भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट, 2004-05 जारी - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट, 2004-05 जारी
24 नवंबर 2005
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट, 2004-05 जारी
भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट, 2004-05 आज जारी की है। रिपोर्ट में 2004-05 के दौरान भारत में वाणिज्य बैंकों, सहकारी बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की नीतिगत गतिविधियों और कार्यनिष्पादन का विस्तृत लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। रिपोर्ट सात अध्यायों में विभाजित की गई है और उसमें विविध वित्तीय संस्थाओं के परिचालनों और कार्यनिष्पादन के बारे में बहुत से मापदंडों की विस्तृत सांख्यिकीय सारणियाँ समाहित हैं।
विहंगम रूपरेखा
‘विहंगावलोकन’ नामक शीर्षक वाला पहला अध्याय 2004-05 के दौरान वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्थाओं की समष्टिगत गतिविधियों एवं विविध वित्तीय संस्थाओं के परिचालनों और कार्यनिष्पादन के बारे में लेखा जाखा उपलब्ध कराता है।
वाणिज्य बैंकिंग में नीतिगत गतिविधियाँ
‘वाणिज्य बैंकिंग में नीतिगत गतिविधियां’ नामक शीर्षक वाला दूसरा अध्याय में 2004-05 के दौरान बैंकिंग क्षेत्र में की गई नीतिगत पहलों के बारे में विस्तृत लेखा जोखा उपलब्ध कराता है। ये नीतिगत गतिविधियाँ ऋण वितरण, विनियामक और पर्यवेक्षी उपाय, प्रौद्योगिकीय विकास, भुगतान और निपटान प्रणाली और कानूनी सुधारों के संबंध में थीं। रिज़र्व बैंक ने सक्षमता और वित्तीय स्थायित्व के मद्देनज़र बढ़ती हुई बाज़ार उन्मुख अर्थव्यवस्था के साथ सामंजस्य रखते हुए पर्यवेक्षी ढांचे को सुदृढ़ करना जारी रखा। नीतिगत उपाय के उद्देश्य, मुख्य रूप से मौद्रिक नीति की परिचालन संबंधी सक्षमता बढ़ाने, ऋण वितरण तंत्र को सुदृढ़ करने, विवेकपूर्ण मानदंडों और जोखिम प्रबंध प्रणाली, विशेष रूप से बासल घ्घ् मानदंडों के संदर्भ में, लेखांकन और कंपनी शासन के मानकों में सुधार लाने से संचालित थे। इसे प्रौद्योगिकीय और संस्थागत बुनियादी ढाँचा विकसित करने में की गई बहुत सी पहलों द्वारा भी सुदृढ़ किया गया। सामान्य व्यक्ति को बैंक प्रदत्त सेवाओं के दायरे में लाने के मामले में और बैंकिंग प्रणाली से लेनदेन करना सुविधाजनक बनाने के लिए व्यवस्था उपलब्ध कराने की ओर रिज़र्व बैंक का ध्यान आकृष्ट हुआ है।
वाणिज्य बैंकों के परिचालन और कार्यनिष्पादन
इस अध्याय में, वर्ष के दौरान वाणिज्य बैंकों के कार्यनिष्पादन, लेखापरीक्षित वित्तीय परिणामों पर आधारित, का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इस अध्याय का केंद्र बिंदु बैंकों के संविभागों का विविधीकरण है। बैंकों कीआय और कार्यनिष्पादन पद्धतियों में आए परिवर्तनों का भी समग्र स्तर पर और प्रमुख बैंक समूहवार विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण में वाणिज्य बैंकों के महत्वपूर्ण वित्तीय संकेतक, जैसे, आय, व्यय, लाभ, स्प्रेड, अनर्जक आस्तियाँ और पूंजी के अनुपात में जोखिम भारित आस्तियाँ, तुलन पत्र की मदों को अलग-अलग करके विस्तृत रूप से विश्लेषित की गई स्थिति शामिल हैं। इस वर्ष की रिपोर्ट में ‘पूंजी बाज़ार में बैंकों का परिचालन’ , ‘बैंकों में टेक्नॉलॉजी संबंधी प्रगति’ और ‘बैंकों में ग्राहक सेवा’ नामक नए अनुभाग शामिल करके इस अध्याय को विस्तृत किया गया है। बैंकों के पूंजी बाज़ार परिचालन अनुभाग में व्यापक तौर पर बैंकों के दोनों, प्राथमिक और द्वितीयक बाज़ार परिचालनों, शेयर धारिता पद्धति को शामिल किया गया है। बैंकों में प्रौद्योगिकीय प्रगति के बारे में इस अनुभाग में बैंकों की शाखाएँ और एटीएम तथा बैंकों का कंप्यूटरीकरण शामिल हैं।
विश्लेषण से उभरने वाले प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं :
