रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 10/2022: आधार दर और एमसीएलआर व्यवस्थाओं के अंतर्गत भारत में मौद्रिक संचारण: एक तुलनात्मक अध्ययन - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 10/2022: आधार दर और एमसीएलआर व्यवस्थाओं के अंतर्गत भारत में मौद्रिक संचारण: एक तुलनात्मक अध्ययन
12 अगस्त 2022 रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 10/2022: आधार दर और एमसीएलआर व्यवस्थाओं के अंतर्गत भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला1 के अंतर्गत "आधार दर और एमसीएलआर व्यवस्थाओं के अंतर्गत भारत में मौद्रिक संचारण: एक तुलनात्मक अध्ययन" शीर्षक से एक वर्किंग पेपर रखा। पेपर का लेखन साधन कुमार चट्टोपाध्याय और अर्घ्य कुसुम मित्र ने किया है। यह पेपर दो अलग-अलग व्यवस्थाओं- आधार दर तथा अरेलानो व बोवर (1995) द्वारा विकसित सिस्टम जीएमएम डायनेमिक पैनल डेटा मॉडल का उपयोग कर एमसीएलआर, के अंतर्गत देशी बैंकों की उधार ब्याज दरों पर मौद्रिक नीति कार्रवाई के प्रभाव अंतरण के स्तर की तुलना करता है। इस अध्ययन में 2012-13 की चौथी तिमाही से 2018-19 की दूसरी तिमाही की अवधि को शामिल किया गया है। नौ अलग-अलग बैंक-विशिष्ट विशेषताओं को लेकर, मौद्रिक संचारण पर प्रत्येक बैंक-विशिष्ट विशेषताओं के प्रभाव की जांच करने के लिए नौ अलग-अलग मॉडल स्थापित किए गए थे। परिणाम बताते हैं कि नीतिगत रेपो दर में 100 आधार अंक परिवर्तन से, आगे चलकर बैंकों द्वारा स्वीकृत नए रुपया ऋण पर भारित औसत उधार दर में, आधार दर व्यवस्था के अंतर्गत मात्र 11-19 आधार अंक की तुलना में एमसीएलआर व्यवस्था के अंतर्गत 26-47 आधार अंक परिवर्तन होता है। विभिन्न मॉडल, प्रभाव अंतरण के विभिन्न अनुमान प्रदान करते हैं जो संचारण प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले संबंधित प्रत्येक बैंक-विशिष्ट विशेषताओं के सापेक्ष मजबूती को दर्शाते हैं। यह पाया गया कि चुने गए मॉडल से निरपेक्ष, एमसीएलआर व्यवस्था के अंतर्गत संचारण, आधार दर व्यवस्था के अंतर्गत संचारण की तुलना में अधिक है। मौद्रिक नीति रुख के साथ चलनिधि प्रबंधन का संरेखण, लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) ढांचे की शुरूआत और मंद आर्थिक गतिविधि के कारण ऋण मांग में गिरावट, एमसीएलआर व्यवस्था के अंतर्गत बेहतर संचारण हेतु सहायक कारक हो सकते हैं। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2022-2023/711 1 भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों और कभी-कभी बाहरी सह-लेखकों, जब अनुसंधान संयुक्त रूप से किया जाता है, के अनुसंधान की प्रगति पर शोध प्रस्तुत करते हैं। इन्हें टिप्पणियों और आगे की चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और जरूरी नहीं कि वे जिस संस्थान (संस्थाओं) से संबंधित हैं, उनके विचार हों। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। |