भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2017-18 - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2017-18
28 दिसंबर 2018 भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2017-18 भारतीय रिजर्व बैंक ने आज अपनी वैधानिक रिपोर्ट भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट - 2017-18 जारी की। यह रिपोर्ट 2017-18 और 2018-19 की अब तक की अवधि के दौरान बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित कार्य निष्पादन और मुख्य नीतिगत उपायों को प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों का विश्लेषण भी प्रदान करती है। रिपोर्ट के मुख्य अंश नीचे दिए गए हैं: • दबावग्रस्त परिसंपत्तियों की अधिकता ने बैंकिंग क्षेत्र की समेकित बैलेंस शीट को गिरा दिया, जिससे बड़े प्रावधानों की आवश्यकता हुई, जिससे 2017-18 के दौरान उनकी लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। पहली छमाही : 2018-19 के हालिया आंकड़ों से संकेत मिलता है कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) हालांकि ऊंचे स्तर पर स्थिर होने लगी हैं; पूंजी की स्थितियों को बफ़र किया गया है और प्रावधान कवरेज अनुपात में सुधार हो रहा है। • वर्ष 2017-18 को दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान में एक वाटरशेड माना जा सकता है क्योंकि रिज़र्व बैंक के 12 फरवरी 2018 के परिपत्र के माध्यम से दिवालियापन और शोधन अक्षमता कोड (आईबीसी) के तहत एक नए, व्यापक,निर्णायक और विश्वसनीय ढांचे की नींव रखी गई। • पिछले वर्ष की मंदी से, 2017-18 में ऋण वृद्धि के पुनरुज्जीवन ने वाणिज्यिक क्षेत्र में संसाधनों के कुल प्रवाह में बैंक वित्त की हिस्सेदारी में सुधार के साथ मिलकर, बैंकिंग क्षेत्र की विकास संभावनाओं में अच्छी वृद्धि का संकेत दिया। 2018-19 (अक्टूबर 2018 तक) में निरंतर ऋण वृद्धि की वसूली इस गति को और मजबूत कर सकती है। • रिज़र्व बैंक ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ भारतीय बैंकिंग प्रणाली की तरलता जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को उत्तरोत्तर रूप से संरेखित करने के लिए कदम उठाए। इसके अलावा, वाणिज्यिक बैंकों को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण वितरण की दक्षता बढ़ाने के लिए जमाराशियां स्वीकृत न करनेवाली किंतु प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी-एनडी-एसआई) के साथ प्राथमिकता क्षेत्र ऋणों की सह-उत्पत्ति की अनुमति दी गई। • सहकारी बैंकिंग क्षेत्र में, शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) की समेकित बैलेंस शीट धीमी जमा वृद्धि के कारण 2017-18 में संशोधित हुई। जबकि इन बैंकों की समग्र लाभप्रदता मध्यम रही, उनकी आस्ति-गुणवत्ता में सुधार हुआ। पात्र यूसीबी को अब छोटे वित्त बैंकों (एसएफबी) को स्थानांतरित करने की अनुमति है, जो गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला को पूरा करने में उन्हें सक्षम बनाएगी और उनकी एक अखिल भारतीय उपस्थिति भी होगी। • ग्रामीण सहकारी क्षेत्र में, राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबी) के एनपीए अनुपात और लाभप्रदता में सुधार जारी रहा जबकि जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) का कार्यनिष्पादन खराब रहा। • एनबीएफसी की बैलेंस शीट, विशेष रूप से लोन फाइनेंस प्रदान करनेवाली कंपनियों (एनबीएफसी - लोन कंपनियाँ) की बैलेंस शीट, उधार देने की उनकी संबंधित लागत में बैंकों की तुलना में सापेक्ष गिरावट और पिछले तीन वर्षों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ( एससीबी) की ऋण वृद्धि में कमी की पृष्ठभूमि में कई गुना बढ़ी। एनबीएफसी की समेकित बैलेंस शीट 2017-18 और 2018-19 की पहली छमाही के दौरान विस्तारित हुई। एनबीएफसी की लाभप्रदता फंड-आधारित आय, अपेक्षाकृत कम एनपीए स्तर और मजबूत पूंजी स्थिति के कारण बेहतर हुई। कुछ एनबीएफसी के बारे में हाल की चिंताओं को सक्रिय रूप से संबोधित किया जा रहा है। • रिपोर्ट में प्रमुख चुनौतियों के बारे में सूचित किया गया है, जो भारत में वित्तीय क्षेत्र के दृष्टिकोण को आकार देने की संभावना है, जिनमें शामिल हैं:
जोस जे. कट्टूर प्रेस प्रकाशनी: 2018-2019/1481 |