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सितंबर 2011 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 17

10 अक्‍टूबर 2011

सितंबर 2011 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं.17

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज सितीकांता पट्टनाईक और जी.वी.नाधनील द्वारा लिखित ''निरंतर उच्‍च मुद्रास्‍फीति का असर विकास पर क्‍यों पड़ता है? भारत के लिए मुद्रास्‍फीति की सीमा रेखा स्‍तर का एक अनुभवजन्‍य आकलन'' विषय पर वर्किंग पेपर जारी किया। पेपर में विकास-मुद्रास्‍फीति की दुविधा के तर्क पर पुन: विचार किया गया है और सीमा रेखा स्‍तर के ऊपर क्‍यों निरंतर व्‍यापक मुद्रास्‍फीति विकास वक्र रेखा के लिए बढ़ती जोखिम है यह दर्शाने के लिए भारत के लिए मुद्रास्‍फीति की सीमा रेखा का अनुभवजन्‍य अनुमान का प्रयोग किया गया है। पेपर में एकाधिक माध्‍यमों की चर्चा की गई जिसके द्वारा मुद्रास्‍फीति विकास को रोकती है। साथ ही, आर्थिक विकास तथा मुद्रास्‍फीति के बीच अनुभवजन्‍य संबंधों में गैर-रैखिक तथा सीमा रेखा प्रभाव के विभिन्‍न स्‍वरूप को उजागर करने के लिए आर्थिक विकास और मुद्रास्‍फीति के बीच संबंधों में सीमापार देशों का साक्ष्‍य का संक्षिप्‍त उल्‍लेख किया गया है। अनुमानिक और अनुभवजन्‍य अनुसंधान की समीक्षा से इस पेपर का मुख्‍य निष्‍कर्ष यह है कि ''मुद्रास्‍फीति की एक सीमा रेखा स्‍तर पार हो जाने के बाद पारंपरिक फिलिप्‍य वक्र पीछे की ओर मुड़ता है।'' पेपर में वार्षिक ऑंकड़ो और तीन विभिन्‍न पद्धतियों पर आधारित मुद्रास्‍फीति सीमा रेखा का अनुभवजन्‍य अनुमान की गणना की गई है। अर्थात् (i) स्‍पीलन रग्रेशन, (ii) विकास मुद्रास्‍फीति का गैर-रेखीय विशिष्‍ट संबंध और (iii) वेक्‍टर ऑटो रग्रेशन (वीएआर)। तदनुसार पेपर का निष्‍कर्ष है कि भारत में मुद्रास्‍फीति की सीमा रेखा स्‍तर लगभग 6 प्रतिशत पर है।

पेपर में दर्शाया गया है कि लगभग 6 प्रतिशत पर ''विकास को अधिकतम करते हुए मुद्रास्‍फीति की सीमा रेखा रखना'' और ''कल्‍याण को अधिकतम करते हुए मुद्रास्‍फीति को कम रखना'' उद्देश्‍य के बीच संतुलन की आवश्‍यकता के साथ भारतीय रिज़र्व बैंक का मुद्रास्‍फीति लक्ष्‍य को निरंतर 4 से 4.5 प्रतिशत की स्‍तर पर बनाए रखने का अनुमान है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस वर्ष अप्रैल में ''भारतीय रिज़र्व बैंक कार्यकारी पेपर श्रृंखला (आरबीआइ-डब्‍ल्‍यूपी) शुरू की ताकि रिज़र्व बैंक के स्‍टाफ को अपने अनुसंधान अध्‍ययन को प्रस्‍तुत करने के लिए एक मंच मिले और जानकार अनुसंधानकर्ताओं से प्रतिसूचना प्राप्‍त हो सकें।

आरबीआइ वर्किंग पेपर श्रृंखला सहित रिज़र्व बैंक के सभी अनुसंधान प्रकाशनों में व्‍यक्‍त विचार आवश्‍यक रूप से रिज़र्व बैंक के विचारों को नहीं दर्शाते हैं और इस प्रकार भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों के प्रतिनिधित्‍व के रूप में उनकी रिपोर्ट नहीं की जानी चाहिए।

इन पेपरों पर प्रतिसूचना यदि है, तो उसे अनुसंधान अध्‍ययनों के संबंधित लेखकों को भेजी जा सकती है।

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/554

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