भारतीय रिज़र्व बैंक नेभारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2005-06 जारी की - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक नेभारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2005-06 जारी की
14 नवम्बर 2006
भारतीय रिज़र्व बैंक नेभारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2005-06 जारी की
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2005-06 जारी की है। इस रिपोर्ट में वाणिज्यिक बैंकों, सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं द्वारा 2005-06 के दौरान के निष्पादन और नीति संबंधी गतिविधियों का विस्तृत विवरण दिया गया है। वित्तीय स्थायित्व की दृष्टिकोण से, भारतीय वित्तीय प्रणाली का विस्तृत विश्लेषण भी रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया है।
रिपोर्ट में कुल सात अध्याय हैं। रिपोर्ट के साथ संलग्न में, सांख्यिकीय सारणियों में, वित्तीय संस्थाओं के परिचालनों और निष्पादन के बारे में, अलग-अलग और समग्र रूप से जानकारी उपलब्ध कराई गई है।
1990 के दशक के प्रारंभ से शुरू किए गए वित्तीय क्षेत्र के सुधारों को सुनियोजित और क्रमवार ढंग से लागू किया गया है। सरकार, रिज़र्व बैंक और स्वयं बैंकों द्वारा किए गए नियमित प्रयासों से प्रतियोगी, स्वस्थ और परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाली वित्तीय प्रणाली विकसित हुई है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की आस्ति गुणवत्ता और उसकी सुदृढ़ता के मापदंड आज विश्वस्तरीय मापदंडों के साथ तुलना किए जाने योग्य हैं। यह उपलब्धि अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम मानकों तथा बढ़ती प्रतियोगिता के दबावों के परिवेश में तालमेल रखते हुए विवेकशील मानदंडों को क्रमशः लागू किए जाने के परिणामस्वरूप प्राप्त हुई है। इन कुछ वर्षों में वित्तीय गहनता के भी कुछ प्रमाण मिले हैं। इन वर्षों में वाणिज्य बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार लाने में बहुत अधिक कामयाबी प्राप्त करने के बाद अब वित्तीय सेवाओं की गहनता बढ़ाने और उसका दायरा विस्तृत करने पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि सुविधा से वंचित लोगों को वांछित सेवा दी जा सके। इसमें देश के कम विकसित क्षेत्रों को ज्यादा ध्यान देना शामिल होगा। इस सुधार की प्रक्रिया का विस्तार शहरी सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, ग्रामीण सहकारी बैंकिंग क्षेत्र और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के वित्तीय स्वास्थ्य और विवेकशील विनियमन में सुधार लाने के लिए किया जा रहा है। शहरी सहकारी बैंकों के दोहरे विनियामक नियंत्रण के मद्देनजर सुधार की कार्यनीति को राज्य सरकारों को शामिल करके सलाहकारी तंत्र के माध्यम से संचालित किया जा रहा है।
विहंगावलोकन
पहले अध्याय में, 2005-06 के दौरान वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था में समष्टि आर्थिक गतिविधियों तथा विभिन्न वित्तीय संस्थानों के निष्पादनों का विहगावलोकन प्रस्तुत किया गया है।
वाणिज्यिक बैंकिंग में नीति संबंधी विकास
इस अध्याय में, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 2005-06 के दौरान तथा 31 अक्तूबर 2006 तक की कुछ प्रमुख गतिविधियों को शामिल करते हुए, शुरू किए गए विभिन्न प्रकार के नीति संबंधी उपायों का विवरण दिया गया है। ये उपाय मौद्रिक नीति, ऋण सुपुर्दगी, विनियमन और पर्यवेक्षण, ग्राहक सेवा, वित्तीय समावेशन, भुगतान और निपटान प्रणालियां, तकनीकी प्रगति और कानूनी सुधारों से संबंधित हैं। विभिन्न प्रकार के नीति संबंधी उपायों का उद्देश्य दक्ष और स्थायी वित्तीय प्रणाली सुनिश्चित करना है ताकि विकास की गति निरंतर बनी रहे और समाज के सभी वर्गों को बैंकिंग सेवाओं का लाभ मिल सके — रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई नीति संबंधी प्रमुख पहलों में बैंकों को नवोन्मेषी लिखतों के माध्यम से पूंजी की उगाही करना, शून्य जमा राशि अथवा बहुत कम जमाराशि के साथ ‘नो फ्रिल्स’ खाता खोलने के लिए बैंकों को सूचित करना, लघु और मध्यम उद्यमों के खातों के लिए एकबारगी निपटान योजना, मानक आस्तियों के प्रतिभूतीकरण तथा अनर्जक आस्तियों की बिक्री /खरीद संबंधी दिशानिर्देश और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण प्रणाली (एनईएफटी) प्रारंभ करना शामिल है।
