भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 3/2018: भारत में ग्रामीण मजदूरी गतिकी: मुद्रास्फीति क्या भूमिका निभाती है? - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 3/2018: भारत में ग्रामीण मजदूरी गतिकी: मुद्रास्फीति क्या भूमिका निभाती है?
25 अप्रैल 2018 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं. 3/2018: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “भारत में ग्रामीण मजदूरी गतिकी: मुद्रास्फीति क्या भूमिका निभाती है?” शीर्षक से वर्किंग पेपर उपलब्ध कराया है। यह पेपर सुजाता कुंडु द्वारा लिखा गया है। श्रम बाजार और मुद्रास्फीति के बीच लिंक को पारंपरिक रूप से मजदूरी में वृद्धि के जरिए देखा जाता है जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है और इस प्रकार उच्चतर कीमतें हो जाती हैं। इसलिए, मुद्रास्फीति को लक्ष्य बनाने वाले केंद्रीय बैंक के नजरिए से मजदूरी और कीमतों के बीच संबंध काफी ध्यान आकर्षित करता है क्योंकि मजदूरी गतिकी से मुद्रास्फीति के लिए अपसाइड जोखिम की संभावना हो सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रामीण आबादी के उल्लेखनीय भाग के चलते, यह पेपर मुद्रास्फीति विकास-पथ (ट्रेजेक्टरी) के लिए मजदूरी-कीमत स्पाइरल के जोखिम का आकलन करने के लिए जनवरी 2001 से नवंबर 2017 के दौरान भारत में ग्रामीण मजदूरी और कीमतों के बीच संबंध का अध्ययन करता है। पेपर में निष्कर्ष दिया गया है कि दीर्घावधि में सांकेतिक कृषि मजदूरी और गैर-कृषि मजदूरी दोनों ग्रामीण कीमतों के साथ सांख्यिकीय रूप से उल्लेखनीय सकारात्मक संबंध दर्शाती हैं। परिणाम भी सांकेतिक मजदूरी और कृषि मजदूरी पर ग्रामीण गैर-खेती (निर्माण क्षेत्र) के सांख्यिकीय रूप से उल्लेखनीय सकारात्मक प्रभाव के अच्छे तरह से बने रहने की ओर संकेत करते हैं। यह पेपर अध्ययन की अवधि के दौरान भारत में मजदूरी-कीमत स्पाइरल के जोखिम के लिए किसी भी प्रकार की प्रबल अनुभवजन्य मदद नहीं पाता है। * रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और इस पर अधिक चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। जोस जे. कट्टूर प्रेस प्रकाशनी: 2017-2018/2823 |