आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला संख्या 6/2017: बासल फ्रेमवर्क में क्रेडिट जोखिम के लिए पूंजी गणना के मानकीकृत दृष्टिकोण के तहत जोखिम भार – भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के डिफ़ॉल्ट अनुभव का विश्लेषण - आरबीआई - Reserve Bank of India
आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला संख्या 6/2017: बासल फ्रेमवर्क में क्रेडिट जोखिम के लिए पूंजी गणना के मानकीकृत दृष्टिकोण के तहत जोखिम भार – भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के डिफ़ॉल्ट अनुभव का विश्लेषण
05 अप्रैल 2017 आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला संख्या 6/2017: भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर आज भारतीय रिजर्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला के तहत* अजय कुमार चौधरी, बी नेताजी और अनिर्बान बसु द्वारा लिखित "बासल फ्रेमवर्क में क्रेडिट जोखिम के लिए पूंजी गणना के मानकीकृत दृष्टिकोण के तहत जोखिम भार - भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के डिफ़ॉल्ट अनुभव का विश्लेषण" नामक वर्किंग पेपर प्रकाशित किया। भारत में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक वर्तमान में नियामक पूंजी आवश्यकता की गणना के लिए बासल ढांचे के तहत क्रेडिट जोखिम के लिए पूंजी गणना के मानकीकृत दृष्टिकोण का पालन करते हैं। इस दृष्टिकोण के तहत, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि बैंकों के क्रेडिट जोखिम के लिए विनियामक पूंजी की आवश्यकता इन एजेंसियों द्वारा निर्धारित क्रेडिट रेटिंग और बासल ढांचे में निर्धारित जोखिम भार के आधार पर निर्धारित होती है। पेपर द्वारा यह पता लगाने का प्रयास किया गया है कि क्या भारतीय बैंकों की क्रेडिट जोखिम नियामक पूंजी भारतीय रेटिंग एजेंसियों द्वारा निर्धारित रेटिंग से जुड़े डिफ़ॉल्ट अनुभव के अनुरूप है। पेपर, आम उधारकर्ताओं को दी गई रेटिंग के संदर्भ में, और रेटेड उधारकर्ताओं द्वारा डिफॉल्ट के लिए, लिए गए समय के अनुसार रिजर्व बैंक द्वारा मान्यता प्राप्त रेटिंग एजेंसियों के संबंधित मूल्यांकन मानकों की तुलना भी करता है। * रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी: 2016-2017/2676 |