भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 7: भारत में राज्य स्तर पर ऋण स्थिति संधारणीय है किंतु चिंताएं बनी हुई हैं - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 7: भारत में राज्य स्तर पर ऋण स्थिति संधारणीय है किंतु चिंताएं बनी हुई हैं
18 जुलाई 2014 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 7: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला के अंतर्गत “भारत में राज्य स्तर पर ऋण संधारणीयता” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर जारी किया है। यह पेपर बलबीर कौर, अत्री मुखर्जी, नीरज कुमार और आनन्द प्रकाश एक्का द्वारा लिखा गया है। भारत में राज्य सरकारों की ऋण स्थिति में पिछले दशक में काफी सुधार हुआ है जो अनुकूल समष्टि-आर्थिक परिस्थितियां और केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा नीतिगत प्रयास दर्शाती है। तथापि वृद्धि में हाल की मंदी और वित्तीय बाजारों में अस्थिरता से भारत में राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति के बारे नई चिंताएं उत्पन्न हो गई हैं। इस पृष्ठभूमि में वर्तमान अध्ययन भारत में उप-राष्ट्रीय स्तर पर ऋण संधारणीयता के विषय पर पुनः विचार करता है। संधारणीयता विश्लेषण एक सूचक विश्लेषण और अंतर-अस्थायी बजट अवरोध तथा एक पैनल आंकड़ा ढांचे में राजकोषीय प्रतिक्रिया कार्य के अनुभवजन्य अनुमान पर आधारित है और यह वर्ष 1980-81 से 2012-13 तक की अवधि के लिए 20 भारतीय राज्यों को कवर करता है। यह दर्शाता है कि राज्य स्तर पर ऋण स्थिति लंबी अवधि में संधारणीय है। तथापि, अलग-अलग स्तरीय विश्लेषण दर्शाता है कि भारतीय राज्यों की ऋण स्थिति में समग्र सुधार के बावजूद कुछ राज्य राजकोषीय तनाव और बढ़ते ऋण भार के संकेत दिखा रहे हैं। प्रमुख रूप से राज्य सरकारों द्वारा गारंटियों के निर्गम के रूप में आकस्मिक देयताएं चिंता का अन्य क्षेत्र बनी हुई हैं। आकस्मिक देयताओं की सुदृढ़ उपस्थिति राज्यों की ऋण स्थिति के संपूर्ण आकलन की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है, इसके लिए राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों के परिचालन के प्रभाव सहित उनकी बजटेतर राजकोषीय स्थिति का अनुमान लगाया गया है। * भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरूआत की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और इन्हें अभिमत प्राप्त करने और आगे चर्चा करने के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम गुण का ध्यान रखा जाए। संगीता दास प्रेस प्रकाशनी: 2014-2015/127 |