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रिज़र्व बैंक ने दी चारमीनार को-ओपरेटिव अर्बन बैंक लि., हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) का लाइसेंस रद्द किया

16 नवंबर 2011

रिज़र्व बैंक ने दी चारमीनार को-ओपरेटिव अर्बन बैंक लि., हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) का लाइसेंस रद्द किया

इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए कि दी चारमीनार को-ओपरेटिव अर्बन बैंक लि., हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) के अर्थक्षम नहीं रह जाने और आंध्रप्रदेश सरकार के परामर्श से  बैंक को पुनर्जीवन करने के प्रयास असफल हो जाने तथा सतत अनिश्चितता के कारण जमाकर्ताओं को होनेवाली असुविधा के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 08 नवंबर, 2011 के आदेश के माध्यम से 15 नवंबर 2011 को कारोबार की समाप्ति के बाद बैंक को दिया गया लाइसेंस रद्द करने का आदेश ज़ारी किया। सहकारी समितियों के  पंजीयक, आंध्रप्रदेश राज्‍य से भी बैंक के समापन और उसके लिए समापक नियुक्त करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया है। उल्लेख किया जाता है कि बैंक के समापन पर आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा आंध्रप्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1964 की धारा 115(बी)(1) के तहत 27 फरवरी, 2003 के जीओ एमएस सं 4 द्वारा अधिसूचित पुनरनिर्माण योजना के अंतर्गत यदि उन्हें राशि प्राप्त नहीं है तो हर जमाकर्ता, निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) से शर्तों के अधीन 1,00,000 (एक लाख रुपये मात्र) रुपए की मौद्रिक सीमा तक अपनी जमाराशियों को वापस पाने का हकदार होता है।

2. भारतीय रिज़र्व बैंक ने 24 सितंबर 1985 को बैंक को बैंकिंग कारोबार करने के लिए लाईसेंस प्रदान किया था। बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 36 के अंतर्गत 30 सितंबर 2001 की वित्तीय स्थिति के अनुसार की गई निरीक्षण निष्कर्षों के आधार पर 02 जनवरी 2002 को लागू रूप में परिचालनात्मक विनिर्देश ज़ारी किए  जिससे अन्य बातों के साथ-साथ बैंक पर जमा स्वीकार/भुगतान करने तथा उधार देने पर कुछ प्रतिबंध लागू हुए। फिर भी बैंक की नकदी की स्थिति संकटपूर्ण बनी रही।

3. फरवरी 2002 में रिज़र्व बैंक द्वारा की गई संवीक्षा से यह ज्ञात हुआ कि जमाकर्ताओं के माँग की आपूर्ति करने हेतु बैंक सक्षम नहीं था। जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बैंककारी विनियमन अधिनियम,1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35 (क) के तहत 25 फरवरी 2002 को कारोबार समाप्ति से लागू रूप में जमाकर्ताओं द्वारा जमाओं से आहरण की सीमा 1000/ प्रति जमाकर्ता कर दिया । 02 मार्च, 2002 को बैंक के निदेशक मंडल को अधिक्रमित किया गया और आरसीएस, आंध्रप्रदेश ने बैंक के प्रबंधन के कार्यों को देखने के लिए प्रभारी व्यक्ति समिति को नियुक्त किया।

4. बैंक के पुर्नजीवन एवं पुनर्गठन के उद्देश्य से आंध्रप्रदेश सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक से परामर्श करते हुए पुनरनिर्माण योजना को 3 मार्च 2003 से लागू रूप में अधिसूचित किया। तदनुसार बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू) की धारा 35(क) के अधीन ज़ारी विनिर्देश को रद्द किया गया। लेकिन यह योजना वांछित परिणाम लाने में विफल रही। आगे हुई निरीक्षण से यह पता चला कि बैंक की वित्तीय स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुई है।

