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भारतीय रिज़र्व बैंक ने "भारत में बैंकिंग की प्रवृत्तियां और प्रगति की रिपोर्ट-2000-01" आज जारी की

भारतीय रिज़र्व बैंक ने "भारत में बैंकिंग की प्रवृत्तियां और प्रगति की रिपोर्ट-2000-01" आज जारी की

15 नवंबर 2001

भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘भारत में बैंकिंग की प्रवृत्तियां और प्रगति रिपोर्ट 2000-2001’ आज जारी की।

इस रिपोर्ट में वाणिज्य बैंकों, सहकारी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निष्पादकता के विस्तृत ब्यौरे दिये गये हैं। इसके अलावा इस रिपोर्ट में उन नीतियों और विनियामक वातावरण तथा पर्यवेक्षी ढांचे की भी चर्चा की गयी है जिनके अंतर्गत ये संस्थाएँ कार्य करती हैं। रिपोर्ट में पांच अध्याय हैं और उनमें बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं की वित्तीय निष्पादकता के विभिन्न मानकों पर विस्तृत सांख्यिकीय तालिकाएं दी गयी हैं।

पहले अध्याय में बैंकिंग गतिविधियों और परिदृश्य को शामिल किया गया है। इसके अंतर्गत 2000-2001 के दौरान शुरू किये गये नीतिगत उपायों का खाका दिया गया है तथा बैंकिंग प्रणाली में कार्यकुशलता में और सुधार लाने के लिए विवेकाधीन मानदण्डों को मज़बूत करने तथा ढांचागत परिवर्तन लाने के लिए संभावनाओं के बारे में चर्चा की गयी है।

अध्याय 2 में वाणिज्य बैंकों में गतिविधियों पर चर्चा करने के साथ साथ अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की समग्र रूप में तथा बैंकिंग समूहों, उदाहरण के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंकों, प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों, विदेशी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की अलग से वित्तीय निष्पादकता का विश्लेषण किया गया है। महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतक जैसे आय, व्यय, परिचालनगत लाभ, शुद्ध लाभ, विस्तार तथा अनुत्पादक प्राप्तियां तथा सीआरएआर का अध्ययन इस अध्याय में शामिल किया गया है। कृषि और कमज़ोर वर्गों को दिये गये अग्रिमों के बैंक-वार ब्यौरे भी इसके अंतर्गत शामिल किये गये हैं। यह रिपोर्ट का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है।

अध्याय 3 के अंतर्गत वर्ष 2000-2001 के दौरान सहकारी ऋणदात्री संस्थाओं की प्रमुख गतिविधियों तथा उनसे संबंधित शुरू किये गये विनियामक उपायों की चर्चा की गयी है। इसके अंतर्गत नाबाड़ द्वारा अदा की गयी भूमिका की भी चर्चा की गयी है। इसी अध्याय में अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों की वित्तीय निष्पादकता के बैंक-वार प्रमुख संकेतक भी दिये गये हैं।

अध्याय 4 के अंतर्गत चुनिंदा वित्तीय संस्थाओं की सामान्य तौर पर तथा आइडीबीआइ, आइसीआइसीआइ, आइएफसीआइ जैसी संस्थाओं की विशेष रूप में निष्पादकता का विश्लेषण किया गया है। इस वर्ष इस अध्याय की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस रिपोर्ट में वित्तीय संस्थाओं तथा बैंकों के बीच चुनिंदा विनियामक मानकों के संबंध में तुलनात्मक स्थिति का अध्ययन किया गया है।

अध्याय 5 में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के घटकों की तथा रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित जमाराशियां स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कामकाज पर एक नज़र डाली गयी है। इस अध्याय के अंतर्गत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए निर्धारित विनियामक ढांचे से संबंधित स्थिति तथा ब्याज दर ढांचे एवं सार्वजनिक जमाराशियों के क्षेत्र-वार वितरण के ब्यौरे भी दिये गये हैं।

रिपोर्ट रिज़र्व बैंक वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध है।

अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2001-2002/581

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