- पिछले वर्षों के दौरान की ह्रासोन्मुखी प्रवृत्तियाँ उलटते हुए बैंक ऋण ने मज़बूत वृद्धि दर्शायी।
- ऋण का क्षेत्र व्यापक आधारवाला रहा जिसमें कृषि के साथ उद्योग, आवास निर्माण और फुटकर ऋण का भीं मांग बढ़ाने में योगदान रहा।
- जमाराशियों में कम वृद्धि हुई, हालाँकि वह सीमांत रूप से कम रही।
- ऋण के लिए बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए, बैंकों ने गैर जमा संसाधन का आश्रय बढ़ाया और सरकारी प्रतिभूतियों में नए रूप से निवेश को सीमित रखा।
- बैंक सामान्य रूप से, ब्याज से होने वाली निवल आय में तीव्र वृद्धि से ब्याज दर चक्र में चढ़ाव के कारण होने वाले अपक्षय के प्रभाव से निपटने में कामयाब रहे।
- अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की आस्ति गुणवत्ता में 2004-05 के दौरान और भी सुधार हुआ है जोकि मार्च 2004 से 90 दिवसीय अपराध मानदंडों में रूपांतरण के बावजूद सकल अनर्जक आस्तियों में समग्र रूप से सतत तीसरे वर्ष हुई गिरावट देखने में आई ।
- बैंकों के पूंजी आधार ने जोखिम भारित आस्तियों में हुई तेज वृद्धि के साथ तालमेल बनाए रखा।
- कारोबार और वित्तीय कार्यनिष्पादन में सुधार हुआ जिसके कारण अधिकांश बैंक स्टाकों में तेज वृद्धि देखने में आई ।
सहकारी बैंकिंग क्षेत्र की गतिविधियां
इस अध्याय में वर्ष के दौरान हुई नीतिगत प्रमुख पहलों का उल्लेख किया गया है। इसमें शहरी सहकारी बैंकों हेतु विजॅन डाक्यूमेंट जारी करना और मध्यावधि ढांचा, दुर्बल बैंकों हेतु पुनर्जीवन योजना और क्षेत्र के लिए विलयन / समामेलन का स्वरूप दिया गया है। ग्रामीण सहकारी बैंकों पर कार्यदल की सिफारिशें भी कवर की गई हैं। शहरी सहकारी बैंकों का कार्यनिष्पादन और ग्रामीण सहकारी बैंकों के अल्पावधि तथा दीर्घावधि स्वरूप से संबंधित मामलों पर अलग से चर्चा की गई है और साथ ही सहकारी बैंकिंग के प्रत्येक घटक के कार्यनिष्पादन और क्षेत्रीय विस्तार पर भी चर्चा की गई है। प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के परिचालनों और वित्तीय कार्यनिष्पादन की विस्तृत जानकारी ग्रामीण सहकारिता से संबंधित विश्लेषण के एक भाग के रूप में इस रिपोर्ट में पहली बार शामिल की गई है। लघु वित्त पर चर्चा में इस क्षेत्र में उभर रहे विभिन्न मॉडल शामिल हैं। कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की विभिन्न विकास योजनाओं के प्रशासन के अलावा ग्रामीण सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के वित्तपोषण और निगरानी में नाबार्ड द्वारा निभाई गई भूमिका पर अलग भाग में चर्चा की गई है।
इस अध्याय से उभरने वाले प्रमुख बिंदु निम्नवत हैं :
- वर्ष के दौरान सहकारी ऋण संस्थाओं के कारोबारी परिचालन और वित्तीय कार्यनिष्पादन ने विभिन्न प्रवृत्ति दिखाई।
- अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों और राज्य सहकारी बैंकों की आस्तियां 2004-05 के दौरान बढ़ गईं ।
- निवल ब्याज आय में सुधार के बावजूद अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों की लाभप्रदता कम हो गई जिसका मुख्य कारण था ब्याजेतर आय में गिरावट। राज्य सहकारी बैंकों की लाभप्रदता वर्ष के दौरान कम हो गई जबकि मध्यवर्ती सहकारी बैंकों की बढ़ गई।
- जमाराशियों में गिरावट के बावजूद प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का समग्र कारोबार लगातार बढ़ता रहा। यद्यपि प्राथमिक कृषि ऋण समितियों की आस्ति गुणवत्ता वर्ष के दौरान सुधर गई किंतु अतिदेय लगातार उच्च बने रहे।
- दीर्घावधि ग्रामीण सहकारी संस्थाओं अर्थात् राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (एस सी ए आर डी बी) और प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (पी सी ए आर डी बी) की आस्तियों में थोड़ी वृद्धि हुई। तथापि, उनके वित्तीय कार्यनिष्पादन में भारी गिरावट आई क्योंकि वर्ष के दौरान वे समग्र भारी हानियों का सामना करते रहे।
