भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं.05/2023: उपभोक्ताओं के मन को पढ़ना – मुद्रास्फीति की प्रत्याशा का विश्लेषण - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं.05/2023: उपभोक्ताओं के मन को पढ़ना – मुद्रास्फीति की प्रत्याशा का विश्लेषण
18 अप्रैल 2023 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर सं.05/2023: उपभोक्ताओं के मन को पढ़ना – भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला1 के अंतर्गत "उपभोक्ताओं के मन को पढ़ना: मुद्रास्फीति की प्रत्याशा का विश्लेषण" शीर्षक से एक वर्किंग पेपर जारी किया। पेपर का लेखन पूर्णिमा शॉ ने किया है। परिवारों के उपभोग समूह में विषमता को प्रायः हेडलाइन मुद्रास्फीति संख्या से परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में विचलन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इस पेपर में, विषम जनसंख्या उपभोग समूह की अनुरूपता करके और समूह का नमूना लेकर औसत मुद्रास्फीति का अनुमान लगाकर इसे सत्यापित करने के लिए एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तावित किया गया है। यादृच्छिक दृष्टिकोण का उपयोग करके अनुमानित औसत मुद्रास्फीति, सर्वेक्षण संख्याओं के साथ निकटता प्रदर्शित करने में विफल रहती है। अतः, यह पेपर समूह संयोजन को डिजाइन करने के लिए वैकल्पिक तार्किक तरीकों का प्रस्ताव करता है और सबसे उपयुक्त तरीके की पहचान करता है जिसके उपयोग से अनुमानित प्रत्याशाएँ सर्वेक्षण संख्याओं के करीब और अच्छी तरह से सहसंबद्ध पाई जाती हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि नियमित उपयोग की वस्तुओं की मुद्रास्फीति में अचानक वृद्धि, आधिकारिक मुद्रास्फीति के आंकड़ों से परिवारों की मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं में विचलन को स्पष्ट कर सकती है। हेडलाइन मुद्रास्फीति से सर्वेक्षण प्रत्याशाओं के विचलन को, इस प्रकार, अन्य कारकों, यथा जनसांख्यिकीय विशेषताओं और मीडिया रिपोर्टों को एक्सपोजर, जो मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं के निर्माण को प्रभावित करते हैं, के अलावा प्रभावी ढंग से समझा जा सकता है। आधिकारिक मुद्रास्फीति के संबंध में मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं में असहमति के स्रोत (स्रोतों) की पहचान करने का यह प्रयास, मुद्रास्फीति विश्लेषण में उपयोग के लिए उपभोक्ताओं की मुद्रास्फीति संबंधी प्रत्याशाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2023-2024/78 1 भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर शृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों और कभी-कभी बाहरी सह-लेखकों, जब अनुसंधान संयुक्त रूप से किया जाता है, के अनुसंधान की प्रगति पर शोध प्रस्तुत करते हैं। इन्हें टिप्पणियों और आगे की चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और जरूरी नहीं कि वे जिस संस्थान (संस्थाओं) से संबंधित हैं, उनके विचार हों। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। |