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भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं.5: भारत के संभावित उत्‍पादन पर पुनर्विचार किया जाना

21 अप्रैल 2016

भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं.5:
भारत के संभावित उत्‍पादन पर पुनर्विचार किया जाना

भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत ‘भारत के संभावित उत्‍पादन पर पुनर्विचार किया जाना’ नामक वर्किंग पेपर अपनी वेबसाइट पर उपलब्‍ध कराया। यह पेपर बीरेंद्र कुमार भोई और हरींद्र कुमार बेहरा द्वारा संयुक्‍त रूप से तैयार किया गया है।

भारत में आधार वर्ष और उसमें अंतर्निहित पद्धति में परिवर्तन होने के साथ जीडीपी आकलनों में संशोधन किए जाने की वजह से ‘संभावित संवृद्धि और उत्‍पाद का अंतर’ पर विवाद और गहन हो गया है। इस पेपर में 1980 की दूसरी तिमाही-2015 की चौथी तिमाही की अवधि के लिए पारंपरिक सांख्यिकीय पद्धतियों के माध्‍यम से संभावित उत्‍पादन के आकलन पर पुनर्विचार किए जाने के अलावा उत्‍पादन कार्य दृष्टिकोण का प्रयोग करते हुए तिमाही आधार पर संभावित संवृद्धि और उत्‍पादन के अंतर का आकलन भारत में पहली बार प्रस्‍तुत किया गया है। विभिन्‍न पद्धतियों से प्राप्‍त परिणामों से यह पता चलता है कि उत्‍पादन अंतराल अर्थात अपने संभावित स्‍तर और वास्‍तविक उत्‍पाद स्‍तर के अंतर का प्रतिशत, 2012 की तीसरी तिमाही से ऋणात्‍मक रहा है, हालांकि यह अंतर धीरे-धीरे घट रहा है। विभिन्‍न आकलनों के अनुसार, भारत की संभावित संवृद्धि 1980 के दशकों में लगभग 5 प्रतिशत के निचले स्‍तर से 1992-2002 के दौरान लगभग 6 प्रतिशत पर पहुंच गई और यह 2003-2008 के दौरान बढ़कर लगभग 8 प्रतिशत पर दर्ज हुई। तथापि, वैश्विक वित्‍तीय संकट के प्रभावों के कारण संभावित संवृद्धि काफी गिरावट दर्ज करते हुए 2009-2015 के दौरान लगभग 7 प्रतिशत पर पहुंच गई। उत्पादन कार्य विश्लेषण आगे यह पुष्टि करता है कि मुख्य रूप से पूंजीगत स्टॉकों के योगदान में गिरावट और कुल कारक उत्पादकता के कारण हाल के वर्षों में संभावित वृद्धि कम हो गई है। अर्ध-संरचनात्मक तकनीक अर्थात मल्टीवैरियट कॉलमैन फिल्टर में दर्शाया गया है कि हाल की अवधि के लिए भारत की संभावित वृद्धि 95 प्रतिशत की विश्वास अंतर पर (+/-) 50 आधार अंकों के बैंड के साथ लगभग 6.8 प्रतिशत है। भारत की संभावित वृद्धि को तेज करने का मुख्य कारण पूंजी निर्माण के उच्चतर स्तर में निहित है क्योंकि इसके योगदान का श्रम के योगदान और कुल कारक उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है।

*रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्‍वरूप का ध्यान रखा जाए।

अजीत प्रसाद
सहायक परामर्शदाता

प्रेस प्रकाशनी : 2015-2016/2467

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