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भारतीय रिज़र्व बैंक का रोल ऑफ बैंक लेंडिंग चैनल इन ट्रान्समिशन ऑफ मोनेटरी पॉलिसी पर अध्ययन

25 जनवरी 2006

भारतीय रिज़र्व बैंक का ‘रोल ऑफ बैंक लेंडिंग चैनल इन ट्रान्समिशन ऑफ मोनेटरी पॉलिसी’ पर अध्ययन

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज ‘ट्रान्समिशन ऑफ मोनेटरी पॉलिसी एंड दि बैंक लेंडिंग चैनेल एनैलेसिस एंड एविडन्स फॉर इंडिया’ नामक एक अध्ययन प्रकाशित किया। इस अध्ययन का सह लेखन प्रो. बी.एल.पंडित, दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स ने विकास अनुसंधान दल के तत्त्वावधान के अंतर्गत तीन आंतरिक दल सदस्यों के साथ किया। इस अध्ययन में व्यापक रूप से 1993-94 से 2002-03 की अवधि के प्रकाशित और अप्रकाशित आंकडों को शामिल करते हुए भारत में मौद्रिक नीति प्रसारण प्रक्रिया की विशेषता बताने तथा बैंक उधार माध्यम की भूमिका निश्चित करने का प्रयास किया गया है। विकास अनुसंधान दल, रिज़र्व बैंक के आर्थिक विश्लेषण और नीति विभाग में गठित एक ऐसा दल है, जो वर्तमान रूचि के विषयों पर सुस्पष्ट विश्लेषणात्मक और अनुभवजन्य आधार की सहायता से शीघ्र और प्रभावी नीति-उन्मुख अनुसंधान करता है। यह अध्ययन इस संदर्भ में किया गया कि मौद्रिक नीति के प्रसारण की प्रक्रिया समझना उसके डिज़ाइनिंग और कार्यान्वयन के लिए महत्त्वपूर्ण निविष्टि है। भारत जैसे देश में अंत:क्षेत्रीय प्रमुखता और अंत:क्षेत्रीय सहबद्धता दोनों में परिवर्तन के माध्यम से आर्थिक ढांचे में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है। वित्तीय क्षेत्र का आर्थिक उदारीकरण और विवेकपूर्ण विनियमन की प्रक्रियाएं चल रहीं हैं। वित्तीय क्षेत्र में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता, गहराई और फैलाव के अनुसार परिवर्तन हो रहा है। परिणामस्वरूप, समष्टि आर्थिक वातावरण और वित्तीय ढांचा दोनों में बदलाव आ रहा है। फलस्वरूप मौद्रिक नीति प्रसारण के माध्यम सतत विकसित हो रहे हैं।

अध्ययन के परिणाम का व्यापक रूप से सारांश इस तरह है : पहला, विश्लेषण यह सुझाता है कि आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) और बैंक दर में वैकल्पिक नीति लिखतों के रूप में अधिक अंतर नहीं है। तथापि, अन्त:प्रेरणा प्रतिक्रिया कार्यों द्वारा दी गयी रिश्तों की विश्वसनीयता के आधार पर सीआरआर बैंक दर की तुलना में बेहतर कार्य करता है। दूसरा, परिणाम, भारत में बैंक उधार माध्यम की मौजूदगी का समर्थन करते हैं। और अंत में, नीतिगत आघात की प्रतिक्रिया में बड़े और छोटे बैंकों के उधार देने वाले आचरण में भिन्नता होती है। विशेषत: बड़े बैंकों की तुलना में छोटे बैंक संकुचित मौद्रिक नीति आघातों से अधिक तीव्रता से प्रभावित होते हैं।

इन परिणामों का नीति पर महत्त्वपूर्ण निहितार्थ होगा। पहला, भारतीय संदर्भ में बैंक उधार माध्यम की मौजूदगी। इसका आशय यह होगा कि केंद्रीय बैंक को मौद्रिक नीति बनाते समय ऋण आपूर्ति में स्वतंत्र अंतरण का सामना करना होगा। बैंक ऋण आपूर्ति में ये परिवर्तन बैंक निवेश सूची में भी परिवर्तन उत्प्रेरित करेंगे। दूसरा, सबूत इस तथ्य को दर्शाते हैं कि व्यापक संसाधन आधार वाले बड़े बैंक, छोटे बैंकों की तुलना में संकुचनकारी नीतिगत आघातों से अपनी ऋण आपूर्ति का सफलतापूर्वक रोधन करते हैं। इसका आशय यह होगा कि बैंक विलयन और बैंकिंग क्षेत्र में समेकन के प्रति गतिविधियां जो बड़े बैंकों के निर्माण की ओर जाती हैं, का मौद्रिक नीति के प्रभावोत्पादकता पर असर होगा। तीसरा, आरक्षित नकदी निधि अनुपात और बैंक दर के धीरे-धीरे कम होने के बावजूद आरक्षित नकदी निधि अनुपात जैसे परिमाणात्मक लिखत बैंक दर जैसे मूल्य लिखत के साथ महत्त्वपूर्ण बने रहे। मौजूदा अध्ययन में अपनाये गये मध्यावधि ढांचे में प्राथमिक रूप से यह दिखायी दिया। अंतत: बैंकों के उधार निर्णयों को प्रभावित करने में विवेकपूर्ण विनियम महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। विशेषत: पूंजी पर्याप्तता अनुपात संस्था ने बैंकों को ऋणों की जोखिम-वापसी रूपरेखा के बारे में अधिक विचार करने के लिए मजबूर किया क्योंकि नियामक पूंजी मानकों के अनुपालन के लिए अतिरिक्त उधार पूंजी आधार के संवर्धन का आधार प्रस्तुत करते हैं।

यह अध्ययन रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (www.rbi.org.in) पर ज्ल्ंर्त्वम्ीूवदहे के अंतर्गत उपलब्ध है।

अल्पना किल्लावाला

मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2005-2006/938

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