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भारतीय रिज़र्व बैंक सामयिक पेपर श्रृंखला 2 : भारतीय बैंक यदि 100 प्रतिशत एनएसएफआर प्राप्त कर लेते हैं तो वे ऋण मोर्चे पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं

31 जनवरी 2014

भारतीय रिज़र्व बैंक सामयिक पेपर श्रृंखला 2 :
भारतीय बैंक यदि 100 प्रतिशत एनएसएफआर प्राप्त कर लेते हैं
तो वे ऋण मोर्चे पर अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक सामयिक पेपर श्रृंखला के अंतर्गत ‘निवल स्थिर निधियन अनुपात – भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए एक अनुमान’ शीर्षक वाला एक सामयिक पेपर डाला। इस सामयिक पेपर के लेखक डॉ पी.भुयान और डॉ ए.के.श्रीमानी हैं।

निवल स्थिर निधियन अनुपात (एनएसएफआर) वर्ष 2007 में शुरू हुए वित्तीय संकट के बाद बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बनी बासल समिति (बीसीबीएस) द्वारा लाए गए दो नए चलनिधि अनुपातों में से एक है। एनएसएफआर को मध्यावधि और दीर्घावधि स्थितियों में चलनिधि जोखिम को प्रकट करने वाली अपेक्षित स्थिर निधि के लिए उपलब्ध स्थिर निधि के प्रतिशत के रूप में पारिभाषित किया गया है और यह 100 से अधिक होना चाहिए। बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बनी बासल समिति (बीसीबीएस) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के आधार पर इस पेपर में भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबीज) के लिए मार्च 2012 के अंत में अनुपात का अनुमान लगाया गया है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष हैं :

  1. बहुत कम अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबीज) के संबंध में अनुमानित निवल स्थिर निधियन अनुपात (एनएसएफआर) 100 प्रतिशत से कम पाया गया है।

  2. 1,000 बिलियन से कम राशि वाले तुलन पत्र वाले अधिकांश बैंकों में अनुपात 100 प्रतिशत से कम पाया गया।

  3. भारत में कुछ बैंकों को कम-से-कम 100 प्रतिशत एनएसएफआर प्राप्त करने के लिए अपने तुलन पत्रों का पुनर्निर्धारण करना पड़ेगा।

  4. कम-से-कम 100 प्रतिशत एनएसएफआर प्राप्त करने के लिए प्रणाली स्तर पर (सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबीज) को मिलाकर) उधार दर कुछ आधार अंकों तक बढ़ेगा।

  5. तथापि एनएसएफआर प्राप्त करने के लिए बढ़े हुए उधार दर के प्रभाव को अन्य स्रोतों से बढ़ी हुई आय (ब्याजेतर आय) द्वारा कम किया जाएगा।

  6. 100 प्रतिशत एनएसएफआर के कार्यान्वयन के बाद भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (एससीबीज) ऋण मोर्चे पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे।

* भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सामयिक पेपर श्रृंखला मार्च 2011 से शुरू की गई। इन पेपरों में भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों को प्रस्तुत किया जाता है और टिप्पणियां प्राप्त करने और आगे चर्चा के उद्देश्य से इसे प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के होते हैं भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं। कृपया टिप्पणियां और अभिमत लेखकों को प्रेषित किए जाएं। पेपरों के अनंतिम स्वरूप को देखते हुए इनका उद्धरण और उपयोग किया जाए।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1539

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