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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 17 / 2012 भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में आस्ति देयता असंतुलन (एएलएम) - विस्‍तर, निरंतरता और कारण

5 दिसंबर 2012

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 17 / 2012
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में आस्ति देयता असंतुलन (एएलएम) - विस्‍तर, निरंतरता और कारण

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाईट पर ''भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में आस्ति देयता असंतुलन (एएलएम) - विस्‍तर, निरंतरता और कारण'' शीर्षक वर्किंग पेपर जारी किया। यह वर्किंग पेपर श्रीमती राखी पी.बी. द्वारा लिखित है।

हाल के वर्षों में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के मूलभूत सुविधा पोर्टफोलियों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इससे आस्ति देयता असंतुलनों के संबंध में कुछ चिंताएं खड़ी होती हैं क्‍योंकि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र प्राथमिक रूप से दीर्घावधि ऋण अपेक्षाओं को वित्त प्रदान करने के लिए अल्‍पावधि जमाराशियों पर निर्भर करता है। इससे भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में आस्ति देयता असंतुलन के सकारात्‍मक अंतराल के विस्‍तार, निरंतरता और संभावित कारणों के विश्‍लेषण के लिए अध्‍ययन को प्रोत्‍साहन मिला।

अध्‍ययन का यह निष्‍कर्ष है कि अध्‍ययन की अवधि के दौरान कुल दीघावधि आस्तियों की 14 प्रतशित की सीमा तक दीर्घावधि निपटान में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र ने आस्ति देयता असंतुलनों के सकारात्‍मक अंतराल का सृजन किया है। इसके अतिरिक्‍त आस्ति देयता असंतुलन समारात्‍मक अंतराल अन्‍य दीर्घावधि निपटानों की तुलना में 'पांच वर्षों से अधिक' की श्रेणी में उच्‍चतम था। तथापि, आस्ति देयता असंतुलन सकारात्‍मक अंतराल सकल स्‍तर पर उल्‍लेखनीय रूप से जारी नहीं था। आस्ति देयता असंतुलनों के परिणामस्‍वरूप संभावित कारकों में दीर्घावधि जमाराशियों में न्‍यूनतर वृद्धि, दीर्घावधि ऋणों में उच्‍चतर वृद्धि, उत्‍पादन अंतरालों में दीर्घावधि ऋणों की उच्‍च प्रतिक्रियाशीलता तथा उत्‍पादन अंतरालों में दीर्घावधि जमाराशियों की महत्‍वहीन प्रतिक्रियाशीलता शामिल है।

अध्‍ययन की राय है कि बैंकिंग क्षेत्र से आस्ति देयता असंतुलन सकारात्‍मक अंतराल को समाप्‍त करना विवेकपूर्ण नहीं हो सकता है क्‍योंकि ऋण मध्‍यस्‍थता अनिवार्य रूप से परिपक्‍वता और चचनिधि का रूपातंरण है। तथापि, बैंकिंग क्षेत्र की वित्तीय सुदृढ़ता की अभिरक्षा के लिए सुविधाजनक स्‍तरों पर इसे सीमित रखने की जरूरत है। बैंकों पर भार को सीमित करने के लिए अर्थव्‍यवस्‍था की दीर्घावधि ऋण अपेक्षाओं को वित्तीय सहायता के अन्‍य अवसरों को विकसित करना महत्‍वपूर्ण हो सकता है। दूसरी ओर बैंक दीर्घावधि ऋणों की विवेकपूर्ण सीमा के विस्‍तार के लिए अधिक दीर्घावधि जमाराशियां प्राप्‍त करने का भी प्रयास कर सकते हैं।

टिप्‍पणी: भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखलाएं लागू की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्‍टाफ सदस्‍यों की प्र‍गति में अनुसंधान का प्रतिनिधित्‍व करते हैं तथा इन्‍हेंस्‍पष्‍ट अभिमत और आगे चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है।  इन पेपर में व्‍यक्‍त विचार लेखकों के हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्‍पणियों लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग इसके अनंतिम स्‍वरूप को ध्‍यान में रखकर किए जाएं।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/943

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