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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 4 : आगामी सुधार और कारोबार चक्रों का सामना करने के लिए राजकोषीय नीति को सक्षम बनाने हेतु आवश्यक बाध्यकारी ढ़ांचा

25 फरवरी 2014

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 4 :
आगामी सुधार और कारोबार चक्रों का सामना करने के लिए राजकोषीय नीति को सक्षम बनाने हेतु आवश्यक बाध्यकारी ढ़ांचा

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “भारत के लिए चक्रीय रूप से समायोजित राजकोषीय रूझान की मात्रा का निर्धारण” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर जारी किया। यह पेपर श्रीमती संगीता मिश्रा और डॉ. सौरभ घोष द्वारा लिखा गया है।

सरकार के राजकोषीय रूझान को सामान्यत: हेडलाइन राजकोषीय शेषराशि के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। तथापि राजकोषीय नीति पर कारोबारी चक्रों की प्रमुख भूमिका तथा इसके विपरीत भूमिका पर विचार करते हुए इस परिपाटी की नीतिगत साहित्य में आलोचना की जा रही है। आईएमएफ द्वारा अर्थव्यवस्थाओं को चक्रीय रूप से समायोजित/संरचनागत शेषराशि के मामले में राजकोषीय रूझान को अपनाने और प्रकाशित करने के लिए निरंतर रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। बहुत से देश इसे अपने राजकोषीय नियमों में भी शामिल कर रहे हैं। साहित्य में इस हाल की चर्चा की सूचना एकत्र करके पेपर में भारत के लिए कारोबारी चक्र समायोजित राजकोषीय रूझान की पहचान करने और उसे अलग करने का प्रयास किया गया है, इसके लिए आईएमएफ पद्धति और संभाव्य परिणाम अनुमानों के दायरे का उपयोग किया गया है जिसमें वर्ष 2000 के समय से ध्यान केंद्रित किया गया है।

अनुभवजन्य निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भारत के लिए समायोजित राजकोषीय रूझान को नियंत्रित करने में प्रारंभिक सफलता के बाद, इसमें संकट के समय के दौरान काफी वृद्धि हुई। बाद के वर्षों में इस प्रोत्साहन के कुछ भाग को वापस लिया जा रहा था यद्यपि परिणाम अंतराल सकारात्मक (2009-11) रहा और मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई। यद्यपि 2008-09 के बाद राजकोषीय रूझान विस्तारकारी रहा है, राजकोषीय भावना अर्थात हाल की अवधि में राजकोषीय रूझान में कम परिवर्तन हुए हैं जो एक सकारात्मक गतिविधि है। पेपर में आगामी सुधारों और बाध्यकारी ढ़ांचे की मांग की गई है जिससे कि राजकोषीय नीति कारोबारी चक्र का सामना कर सके।

*भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखलाएं लागू की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इन्हें स्पष्ट अभिमत और आगे चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्पणियां लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग इसके अनंतिम स्वरूप को ध्यान में रखकर किए जाएं।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1701

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