- शहरी सहकारी बैंकों की आस्ति गुणवत्ता में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ। ग्रामीण सहकारी बैंकों, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों को छोड़कर, की सभी स्तरों की आस्ति गुणवत्ता में गिरावट आई।
- स्वयं सहायता समूह - बैंक लिंकेज कार्यक्रम और वाणिज्य तथा सहकारी बैंकों से लघुवित्त संस्थाओं को दी गई वित्तीय सहायता में तेज वृद्धि वर्ष के दौरान हुई महत्त्वपूर्ण घटना थी।
गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं
यह नया अध्याय ‘वित्तीय संस्थाओं’ (अध्याय-ङ) और ‘गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (अध्याय-ङघ्) पर पिछली रिपोर्ट के अध्यायों को जोड़ता है। नया अध्याय संस्थाओं के तीन सेट्स अर्थात वित्तीय संस्थाएं, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं और प्राथमिक व्यापारी का विश्लेषण करता है। प्रत्येक श्रेणी के लिए नीतिगत गतिविधियां, कारोबार परिचालन और वित्तीय निष्पादन पर अलग से चर्चा की गई है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर खंड को दो उप-खंडों में विभाजित किया गया है। ये हैं: (व) गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (अवशिष्ट गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को छोड़कर), (वव) अवशिष्ट गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां और (ववव) जनता से जमाराशि न स्वीकारने वाली और 500 करोड़ रुपए और उससे अधिक की आस्ति वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां। 2003-04 की सामग्री वे अतिरिक्त इस रिपोर्ट में 2004-05 की अद्यतन जानकारी दी गई है। नीति की दिशा संस्थाओं के विशेष सेट पर केंद्रित रही है जिसमें वित्तीय संस्थाओं और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों हेतु विवेकपूर्ण विनियमावली, अवशिष्ट गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों हेतु दिशा निदेशित निवेश तथा प्राथमिक व्यापारियों के लिए संस्थागत और बाजार विकास के उपायों पर जोर दिया गया है।
विश्लेषण से उभरने वाले प्रमुख बिंदु निम्नवत हैं:
- वित्तीय संस्थाओं के कारोबार परिचालन पिछले वर्ष की प्रवृत्ति को उलटते हुए 2004-05 के दौरान बढ़ गए।
- वित्तीय संस्थाओं के कार्यनिष्पादन में भीं सुधार हुआ है, परिणामत:, निवल ब्याज आय में वृद्धि हुई।
- सामान्यत: वित्तीय संस्थाओं की आस्ति गुणवत्ता में भीं उल्लेखनीय रूप से सुधार पाया गया। वर्ष के दौरान कुछ गिरावट के होते हुए भी वित्तीय संस्थाओं का पूंजी पर्याप्तता अनुपात ऊंचे स्तर पर बना रहा।
- गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कारोबार परिचालनों, जो 2003-04 के दौरान मुख्य रूप से संसाधन संग्रहण में आई गिरावट के प्रभाव के कारण तेज़ी से कम हो गए थे, में 2004-05 के दौरान मामूली वृद्धि दर्ज हुई।
- 2003-04 और 2004-05 में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की लाभप्रदता में प्रमुख रूप से व्यय को सीमित किए जाने के कारण सुधार हुआ है ।
- यद्यपि, 2003-04 और 2004-05 के दौरान, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की सकल अनर्जक आस्तियाँं घट गईं, निवल अनर्जक आस्तियाँ 2003-04 के दौरान सीमांत रूप से घट जाने के बाद 2004-05 के दौरान उल्लेखनीय रूप से बढ़ गर्इं।
- यद्यपि, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की पूंजी पर्याप्तता सुविधाजनक बनी रही, फिर भी, समग्रत:, 12 प्रतिशत तक के जोखिम भारित आस्ति की तुलना में पूँजी अनुपात (सीआरएआर) वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की संख्या में वृद्धि हुई थी और 30 प्रतिशत से अधिक के जोखिम भारित आस्ति की तुलना में पूँजी अनुपात (सीआरएआर) वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की संख्या घट गई।
