भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दि मर्चेंटस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., धुले (महाराष्ट्र) का लाइसेंस रद्द किया गया - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दि मर्चेंटस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., धुले (महाराष्ट्र) का लाइसेंस रद्द किया गया
10 सितंबर 2014 भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दि मर्चेंटस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., धुले (महाराष्ट्र) का इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि दि मर्चेंटस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., धुले (महाराष्ट्र) अर्थक्षम नहीं रह गया है और सतत अनिश्चितता के कारण जमाकर्ताओं को होने वाली असुविधा के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 30 अगस्त 2014 को कारोबार की समाप्ति के बाद बैंक का लाइसेंस रद्द करने के लिए आदेश दिया था। सहकारी समितियों के पंजीयक, महाराष्ट्र से भी बैंक के परिसमापन और उसके लिए परिसमापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने के लिए अनुरोध किया गया है। यह उल्लेख किया जाता है कि बैंक के परिसमापन पर हर जमाकर्ता निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से सामान्य शर्तों पर ₹ 1,00,000/- (एक लाख रुपये मात्र) की उच्चतम मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक को बैंकिंग कारोबार करने के लिए 11 जुलाई 1986 को लाइसेंस मंज़ूर किया गया था। बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू)(इसके बाद से अधिनियम) की धारा 35 के अंतर्गत 31 मार्च 2013 की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा किए गए बैंक के सांविधिक निरीक्षण से अन्य बातों के साथ-साथ यह पता चला कि बैंक की चुकता पूंजी और आरक्षित निधियों का असली या विनिमय योग्य मूल्य (–) ₹ 379.62 लाख रहा जबकि जमा राशियों का 50.7% तक ह्रास हो चुका था। बैंक का सीआरएआर 9% की विनियामकीय अपेक्षा की तुलना में (-) 99.3% पाया गया। संचित हानि ₹ 739.78 लाख दर्ज की गई तथा सकल अनर्जक आस्तियां और निवल अनर्जक आस्तियां क्रमश: ₹ 797.96 लाख (जोकि सकल ऋणों और अग्रिमों का 99.7% है) और ₹ 160.46 लाख (जो निवल अग्रिमों का 98.7% है) पाई गईं। वर्ष 2012-2013 के दौरान बैंक की निवल हानि ₹ 327.21 लाख आंकी गई़। बैंक ने सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) बनाए रखने में चूक की है। वर्ष 2008 से 2011 की प्रारंभिक अवधि में बैंक ने एसएलआर और सीआरआर रखने में की गई चूक के लिए ₹ 35.62 लाख दंड़ स्वरूप ब्याज का भुगतान नहीं किया है। बैंक ने वर्ष 2011-12 और 2012-13 के लिए सांविधिक लेखापरीक्षकों की रिपोर्ट को निर्धारित रूप में प्रकाशित नहीं किया है, जिससे अधिनियम की धारा 31 का उल्लंघन हुआ है। बैंक ने एसएलआर सरकारी प्रतिभूतियों तथा अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में निवेश नहीं किया है जबकि एनडीटीएल का 25 प्रतिशत तक निवेश करना इसकी न्यूनतम अपेक्षा है। निरीक्षण की तारीख की स्थिति के अनुसार, एक पूर्व-निदेशक और संबंधित पार्टियों को दिया गया ऋण ₹ 454.66 लाख बकाया रहा जो बकाया अग्रिमों का 56.8% का हिस्सा बना। इन ऋण खातों की अतिदेय ब्याज राशि ₹ 1225.75 लाख रहा तथा अतिदेय ब्याज आरक्षित निधि के 65.9% मूल्यांकित किया गया। उपर्युक्त सभी मामलों में पूर्व-निदेशक या तो उधारकर्ता रहे हैं या गारंटीकर्ता। निदेशक मंडल का कार्य-संचालन संतोषजनक नहीं रहा क्योंकि वह बैंक की गिरती वित्तीय स्थिति में कोई खासा सुधार नहीं ला पाया तथा बैंक के लिए पुनरुज्जीवन तथा ऋण की देय राशि की वसूली के लिए कोई पहल करने में असमर्थ रहा। 30 जून 2003 के बाद बैंक अपनी बहाली के लिए प्रयासरत था फिर भी उसकी वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं हो पाया। अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत 30 जून 2003 की स्थिति के अनुसार किए गए सांविधिक निरीक्षण में बैंक द्वारा एक निदेशक को ऋण मंजूरी में अनियमितता जैसे गंभीर उल्लंघन पाए गए। उपर्युक्त निरीक्षण के आधार पर 24 दिसंबर 2003 के पत्र के माध्यम से पर्यवेक्षी कार्रवाई की गई तथा बाद में किए गए निरीक्षणों के निष्कर्षों को देखते हुए उनमें समय-समय पर संशोधन किए गए। 