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भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2020-21

28 दिसंबर 2021

भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति पर रिपोर्ट - 2020-21

भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 36 (2) के अनुपालन में एक सांविधिक प्रकाशन, भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति रिपोर्ट – 2020-21 जारी किया। यह रिपोर्ट 2020-21 और 2021-22 की अब तक की अवधि के दौरान सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं सहित बैंकिंग क्षेत्र के कार्यनिष्पादन को प्रस्तुत करती है।

रिपोर्ट के मुख्य अंश नीचे दिए गए हैं:

  • 2020-21 के दौरान, महामारी और उसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियों में संकुचन के बावजूद, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के समेकित तुलन पत्र के आकार में विस्तार हुआ। 2021-22 में अब तक, ऋण संवृद्धि में सुधार के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं। सितंबर 2021 के अंत में, जमा में, पिछले वर्ष की 11.0 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में 10.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

  • एससीबी का जोखि‍म भारि‍त आस्ति‍यों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर), आंशिक रूप से, उच्च प्रतिधारित आय, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के पुनर्पूंजीकरण और पीएसबी और निजी क्षेत्र के बैंकों (पीवीबी) दोनों द्वारा बाजार से पूंजी जुटाने के कारण, मार्च 2020 के अंत में 14.8 प्रतिशत से मजबूत होकर मार्च 2021 के अंत में 16.3 प्रतिशत और सितंबर 2021 के अंत में 16.6 प्रतिशत हो गया।

  • एससीबी का सकल गैर-निष्पादित आस्तियां (जीएनपीए) अनुपात मार्च 2020 के अंत में 8.2 प्रतिशत से घटकर मार्च 2021 के अंत में 7.3 प्रतिशत और सितंबर 2021 के अंत में 6.9 प्रतिशत हो गया।

  • स्थिर आय और व्यय में गिरावट के कारण एससीबी की परिसंपत्तियों पर प्रतिलाभ (आरओए) मार्च 2020 के अंत में 0.2 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2021 के अंत में 0.7 प्रतिशत हो गया।

  • कोविड-19 महामारी के कारण आरबीआई द्वारा किए गए कुछ नीतिगत उपाय 2021-22 में पूर्व-घोषित अंतिम तारीखों तक पहुंच गए। इसके परिणामस्वरूप कुछ चलनिधि उपायों को बंद कर दिया गया है, जबकि अन्य नियामक उपाय, जिनमें नि‍वल स्थि‍र नि‍धीयन अनुपात (एनएसएफआर) के कार्यान्वयन को स्थगित करना, बैंकों द्वारा लाभांश भुगतान पर प्रतिबंध, पूंजी संरक्षण बफर की अंतिम किश्त के कार्यान्वयन को स्थगित करना शामिल है, को जरूरतमंद क्षेत्रों को लक्षित सहायता प्रदान करते हुए वित्तीय स्थिरता के लिए विस्तारित सहनशीलता और जोखिमों से बचने के लिए पुनः संगठित किया गया है।

  • यद्यपि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत नई दिवाला कार्यवाही की शुरुआत मार्च 2021 तक एक वर्ष के लिए निलंबित कर दी गई थी, परंतु यह वसूली गई राशि के मामले में पुनः प्राप्ति के प्रमुख तरीकों में से एक है।

  • 2020-21 में शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) की तुलन पत्र में वृद्धि जमाओं से प्रेरित थी, जबकि कमजोर ऋण वृद्धि के कारण निवेश में तेजी आई। पूंजी की स्थिति और लाभप्रदता सहित उनके वित्तीय संकेतकों में सुधार हुआ।

  • राज्य सहकारी बैंकों और जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की लाभप्रदता में 2019-20 में सुधार हुआ, जबकि उनकी संपत्ति की गुणवत्ता में कमी आई।

  • जमाराशि स्वीकार न करने वाली प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण एनबीएफसी (एनबीएफसी-एनडी-एसआई) के ऋण और निवेश के कारण 2020-21 के दौरान एनबीएफसी का समेकित तुलन-पत्र का विस्तार हुआ। उनकी संपत्ति की गुणवत्ता और पूंजी बफर में भी सुधार हुआ।

  • रिपोर्ट भारत के वित्तीय क्षेत्र के लिए विकसित हो रही संभावनाओं पर कतिपय परिप्रेक्ष्य भी प्रस्तुत करती है।

(योगेश दयाल) 
मुख्य महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी: 2021-2022/1431

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