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भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन : औद्योगिक मंदी की अवधियों के दौरान चयनित सूक्ष्म और लघु उत्पादन मदों में प्रवृतियाँ

4 जून 2010

भारतीय रिज़र्व बैंक स्टाफ अध्ययन :"औद्योगिक मंदी की
अवधियों के दौरान चयनित सूक्ष्म और लघु उत्पादन मदों में प्रवृतियाँ"

मंदी के दौरान कारोबारी चक्रों में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र द्वारा अनुभव किए गए आर्थिक तनाव को औद्योगिक उत्पादन के मासिक सूचकांक में दर्शया गया है। तथापि, इस सूचकांक में अपर्याप्त प्रतिनिधित्त्व के कारण संकट की अवधियों के दौरान उद्योग के कतिपय क्षेत्रों खासकर, असंगठित लघु क्षेत्र के सामने आयी कठिनाइयों की मात्रा और उसके दायरे को मापने में असफल रहा है। उच्च स्तरीय आँकड़ो के अभाव में समष्टि आर्थिक मूल्यांकन में बाधा आती है और लघु उद्योग जैसे एक रोज़गार मूलक क्षेत्र के लिए उपयोगी जानकारी के प्रवाह में बाधा आती है। यह सर्व व्यापी तथ्य है कि लघु उद्यम क्षेत्र दबावों से गुज़रता है। इनमें से कुछ है वित्त की सीमित उपलब्धता, नकद प्रवाह में निरंतरता नहीं होना और प्रतिकूल माँग आघात को झेलने की क्षमता में कमी है। उक्त दबाव औद्योगिक मंदी के समय और अधिक बढ़ आते है। इस क्षेत्र में कौशल-रहित रोज़गार की व्यापक मात्रा है और इसके कारण इसके आघात वास्तविक क्षेत्र में अंतरित हो जाते है। इस क्षेत्र के भीतर तनाव के मुख्य बिदुओं की पहचान करने से केंद्रीय बैंक को उचित मूल्यों पर इस क्षेत्र की ऋण जरूरतों को पूरा करने में सुविधा होगी।

इस पेपर में आँकड़ों के अभाव को कम करने और लघु उद्योग और उसके रोज़गार पर वर्ष 2007-09 की मंदी के प्रभाव को उज़ागर करने का प्रयास किया गया है। अप्रैल 2000 से फरवरी 2009 की अवधि के लिए अधिक निरंतर आधार पर उपलब्ध आँकड़ों के लिए औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक में शामिल दस लघु उद्यम मदों की मासिक प्रवृत्तियों को अलग-अलग किया गया और मूल्यांकन किया गया। वर्ष 2007-09 की मंदी की अवधि पर खास ध्यान देते हुए वर्ष 2007-09 की अवधि के दौरान उद्योग समूहों के कार्यनिष्पादन का मूल्यांकन करने के लिए सूक्ष्म और लघु उद्यम (एमएसई) मदों और गैर-लघु उद्यम (नॉन-एमएसई) मदों के लिए एक तुलनात्मक कार्यनिष्पादन उपाय सूचकांक तैयार किया गया है। उसके बाद सूक्ष्म और लघु उद्यम उत्पादन सूचकांक में उतार-चढ़ाव के पीछे आकस्मिक घटकों को स्पष्ट करने के लिए इकोनॉमैट्रिक मूल्यांकन किया जाता है। पेपर में यह साक्ष्य मिले है कि वर्ष 2007-08 की पहली तिमाही के दौरान उद्योग में आयी मंदी के कारण सूक्ष्म और लघु उद्यम तथा गैर-सूक्ष्म और लघु उद्यम दोनों की विकास की गति में कमी आयी। तथापि, एमएसई ने मंदी की अवधि के दौरान समीक्षा के अंतर्गत कम-से-कम दस मदों में गैर-एमएसई से बेहतर कार्यनिष्पादन दर्ज किया। इकोनॉमैट्रिक मूल्यांकन यह दर्शाते है कि घरेलू और बाह्य दोनों माँग एमएसई आउट-पुट पर सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। तथापि, तुलनात्मक रूप से घरेलू माँग का प्रभाव मज़बूत है। उल्लेखनीय रूप से, एमएसई को ऋण काफी महत्त्वपूर्ण पाया गया हालांकि क्षमता (इस मामले में नकारात्मक) के संकेत वास्तविक अपेक्षाओं से प्रतिकूल है।

सूक्ष्म और लघु उद्यमों में सामान्य विकास क्षेत्र में रोज़गार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है खासकर "खाद्य उत्पादों" और "लकड़ा और लकड़ा उत्पादों" में जिसने उत्पादन में उल्लेखनीय कमी दर्ज़ की है और बिना सामाजिक सुरक्षा के कौशल-रहित मज़दूर का भारी संख्या में रोज़गार है।

पेपर का निष्कर्ष है कि सूक्ष्म और लघु उद्यमों को ऋण पर नीतियाँ और प्रौद्योगिकी को एमएसई कारोबार चक्र, उसके उत्पादों का स्वरूप और उनके बाज़ारों के अनुरूप करने की जरूरत है। इस क्षेत्र पर कर्मचारियों की व्यापक संख्या की निर्भरता को देखते हुए कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा कवर पर उचित ध्यान देने की आवश्यकता है। हाँ, ऐसा कवर उपलब्ध कराने संबंधी लागत को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जी. रघुराज
उप महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2009-2010/1643

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