31 मार्च 2007 से 31 मार्च 2012 तक किए गए निरीक्षणों से पता चला है कि बैंक ने उधार के लिए निर्धारित शेयर लिंकिंग मानदंड़ का पालन नहीं किया है, बैंक अपने परिसर मे न्यास (Trust) का संचालन कर रहा था जोकि उपर्युक्त अधिनियम की धारा 6 का उल्लंघन है। बैंक ने वर्ष 2007-2008 के दौरान अपनी संपूर्ण सरकारी प्रतिभूतियों को बेच दिया और उसके बाद से सरकारी प्रतिभूतियों में न्यूनतम निवेश किए जाने संबंधी आरबीआई के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है, बैंक में ऋण मूल्यांकन और संवितरण के बाद पर्यवेक्षण की प्रणाली संतोषजनक नहीं रही। बैंक ने नाममात्र सदस्यों को ₹ 0.50 लाख से अधिक राशि की गैर-ज़मानती अग्रिम की मंज़ूरी दी है जिससे गैर-ज़़मानती अग्रिमों पर आरबीआई के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हुआ है, कुछ मामलो मे बैंक ने एकल उधारकर्ता की सीमा पार की है, 30 जून 2003 के निरीक्षण रिपोर्ट के बाद हर निरीक्षण रिपोर्ट में संकेत दिए जाने के बावजूद बैंक ने पूर्व-निदेशक से ऋण राशि की वसूली नहीं की है तथा बैंक में ऋण-वसूली की प्रक्रिया प्रभावी नहीं रही, बैंक ने आईआरएसी मानदंड़ का पालन नहीं किया है, संचित हानि होने के बावजूद बैंक ने दो संगठनों को दान प्रदान किया है जो 20 अक्तूबर 2005 के आरबीआई परिपत्र में बताए गए अनुदेशों का उल्लंघन है। बैंक ने संगामी/आंतरिक लेखापरीक्षा और ईडीपी लेखापरीक्षा का आयोजन नहीं किया था, बैंक द्वारा विभिन्न निरीक्षण रिपोर्टों के संदर्भ में प्रस्तुत अनुपालन संतोषजनक नहीं रहा, बोर्ड ने बैक की बहाली के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए। बैंक की वित्तीय स्थिति को देखते हुए 31 मार्च 2012 को उपर्युक्त अधिनियम की धारा 35ए के अधीन सर्वसमावेशी निदेश जारी किए गए तथा ये निदेश 13 दिसंबर 2012 की कारोबार समाप्ति से लागू हो गए। बाद में तीन अवसरों में 12 दिसंबर 2014 तक इन निदेशों की अवधि को बढ़ाया गया। उपर्युक्त गंभीर अनियमितताओं से यह पता चला कि बैंक का कारोबार जमाकर्ताओं के हित में नहीं था। बैंक ने अधिनियम की धारा 11(1), 18, 22(3)(ए), 22(3)(बी) तथा 31 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया। अत: भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक को 15 मई 2014 के पत्र के माध्यम से कारण बताओ नोटिस जारी किया था जिसमें यह कहा गया था कि अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत उन्हें बैंकिंग कारोबार करने के लिए 11 जुलाई 1986 को जारी किया गया लाइसेंस क्यों न रद्द किया जाए तथा बैंक का समापन क्यों न किया जाए। 02 और 14 जून 2014 के पत्र के माध्यम से कारण बताओ नोटिस पर बैंक द्वारा दिए गए उत्तर की जांच की गयी। कारण बताओ नोटिस के संदर्भ में दिया गया बैंक का उत्तर संतोषजनक नहीं रहा साथ ही उस पत्र में बैंक के संचालन के संबंध में पुनुरुज्जीवन/सुधार के लिए कोई ठोस प्रस्ताव का उल्लेख नहीं था। उक्त पत्र में न तो कोई ठोस विलयन प्रस्ताव का उल्लेख था, न ही सुधार के लिए योजना बताई गई। अत: उपर्युक्त के मद्देनज़र, भारतीय रिज़र्व बैंक ने जर्माकर्ताओं के हित में अंतिम उपाय के रूप में बैंक के लाइसेंस को रद्द किया है। लाइसेन्स रद्द किये जाने और परिसमापन प्रक्रिया आरंभ करने से दि मर्चेंटस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड., धुले (महाराष्ट्र) के जमाकर्ताओं को डीआईसीजी अधिनियम के अनुसार निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अधीन बीमाकृत की गई जमाराशि के भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। लाइसेंस रद्द होने के परिणामस्वरूप दि मर्चेंटस को-ऑरेटिव लिमिटेड., धुले (महाराष्ट्र) को अधिनियम के अंतर्गत की धारा 5(ख) के अंतर्गत यथापरिभाषित "बैंकिंग व्यवसाय" करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस संबंध में किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता, श्रीमती निखिला कौदरी, महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग, मुंबई, क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई से संपर्क कर सकते हैं। उनसे संपर्क करने के ब्यौरे निम्ननुसार है: डाक पता: शहरी बैंक विभाग, मुंबई क्षेत्रीय कार्यालय, भारतीय रिज़र्व बैंक, 2री मंजि़ल, गारमेंट हाउस, डॉ.ए.बी.रोड, वरली, मुंबई–400 018 टेलीफोन सं. : (022) 24824222, फैक्स सं. : (022) 24935495; ई-मेल अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2014-2015/521 |