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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 07/2023 असंपार्श्विकीकृत एक दिवसीय दर के पद्धति-आधारित निर्धारक तत्व: परिचालन प्रक्रिया और बाजार माइक्रोस्ट्रक्चर के पारस्परिक प्रभाव

4 जुलाई 2023

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 07/2023
असंपार्श्विकीकृत एक दिवसीय दर के पद्धति-आधारित निर्धारक तत्व: परिचालन प्रक्रिया और बाजार
माइक्रोस्ट्रक्चर के पारस्परिक प्रभाव

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला1 के अंतर्गत “असंपार्श्विकीकृत एक दिवसीय दर के पद्धति-आधारित निर्धारक तत्व: परिचालन प्रक्रिया और बाजार माइक्रोस्ट्रक्चर के पारस्परिक प्रभाव” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर जारी किया। पेपर का सह-लेखन एडविन प्रभु ए और इंद्रनील भट्टाचार्य ने किया है।

मौद्रिक नीति की वर्तमान परिचालन प्रक्रिया के अंतर्गत, भारतीय रिज़र्व बैंक ने सक्रिय चलनिधि प्रबंधन के माध्यम से इसे नीतिगत रेपो दर के साथ संरेखित करने के उद्देश्य से भारित औसत मांग दर (डब्ल्यूएसीआर) को परिचालन लक्ष्य के रूप में अपनाया है। तथापि, डब्ल्यूएसीआर कई व्यवहारिक, संस्थागत, बाजार माइक्रोस्ट्रक्चर और अन्य कारकों के पारस्परिक प्रभाव द्वारा निर्धारित होता है जो नीतिगत रेपो दर से कभी-कभी विचलन का कारण बनता है। यह पेपर मई 2011 से दिसंबर 2020 की अवधि के लिए दैनिक डेटा के आधार पर एक बहुपद लॉगिट मॉडल और मशीन लर्निंग तकनीकों का उपयोग करते हुए, उन प्रमुख करणीय कारकों को चित्रित करने का प्रयास करता है जो डब्ल्यूएसीआर को चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) गलियारे की सीमा से बाहर ले जाते हैं।

पेपर के मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

  1. चलनिधि की स्थिति, बाजार सहभागियों की नीतिगत प्रत्याशाएँ, आरक्षित रखरखाव अवधि के भीतर अल्पकालिक ब्याज दर की प्रत्याशाएँ, संरचनात्मक चलनिधि और गलियारे की चौड़ाई, डब्ल्यूएसीआर द्वारा एलएएफ गलियारे की ऊपरी सीमा को तोड़ने के कारण समझाने में महत्वपूर्ण थीं।

  2. आरक्षित रखरखाव अवधि के भीतर ब्याज दर प्रत्याशाएँ, नीति प्रत्याशाएँ और चलनिधि वितरण, डब्ल्यूएसीआर द्वारा एलएएफ गलियारे की निचली सीमा को तोड़ने के कारण समझाने में महत्वपूर्ण पाए गए।

  3. औसत सीमांत प्रभावों के संदर्भ में रिपोर्ट किए गए परिणाम, दुर्लभ घटनाओं की उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए भी मजबूत पाए गए।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/533


1 भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों और कभी-कभी बाहरी सह-लेखकों, जब अनुसंधान संयुक्त रूप से किया जाता है, के अनुसंधान की प्रगति पर शोध प्रस्तुत करते हैं। इन्हें टिप्पणियों और अतिरिक्त चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और जरूरी नहीं कि वे जिस संस्थान (संस्थाओं) से संबंधित हैं, उनके विचार हों। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्‍वरूप का ध्यान रखा जाए।

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