वाणिज्य बैंकों के परिचालन और कार्यनिष्पादन
यह अध्याय अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के परिचालनों और वित्तीय कार्यनिष्पादन की कुल और बैंक समूह स्तर की रूपरेखा देता है जो उनके लेखा परीक्षित तुलन पत्रों पर आधारित है। इस अध्याय में समग्र बैंक ऋण की प्रवृत्ति, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को ऋण, संवेदनशील क्षेत्रों को उधार, निवेश संविभाग, जमाराशि की प्रवृत्ति, ब्याज दर ढांचा, वित्तीय निष्पादन और सुदृढ़ताकारक मानदंड, प्रौद्योगिकी उपयोग की सीमा और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के क्षेत्रीय विस्तार जैसे महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं। इस अध्याय में पूंजी बाजार में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के परिचालन भी शामिल हैं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के तुलन पत्रों के मानदंड और वित्तीय निष्पादन का विश्लेषण इस अध्याय में दिया गया है। अंत में, स्थानीय क्षेत्र के चार बैंकों का वित्तीय निष्पादन भी इस अध्याय में दिया गया है।
विश्लेषण से उभरने वाले मुख्य बिंदु निम्नवत हैं :
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- बैंक ऋण वृद्धि लगातार दूसरे वर्ष भी मजबूत बनी रही।
- ऋण वृद्धि का आधार बढ़ गया, यहां तक कि खुदरा क्षेत्र, विशेषतः आवास और वाणिज्यिक भूमि-भवन को ऋण के बाबत ऋण वृद्धि भी अधिक स्पष्ट थी।
- ऋण वृद्धि की तुलना में जमाराशि में निवल वृद्धि कम थी, साथ ही बैंकों ने सरकारी प्रतिभूतियों की अपनी धारिता आंशिक रूप से खोलीं।
- समूह के रूप में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का निवल लाभ वर्ष के दौरान बढ़ गया जिसका मुख्य कारण ब्याजेतर आय में सुधार होना था जबकि पिछले वर्ष उसमें गिरावट थी।
- वर्ष के दौरान सकल अनर्जक आस्तियां (एनपीए) और निवल अनर्जक (एनपीए) कम हो गयीं और अब वह वैश्विक स्तर पर तुलनीय हैं।
- बाजार जोखिम के लिए पूंजी प्रभार लगाये जाने के बावजूद जोखिम भारित आस्तियों के प्रति बैंकों का पूंजी अनुपात कमोबेश पिछले वर्ष के स्तर पर ही रहा; जोखिम भारित आस्तियों में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई और कुछ संवेदनशील क्षेत्रों के प्रति जोखिम भार बढ़ाए गए। एक सीमा तक यह बैंकों द्वारा पूंजी बाजार से जुटाए गए व्यापक संसाधनों से सरल हो गया।
- 31 अक्तूबर 2006 तक 137 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक समेकित करके 43 नए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक गठित किए गए जो 15 राज्यों में 18 बैंकों द्वारा प्रायोजित थे जिससे अखिल भारतीय स्तर पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कुल संख्या मार्च 2005 के अंत के 196 से कम होकर 102 रह गई।
सहकारी बैंकिंग में गतिविधियां
इस अध्याय में भारत स्थित सहकारी ऋण संस्थाओं के विभिन्न खण्डों अर्थात् शहरी सहकारी बैंकों और ग्रामीण सहकारी ऋण संस्थाओं संबंधी मुख्य नीतिगत पहलों और परिचालनों तथा निष्पादन की रूपरेखा दी गई है। शहरी सहकारी बैंकों संबंधी डाटा कवरेज में अनुसूचित और अननुसूचित शहरी सहकारी बैंकों के तुलन पत्रों की पूरी जानकारी शामिल करने के लिए उसे व्यापक बनाया गया है। इसके अलावा, इस विश्लेषण में 100 करोड़ रुपए और उससे अधिक की जमाराशि वाले अननुसूचित शहरी सहकारी बैंक भी शामिल हैं। इस अध्याय में पहली बार राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों और प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के तुलन पत्रों, वित्तीय निष्पादन और आस्ति गुणवत्ता की जानकारी भी शामिल की गई है।
