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भारतीय रिज़र्व बैंक ने दो अध्ययन - "अंतरसरकारी अंतरणों में व्यय गुणवत्ता लागू करना : एक त्रिगुणात्मक -इ ढाँचा" तथा "मध्यावधि में केंद्र सरकार के वर्ष 2009 के बाद राजकोषीय जवाबदेही तथा बज़ट प्रबंध (एफआरबीएम) राजकोषीय संरचना की रूपरेखा" जारी किया

14 अगस्त 2009

भारतीय रिज़र्व बैंक ने दो अध्ययन - "अंतरसरकारी अंतरणों में व्यय गुणवत्ता लागू करना : एक त्रिगुणात्मक -इ ढाँचा" तथा "मध्यावधि में केंद्र सरकार के वर्ष 2009 के बाद राजकोषीय जवाबदेही तथा बज़ट प्रबंध (एफआरबीएम) राजकोषीय संरचना की रूपरेखा" जारी किया

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज तेरहवें वित्त आयोग के विचाराणीय विषयों से संबंधित दो अध्ययन - "अंतरसरकारी अंतरणों में व्यय गुणवत्ता लागू करना : एक त्रिगुणात्मक -इ ढाँचा" तथा "मध्यावधि में केंद्र सरकार के वर्ष 2009 के बाद राजकोषीय जवाबदेही तथा बज़ट प्रबंध (एफआरबीएम) राजकोषीय संरचना की रूपरेखा" जारी किया।

"अंतरसरकारी अंतरणों में व्यय गुणवत्ता लागू करना : एक त्रि-स्तरीय -इ ढाँचा" शीर्षक अध्ययन का लेखन प्रो. माला लालवाणी अर्थशाॉा विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय ने रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों के साथ (श्रीमती कुमुदिनी एस.हाजरा, निदेशक, आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग और श्री ब्रिजेश पाज्याथोडी, अनुसंधान अधिकारी, आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग) मिलकर किया है।

तेरहवें वित्त आयोग ने पहली बार अपनी अंतरण योजना में बेहतर उत्पादन और प्रतिफल प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता पर विचार करने को अनिवार्य बताया है। यह अध्ययन वित्त आयोग द्वारा अंतरसरकारी अंतरणों की अंतरण योजना में सार्वजनिक व्यय के विस्तार की ‘गुणवता’ को समेकित करने के लिए एक योजना लागू करने, उसे अवधारणायुक्त बनाने और परिचालन करने की इच्छा व्यक्त करता है। यह अध्ययन एक प्रोत्साहन निधि से आंतरिक वितरण की एक योजना उद्धृत करता है जिसे "गुणवत्ता नियंत्रण निधि (क्यूसीएफ)" कहा गया है। इस निधि को राज्यों की व्यय गुणवत्ता के तीन पहलुओं अर्थात् व्यय पर्याप्तता; प्रभाव क्षमता और दक्षता पर उनके कार्यनिष्पादन को पुरस्कृत करने से अलग रखा जाएगा। इस अध्ययन में तीन व्यय मानदण्डों को शामिल करने वाले गुणात्मक ढाँचे पर आधारित गुणवत्ता नियंत्रण निधि के अंतरण सूत्रों को उपलब्ध कराया गया है। गुणवत्ता नियंत्र्ण निधि से अंतरण राज्यों को व्यय गुणवत्ता के विभिन्न पहलुओं पर उनके कार्यनिष्पादन के लिए एक पुरस्कार अथवा एक बोनस के स्वरूप में होगा। यह अध्ययन उन निधियों को एक साथ जोड़ने का आग्रह करता है जिसे सभी राज्य शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च की गई प्रोत्साहन निधि से प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त परिणाम दृष्टिकोण की ओर एक शुरुआत अधिदेशित उत्पादन लक्ष्यों द्वारा गुणवत्ता नियंत्रण निधि से प्राप्त निधियों के लिए की जा सकती है।