5.     31 मार्च 2010 के अनुसार बैंक के सांविधिक निरीक्षण तथा 31 मार्च 2011 के अनुसार संवीक्षा से यह प्रकट हुआ कि बैंक की कार्यपद्धति परिवर्तित नहीं है। 31 मार्च 2011 के अनुसार बैंक की निवल संपत्ति एवं सीआरएआर क्रमश: (-) 137.33 लाख और 999.9% आँका गया। पूरे ऋण पोर्टफोलियो बिगडे रूप में मूल्यांकित किए गये थे और संपूर्ण जमा कम हो गया था।

6.     परिशोधित पुनरनिर्माण योजना के अनुसार मार्च 2009 की शुरूआत से 10 लाख से अधिक जमाराशि वाले सभी जमाकर्ताओं की शेष राशि आठ समान छमाही अर्धवार्षिक किश्तों में भुगतान किया किया जाना था। यह ध्यान में आया है कि अंतिम किश्त (5 वीं) का  भुगतान एनपीए वसूली से प्राप्त नकद से नहीं किए गए हैं बल्कि अन्य बैंकों के साथ बनाए रखे हुए सावधि जमा को बंद करते हुए प्राप्त नकद से किए हैं। बैंक ने खुद यह स्वीकारा है कि एनपीए खातों में आगे किसी प्रकार की वसूली संभव नहीं है। एनपीए खातों में आगे किसी प्रकार की वसूली के बिना बैंक शायद ही अगले किश्तों की चुकौती कर सकती हैं।

7.     उपर्युक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों से यह पाया गया है कि

i) बैंक द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) की धारा 11(1), 22(3) "क" और "ख" का अनुपालन नहीं किया जा रहा है ।
ii) बैंक जमाकर्ता द्वारा दावा किए जाने पर पूर्ण भुगतान करने की स्थिति में नहीं है।
iii) बैंक का कारोबार जमाकर्ताओं के हित के विपरीत चल रहा है।
iv)     बैंक की वित्तीय स्थिति में पुनरुद्धार के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
v) यदि बैंक को बैंकिंग का कारोबार करने हेतु अनुमति दी जाए तो वह जमाकर्ताओं के हित के
विपरीत होगा।

8. भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक को 14 जुलाई, 2011 के पत्र के माध्यम से कारण बताओ नोटिस ज़ारी किया था जिसमें यह कहा गया था कि उन्हें बैंकिंग कारोबार करने के लिए जारी किया गया लाइसेंस क्यों न रद्द किया जाए। कारण बताओ नोटिस पर बैंक द्वारा दिए गए उत्तर की जांच की गयी लेकिन संतोषजनक नहीं पाया गया। इसके आगे बैंक ने पुनरुज्जीवन/नवीनीकरण की कोई जीवनक्षम योजना प्रस्तुत नहीं की और रिज़र्व बैंक ने जमाकर्ताओं के हित में अंतिम उपाय के रूप में बैंक का लाइसेंस रद्द करने का निर्णय लिया। लाइसेन्स रद्द किए जाने और समापन प्रक्रिया आरंभ करने से दी चारमीनार को-ओपरेटिव अर्बन बैंक लि., हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) के जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी के अंतर्गत निक्षेप बीमा योजना की शर्तों के अधीन जमाराशि के भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी।

9. लाइसेन्स रद्द किये जाने के अनुसरण में दी चारमीनार को-ओपरेटिव अर्बन बैंक लि., हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) पर बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 (सहकारी सोसायटियों पर यथालागू) की धारा 5(ख) के अंतर्गत जमाराशियाँ स्वीकार करने और उन्हें वापस लौटाने सहित बैंकिंग कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

किसी भी स्पष्टीकरण के लिए जमाकर्ता श्री आर. एन. दाश, महाप्रबंधक, शहरी बैंक विभाग,  भारतीय रिज़र्व बैंक, हैदराबाद से सपर्क कर सकते हैं। उनका संपर्क ब्यौरा निम्नानुसार है:

डाक पता : शहरी बैंक विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, सचिवालय मार्ग, सैफाबाद, हैदराबाद –500004; टेलीफोन नंबर : (040) 2323 4920 फैक्स नंबर : (040) 2323 5891; ई-मेल.

अजीत प्रसाद
सहायक महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/769

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