2005-06 के दौरान, शहरी सहकारी बैंकों के पुनरुज्जीवन के लिए यूसीबी की नीतिगत पहलें "विजन दस्तावेज" से निदेशित थीं — अब तक आठ राज्यों ने रिज़र्व बैंक के साथ सहमति ज्ञापन या हस्ताक्षर किएधहैं। "विजन दस्तावेज" में की गई परिकल्पना के अनुसार छोटे शहरी सहकारी बैंकों के लिए विनियामक धैर्य के साथ, विनियमन के प्रति जहां एक अलग दृष्टिकोण अपनाया गया है, वहीं उनके परिचालनों को मजबूत बनाने के उपाय किए गए हैं। वर्ष के दौरान ऋण सुपुर्दगी तंत्र को सुधारने, विवेकपूर्ण मानदंडों को मजबूत करने, ग्राहक सेवा को सुधारने और कारोबार अवसरों को बढ़ाने के संबंधित नियामक उपाय किए गए।
तुलन-पत्र, वित्तीय निष्पादन और सुदृढ़ संकेतकों के विश्लेषण से उभरने वाले बड़े मुद्दे जो इस अध्याय में दिए गए हैं वे इस प्रकार हैं :
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- 2005-06 के दौरान शहरी सहकारी बैंकों (अनुसूचित और गैर-अनुसूचित दोनों) की आस्तियां थोड़ी-सी बढ़ीं।
- 2004-05 से तुलना करने पर 2005-06 के दौरान अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों की कुल आस्तियां अधिक दर से बढ़ीं।
- पिछले वर्ष की गिरावट के विपरीत 2005-06 के दौरान अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों के निवल लाभ दो गुने से ज्यादा हो गए।
- 2005-06 के दौरान शहरी सहकारी बैंकों की आस्ति गुणवत्ता काफी सुधरी।
- 2004-05 के दौरान ग्रामीण सहकारी क्षेत्र के सभी खंड अपने कारोबार कार्यों को बढ़ाने में समर्थ हुए। तथापि, विभिन्न संस्थानों में उनका वित्तीय निष्पादन अलग-अलग था।
- अल्पावधि ढ़ांचे में, जहां राज्य सहकारी बैंकों ने कम लाभ कमाए वहीं जिला मध्यवर्ती बैंकों ने अधिक लाभ दर्शाए। कुल मिलाकर, प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटियों में समग्र हानियां जारी रहीं, यद्यपि 2004-05 के दौरान उनमें से काफी बड़ी संख्या ने लाभ कमाए। लंबी अवधि के ढांचे के मामले में, जबकि राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों में हानियां जारी रही, 2004-05 के दौरान प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों में सुधार हुआ।
- राज्य सहकारी बैंकों, जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंकों और प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटियों की अल्पकालिक आस्ति गुणवत्ता में सुधार हुआ, जबकि राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों और प्राथमिक सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों सहित दीर्घकालिक संस्थाओं में गिरावट आई —
- स्वयं सहायता समूह-बैंक लिकेंज कार्यक्रम जारी रहा, जिसमें 2005-06 के दौरान 0.6 मिलियन नए स्वयं सहायता समूहों को बैंकिंग प्रणाली से ऋण संबद्ध किया गया, जिससे मार्च 2006 के अंत 32.9 मिलियन गरीब परिवारों को लाभ हुआ।
गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं
इस अध्याय में वित्तीय संस्थाओं, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं और प्राथमिक व्यापारियों से संबंधित कारोबार परिचालनों, वित्तीय निष्पादन और नीतिगत गतिविधियों का विश्लेषण किया गया है। गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था खंड के आंकड़ों का कवरेज उन एनबीएफसी तक बढ़ा दिया गया है जो जनता से जमाराशियां नहीं लेती हैं, लेकिन जिनकी आस्तियों का आकार पहले के ‘500 करोड़ रुपए और अधिक’ के विपरीत ‘100 करोड़ रुपए और अधिक’ है —
इस अध्याय के विश्लेषण से उभरने वाले मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं :
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- पिछले वर्ष के रुझान के विपरीत, 2005-06 के दौरान वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वीकृत और वितरित वित्तीय सहायता काफी बढ़ी —
- 2005-06 के दौरान वित्तीय संस्थाओं की आस्तियों में विस्तार हुआ।
- 2005-06 के दौरान ऋण और अग्रिमों की बढ़ी हुई मांग के निधीयन के लिए निवेश की तुलना में वित्तीय संस्थाओं में आस्ति पोर्टफोलियों में अंतरण देखा गया।
