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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला - 7 भारत में सरकारी व्यय परिवर्धकों का आकार: एक संरचनात्मक वीएआर विश्लेषण

18 सितंबर 2013

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला - 7
भारत में सरकारी व्यय परिवर्धकों का आकार:
एक संरचनात्मक वीएआर विश्लेषण

रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर “भारत में सरकारी व्यय परिवर्धकों का आकार: एक संरचनात्मक वीएआर विश्लेषण” शीर्षक वाला वर्किंग पेपर जारी किया। यह पेपर डॉ. राजीव जैन और श्री प्रभात कुमार द्वारा लिखा गया है।

हाल के वर्षों में ऋण बाजार और बैंकिंग प्रणाली में वैश्विक वित्तीय संकट द्वारा उत्पन्न नकारात्मक समष्टि आर्थिक आघातों को कम करने के लिए देशों में सक्रिय राजकोषीय नीति का उपयोग किया गया है। परिणामस्वरूप इससे स्थिरता साधन के रूप में राजकोषीय नीति की संभाव्य प्रभाव क्षमता के संबंध में नीति निर्माताओं और अनुसंधानकर्ताओं के बीच अत्यधिक चर्चा शुरू हो गई। भारत में भी केन्द्रीय सरकार ने दिसंबर 2008 - मार्च 2009 के दौरान तीन प्रोत्साहन पैकेज शुरू किए। इस प्रकार व्यय परिवर्धकों के आकार का अनुमान लगाना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल राजकोषीय नीति की गुणवत्ता और प्रभाव क्षमता दर्शाता है बल्कि महत्वपूर्ण भी हो जाता है जब विश्वसनीय राजकोषीय समेकन शुरू करने की आवश्यकता होती है।

इस पृष्ठभूमि पर “भारत में सरकारी व्यय परिवर्धकों का आकार: एक संरचनात्मक वीएआर विश्लेषण” अध्ययन शुरू किया गया जिसमें 1980-81 से 2011-12 की अवधि के लिए वार्षिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए केन्द्रीय और राज्य सरकारों के स्तर पर व्यय परिवर्धकों के आकार का अनुमान लगाया गया। भारत के सकल घरेलू उत्पाद पर सरकारी व्यय की विभिन्न श्रेणियों के प्रभाव का आकलन करने के लिए संरचनात्मक सदिश स्व-प्रतिगमन ढांचे का उपयोग किया गया। इस पेपर के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैः

  • यह अनुमान लगाया गया है कि केन्द्र और राज्यों का संयुक्त व्यय सकल घरेलू उत्पाद पर 0.59 का परिवर्धक प्रभाव डालता है। चूंकि राजस्व व्यय का सरकार के दोनों स्तरों पर कुल व्यय में प्रमुख हिस्सा है, समग्र व्यय के लिए परिवर्धक के प्रभाव का अनुमान एक से कम लगाया गया है और यह पाया गया है कि आघात के प्रथम वर्ष के बाद सकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाता है।

  • राज्य सरकारों के व्यय की सभी श्रेणियों के लिए परिवर्धक के आकार का अनुमान केन्द्र सरकार की तुलना में अधिक है। जैसाकि पहले अनुमान लगाया गया था, केन्द्र और राज्यों दोनों में राजस्व व्यय की तुलना में पूंजी परिव्यय अधिक वृद्धि प्रेरित और अधिक प्रभाव वाला पाया गया है।

  • अनुभवजन्य निष्कर्ष पूंजी परिव्यय और व्यय के अधिक विकेन्द्रीकरण के लिए व्यय की संरचना में परिवर्तन की आवश्यकता का सुझाव देते हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला शुरू की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान को प्रस्तुत करते हैं और टिप्पणियां और चर्चा के लिए इनका प्रसार किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के विचार होते हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचार नहीं होते हैं। टिप्पणियां और अभिमत लेखकों को भेजे जा सकते हैं। उद्धृरण और इन पेपरों के उपयोग में अनंतिम गुण का ध्यान रखा जाए।

अल्पना किल्लावाला
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/592

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