"मध्यावधि में केंद्र सरकार के वर्ष 2009 के बाद राजकोषीय जवाबदेही तथा बज़ट प्रबंध (एफआरबीएम) राजकोषीय  संरचना की रूपरेखा" शीर्षक दूसरे अध्ययन का लेखन रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों (श्री जीवन के.खुद्रक्पम, निदेशक, आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग और श्री धीरेद्र गजभिये, अनुसंधान अधिकारी, आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग) के साथ रविद्र एच.ढोलकिया, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद द्वारा किया गया है।

यह अध्ययन भारत में राजकोषीय समेकन पर एक सार्थक ढाँचे की रूपरेखा तैयार करने में राजकोषीय घाटा और ऋण में आवाजाही के बीच विसंगतियों ं के समाधान की आवश्यकता पर बल प्रदान करता है। पेपर का यह निष्कर्ष है कि इन दोनों में विसंगतियाँ मुख्यत: (i) बकाए देयताओं का एक भाग बनते समय तुलनपत्रेतर देयताओं और राजकोषीय घाटे में बाज़ार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) को बाहर रखने; (ii) राज्यों को उनके घाटे में वित्तीय सहायता द्वारा राष्ट्रीय लघु बचत निधि (एनएसएसएफ) के भाग को केंद्र सरकार की देयताओं के रूप में दिखाया जाना और (iii) नकदी शेषों में कमी अथवा बढ़ोतरी के द्वारा राजकोषीय घाटे को वित्तीय सहायता से उत्पन्न होती हैं। तदनुसार, यह पेपर विसंगतियों के समाधान का प्रयत्न करता है तथा देय संघटकों को बज़ट में राजस्व और पूँजी संघटकों के बदले वर्तमान और निवेश संघटकों में पुन: वर्गीकृत भी करता है।

राजकोषीय समेकन ढाँचे के लिए राजस्व प्राप्ति (पीआर) अनुपात में ब्याज भुगतान (आइपी) को लक्ष्य चर वस्तु समझा जाता है तथा बज़टीय पहचान के आधार पर यह अध्ययन वृद्धि और ब्याज दर के वैकल्पिक धारण के अंतर्गत घाटा और ऋण के सहनीय स्तर का भी संकेत देता है। घाटे के सहनीय स्तर के संकेत से व्यय के संघटक स्वैच्छिक संघटक में समायोजन करते हुए तैयार किए जाते हैं। वृद्धि, ब्याज दर, राजस्व में उछाल तथा राजस्व प्राप्तियों में लक्षित ब्याज भुगतान (आइपी-पीआर) के पसंदीदा अनुपात के वैकल्पिक धारण के अंतर्गत यह पेपर मध्यावधि के दौरान राजकोषीय समेकन की राह पर विकल्पों की एक सूची तैयार करता है। यह अध्ययन ब्याज दर, राजस्व में उछाल तथा आइपी-पीआर के लक्षित अनुपात के अनुरूप परिणाम उपलब्ध कराता है जो वर्ष 2009 के बाद राजकोषीय जबाबदेही तथा बज़ट प्रबंध राजकोषीय संरचना के लिए एक ढाँचा निर्मित करने में सहायता कर सकता है।

दोनों अध्ययन रिज़र्व बैंक के विकास विकास अनुसंधान समूह के तत्वावधान में किए गए थे। ये अध्ययन प्रकाशन शीर्षक के अंतर्गत रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर उपलब्ध हैं।

(टिप्पणी : विकास अनुसंधान समूह (डीआरजी) का गठन मज़बूत विश्लेषण तथा वर्तमान अभिरुचि के विषयों पर अनुभवजन्य आधार द्वारा समर्थित प्रभावी नीति उन्मुख अनुसंधान के लिए रिज़र्व बैंक के आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग में किया गया है। इन अध्ययनों में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के हैं और वे रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं।)

   जी. रघुराज
 उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/253

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