difference approach) और 2011-12 और 2019-20 से भारतीय तटीय राज्यों से संबंधित पैनल डेटा का उपयोग करके, वे पाते हैं कि प्राकृतिक आपदाएं, उत्पादन वृद्धि को कम करती हैं, मुद्रास्फीति बढ़ाती हैं और पर्यटकों के आगमन को कम करती हैं, जबकि उनका प्रभाव अधिकांश वित्तीय चर के लिए मिश्रित रहता है। अनुभवजन्य परिणाम यह भी सुझाव देते हैं कि अनुकूलनीय शिक्षण से मदद मिलती है, क्योंकि भीषण प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के अपने लंबे इतिहास को देखते हुए पूर्वी तटीय राज्य अपने पश्चिमी समकक्षों की तुलना में बेहतर तरीके से तैयार दिखाई देते हैं। अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि ग्रीन स्वान घटनाएं मूल्य स्थिरता, संवृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकती हैं, और इस प्रकार, आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मजबूत करने, हरित परियोजनाओं और हरित वित्त को प्रोत्साहित करने और प्रभावी नीतिगत तैयारियों के लिए परिदृश्य विश्लेषण करने का सुझाव देती हैं। 2. भारत के लिए वैकल्पिक मुद्रास्फीति पूर्वानुमान मॉडल - व्यवहार में क्या बेहतर प्रदर्शन करता है? इस पत्र में, जिबिन जोस, हिमानी शेखर, सुजाता कुंडू, विमल किशोर और बिनोद बी. भोई ने 1996-97 की पहली तिमाही से 2019-20 की चौथी तिमाही तक भारत के तिमाही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) डेटा पर सकल और अलग-अलग स्तरों पर मुद्रास्फीति पूर्वानुमान मॉडल– स्वप्रतिगामी एकीकृत चल औसत (एआरआईएमए), संरचनात्मक वेक्टर स्वप्रतिगामी (एसवीएआर) और फिलिप्स कर्व (पीसी) मॉडल, का एक सूट विकसित किया है। नमूना पूर्वानुमान प्रदर्शन के आधार पर, लेखक पाते हैं कि मौसमी एआरआईएमए मॉडल एक-तिमाही आगे के होरीज़न के लिए दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। हालांकि, पीसी आधारित मॉडल, भारत में मुद्रास्फीति के अलग-अलग स्तर के विश्लेषण की उपयोगिता को मान्य करते हुए, अलग-अलग स्तरों पर चार तिमाही आगे के होरीज़न में दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। जबकि एसवीएआर मॉडल पूर्वानुमान प्रदर्शन पर अच्छा स्कोर नहीं करते हैं, वे मुद्रास्फीति पर विभिन्न झटकों के प्रभाव मूल्यांकन के लिए उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। 3. भारत के लिए मौद्रिक स्थिति सूचकांक (एमसीआई) की दृष्टि से मौद्रिक नीति संचरण मनु शर्मा, अरविंद कुमार झा, अनूप के. सुरेश और बिकाश माजी ने मौद्रिक नीति संचरण के सभी चार प्रमुख चैनलों का अनुमान लगाने के लिए सामान्य अल्पकालिक ब्याज दर और विनिमय दर के अलावा, बैंक ऋण और स्टॉक की कीमतों को शामिल करके मौद्रिक स्थिति सूचकांक (एमसीआई) की पारंपरिक अवधारणा को व्यापक बनाने का प्रयास किया। उनका एमसीआई, संकट की घटनाओं सहित पिछले दो दशकों के दौरान भारत में मौद्रिक नीति के विस्तार/संकुचनात्मक चरणों को व्यापक रूप से पकड़ने की प्रवृत्ति रखता है। निर्मित एमसीआई न केवल मौद्रिक नीति के रुख का आकलन करने के लिए एक उपयुक्त संयोग संकेतक के रूप में काम करता है बल्कि मुद्रास्फीति की भविष्यवाणी के लिए एक प्रमुख संकेतक के रूप में भी काम करता है। 4. उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में ओटीसी व्युत्पन्न (डेरिवेटिव्स): वैश्विक चलनिधि और विनियामक सुधारों की भूमिका राजीब दास, नारायण चंद्र प्रधान और रजत मलिक ने वैश्विक वित्तीय संकट के बाद की चलनिधि की स्थिति के प्रभाव और चुनिंदा उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) में बाजार गतिविधि पर 'ओवर-द-काउंटर' (ओटीसी) डेरिवेटिव्स पर वित्तीय क्षेत्र के विनियामक सुधारों के कार्यान्वयन की जांच की। उन्होंने पाया कि चलनिधि की अधिकता, विशेष रूप से यूएसडी चलनिधि, ने ईएमडीई के ओटीसी डेरिवेटिव्स बाजारों में ट्रेडिंग वॉल्यूम को प्रोत्साहन प्रदान किया; विनियामक सुधारों का ओटीसी ट्रेडिंग वॉल्यूम पर आम तौर पर अनुकूल प्रभाव पड़ा, विशेष रूप से ओटीसी विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्स करारों पर; हालांकि सुधारों के कुछ विशेष तत्वों ने अनुपालन बोझ बढ़ा दिया। पुस्तक समीक्षाएं: आरबीआई समसामयिक पत्रों के इस अंक में दो पुस्तक समीक्षाएं भी शामिल हैं : 1. मधुचंदा साहू ने स्टेफ़नी केल्टन द्वारा लिखित पुस्तक "द डेफिसिट मिथ: मॉडर्न मॉनेटरी थ्योरी एंड हाउ टू बिल्ड ए बेटर इकोनॉमी" की समीक्षा की। यह पुस्तक हमारे समय में, अर्थशास्त्र की सबसे अधिक विचारोत्तेजक पुस्तकों में से एक है और लोक वित्त और मौद्रिक अर्थशास्त्र में सबसे मौलिक कतिपय समकालीन मुद्दों को उठाती है। इसका उद्देश्य छह मिथकों का तोड़ना है जो पारंपरिक आर्थिक सिद्धांतों की छाया में गहराई से निहित हैं। यह पुस्तक स्थिरता को बनाए रखते हुए वास्तविक अर्थव्यवस्था के मुद्दों को प्राथमिकता देने के लिए, व्यापक नीतियों के संचालन के मार्गदर्शन के लिए आधुनिक मौद्रिक सिद्धांत (एमएमटी) के फ्रेमवर्क की सिफारिश करते हुए स्थापित मानदंडों को बौद्धिक चुनौती देती है। 2. मयंक गुप्ता ने कोसुके इमाई द्वारा लिखित पुस्तक "क्वांटिटेटिव सोशल साइंसेस: एन इंट्रोडक्शन" की समीक्षा की। यह पुस्तक सामाजिक विज्ञान में आधुनिक मात्रात्मक पद्धतियों का व्यावहारिक परिचय है। यह यादृच्छिकरण, कार्य-कारण और अनुमान से लेकर बायेसियन दृष्टिकोण तक मात्रात्मक सामाजिक विज्ञान में कई अत्याधुनिक मुद्दों को शामिल करती है। यह प्रासंगिक अनुभवजन्य उदाहरणों और विस्तृत आर कोड का उपयोग करके विभिन्न प्रकार के संदर्भों जैसे टेक्स्टुअल, नेटवर्क और स्थानिक डेटा के लिए विस्तृत तरीकों पर चर्चा करती है। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2021-2022/1927 |