रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 13/2020: ओवर-द-काउंटर मुद्रा डेरिवेटिव्स में मूल्य विभेदन - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 13/2020: ओवर-द-काउंटर मुद्रा डेरिवेटिव्स में मूल्य विभेदन
15 दिसंबर 2020 रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 13/2020: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला के तहत "ओवर-द-काउंटर मुद्रा डेरिवेटिव्स में मूल्य विभेदन" शीर्षक से एक वर्किंग पेपर रखा*। पेपर का लेखन अभिषेक कुमार और विद्या कामटे ने किया है। यह पत्र भारतीय ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) मुद्रा डेरिवेटिव्स बाजार में काफी मूल्य विभेदन की उपस्थिति पर अनुभवजन्य साक्ष्य प्रदान करता है। एकल डीलर प्रतिपक्ष के साथ लेनदेन करने वाले ग्राहकों ने 18 पैसे का औसतन मार्कअप भुगतान किया, जो कि दो डीलरों के साथ लेनदेन करने वाले ग्राहकों के लिए 9 पैसे और दस या अधिक डीलरों के साथ लेनदेन करने वाले ग्राहकों के लिए शून्य के करीब आता है। डीलर एक्सेस के कारण संभवतः यह मूल्य निर्धारण में सौदा-शक्ति की भूमिका का संकेत देता है। खुदरा ग्राहकों (व्यक्तियों, स्वामित्व फर्मों और छोटी फर्मों) और असूचीबद्ध फर्मों से क्रमशः 19 पैसे और 11 पैसे के उच्च मार्कअप शुल्क लिया गया था, जबकि इसकी तुलना में, सूचीबद्ध फर्मों और विदेशी निवेशकों ने 3 से 4 पैसे के बहुत कम मार्कअप का भुगतान किया था। बहुसंख्यक (83 प्रतिशत) ग्राहकों ने डीलर एक्सेस से संबंधित कठिनाइयों के कारण एकल डीलर प्रतिपक्ष संकेत के साथ लेनदेन किया। अध्ययन के निष्कर्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए बाजार पहुंच में सुधार के लिए एक स्थिति बनाते हैं जिसके परिणामस्वरूप ग्राहकों के लिए बेहतर मूल्य निर्धारण हो सके। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2020-2021/780 *. रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और इस पर अधिक चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। |