भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 10: भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का विश्लेषण - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 10: भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का विश्लेषण
13 अक्टूबर 2014 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 10: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “भारत में खाद्य मुद्रास्फीति का विश्लेषण” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर डाला है। यह पेपर थंग्झासन सोन्ना, डॉ. हिमांशु जोशी, एलिस सेबॅस्टियन और उपासना शर्मा द्वारा लिखा गया है। हाल के वर्षों में भारत में खाद्य मुद्रास्फीति दृढ़ता से बनी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि विविध घटक जैसेकि बढ़ती मांग – विशेषत: उच्चतर ग्रामीण वेतन के कारण से उत्पन्न, उत्पादों की बढ़ती कृषि लागत, प्रोटीनयुक्त पदार्थों के अनुकूल बदलता खपत का तरीका, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि और कुछ वर्षों में सूखे के कारण उच्चतर खाद्य मुद्रास्फीति बनी हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में, इस अध्ययन में खाद्य मुद्रास्फीति निर्धारण में इन घटकों के सांख्यिकीय महत्व पर प्रकाश डाला गया है। लेखकों द्वारा इसके लिए जोहान्सन की मल्टीवेरिएट कोइंटिग्रेशन रूपरेखा पर आधारित मानक कोइंटिग्रेशन एण्ड एरर करेक्शन कार्यप्रणाली का उपयोग किया गया है। अनुभवजन्य साक्ष्यों से पता चलता है कि भारत में दीर्घावधि में कुल खाद्य मुद्रास्फीति के निर्धारण में बढ़ते वास्तविक ग्रामीण वेतनों की अतिशय प्रभावी भूमिका रही है। सांख्यिकीय दृष्टि से भले ही महत्वपूर्ण हो, खाद्य मुद्रास्फीति पर चावल और गेहूं जैसे खाद्य फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि और निवेश लागत मुद्रास्फीति (वेतन को छोड़कर) जितनी मानी जाती है, उतनी असहनीय नहीं थी। उसी प्रकार से दीर्घावधि में खाद्य मुद्रास्फीति पर प्रोटीन व्यय का प्रभाव कमजोर रहा यद्यपि वह सांख्यिकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण था। अल्पावधि में खाद्य मुद्रास्फीति पर प्रभाव, ग्रामीण वास्तविक वेतनों, एमएसपी और निवेश मूल्य दबाव जैसे दीर्घावधि में महत्वपूर्ण समान घटकों से उत्पन्न होता है। अनुभवजन्य परिणामों से संकेत मिले हैं कि जैसे सामान्यत: माना गया था, खाद्य मुद्रास्फीति में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के प्रारंभ से कोई महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई। पेपर में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि चूंकि वास्तविक वेतनों में वृद्धि खाद्य मुद्रास्फीति को काफी प्रभावित करती है, खाद्य मूल्य दबाव को कम करने के लिए बढ़ते वास्तविक वेतनों के अनुरूप संशोधित तकनीकों और बढ़ते निवेशों के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है। दीर्घावधि में कृषि उत्पादनों में आपूर्ति-मांग अंतर को कम करके आपूर्ति तार्किकता में सुधार लाना और उचित कीमतों पर पर्याप्त खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करके आर्थिक गतिविधि की गति को बनाए रखने के लिए खाद्य मूल्य दबाव को नियंत्रित करना काफी महत्वपूर्ण होगा। * भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरूआत की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और इन्हें अभिमत प्राप्त करने और आगे चर्चा करने के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम गुण का ध्यान रखा जाए। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/759 |