- जनता से जमाराशियां स्वीकार न करने वाली परंतु 500 करोड़ रुपए की आस्ति आकार वाली बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कारोबार में वृद्धि जारी रही। इन गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ने वर्ष के दौरान बड़ी मात्रा में लाभ अर्जित किया और वर्ष के दौरान, उनकी आस्ति गुणवत्ता में सुधार हुआ है। समूह के रूप में, प्राथमिक व्यापारियों को निवल हानि उठानी पड़ी, जो प्रमुख रूप से पिछले वर्ष के ट्रेडिंग लाभ के मुकाबले बड़े ट्रेडिंग नुकसान के कारण थी। हानियों के होते हुए भी, प्राथमिक व्यापारियों का उच्च स्तर का पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखना जारी रहा।
वित्तीय स्थिरता
सामान्य रूप में वित्तीय स्थिरता संबंधी अध्याय का प्रयोजन ऐसी किसी अस्थिरता की प्रवृत्ति का समयपूर्व पता लगाना है जिसकी वित्तीय प्रणाली में उभरने की संभावना है। इस अध्याय में भारत में वित्तीय संस्थाओं, वित्तीय बाज़ारों और वित्तीय इंफ्रास्ट्रक्चर के अनुसार वित्तीय प्रणाली की स्थिरता की समीक्षा की गई है। वित्तीय स्थिरता संबंधी अध्याय में रिज़र्व बैंक द्वारा की गई नीतिगत कार्रवाई की महत्ता तथा 2004-05 के दौरान की प्रमुख गतिविधियों पर वित्तीय स्थिरता की दृष्टि से प्रकाश डला गया है। चूंकि वित्तीय स्थिरता अध्याय में वित्तीय बाज़ारों को पहली बार शामिल किया गया है इसलिए 2004-05 के दौरान प्रमुख गतिविधियों का आकलन कुछ- कुछ ऐतिहासिक संभावना में किया गया है।
इस अध्याय के विश्लेषण में निम्नलिखित प्रमुख मुद्दे उभरे हैं:
- भारतीय बैंकिंग प्रणाली के कार्यनिष्पादन संकेतक अधिकाधिक रूप से अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क की ओर अभिमुख हो रहे हैं।
- वित्तीय बाज़ारों के विविध खंड कुछ वर्षोँ से गहन तथा व्यापक हो गए हैं जिनके कारण प्रणाली की स्थिरता बढ़ती गई है।
- मुद्रा बाज़ार सहभागियों केप्रतिपक्षी ऋण जोखिम अनुमान 2004-05 के दौरान स्थिर बने रहे।
- वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा बाज़ारों में भीं परिस्थितियां बड़े पैमाने में स्थिर रहीं ।
- सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में आय महंगी हो जाने से उल्लेखनीय रूप से संविभाग समायोजन करने पड़े।
- कंपनियों के लिए 2004-05 के दौरान वित्तपोषण की स्थितियां उल्लेखनीय रूप से सुधर गई हैं।
- कंपनी जगत क्षेत्र की बैंकिंग प्रणाली पर निर्भरता घटती जा रही है।
- स्टॉक बाज़ारों में अस्थिरता कुछ वर्षों में घट गई है।
- तत्काल सकल निपटान (आरटीजीएस) को लागू करने के साथ प्रणाली में सर्वांगीण प्रणालीगत जोखिम पर्याप्त मात्रा में कम हो गई है।
- तत्काल सकल निपटान (आरटीजीएस) का कार्य संतोषजनक रूप से चल रहा है तथा यह 26 और 27ज्जुलाई 2005 को भारी वर्षा के दौरान कारोबार की निरंतरता आयोजना (प्लानिंग) की परीक्षा पर खरा उतरा है।
इस अध्याय में ऐसे जोखिमों और अतिसंवेदनशीलता को पहचानने का प्रयास किया गया है जिनके कारण निकट भविष्य में वित्तीय प्रणाली के लिए चुनौतियां खड़ी हो सकेंगी। अध्याय की समाप्ति वित्तीय प्रणाली के समग्र मूल्यांकन के साथ की गई है: जहां कुछ वर्षों में बैंकिंग प्रणाली की समग्र गुणवत्ता में सुधार हुआ है वहीं बैंक अब बाज़ार जोखिम के संबंध में कुछ अनिश्चितता का सामना कर सकते हैं।
संभावनाएँ
‘संभावनाएँ’ संबंधी अंतिम अध्याय में भारतीय बैंकिंग प्रणाली के सम्मुख कुछ उभरते मुद्दाें को उजागर किया गया है। इनमें अन्य बातों के साथ-साथ-साथ ऋण देना और मूल्यनिर्धारण, ग्राहक सेवा और बैंकिंग प्रदत्त सेवा में शामिल किया जाना तथा प्रतिस्पर्धा एवं समेकन शामिल हैं ।
उक्त रिपोर्ट भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर उपलब्ध है।
अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/631