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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 8: भारत के लिए एक वित्तीय स्थिति सूचकांक

28 अगस्त 2014

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 8: भारत के लिए एक वित्तीय स्थिति सूचकांक

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत “भारत के लिए एक वित्तीय स्थिति सूचकांक” शीर्षक से एक वर्किंग पेपर डाला है। यह पेपर आनन्द शंकर द्वारा लिखा गया है।

वित्तीय बाजार चर वस्तुओं में अर्थव्यवस्था के भविष्य की स्थिति के बारे में सूचना निहित है। प्रायः वित्तीय चर वस्तुओं में बदलाव वास्तविक अर्थव्यवस्था में बदलावों में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रायः वित्तीय चर वस्तुएं आर्थिक एजेंटों को विपरीत संकेत भेजते हैं। इसके अतिरिक्त संकट के समय के दौरान विशेषकर शुरूआती घटनाओं के दाएं-बाएं वित्तीय बाजारों में तीव्र सूचना असमानता विद्यमान रही है। मुख्य सूचना असमानता का बड़ा महत्व है क्योंकि समयबद्ध और सही सूचना के अभाव में अनिश्चितता बनी रहती है और संकट गहरा हो जाता है। सूचना असमानता के संकट पर नियंत्रण पाने के लिए वित्तीय स्थिति सूचकांकों (एफसीआई) का निर्माण किया जाता है।

यहां तक कि वित्तीय बाजार तनाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता है, यह वित्तीय बाजार चर-वस्तुओं के संचलन में अपने आप दिखाई देता है। यह पेपर भारत के लिए क्रमसूचक और समसामयिक वित्तीय स्थिति सूचकांक के निर्माण द्वारा वित्तीय स्थितियों की दशा प्राप्त करने का प्रयास करता है। यह सूचकांक मुद्रा, बांड, विदेशी मुद्रा और शेयर बाजारों में सूचना सामग्री का संश्लेषण है। सूचकांक दर्शाता है कि एक बाजार में कड़ी वित्तीय स्थितियां दूसरे बाजार में उदार स्थितियां उत्पन्न कर सकती हैं और इस प्रकार समग्र स्थिति कड़ी हो जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि नीति के संचालन के लिए एक ही समय पर सभी बाजारों में वित्तीय स्थितियों पर ध्यान दिया जाए। यह पेपर वित्तीय स्थितियों और सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि जैसे वास्तविक चरों की चर्चा के संदर्भ में कुछ रोचक अनुसंधान संबंधी प्रश्न भी करता है।

* भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरूआत की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और इन्हें अभिमत प्राप्त करने और आगे चर्चा करने के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम गुण का ध्यान रखा जाए।

संगीता दास
निदेशक

प्रेस प्रकाशनी: 2014-2015/434

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