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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 1: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए त्याग अनुपात का अनुमान लगाना–समय सापेक्षता दृष्टिकोण

11 जून 2015

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 1:
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए त्याग अनुपात का अनुमान लगाना–समय सापेक्षता दृष्टिकोण

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए त्याग अनुपात का अनुमान लगाना – समय सापेक्षता दृष्टिकोण” नामक वर्किंग पेपर डाला है। यह पेपर प्रतीक मित्रा, दिपांकर विस्वास और अनिर्बन सान्याल द्वारा लिखा गया है।

यह पेपर भारत के लिए उदारीकरण के बाद की अवधि के लिए त्याग अनुपातों का अनुमान लगाता है। 1970 के दशक के उत्तरार्ध में कड़ी मौद्रिक नीति ने अवस्फीतिकारी स्थिति उत्पन्न कर दी जिसके परिणामस्वरूप कई उन्नत देशों में मंदी आ गई। इसने अंतरिम अवधि में प्रवृत्ति मुद्रास्फीति को कम करने की लागत पर प्रकाश डाला। इस संदर्भ में ‘त्याग अनुपात’ को आउटपुट हानि के रूप में शुरू किया गया जो हानि अर्थव्यवस्था द्वारा दीर्घावधि मुद्रास्फीति में एक प्रतिशत अंक की कमी हासिल करने के लिए झेली गई। हाल के अध्ययन में तर्क दिया गया है कि ऐसे मामलों पर विचार किया जाए जहां मौद्रिक नीति में अस्थायी संचयी आय के अभिलाभों के माध्यम से बेरोजगारी को कम करने और लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने के लिए उच्चतर मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति के जीवन-यापन का त्याग शामिल हो।

समग्र आपूर्ति वक्र के स्लोप से त्याग अनुपात अनुमान का सभी अध्ययनों में अधिकाधिक उपयोग किया गया है। तथापि, इस पद्धति का उपयोग करने वाला त्याग अनुपात संपूर्ण आलोच्‍य अवधि में समय-सापेक्ष नहीं रहा है। समय-सापेक्षता को लेकर कुल आपूर्ति वक्र ढांचे की आलोचना से निपटने की चेष्‍टा इस पेपर में की गई है। साथ ही, कुल आपूर्ति वक्र ढांचे में समय-सापेक्षता के तत्‍व की शुरुआत कर त्‍याग अनुपात संबंधी मौजूदा अध्‍ययन का महत्‍व बढ़ाया गया है ताकि संवृद्धि और मुद्रास्‍फीति के बीच तालमेल का कालांतर में पता लगाया जा सके तथा समुचित सोपानों की पहचान कर त्‍याग अनुपात का मूल्‍यांकन किया जा सके।

लेखकों का मानना है कि त्याग अनुपात अनुमान उस समय के दौरान उच्चतर रहा है जब औसत मुद्रास्फीति कम रही और अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता से कम गति पर बढ़ रही थी। इसी तरह, जब औसत मुद्रास्फीति उच्च थी और उत्पादन अंतराल सकारात्मक था, तब त्याग अनुपात अनुमान कम पाया गया। ऐसा समझौताकारी व्यवहार फिलिप वक्र में उत्तलता की ओर संकेत करता है।

*रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरूआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्‍वरूप का ध्यान रखा जाए।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/2631

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