अगस्त 2011 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की वर्किंग पेपर श्रृंखला - आरबीआई - Reserve Bank of India
अगस्त 2011 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की वर्किंग पेपर श्रृंखला
8 सितंबर 2011 अगस्त 2011 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की वर्किंग पेपर श्रृंखला भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर दो वर्किंग पेपर डाला। i) ए.के.श्रीमानी, स्नेहार्थी गायन और रणजीव द्वारा प्रस्तुत विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि के इष्टतम आस्ति आबंटन पर हाल के वित्तीय संकट के प्रभाव वित्तीय संकट के बाद विकसित वैश्विक बाजारों में प्रतिलाभ अत्यंत निम्न स्तर पर बना रहा है और इसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधि के प्रत्यायोजन द्वारा उत्पन्न प्रतिफल बारंबार नकारात्मक प्रतिफल प्राप्त करने के बढ़ते हुए जोखिम के साथ अत्यंत न्यूनतर रहा है। इस वर्किंग पेपर में लेखकों ने केंद्रीय बैंकों के लिए वर्तमान न्यूनतर प्रतिलाभ प्रतिदृश्य के अंतर्गत उनकी प्रारक्षित निधि स्तर पर आधारित इष्टतम पोर्टफोलियो सृजित करने के लिए कुछ रणनीतियों की चर्चा की है। संकट के बाद की अवधि के दौरान इष्टतम आस्ति आबंटन सकंट पूर्व अवधि के लिए बारबेल संरचना के बदले एक संकेंद्रित पोर्टफोलियो का प्रस्ताव करता है। लेखकों की राय है कि केंद्रीय बैंक अवधि में बढ़ोतरी के द्वारा उसी मात्रा के लिए संकटपूर्व परिदृश्य की अपेक्षा संकट के बाद के परिदृश्य में प्रतिफल में उच्चतर बढ़ोतरी प्राप्त कर सकते हैं। तथापि, संकट के बाद की अवधि में आवश्यक रूप से नकारात्मक प्रतिफल की संभावना बढ़ेगी। लेखकों ने इस न्यूनतर प्रतिलाभ परिदृश्य के अंतर्गत पोर्टफोलियो प्रतिलाभ बढ़ाने तथा नकारात्मक प्रतिफल की संभावना को कम करने के लिए एक वैकल्पिक रणनीति का पता करने का प्रयास भी किया है। लेखकों का यह निष्कर्ष है कि मध्यावधि/दीर्घावधि लक्ष्य अवधि के साथ आवश्यक प्रतिलाभ सहित केंद्रीय बैंक आवश्यक प्रतिफल और प्रतिलाभ में तेज़ी प्राप्त कर सकते हैं तथा अवधि में विस्तार किए बिना भी वैश्विक निवेश के भीतर उभरते हुए एशिया सहित नकारात्मक प्रतिलाभ की संभावना को कम कर सकते हैं। ii) जीवन कुमार खुंद्रकपम और दीपिका दास द्वारा प्रस्तुत भारत में मौद्रिक नीति और खाद्यान्न कीमतें एक वेक्टर चूक सुधार प्रतिदर्श (वीइसीएम) का उपयोग करते हुए यह पेपर खाद्यान्न और विनिर्मित कीमतों की संगत प्रतिक्रिया को भारत में वर्ष 2001 : पहली तिमाही से वर्ष 2010 : दूसरी तिमाही की अवधि के दौरान ब्याज दर और मुद्रा आपूर्ति में परिवर्तनों की जॉंच करता है। इसका निष्कर्ष है कि दीर्घावधि में जबकि खाद्यान्न और विनिर्मित कीमतों दोनों के मूल्य में बढ़ोतरी का कारण मुद्रा आपूर्ति है, मॉंग दर में बढ़ोतरी का केवल विनिर्मित कीमतों पर ही प्रभाव पड़ता है। तथापि, मुद्रा आपूर्ति का अधिक प्रभाव विनिर्मित कीमतों की अपेक्षा खाद्यान्न की कीमतों पर अधिक पड़ता है। मुद्रा की दीर्घावधि निष्क्रियता का कोई प्रमाण नहीं है क्येांकि मुद्रा आपूर्ति में बढ़ोतरी से कीमतों में समानुपातिक परिवर्तन से कम प्रभाव पड़ता है। अल्पावधि में खाद्यान्न और विनिर्मित उत्पाद दोनों की कीमतों में मौद्रिक आघातों के बाद उनके संबंधित दीर्षावधि समतुल्यन से तेज़ वृद्धि होती है। तथापि यह तीव्र वृद्धि विनिर्मित कीमतों की अपेक्षा खाद्यान्न कीमतों में अधिक होती है। इसके अतिरिक्त अल्पावधि में मॉंग दर का उल्लेखनीय प्रभाव केवल विनिर्मित कीमतों पर पड़ता है जबकि मुद्रा आपूर्ति का प्रभाव केवल खाद्यान्न कीमतों पर महत्वपूर्ण है। खाद्यान्न और विनिर्मित कीमतें दोनों की बढ़ोतरी से मॉंग दर में तेज़ी आती है लेकिन मुद्रा आपूर्ति में खाद्यान्न कीमतों में बढ़ोतरी से वृद्धि होती है तथा विनिर्मित कीमतों में बढ़ोतरी से कमी होती है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस वर्ष अप्रैल में रिज़र्व बैंक स्टाफ के लिए उनके अनुसंधान अध्ययन के साथ-साथ सूचित अनुसंधानकर्ताओं से प्रतिसूचना प्राप्त करने हेतु एक मंच उपलब्ध कराने के लिए 'भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला' (आरबीआइ-डब्ल्यूपी) लागू की है। आरबीआइ वर्किंग पेपर श्रृंखला सहित रिज़र्व बैंक के सभी अनुसंधान प्रकाशनों में व्यक्त विचार आवश्यक रूप से रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और इस प्रकार इनकी भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाले विचारों के रूप में रिपोर्ट नहीं की जानी चाहिए। इन पेपरों पर प्रतिसूचना, यदि हो तो उन्हें इस अनुसंधान अध्ययन से संबंधित लेखकों को सूचित किया जा सकता है। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/380 |