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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 3 : निष्क्रिय बाह्य परिस्थितियों, उच्च मुद्रास्फीति और कम होते आस्ति-मूल्यों से भारतीय बैंकों के लिए आस्ति-गुणवत्ता समस्याएं

7 फरवरी 2014

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 3 :
निष्क्रिय बाह्य परिस्थितियों, उच्च मुद्रास्फीति और कम होते आस्ति-मूल्यों से
भारतीय बैंकों के लिए आस्ति-गुणवत्ता समस्याएं

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “भारतीय बैंकों की आस्ति-गुणवत्ता में पुनःउभरता तनाव: समष्टि–वित्तीय सहलग्नता” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर जारी किया। यह पेपर श्री शशिधर एम. लोकरे द्वारा लिखा गया है।

बैंक आधारित अर्थव्यवस्था में समग्र विकास और वित्तीय स्थिरता के संदर्भ में कार्यकुशल वित्तीय मध्यस्थता के लिए सुदृढ बैंकिंग प्रणाली अनिवार्य है। भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में समय के दौरान महत्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं और यद्यपि इसने वैश्विक वित्तीय संकट के बदतर परिणामों को झेला, फिर भी इसे संकट के बाद की अवधि में चुनौतीपूर्ण समष्टि-आर्थिक वातावरण का सामना करना पड़ा। हाल की अवधि में भारतीय बैंकों की आस्ति-गुणवत्ता अत्यधिक दबाव और बढ़ती संवीक्षा में रही। इस पृष्ठभूमि में इस पेपर में आस्ति-गुणवत्ता के ह्रास में अंतर्निहित समष्टि–वित्तीय सहलग्नता और सूक्ष्म स्तर के स्रोतों को समझने के लिए महत्वपूर्ण और अनुभवजन्य विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इस विश्लेषण में 2001 से 2013 के दौरान की अलग-अलग समय श्रृंखलाओं के तिमाही आंकड़ों का उपयोग किया गया है।

यह पेपर भारतीय संदर्भ में अग्रचक्रीयता के साक्ष्यों का पता लगाता है जैसाकि ऋण में पिछले तेजी-मंदी के दौरों तथा आर्थिक और ब्याज दर चक्रों में देखा गया है। पेपर के अनुसार, वित्तीय संकंट के बाद की निष्क्रिय बाह्य परिस्थितियों, उच्च मुद्रास्फीति और कम होते आस्ति-मूल्यों के कारण उधारकर्ताओं की ऋण चुकौती क्षमता को कम कर दिया है और इससे आस्ति-गुणवत्ता समस्या भी बढ़ी है। बैंक समूहों का क्षेत्रवार विश्लेषण मूलभूत सुविधाओं के क्षेत्र में, विशेषत: विद्युत, खुदरा, लघु उद्योगों और कृषि क्षेत्र में ऋण चुकौती में चूक की घटनाओं में वृद्धि दर्शाता है। भविष्य में कमजोर होती आर्थिक पृष्ठभूमि और वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण आस्ति-गुणवत्ता के अधिक तनाव में आने की संभावना है और इसका बैंकों की सुदृढ़ता और समष्टि वित्तीय स्थिरता पर महत्वपूर्ण असर होगा।

*भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखलाओं की शुरूआत की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान को दर्शाते हैं तथा इन्हें अभिमत प्राप्त करने और आगे चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है।  इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्पणियां लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों का उद्धरण और उपयोग इनके अनंतिम स्वरूप को ध्यान में रखकर किया जाए।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1588

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