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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 07/ 2024: भारत में दालों की मुद्रास्फीति - चना, अरहर और मूंग का एक अध्ययन

आज भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला1 के अंतर्गत “भारत में दालों की मुद्रास्फीति: चना, तूर और मूंग का एक अध्ययन” शीर्षक से वर्किंग पेपर जारी किया। इस पेपर के सह-लेखक श्यामा जोस, संचित गुप्ता, मनीष कुमार प्रसाद, संदीप दास, आशीष थॉमस जॉर्ज, थंगज़ासन सोना, डी. सुगंथी और अशोक गुलाटी हैं।

यह पेपर तीन प्रमुख दालों - चना, तुअर /अरहर और मूंग का मूल्य निर्धारित करने वाले प्रमुख कारकों की पहचान करने का प्रयास करता है। यह माल सूची स्तरों, उत्पादन, खपत और व्यापार के माध्यम से मासिक स्टॉक का विश्लेषण करके आपूर्ति और मांग की गतिकी का मूल्यांकन करता है। यह मूल्य शृंखलाओं में अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है और उपभोक्ता रुपये में किसानों की हिस्सेदारी का अनुमान लगाता है।

इस पेपर के प्रमुख निष्कर्ष निम्नानुसार हैं :

  1. चने पर व्यय किए गए उपभोक्ता रुपये का लगभग 75 प्रतिशत किसानों के पास वापस आ जाता है, मूंग के लिए यह हिस्सा लगभग 70 प्रतिशत और अरहर के लिए 65 प्रतिशत है।
  2. ऑटोरिग्रैसिव डिस्ट्रिब्यूटेड लैग (एआरडीएल) मॉडल पर आधारित अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि स्टॉक-टू-यूज (एसटीयू) अनुपात का चने के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  3. बैलेंस शीट चर को शामिल करने वाला सीजनल ऑटोरिग्रैसिव इंटीग्रेटेड मूविंग एवरेज विद एक्सोजेनस फैक्टर्स (SARIMAX) मॉडल विभिन्न होरीज़ोन पर बेहतर पूर्वानुमान प्रदर्शन प्रदर्शित करता है।
  4. बैलेंस शीट चरों के सतत मूल्यांकन से भारत में दालों के मूल्य गतिकी की समझ में सुधार हो सकता है तथा उनकी मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत प्रतिक्रियाओं को निर्धारित करने में मदद मिल सकती है।

 

(पुनीत पंचोली)  
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2024-2025/1213


[1] भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों और कभी-कभी बाहरी सह-लेखकों, जब अनुसंधान संयुक्त रूप से किया जाता है, के अनुसंधान की प्रगति पर शोध प्रस्तुत करते हैं। इन्हें टिप्पणियों और अतिरिक्त चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं न कि उनसे संबंधित संस्थान (संस्थाओं) के। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्‍वरूप का ध्यान रखा जाए।  

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