- वर्ष के दौरान वित्तीय संस्थाओं के लाभ काफी बढ़े।वित्तीय संस्थाओं का पूंजी पर्याप्तता अनुपात न्यूनतम निर्धारित से अधिक बना रहा। वर्ष के दौरान वित्तीय संस्थाओं की आस्ति गुणवत्ता में सुधार हुआ।
- पिछले वर्ष से तुलना करने पर वर्ष के दौरान गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनियों की कुल आस्तियों में थोड़ी सी गिरावट हुई।
- व्यय में तीव्र वृद्धि से गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनियों के लाभ में तेज गिरावट हुई। तथापि, गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनियों की आस्ति गुणवत्ता काफी बढ़ी —
- 2005-06 के दौरान अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों के वित्तीय निष्पादन में काफी सुधार हुआ। उनकी आय में तीव्र वृद्धि उनके अधिक लाभ में परिलक्षित हुई।
- जमाराशियां न स्वीकार करनेवाली लेकिन सौ करोड़ रुपए और अधिक की आस्ति आकार वाली गैर बैंंकिग वित्तीय कंपनियों के परिचालन में विस्तार हुआ।वर्ष के दौरान उनके सकल अनर्जक आस्तियों में काफी गिरावट हुई।
- 2004-05 के दौरान भारी हानि से तुलना करने पर 2005-06 में प्राथमिक व्यापरियों ने काफी अधिक लाभ कमाए।
- प्राथमिक व्यापारियों के सीआरएआर कुल जोखिम भारित आस्तियों के 15 प्रतिशत के न्यूनतम निर्धारित स्तर से काफी अधिक बने रहे।
वित्तीय स्थिरता
इस अध्याय में वित्तीय स्थिरता के परिप्रेक्ष्य में वित्तीय संस्थाओं से संबंधित विनियामक और पर्यवेक्षी उपायों, वित्तीय बाजारों की गतिविधियां और वित्तीय ढांचे में प्रौद्योगिकीय सुधारों की समीक्षा की गई है। अध्याय में जोखिम के प्रमुख स्रोतों यथा (i) ऊंचे तेल मूल्यों से उत्पन्न होनेवाले स्फीतिकारी दबावों का जोखिम (हालांकि, हाल ही की अवधि में मूल्यों में कमी आई है लेकिन वे अभी भी लगातार अस्थिर हैं ); (ii) वैश्विक रूप से बढ़ती ब्याज दरें और कंपनी ऋण चक्र में संभावित विपरीत रुख और (iii) वैश्विक वित्तीय असंतुलन की पहचान की गई है। ये जोखिम भारतीय वित्तीय क्षेत्र को कई तरह से प्रभावित कर सकती हैं और निकट भविष्य में वित्तीय प्रणाली के समक्ष चुनौतियां खड़ी कर सकती हैं। तथापि, अध्याय में किए गए समग्र मूल्यांकन से यह बात उभरती है कि देशी वित्तीय प्रणाली में लचीलापन आ गया है और यह भविष्य में घटने वाली प्रतिकूल घटनाओं का सामना करने में सक्षम होगी।
इस अध्याय में विश्लेषण से उभरे मुख्य बिंदु निम्नानुसार हैं :
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- वर्ष 2005-06 के दौरान वित्तीय बाजार सामान्यतः व्यवस्थित बने रहे।
- वर्ष 2005-06 में मुद्रा बाजार गतिविधि महत्वपूर्ण रूप से बेजमानती से जमानती खंड की ओर चली —
- वर्ष 2005-06 में विदेशी मुद्रा बाजार की स्थिति भी व्यापक रूप से स्थिर रही।
- सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रतिलाभ बढ़े, परिणामस्वरूप निवेश संविभागों में महत्वपूर्ण समायोजन हुए।
- 2005-06 के दौरान कंपनियों के लिए वित्तपोषण की स्थितियां सुगम रहीं।
- पारस्परिक निधियों द्वारा भारी संसाधन जुटाए गए विशेषकर इक्विटी उन्मुख योजनाओं में, जो निवेशकों के बढ़ते विश्वास को दर्शाता है।
- मई और जून 2006 में आयी अस्थिरता को छोड़कर शेयर बाजारों में स्थिरता बनी रही। तथापि, इन प्रकरणों के अलावा शेयर बाजार की यह अस्थिरता बाजारों के अन्य खंडों में नहीं फैली और भुगतान एवं निपटान प्रणाली छिन्न-भिन्न नहीं हुई।
- आरटीजीएस के माध्यम से किए जाने वाले लेनदेनों की मात्रा और राशि में कई गुना वृद्धि हुई है जिसकी वजह से भुगतान और निपटान प्रणाली की प्रणालीगत जोखिम का प्रमुख स्रोत काफी छोटा हो गया है।
परिदृश्य
इस अध्याय में भारतीय बैंकिंग प्रणाली के सामने उभर रहे कुछ मुद्दों को रेखांकित किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ ऋण संवितरण और मूल्य निर्धारण, ग्राहक सेवा और वित्तीय समावेशन, बासेल II का कार्यान्वयन, अनर्जक आस्ति प्रबंधन, कंपनी संचालन (कार्पोरेट गवर्नेंस) और बैंकिंग प्रौद्योगिकी का प्रयोग शामिल है।
अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी : 2006-2007/658