भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 4: क्या विनिमय दर भारत में कार्पोरेट लाभप्रदता को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है? - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 4: क्या विनिमय दर भारत में कार्पोरेट लाभप्रदता को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है?
17 अगस्त 2015 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 4: भारतीय रिज़र्व बैंक ने “क्या विनिमय दर भारत में कार्पोरेट लाभप्रदता को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है?” विषय पर एक वर्किंग पेपर अपनी वेबसाइट पर आज उपलब्ध कराया है। यह पेपर* सांख्यिकी और सूचना प्रबंध विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक के शवोनी नंदी, देबाशीष मजूमदार और अनुजीत मित्रा द्वारा संयुक्त रूप से लिखा गया है। भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र ने पिछले दो दशकों में काफी वृद्धि दर्ज की है और यह अर्थव्यवस्था का एक अंग बनने के साथ-साथ उसका एक प्रमुख कार्यनीतिगत भाग बन गया है। इस पेपर में दो अलग व्यवस्थाओं के अंतर्गत कॉर्पोरेट लाभप्रदता की दृष्टि से फर्म-विशेष और समष्टि-आर्थिक कारकों के महत्व का मूल्यांकन करने हेतु कॉर्पोरेट कार्यनिष्पादन का विश्लेषण किया गया है। वर्ष 2001 से कॉर्पोरेट क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास के कारण लाभप्रदता को प्रभावित करने वाले कारकों में बदलाव किया गया है। 2002-2007 के दौरान मोटे तौर पर फर्म के आकार, लीवरेज, चलनिधि आदि जैसे विशिष्ट संकेतकों से कॉर्पोरेट लाभप्रदता प्रभावित हुई। तथापि, 2009 से घरेलू अर्थव्यवस्था के साथ उसका जुड़ाव और बढ़ रहा है तथा वह बाहरी झटकों की दृष्टि से और अधिक संवेदनशील भी है। कॉर्पोरेट लाभप्रदता के निर्धारण हेतु विनिमय दर, ब्याज दर तथा डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति दर जैसे समष्टि-आर्थिक कारकों का महत्व भी बढ़ गया है। जहां तक समष्टि-आर्थिक संकेतकों का प्रश्न है, हाल के समय में अमेरिकी डॉलर/भारतीय रुपया की विनिमय दर का महत्व कई गुना बढ़ गया है। जब रुपया में मूल्यवृद्धि होती हो तो उससे लघु अवधि में कॉर्पोरेट लाभप्रदता बढ़ने की संभावना है, हालांकि दीर्घकालिक प्रभाव आयात और निर्यात के लचीलेपन पर निर्भर करेंगे। संकटोत्तर अवधि में भारत में कई बड़े निजी गैर-वित्तीय कॉर्पोरेट विदेशों से आसानी से मिलने वाली चलनिधि का लाभ उठाते हुए वित्तीय मध्यस्थों जैसे व्यवहार करने लगे हैं। इससे उनकी लाभप्रदता पर विनिमय दर अस्थिरता का प्रभाव बढ़ गया है। अत: फोरेक्स बाज़ार के दबावग्रस्त होने पर यह पाया जाता है कि विनिमय दर कॉर्पोरेट लाभप्रदता के निर्धारण का एक-मात्र महत्वपूर्ण प्रमुख कारक होती है और यह अन्य सभी कारकों पर हावी हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो घरेलू मुद्रा में लगातार अत्यधिक मूल्यह्रास होने की परिस्थिति में कॉर्पोरेट क्षेत्र का कार्यनिष्पादन नकारात्मक ढंग से प्रभावित करने की संभावना है, जिससे परिणामस्वरूप बैंकिंग क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। **रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। अल्पना किल्लावाला प्रेस प्रकाशनी: 2015-2016/421 |