रिज़र्व बैंक ने गुजरात इंडस्ट्रियल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) का लाइसेंस रद्द किया - आरबीआई - Reserve Bank of India
रिज़र्व बैंक ने गुजरात इंडस्ट्रियल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) का लाइसेंस रद्द किया
14 नवंबर 2011 रिज़र्व बैंक ने गुजरात इंडस्ट्रियल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि गुजरात इंडस्ट्रियल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) के अर्थक्षम नहीं रह जाने और गुजरात सरकार के परामर्श से बैंक को पुनर्जीवन करने के प्रयास असफल हो जाने तथा सतत अनिश्चितता के कारण जमाकर्ताओं को होनेवाली असुविधा के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 11 नवंबर, 2011 को कारोबार की शुरूआत करने से पहले बैंक को दिया गया लाइसेंस रद्द करने का आदेश ज़ारी किया। सहकारी समितियों के केंद्रीय पंजीयक, नई दिल्ली से भी बैंक के समापन और उसके लिए समापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। उल्लेख किया जाता है कि बैंक के समापन पर हर जमाकर्ता, निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से ₹ 1,00,000 (एक लाख रुपये मात्र) रुपये की मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है। 2. भारतीय रिजर्व बैंक ने 29 सितंबर 1999 को बैंक को बैंकिंग कारोबार करने के लिए लाईसेंस प्रदान किया था। बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949(सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2007 की वित्तीय स्थिति के अनुसार की गई सांविधिक निरीक्षण से यह पता चला कि बैंक की मूल्यांकित निवल संपत्ति (-) ₹ 6930.61 लाख है, सीआरएआर(-) 24.0% था और कुल एवं सकल अग्रिम क्रमानुसार सकल और निवल एनपीए 40.8% और 30.4% रहे तथा जमाराशि में 14.8% तक मूल्यह्रास हुआ है। 3 (क) अपनी नाजुक वित्तीय स्थिति को देखते हुए, तरजीही भुगतान रोकने और जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35 (क) के तहत 20 सितंबर 2008 को कारोबार समाप्ति से लागू रूप में जमाकर्ताओं द्वारा जमाओं से आहरण की सीमा ₹ 1000/ प्रति जमाकर्ता कर दिया है। (ख) शाखा अडजेस्टमेंट/ब्याज स्वीकार्य शीर्ष में फर्जी प्रविष्टि जैसे कुछ गंभीर अनियमितताओं, गलत आस्ति वर्गीकरण के कारण भारी कमी तथा एनपीए को कम दर्शाना, गैर बैंकिंग आस्तियों में की गई लेखांकन धोखाधडी, बोर्ड निदेशकों के खराब कार्यप्रणाली और तुलनपत्र में हरफेर करते हुए बैक की वित्तीय स्थिति को गलत रूप में सुदृढ दिखाना आदि के कारण बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 36 एएए के तहत बैंक के निदेशक मंडल को अधिक्रमित किया गया था और उसी तारीख से एक प्रशासक नियुक्त किया गया था। (ग) ओमिशन एवं कमिशन के माध्यम से बैंक को बडी हानि पहूँचाने के कार्य के लिए बोर्ड के पूर्व निदेशकों के खिलाफ बैंक के प्रशासक द्वारा एक आपराधिक शिकायत दायर करवाया गया था। 4. 31 मार्च 2008 एवं 31 मार्च 2009 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में किए गए निरीक्षणों के दौरान बैंक की वित्तीय स्थिति और बिगड़ी हुई थी। 5. जुलाई 2009 में बैंक के प्रशासक द्वारा प्रस्तुत पुनरुज्जीवन योजना व्यवहार्य नहीं पाया गया तथा वह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ज़ारी विनिर्देश के अनुरूप नहीं था। भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 22 के अंतर्गत बैंक को 20 अगस्त 2009 के पत्र के माध्यम से कारण बताओ नोटिस ज़ारी किया। कारण बताओ नोटिस पर बैंक द्वारा दिए गए उत्तर की जांच की गयी लेकिन संतोषजनक नहीं पाया गया। बैंक को किसी अन्य मज़बूत शहरी सहकारी बैंक के साथ विलयित करने के प्रस्ताव होने के कारण बैंक के भविष्य के संदर्भ में निर्णय को स्थगित रखा गया। 6. अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2010 के अनुसार बैंक के सांविधिक निरीक्षण से वित्तीय स्थिति अत्यधिक खराब होने तथा अन्य उल्लंघनों के बारे में प्रकटन हुआ । बैंक की निवल संपत्ति एवं सीआरएआर क्रमश: (-) ₹ 29184.18 लाख और (-) 365.0% आँका गया। इस बीच जमा का घटाव 60.4% तक का रहा है। सकल और शुद्ध अग्रिमों के 85.4% और 21.3% के रूप में सकल एवं निवल एनपीए गठित है। बैंक द्वारा रिपोर्ट किया हुआ ₹ 3872.93 लाख के निवल हानि की तुलना में बैंक का निवल हानि ₹ 3963.93 लाख रहा। 7. (क) बैंक द्वारा मार्च/अप्रैल 2010 में पुन: प्रस्तुत पुनरुज्जीवन योजना पर विचार किया गया लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों के खिलाफ और व्यवहार्य न प्रतीत होने के कारण उसे स्वीकारा नहीं जा सका। (ख) सारस्वत बैंक लि.,मुंबई का विलयन प्रस्ताव कार्यांवित नहीं हो पाया। शहरी सहकारी बैंक के आस्ति एवं देयता के भार ग्रहण करने के लिए यथोचित परिश्रम करने वाले वाणिज्यिक बैंक भी उक्त हेतु अपनी अनिच्छा प्रकट कर चुके हैं। 8. उपर्युक्त गंभीर अनियमितताओं से पता चला है कि बैंक का कारोबार जमाकर्ताओं के हित के विपरीत चल रहा है। बैंक द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) की धारा 11(1), 22(3) "क" और "ख" का अनुपालन नहीं किया जा रहा है । उपर्युक्त गंभीर अनियमितताओं को तथा बैंक की खराब वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक को 21 अप्रैल, 2011 के पत्र के माध्यम से कारण बताओ नोटिस ज़ारी किया था जिसमें यह कहा गया था कि उन्हें बैंकिंग कारोबार करने के लिए 29 सितंबर, 1999 को जारी किया गया लाइसेंस क्यों न रद्द किया जाए। बैंक ने कारण बताओ नोटिस का जवाब 23 मई, 2011 के पत्र के माध्यम से दिया। कारण बताओ नोटिस पर बैंक द्वारा दिए गए उत्तर की जांच की गयी लेकिन संतोषजनक नहीं पाया गया। इसके आगे बैंक ने पुनरुज्जीवन/नवीनीकरण की कोई जीवनक्षम योजना प्रस्तुत नहीं की तथा किसी अन्य शहरी सहकारी बैंक के साथ विलयन का भी कोई प्रस्ताव नहीं दिया। 9. भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक के जमाकर्ताओं के हित में अंतिम उपाय के रूप में बैंक का लाइसेंस रद्द करने का निर्णय लिया। लाइसेन्स रद्द किये जाने और समापन प्रक्रिया आरंभ करने से गुजरात इंडस्ट्रियल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) के जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी अधिनियम, 1961 के अंतर्गत निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अधीन जमाराशि के भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। 10. लाइसेन्स रद्द किये जाने के अनुसरण में गुजरात इंडस्ट्रियल को-ओपरेटिव बैंक लि., अहमदाबाद (गुजरात) पर बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) की धारा 5(ख) के अंतर्गत जमाराशियाँ स्वीकार करने और उन्हें वापस लौटाने सहित बैंकिंग कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता श्री कमलजीत सिंह, सहायक महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, अहमदाबाद से संपर्क कर सकते हैं। उनका संपर्क ब्यौरा निम्नानुसार है: डाक पता : शहरी बैंक विभाग, अहमदाबाद क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, ला गज्जर चेंबर्स, आश्रम रोड, अहमदाबाद- 380009; टेलीफोन नंबर : (079) 2658 2822 फैक्स नंबर : (079) 2658 4853; ई-मेल जे. डी. देसाई |