रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की
रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की
प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2001-02 जारी की
15 नवंबर 2002
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति - 2001-02 पर अपनी रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में वाणिज्यिक बैंकों, सहकारी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निष्पादकता का विस्तृत लेखा-जोखा दिया गया है। रिपोर्ट में नीतिगत परिवेश में गतिविधियों पर जानकारी और इन वित्तीय संस्थाओं पर लागू पर्यवेक्षी ढांचे पर जानकारी भी दी गयी है। रिपोर्ट को पांच अध्यायों में बांटा गया है और बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं की वित्तीय निष्पादकता के विभिन्न मानदंडों पर विस्तृत सांख्यिकीय सारणियां शामिल की गयी हैं।
बैंकिंग गतिविधियां तथा नज़रिया पर पहला अध्याय 2000-2001 के दौरान बैंकिंग क्षेत्र में शुरू किये गये नीतिगत उपायों तथा विवेकशील मानदंडों को मज़बूत करने पर एक नज़र डालता है और साथ ही इसमें बैंकिंग प्रणाली की कुशलता को सुधारने के लिए तैयार किये गये ढांचागत परिवर्तनों की शुरूआत के संबंध में मोटे तौर पर जानकारी दी गयी है।
वाणिज्यिक बैंकिंग में गतिविधियों पर दूसरे अध्याय में सकल रूप में तथा अलग-अलग, प्रमुख बैंकिंग समूहों, उदाहरण के लिए, सरकारी क्षेत्रीय बैंक, नये तथा पुराने निजी बैंक तथा विदेशी बैंक के संबंध में प्रमुख वित्तीय संकेतकों, उदाहरण के लिये आय, व्यय, लाभ, फैलाव, गैरनिष्पादक आस्तियां और जोखिम भारित आस्ति में पूंजी के अनुपात के संबंध में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की वित्तीय निष्पादकता का विश्लेषण किया गया है। इनके अलावा, इस अध्याय में वाणिज्यिक बैंकों के आय-व्यय विवरणी की अलग-अलग तस्वीर प्रस्तुत की गयी है। सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए विशेष रूप से उनके समग्र सीआरएआर, सार्वजनिक इक्विटी के ब्यौरे तथा सरकारी/भारतीय रिज़र्व बैंक में शेयरधारिता के मौजूदा स्तरों के बारे में और लाभों के ब्रेक-अप के बारे में रिपोर्ट में विशेष रूप से चर्चा की गयी है।
2001-2002 के दौरान सहकारी ऋणदात्री संस्थाओं से संबंधित प्रमुख गतिविधियां तथा विनियामक शुरूआतों जिनमें राष्टीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबाड़) द्वारा अदा की गयी भूमिका शामिल है, पर तीसरे अध्याय में सहकारी बैंकिंग में गतिविधियां के अंतर्गत चर्चा की गयी है। इस अध्याय के अंतर्गत विशेष चर्चा के लिए जिन मदों को शामिल किया गया है वे हैं, सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के लिए विवेकशील मानदंडों को लागू करना तथा सहकारी बैंकोंद्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में कारोबार के मानदंडों को मज़बूत करना। इसके अलावा इस अध्याय में मैक्रो वित्त तथा ऋण सहकारी संस्थाओं की गैर उत्पादक आस्तियों की समस्याओं से निपटने के लिए हाल ही में किये गये उपायों से सबंधित गतिविधियों पर भी चर्चा की गयी है।
वित्तीय संस्थाएं पर चौथे अध्याय में वित्तीय संस्थाओं द्वारा महसूस की जा रही अड़चनों और वित्तीय क्षेत्र के घटक में हो रहे ढांचागत परिवर्तनों पर चर्चा की गयी है। जैसे कि रिपोर्ट में दर्शाया गया है, समीक्षाधीन वर्ष के दौरान विनियामक तथा पर्यवेक्षी नीतिगत परिवर्तनों का केंद्र विवेकशील मानदंडों को मज़बूत करना रहा है।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर अंतिम अध्याय गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के विभिन्न घटकों, उनके विनियामक ढांचे तथा वर्ष के दौरान उनकी निष्पादकता पर एक नज़र डालता है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की विभिन्न श्रेणियों के संबंध में सार्वजनिक जमाराशियों, ब्याज दर, अवधि समाप्ति के ढांचे और क्षेत्रीय वितरण और वर्ष 2001-2002 के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की वित्तीय निष्पादकता पर ब्यौरों का इस अध्याय में विश्लेषण किया गया है। प्राथमिक व्यापारियों की नीतिगत गतिविधियां तथा निष्पादकता पर इस अध्याय में पहली बार सामग्री शामिल की गयी है।
रिपोर्ट रिज़र्व बैंक वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध है।
पी. वी. सदानंदन
प्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2002-2003/508