भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 2: भारतीय रिज़र्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों में प्रतिफल का निर्धारण करने वाले कारकों का विश्लेषण किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 2: भारतीय रिज़र्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों में प्रतिफल का निर्धारण करने वाले कारकों का विश्लेषण किया
10 अगस्त 2015 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 2: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “भारत में सार्वजनिक ऋण प्रबंध और संबंधित मुद्दे” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर अपनी वेबसाइट पर डाला है। यह पेपर आंतरिक ऋण प्रबंध विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक के एल. लक्ष्मणन और आर. कौशल्या द्वारा लिखा गया है। यह पेपर अनुभवजन्य आधार पर चलनिधि की उपलब्धता में अचानक आने वाले आघातों के प्रभाव और प्राथमिक बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों के प्रतिफल के घट-बढ़ में ऐसी चलनिधि की लागत की जांच करता है। असीमित वीएआर ढांचे के अंतर्गत संवेग प्रतिक्रिया कार्य (इम्पल्स रिस्पोंस फंक्शन) दर्शाता है कि जब कम चलनिधि चरण में चलनिधि में सकारात्मक आघात होता है तो बॉण्ड प्रतिफल धीरे-धीरे कम हो जाता है और इसके बाद आघात लगने से पहले के स्तर से नीचे के स्तर पर स्थिर हो जाता है। रिपो दर के आघात का सभी परिपक्वताओं वाली प्रतिभूतियों के प्रतिफल पर सकारात्मक और तत्काल प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, रिपो दर में वृद्धि की प्रत्याशा का प्रतिफल पर महत्वपूर्ण और तत्काल सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भिन्नता वियोजन विश्लेषण (वैरियंस डिकंपोजिशन एनैलसिस) और टू मीन टी-टेस्ट से परिणामों में बल मिलता है। कुल मिलाकर, प्रणालीगत चलनिधि की उपलब्धता और ऐसी लघु अवधि की निधि की लागत भी महत्वपूर्ण कारक हैं जो प्राथमिक बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों के प्रतिफल का निर्धारण करते हैं। यह पेपर वर्षों से भारत में विशेषकर बाजार उधार में सार्वजनिक ऋण प्रबंध (पीडीएम) के विकास और संबंधित मुद्दों तथा प्रगति का पता लगाता है। भारत में पीडीएम ने स्पष्ट रूप से विकसित संस्थाओं, लिखतों, व्यापक निवेशकों, बाजार सृजन के मध्यस्थों तथा बाजार की कार्यकुशल मूलभूत सुविधा के साथ निष्क्रिय प्रणाली से बाजार आधारित प्रक्रिया की यात्रा तय की है। पीडीएम का एक उद्देश्य मध्यावधि से दीर्घावधि में उधार लागत को कम करना है। इस उद्देश्य के लिए दीर्घावधि और लघुकालिक बाजार कारकों का बॉण्ड के प्रतिफल पर प्रभाव पड़ता है। हालांकि बॉण्ड के प्रतिफल का निर्धारण व्यापक रूप से संचालित ब्याज दर, प्रत्याशित चलनिधि दर, अदायगी जोखिम, बाजार परिस्थितियों, आर्थिक समृद्धि और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं पर दीर्घावधि दृष्टिकोण द्वारा किया जाता है, फिर भी बॉण्डों में निवेश करने के लिए चलनिधि (निधि) की उपलब्धता और ऐसी चलनिधि की लागत जैसे लघुकालिक कारकों में होने वाले अचानक आघात प्रमुख भूमिका निभाते हैं। एक सुसंतुलित दृष्टिकोण जिसका लक्ष्य नवोन्मेषी प्रक्रियाओं, नीतियों और बाजार की कार्यकुशल मूलभूत सुविधा के साथ उचित उत्पाद मिश्रण (प्रॉडक्ट मिक्स) से मुद्दों और चुनौतियों का समाधान करना है, से पीडीएम संरचना और कार्यनीतियां सुदृढ़ बनेंगी। *रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरूआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। संगीता दास प्रेस प्रकाशनी : 2015-2016/358 |